“गॉन विथ द विंड” एक कालजयी प्रणय गाथा / राकेश मित्तल

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“गॉन विथ द विंड” एक कालजयी प्रणय गाथा
प्रकाशन तिथि : 15 मार्च 2014


दुनिया में कई मशहूर किताबों पर फिल्में बनी हैं जिनमें से कुछ सफल हुई हैं, तो कुछ असफल। किंतु जो चमत्कारिक सफलता इस किताब और इस पर बनी फिल्म को मिली है, वह कल्पना से परे है। जून 1936 में मैकमिलन प्रकाशन ने एक अनजान-सी लेखिका मार्गरेट मिशेल का पहला और अंतिम उपन्यास 'गॉन विथ द विंड" प्रकाशित किया। बाजार में आते ही लोग इसे खरीदने के लिए उमड़ पड़े। प्रारंभिक कुछ महीनों में इसकी औसतन पचास हजार प्रतियां प्रतिदिन बिकने का कीर्तिमान है। डेढ़ हजार पृष्ठों के इस उपन्यास की अब तक पैंतीस करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं। इस एक उपन्यास ने मार्गरेट मिशेल को अमर कर दिया।

स्वाभाविक रूप से इस उपन्यास पर फिल्म बनाने की रुचि कई निर्माताओं में जागृत हुई। अमेरिका के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता डेविड सेल्झेनिक ने उस जमाने में पचास हजार डॉलर में इस उपन्यास के अधिकार खरीदकर हलचल मचा दी थी। वर्ष 1939 में जब यह फिल्म बनकर प्रदर्शित हुई, तो लोग इसे देखने के लिए टूट पड़े। प्रदर्शन के बाद इसने बॉक्स ऑफिस पर कमाई के सारे रेकॉर्ड तोड़ दिए और विश्व की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई। यदि महंगाई दर और मुद्रास्फीति सूचकांक को समायोजित कर लिया जाए, तो आज भी यह दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म है।

फिल्म का समय 1860 के दशक का है, जब अमेरिका गृह युद्ध और दास प्रथा जैसी चुनौतियों से जूझ रहा था। अब्राहम लिंकन उन दिनों अमेरिका के राष्ट्रपति थे, जो अमेरिकी संसद से गुलामी प्रथा समाप्त करने का कानून पारित करवाने में सफल हो गए थे किंतु दक्षिण में स्थित जॉर्जिया और उसके आसपास के सात राज्यों ने इस कानून को मानने से इंकार कर दिया था। उन राज्यों की अर्थव्यवस्था कपास की खेती पर निर्भर थी, जहां बड़ी संख्या में अफ्रीकी गुलाम काम करते थे। इन राज्यों ने मिलकर 'साउथ कॉन्फेडरेशन" नामक दक्षिणी संघ बना लिया था और शेष अमेरिकी राज्य 'नॉर्थ अमेरिका" या 'यूनियन" के नाम से जाने गए। लिंकन के आदेश पर 1864 में 'यूनियन" की सेना ने दक्षिणी संघ पर हमला कर इस विरोध को कुचल दिया, जिसकी कीमत अंतत: लिंकन को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

फिल्म में इसी पृष्ठभूमि पर स्कार्लेट नामक खूबसूरत, चंचल और शोख युवती की प्रेम गाथा पिरोई गई है। फिल्म का केंद्र दक्षिणी संघ के जॉर्जिया राज्य में स्थित अटलांटा शहर है। स्कार्लेट (विवियन ली) एश्ले (लेस्ली हावर्ड) नामक युवक से जुनून की हद तक एकतरफा प्यार करती है, जबकि एश्ले अपनी रिश्तेदार मेलिनी (ऑलिविया डी हॉलैंड) से शादी करना चाहता है। उधर हथियारों का व्यापारी रेट बटलर (कलार्क गेबल) स्कार्लेट को चाहता है। इन चारों चरित्रों को बहुत खूबसूरती से बुना गया है और इन्हें उभारने के लिए कई अन्य सहायक चरित्र रचे गए हैं। कहानी इतनी कुशलता और विस्तार से रची गई है कि दर्शक एक पल के लिए भी अपने आप को उस वातावरण से अलग नहीं कर पाता। पौने चार घंटे लंबी फिल्म कब शुरू होती है और कब खत्म हो जाती है, पता ही नहीं चलता। फिल्म का सबसे सशक्त पक्ष इसके पात्रों का चरित्र चित्रण है। रेट बटलर और स्कार्लेट के चरित्रों को बहुत खूबसूरती से उभारा गया है। उनके तकरीबन विपरीत स्वभाव, जीवन जीने का अजीब अंदाज, आपसी नोक-झोंक और मस्ती-मजाक अद्भुत केमिस्ट्री की रचना करता है। एक स्थान पर स्कार्लेट कहती है,'वी बोथ आर रास्कल्स", जो एक तरह से उन दोनों पात्रों की सटीक व्याख्या है।

