“कैमरा बफ” आम आदमी के हाथ लगा मूवी कैमरा / राकेश मित्तल

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“कैमरा बफ” आम आदमी के हाथ लगा मूवी कैमरा
प्रकाशन तिथि : 03 मई 2014


यह फिल्म समाज में फिल्मकार की भूमिका पर एक विमर्श है। इसमें कई परतें हैं, जिनकी सूक्ष्म बुनावट में अनेक संकेत छिपे हैं।

क्रिश्तोफ किश्लोवस्की पोलिश सिनेमा के सबसे प्रभावशाली फिल्मकारों में से हैं। वे एक कुशल निर्देशक होने के साथ-साथ बेहतरीन पटकथा लेखक भी हैं। उनके द्वारा बनाई गई पोलिश टेलीविजन के लिए बाइबल के 'टेन कमांडमेंट्स" पर आध्ाारित दस शॉर्ट फिल्मों की सिरीज 'द डेकलॉग" पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस सिरीज को 'द बेस्ट ड्रामेटिक वर्क एवर डन फॉर एनी टेलीविजन" की संज्ञा दी गई है। बाद में 'थ्री कलर्स ट्रायोलॉजी" ने उन्हें प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुंचा दिया। ब्रिटिश पत्रिका 'साइट एंड साउंड" ने उन्हें विश्व के दस महानतम फिल्मकारों में से एक निरूपित किया है।

अपने करियर के शुरूआती दिनों में बनाई गई उनकी फिल्म 'कैमरा बफ" (1979) ने पूरी दुनिया के फिल्म समीक्षकों का ध्यान आकर्षित किया। राजनीतिक व्यंग्य की शैली में बनी यह फिल्म एक ब्लैक कॉमेडी है, जिसमें निर्देशक ने अत्यंत कुशलतापूर्वक सामान्य घटनाओं के माध्यम से गंभीर बात कहने की कोशिश की है। इस फिल्म को मॉस्को एवं बर्लिन के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सर्वश्रेष्ठ फिल्म के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

फिल्म का नायक फिलिप (जर्सी स्टुअर) एक साध्ाारण फैक्टरी कर्मचारी है। उसकी पत्नी इरका (मेलगोर्जता जब्कोव्स्का) ने हाल ही में एक बेटी को जन्म दिया है। फिलिप की यह पहली संतान है, जिस कारण वह बेहद उत्साहित भी है और नर्वस भी। इस अवसर पर वह बाजार से एक 8 एमएम मूवी कैमरा खरीदकर लाता है ताकि बेटी के शुरूआती दिनों के हर लम्हे को वह स्मृति के रूप में कैद कर सके। उसे नहीं मालूम कि यह कैमरा आगे चलकर उसका पूरा जीवन बदल देगा। शुरूआत में शौकिया तौर पर उपयोग किया जाने वाला यह कैमरा धीरे-धीरे उसके जीवन का हिस्सा बन जाता है। उसे फिल्म बनाने में मजा आने लगता है और अपने आसपास घटित होने वाले लगभग हर क्रियाकलाप का वह वीडियो बनाने लगता है। उसकी इन हरकतों से पत्नी इरका बेहद खफा रहती है किंतु फिलिप पर इसका कोई असर नहीं होता।

उसके छोटे-से शहर में किसी भी व्यक्ति के पास यह पहला मूवी कैमरा है, इस कारण बहुत जल्द एक फोटोग्राफर के रूप में फिलिप की ख्याति चारों ओर फैल जाती है। उसकी फैक्टरी का बॉस, जोकि स्थानीय कम्युनिस्ट पार्टी का नेता भी है, उसे फैक्टरी के रजत जयंती समारोह के अवसर पर एक वीडियो फिल्म बनाने का न्यौता देता है। फिलिप इस बात से बेहद उत्साहित है। वह पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और विस्तार के साथ यह फिल्म बनाता है, जिसके चलते वह कई ऐसी बातें और दृश्य भी रेकॉर्ड कर लेता है, जो फैक्टरी की छवि के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। फिल्म बनाने के प्रति उसके जुनून को देखकर उसे फैक्टरी में एक छोटा-सा फिल्म क्लब एवं प्रोडक्शन यूनिट खोलने की अनुमति मिल जाती है, जहां वह विभिन्ना विषयों पर वृत्तचित्र नुमा फिल्में बनाने लगता है। उसकी बनाई एक फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म समारोह में पुरस्कार भी मिल जाता है। मगर उसका यह जुनून और रचनात्मक ईमानदारी उसके सामने कई चुनौतियां भी खड़ी कर देती है। वह आत्म विश्लेषण के लिए बाध्य हो जाता है: वह फिल्में क्यों बनाता है? उसके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है? उसका परिवार, उसकी नौकरी या फिर ये फिल्में! क्या यह सिर्फ मनोरंजन है या दुनिया को जानने का एक जरिया? या समाज और राजनीति की विद्रूपताओं पर उसके तटस्थ बयान? इन दार्शनिक सवालों के जवाब खोजते हुए उसे जीवन की प्राथमिकताएं तय करना हैं।

यह फिल्म समाज में फिल्मकार की भूमिका पर एक विमर्श है। इसमें कई परतें हैं, जिनकी सूक्ष्म बुनावट में अनेक संकेत छिपे हैं। तकनीकी सिनेमाई गुणवत्ता की कसौटी पर शायद यह फिल्म उतनी खरी न उतरे किंतु विषयवस्तु, पटकथा और चरित्र चित्रण के लिहाज से यह एक लाजवाब फिल्म है। इस फिल्म के पहले किश्लोवस्की की पहचान सिर्फ पोलैंड तक सीमित थी किंतु इसके बाद वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हो गए। इसके पूर्व पंद्रह वर्षों तक उन्होंने अधिकांशत: वृत्तचित्र नुमा फिल्मों का ही निर्माण किया लेकिन इसके बाद वे कथापरक फिल्मों की ओर मुड़े और अनेक कालजयी कृतियों का सृजन कर गए।