“ऑल अबाउट माय मदर” स्त्री स्वाभिमान और संघर्ष की मिसाल / राकेश मित्तल

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“ऑल अबाउट माय मदर” स्त्री स्वाभिमान और संघर्ष की मिसाल
प्रकाशन तिथि : 26 अप्रैल 2014


मैनुएला के रूप में हम एक ऐसी मां को देखते हैं, जो अपनी जिंदगी का सबसे गहरा सदमा झेलने के बावजूद टूटकर बिखर नहीं जाती। अपने आप को संभालकर वह न केवल स्वयं उठ खड़ी होती है, बल्कि अन्य जरूरतमंदों का भी सहारा बनती है।


पेड्रो अल्मोदोवर स्पेन के प्रतिष्ठित फिल्मकार हैं। वे एक कुशल निर्देशक होने के साथ-साथ अभिनेता, पटकथा लेखक एवं निर्माता भी हैं। उनकी फिल्में अति नाटकीय भावाभिव्यक्ति, गहरे भड़कीले बिम्बों और तीक्ष्ण संवेदनाओं के लिए जानी जाती हैं। वे स्पेन के उन चुनिंदा फिल्मकारों में से हैं, जिन्होंने स्पेनिश सिनेमा को वैश्विक पहचान दिलाई है। वर्ष 1999 में प्रदर्शित 'ऑल अबाउट माय मदर" उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है। इस फिल्म को विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर, गोल्डन ग्लोब एवं बाफ्टा पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा अनेक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे ढेरों पुरस्कार मिले थे।

यह एक अत्यंत जटिल फिल्म है, जिसमें तीव्र भावनात्मक आवेगों के बीच एड्स, समलैंगिकता, अध्यात्म और अस्तित्ववाद जैसे कई पेचीदा विषयों को उठाया गया है। फिल्म की कहानी एक युवा सिंगल मदर मैनुएला (सिसिलिया रॉथ) पर केंद्रित है, जो एक किशोर वय बालक एस्तेबान (एलॉय एजोरिन) की मां है। मैनुएला मेड्रिड के एक अस्पताल में नर्स का काम करती है। एस्तेबान के सत्रहवें जन्मदिन पर वे दोनों एक नाटक देखने जाते हैं। थिएटर से बाहर निकलते समय नाटक की हीरोइन हुमा रोजो (मारिसा पेराडोज) का ऑटोग्राफ लेने एस्तेबान उसके पीछे भागता है और तभी पीछे से तेजी से आती हुई एक कार उसे कुचल देती है। एस्तेबान वहीं दम तोड़ देता है। इस दर्दनाक हादसे को देख मैनुएला सन्ना रह जाती है किंतु वह एक अत्यंत साहसिक और दृढ़ निश्चय वाली महिला है। किसी तरह अपने आप को संभालकर वह जिंदगी का सामना करने का निश्चय करती है।

एस्तेबान की अंतिम इच्छा एक बार अपने पिता से मिलने की थी, जिसे उसने कभी नहीं देखा था। मैनुएला स्वयं पिछले सत्रह सालों से उससे नहीं मिली थी किंतु अब वह किसी भी तरह अपने पूर्व प्रेमी को ढूंढकर उसे उसके बेटे की इच्छा के बारे में बताना चाहती है। अंतिम बार वह बार्सिलोना में उसके साथ थी। मैनुएला मेड्रिड से बार्सिलोना की यात्रा शुरू करती है, जहां उसे अपने पूर्व प्रेमी को खोजना है। सत्रह वर्ष पूर्व उसने ऐसी ही यात्रा बार्सिलोना से मेड्रिड के लिए की थी, जब उसका प्रेमी उसे छोड़कर चला गया था और उसका अंश एस्तेबान के रूप में मैनुएला के गर्भ में पल रहा था। वापसी की इस यात्रा में उसकी मुलाकात अनेक प्रकार के किरदारों से होती है। ये सभी महिलाएं हैं, जो विभिन्ना कारणों और परिस्थितियों वश मानसिक रूप से विक्षुब्ध्ा हैं। इन महिलाओं में उसकी पुरानी मित्र ला एग्रेदो (एंटोनिया युआन) है, जो एक किन्नार वेश्या है। रोजा (पेनेलोप क्रूज) नामक गर्भवती नन है, जिसका मैनुएला के पूर्व प्रेमी (एस्तेबान के पिता) से अफेयर चल रहा है। नीना नामक ड्रग एडिक्ट युवती है, जिसके हुमा रोजो (नाटक की हीरोइन) से समलैंगिक संबंध हैं। रोजा के द्वारा उसे मालूम होता है कि उसका पूर्व प्रेमी एड्स का शिकार है और उसने रोजा सहित कई महिलाओं को यह बीमारी हस्तांतरित कर दी है, जिसके कारण वे तिल-तिल कर मरने के लिए मजबूर हैं। इन महिलाओं के दु:खों को देखकर मैनुएला को अपना दर्द कमतर लगने लगता है। वह उनसे पूरी सहृदयता से पेश आती है और उनकी हरसंभव मदद करने की कोशिश करती है। फिल्म का अंत बेहद मार्मिक है।

यह फिल्म स्त्री स्वाभिमान और संघर्ष के नए आयाम प्रस्तुत करती है। मैनुएला के रूप में हम एक ऐसी मां को देखते हैं, जो अपनी जिंदगी का सबसे गहरा सदमा झेलने के बावजूद टूटकर बिखर नहीं जाती। अपने आप को संभालकर वह न केवल स्वयं उठ खड़ी होती है, बल्कि अन्य जरूरतमंदों का भी सहारा बनती है। फिल्म की पटकथा बेहद कसी हुई है और पूरे समय बांधे रखती है। मैनुएला की भूमिका में सिसिलिया रॉथ ने कमाल किया है। भीषण मानसिक झंझावात से गुजरते हुए उसका निस्पृह एवं परिपक्व व्यवहार अचंभित करता है। फिल्म के अन्य कलाकार भी अपनी-अपनी भूमिकाओं से न्याय करते हैं। यह उन लोगों की कहानी है, जो समाज के परंपरागत ढांचे और नियमों से अलग हटकर अपनी शर्तों और तरीकों से अपनी जिंदगी जीते हैं, धोखा खाते हैं, गिरते हैं, संभलते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।