“ग्रैविटी” अंतरिक्ष के फलक पर झूलती जिंदगी / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : 08 मार्च 2014
पिछले सप्ताह संपन्न ऑस्कर समारोह में सार्वाधिक सात पुरस्कार जीतने वाली ब्रिटिश-अमेरिकन फिल्म 'ग्रैविटी" एक विज्ञान फंतासी फिल्म है। इसके निर्माता, निर्देशक, लेखक एवं संपादक मैक्सिकन फिल्मकार अल्फांसो कुआरोन हैं, जो अपनी कल्पनाशीलता और साहसिक प्रयोगों के लिए जाने जाते हैं। इस फिल्म के लिए उन्हें ऑस्कर, गोल्डन ग्लोब एवं बाफ्टा जैसे विश्व के तीन प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार मिल चुका है और 'ग्रैविटी" इस वर्ष की अब तक सबसे ज्यादा पुरस्कार जीतने वाली फिल्म बन चुकी है। यह फिल्म तकनीकी रूप से बेहद सशक्त है, इसलिए लगभग सभी फिल्म समारोहों में अधिकांश तकनीकी पुरस्कार इसी के खाते में गए हैं।
हालांकि यह एक काल्पनिक फिल्म है लेकिन इसे 1995 के अपोलो 13 अंतरिक्ष अभियान के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। फिल्म में एक स्पेस शटल मिशन 'एस टी एस-157 एक्सप्लोरर" की कल्पना की गई है। नासा द्वारा दिए गए छ: माह के गहन प्रशिक्षण के बाद बायो-मेडिकल इंजीनियर डॉ रेयान स्टोन (सैंड्रा बुलक) एक विशेषज्ञ के रूप में जीवन में पहली बार किसी स्पेस शटल मिशन पर जा रही है। उसके साथ दीर्घ अनुभवी अंतरिक्ष वैज्ञानिक मैट कोवास्की (जॉर्ज क्लूनी) मार्गदर्शक के रूप में और शेरिफ दासारी (फाल्दत्त शर्मा) फ्लाइट इंजीनियर के रूप में जा रहे हैं। मैट कोवास्की का यह अंतिम अंतरिक्ष अभियान है, जिसके बाद वह सेवानिवृत्त हो जाएगा।
पृथ्वी से छ: हजार किलोमीटर ऊपर जहां तापमान माइनस 148 डिग्री से प्लस 258 डिग्री के बीच रहता हो, जहां न ऑक्सीजन हो और न हवा का दबाव, जहां ध्वनि के आवागमन का कोई माध्यम नहीं हो, जहां शरीर का कोई भार न हो, ऐसे वातावरण में किसी को काम करते देखना अत्यंत रोमांचक है। डॉ स्टोन और मैट एक दिन अंतरिक्ष की कक्षा में स्थित हबल स्पेस टेलीस्कोप के पैनल में आई खराबी को सुधारने के लिए बाहर निकलते हैं। 'स्पेस वॉक" करते हुए जब वे टेलीस्कोप सुधार रहे होते हैं, तभी ह्यूस्टन स्थित कंट्रोल रूम से उन्हें सूचना मिलती है कि एक रशियन मिसाइल ने उनके किसी निर्जीव उपग्रह पर निशाना साधकर उसे नष्ट कर दिया है और उसका मलबा तेजी से स्पेस शटल की ओर बढ़ रहा है। उन्हें तुरंत काम रोककर पृथ्वी की कक्षा में लौटने के निर्देश दिए जाते हैं। डॉ स्टोन एक-दो मिनिट का शेष काम निपटाकर लौटना चाहती है किंतु मैट के निर्देश पर उसे तुरंत काम रोकना पड़ता है। इसी बीच मलबा स्पेस शटल से टकरा जाता है और वे छिटककर शून्य में तैरने लगते हैं। इसके बाद की कहानी जीवन और मृत्यु के बीच उनके संघर्ष की कहानी है, जिसमें अद्भुत तकनीकी कौशल के साथ-साथ भावनाओं का तीव्र आवेग शामिल है।
इस फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सिनेमेटोग्राफी एवं विजुअल इफेक्ट्स हैं। कैमरामैन इमानुएल ल्यूबेस्की ने कमाल किया है। वे अल्फांसो के नियमित कैमरामैन हैं और उनकी लगभग सभी फिल्मों में उन्होंने अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी है। भारहीनता के बीच फिल्माए गए स्पेस शटल के भीतर और बाहर के दृश्य चकित कर देते हैं। अंतरिक्ष में बिखरे सितारों के नयनाभिराम दृश्यों से लेकर पृथ्वी की परिधि पर उगते सूरज के दृश्य अद्भुत प्रभाव उत्पन्ना करते हैं। 3-डी माध्यम से देखने पर इनका मजा कई गुना हो जाता है। जहां तक कलाकारों के अभिनय का सवाल है, यह पूरी तरह सैंड्रा बुलक की एकल अभिनीत फिल्म है। जॉर्ज क्लूनी की बहुत छोटी उपस्थिति के अलावा अन्य कलाकारों की सिर्फ आवाजें सुनाई देती हैं।
फिल्म को देखने के बाद महसूस होता है कि यह सिर्फ एक विज्ञान फंतासी नहीं, बल्कि और भी बहुत कुछ है। इसमें रोमांच और रहस्य है, मानवीय संवेदनाएं हैं। यह एक तरफ अंतरिक्ष यात्रियों के कठिन जीवन को दिखाती है, तो दूसरी तरफ उनके रोमांचक अनुभवों से भी रूबरू कराती है। यह मनुष्य की जिजीविषा और संघर्ष की दास्तान है।
इस फिल्म को समीक्षकों के साथ-साथ आम दर्शकों ने भी सराहा है, जिसके चलते इसने बॉक्स ऑफिस पर भी सफलता के झंडे गाड़े हैं। यह वर्ष 2013 की सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्मों में से एक है।