यह पूरी तरह से निर्माता डेविड सेल्झेनिक की फिल्म है। फिल्म की गुणवत्ता के किसी भी पहलू पर उन्होंने कोई समझौता नहीं किया। नायक रेट बटलर की भूमिका के लिए वे क्लार्क गेबल को ही लेना चाहते थे, भले ही इसके लिए उन्हें दो वर्ष इंतजार करना पड़ा। स्कार्लेट की भूमिका के लिए उपयुक्त लड़की की तलाश एक बहुत बड़ी चुनौती थी। 1400 से ज्यादा युवतियों के स्क्रीन टेस्ट और इंटरव्यू के बाद उन्होंने भारत के दार्जीलिंग में जन्मी ब्रिटिश अभिनेत्री विवियन ली को चुना। फिल्म के शुरूआती निर्देशक जॉर्ज कुकर के काम से असंतुष्ट होने पर उन्होंने कुकर को हटाकर विक्टर फ्लैमिंग को नया निर्देशक नियुक्त किया। फिल्म के अंतिम चरण में फ्लैमिंग को भी उन्होंने निकाल दिया और आखिरी कुछ दृश्य सैम वुड के निर्देशन में फिल्माए गए। फिल्म के सेट्स पर भी डेविड ने पानी की तरह पैसा बहाया। 'बेनहर" के बाद यह दुनिया की दूसरी सबसे महंगे सेटों वाली फिल्म है। हमले की आग में जलते हुए अटलांटा शहर में बटलर स्कार्लेट और मेलिनी को एक बग्घी में बैठाकर सुरक्षित निकाल लाता है। इस एक दृश्य को फिल्माने के लिए तिरेपन इमारतों के सेट सात हजार फुट लंबे रास्ते पर जलाए गए थे!

इस फिल्म का प्रीमियर भी फिल्मी दुनिया के इतिहास में भव्यतम प्रीमियर था। तीन दिवसीय रंगारंग समारोह के बाद 15 दिसंबर 1939 को अटलांटा के लोउस ग्रैंड थियेटर में इसका पहला प्रदर्शन हुआ। इस अवसर पर जॉर्जिया के गवर्नर ने शासकीय अवकाश घोषित कर दिया था। इसे देखने दस लाख से ज्यादा लोग अटलांटा आए थे। फिल्म के कलाकारों से भरी बीसियों लिमोजिन कारों का काफिला जब अटलांटा एयरपोर्ट से लोउस ग्रैंड थियेटर की ओर जा रहा था, तो 12 किलोमीटर लंबी सड़क के दोनों ओर खड़े लाखों लोग उन पर फूल बरसा रहे थे। उस दिन के शो के टिकिट चालीस से पचास गुना अधिक दाम पर बिके थे। दिसंबर 1939 से जुलाई 1940 तक केवल वही दर्शक फिल्म देख पाए, जिन्होंने एडवांस बुकिंग की थी। 1941 तक फिल्म के टिकिट सिर्फ 'प्रीमियम" दरों पर बेचे गए और उसके बाद इसे सामान्य दरों पर प्रदर्शित किया गया। इस फिल्म को तेरह श्रेणियों में ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया था, जिनमें से इसे प्रतियोगी श्रेणी के आठ और मानद श्रेणी के दो मिलाकर दस ऑस्कर प्राप्त हुए। यह उस समय तक किसी भी फिल्म को मिलने वाले सर्वाधिक पुरस्कार थे।