‘सर’: रोहेना गेरा की एक साहसी फिल्म / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 27 मार्च 2021
कुछ समय पूर्व इंटरनेट पर रोहेना गेरा की ‘सर’ नामक फिल्म का प्रदर्शन हुआ। महानगर में एक कामकाजी युवा व्यक्ति की सेविका ग्रामीण क्षेत्र से आई है। वह साफ-सफाई करती है और भोजन भी बनाती हैं। सेविका को रहने के लिए एक कक्ष दिया गया है। युवा के साथ काम करने वाली एक अन्य मित्र कभी-कभी फ्लैट पर आती है। एक अलग तथ्य है कि महानगर में काम करने वाले लोग विवाह कर लेते हैं। अपने-अपने काम से लौटकर वे थोड़ा विश्राम करके डांस और डिनर करते हैं। इन जोड़ों के बीच एक करारनामा होता है कि वे बच्चों को जन्म देना नहीं चाहते। उन्हें रिश्ते की सहूलियत पसंद है परंतु उत्तरदायित्व से कतराते हैं।
फिल्मकार ने कलाकार के सहयोग से यह प्रभाव रचा है कि सेविका का भीतरी सौंदर्य धीरे-धीरे उजागर होता है। वह अलसभोर की किरण-दर-किरण उजागर होती है। इनके बीच आकर्षण भी दबे पांव चलता सा लगता है। सेविका उसे हमेशा ‘सर कहकर संबोधित करती है। वह भी इस अनाम रिश्ते की उजास महसूस करती है। सेविका जानती है कि ‘जिस रिश्ते को मुकाम तक ले जाना ना हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना बेहतर है।’ उनके बीच मर्यादा के भीतर अंतरंगता के प्रारंभ को ही, वह मन मार कर समाप्त कर देती है। कहती है कि युवा के माता-पिता को कितना आघात पहुंचेगा वे अपमानित किए जाएंगे। उनके मान-अपमान को ध्यान में रखकर, वह दूर जाने का निर्णय लेती है। युवा से वचन लेती है कि वह संपर्क का प्रयास नहीं करेगा। युवती की छोटी बहन के विवाह के साधन भी युवा ने उसे दिए हैं।
ग्रामीण युवती अंतिम भेंट के समय पहली बार उसे ‘सर’ नहीं वरन नाम से संबोधित करती है। वह अपने प्रेम से विवश होकर लौटती है परंतु युवा अनजाने मुकाम की ओर जा चुका है। युवती महसूस करती है कि वह अपने प्रेमी की गहराई को समझ नहीं पाई। बड़ी देर कर दी मेहरबां आते-आते। ऋषि कपूर और रति अग्निहोत्री अभिनीत फिल्म बलदेव राज चोपड़ा ने ‘तवायफ’ के नाम से बनाई थी। आधे पागल व्यक्ति के इलाज के लिए एक तवायफ से सेवा ली जाती है। संजीव कुमार और मुमताज अभिनीत फिल्म ‘खिलौना’ बन चुकी है। वहीदा रहमान, धर्मेंद्र राजेश खन्ना अभिनीत फिल्म ‘खामोशी’ में एक नर्स अपने स्नेह से पागलों को ठीक कर देती है। ठीक होते ही वे उसे भूल जाते हैं। नतीजतन स्वयं नर्स अपना मानसिक संतुलन खो देती है। कमल हासन और श्रीदेवी अभिनीत ‘सदमा’ में नायिका भली-चंगी होकर युवा को भूल जाती है।
महेश भट्ट की फिल्म ‘गैंगस्टर’ में अपराध जगत के एक सदस्य को बार कन्या से प्रेम हो जाता है। दोनों भाग जाते हैं। लंबे समय तक साथ रहकर भी वे शारीरिक अंतरंगता से बचे रहते हैं। हाशमी अभिनीत सरकारी गुप्तचर बार कन्या को प्रेम जाल में फंसा कर अपराधी को गिरफ्तार कर लेता है। बार कन्या सत्य जानते ही गुप्तचर और साथियों की हत्या करके बहुमंजिला से छलांग लगा देती है। इस फिल्म के कलाकार ने यथार्थ जीवन में अपनी नौकरानी को शारीरिक संबंध बनाने के लिए विवश किया था। बाद में अवसर मिलते ही सेविका, सप्रमाण सब कुछ उजागर कर देती है। कलाकार ने जेल भुगती, सजा काटने के बाद उसको दूसरा अवसर नहीं मिला। निर्मम समाज दूसरा अवसर नहीं देता। एक क्षण के अपराध की सजा जीवन भर भुगतनी पड़ती है। समाज अपराध की जगह अपराधी से नफरत करने लगता है। कुछ लोग अपराध करके दंड से बच निकलते हैं। इस तरह दंड से बचे लोग सार्वजनिक जीवन में सत्ता प्राप्त कर लेते हैं और एक अजब निजाम की रचना होती है। ‘सर’ का निर्देशन रोहेना गेरा ने किया है। विरह को जीवन शैली बनाना कठिन है। अपने-अपने रास्ते पर चलते हुए जीना साहस का काम है। विरह में मर जाना सुविधाजनक रास्ता है। जीना, प्रार्थना और पीड़ा का एकाकार करता है।