“दा विंची कोड” गूढ़ संकेतों में उलझी रहस्य कथा / राकेश मित्तल

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“दा विंची कोड” गूढ़ संकेतों में उलझी रहस्य कथा
प्रकाशन तिथि : 12 अप्रैल 2014


क्रिप्टोग्राफी, सिम्बॉलॉजी तथा आईकॉनोग्राफी को आधार बनाकर इस पूरी फिल्म का ताना-बाना रचा गया है। एक कत्ल की गुत्थी सुलझाने के लिए इन तीनों विद्याओं का इस्तेमाल करते हुए कातिल तक पहुंचने की कवायद फिल्म का मुख्य कथानक है।

अमेरिकी लेखक डैन ब्राउन ने वर्ष 2003 में एक उपन्यास लिखा 'द दा विंची कोड"। यह उपन्यास इतना प्रसिद्ध हुआ कि अब तक इसकी 20 करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं तथा 52 भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है। विश्व के सबसे ज्यादा बिकने वाले दस उपन्यासों में इसका नाम शामिल है। रोमन कैथोलिक चर्च के विरुद्ध तल्ख टिप्पणियों के कारण इसने अनेक विवादों को आमंत्रित किया, जिसके चलते इसकी बिक्री और भी बढ़ गई। किताब की लोकप्रियता से प्रभावित होकर अमेरिकी निर्माता-निर्देशक एवं अभिनेता रोनाल्ड हावर्ड ने इस पर फिल्म बनाने का निश्चय किया। वर्ष 2006 में प्रदर्शित इस फिल्म ने भी सफलता के झंडे गाड़ दिए और यह उस वर्ष पूरे विश्व में दूसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई।

रहस्य, रोमांच और सनसनी से भरपूर यह फिल्म अंत तक दर्शकों को बांधे रखती है। कूट भाषा में किए जाने वाले संप्रेषण (क्रिप्टोग्राफी), प्रतीक विद्या (सिम्बॉलॉजी) तथा धार्मिक चिह्नों के गूढ़ अर्थ पहचानने की विद्या (आईकॉनोग्राफी) को आधार बनाकर इस पूरी फिल्म का ताना-बाना रचा गया है। एक कत्ल की गुत्थी सुलझाने के लिए इन तीनों विद्याओं का इस्तेमाल करते हुए कातिल तक पहुंचने की कवायद इस फिल्म का मुख्य कथानक है।

पेरिस के विख्यात लूवर म्यूजियम के मुख्य रक्षक जैक्स सोनिएर (जीन पियरे मेरियल) का एक रात रहस्यमयी परिस्थितियों में कत्ल हो जाता है और उनका शव म्यूजियम की ग्रांड गैलरी में नग्न अवस्था में पाया जाता है। शव की छाती पर उन्हीं के खून से एक पेन्टाग्राम (सितारानुमा आकृति) बना है और उसके दायीं ओर जमीन पर कूट भाषा में कोई संदेश लिखा है। इन तमाम संकेतों के बावजूद पुलिस के लिए कातिल को पकड़ना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है क्योंकि सामान्य तौर पर इन संकेतों को समझना असंभव है। पुलिस की क्रिप्टोग्राफी विशेषज्ञ सोफी नेव्यू (ऑड्री टोटू) इस कत्ल की छानबीन में लगी है। उसकी इस केस में विशेष रुचि है क्योंकि मृत व्यक्ति उसके दादा हैं। रॉबर्ट लैंग्डन (टॉम हैंक्स) हार्वर्ड विश्वविद्यालय में सिम्बॉलॉजी एवं आइकॉनोग्राफी का प्रोफेसर है और पेरिस में इस विषय पर एक लेक्चर देने आया हुआ है। पुलिस रॉबर्ट को म्यूजियम में बुलाकर कातिल द्वारा बनाए गए संकेतों को समझने की कोशिश करती है किंतु रॉबर्ट ज्यादा कुछ नहीं कहता, सिवाय इस बात के कि मृतक का शरीर लियोनार्डो दा विंची की मशहूर पेंटिंग 'विट्रवियन मैन" की अवस्था में पड़ा है और जमीन पर लिखा कूट संदेश जान-बूझकर गलत तरीके से लिखा गया है। रॉबर्ट की खामोश, रहस्यमयी प्रतिक्रियाओं से पुलिस उसी पर कातिल होने का शक करती है और उसकी हर गतिविधि पर नजर रखने लगती है। सोफी मानती है कि रॉबर्ट कातिल नहीं है, बल्कि उसकी विशेषज्ञताओं का उपयोग करके वह कातिल तक पहुंच सकती है। दोनों पुलिस को चकमा देकर वहां से भागने में कामयाब हो जाते हैं और अपने स्तर पर कातिल की खोज शुरू कर देते हैं। आगे की कहानी उनके अथक प्रयासों द्वारा परत-दर-परत गूढ़ संकेतों और चित्रों को समझते हुए कातिल तक पहुंचने की दास्तान है। इस प्रक्रिया में फिल्मकार हमें रोमन कैथोलिक चर्च की सियासत, शक्ति केंद्रों तथा आंतरिक कूट व्यवस्थाओं से रूबरू करवाते हुए कहानी को 'होली ग्रेल" नामक तथाकथित रहस्यमय पात्र की खोज पर केंद्रित कर देता है। इस धातु पात्र पर एक ऐसा महत्वपूर्ण एवं अत्यंत गोपनीय संदेश उकेरा गया है, जिसका रहस्योद्घाटन पूरे ईसाई धर्म को तबाह कर सकता है।

यह एक अत्यंत जटिल फिल्म है। पहली बार देखने पर इसे पूरी तरह समझ पाना मुश्किल है। एक के बाद एक खुलते गूढ़ संकेतों की व्याख्या समझते हुए दर्शक पूरी तरह भ्रमित हो जाता है। फिल्म के कई संवाद एवं दृष्टांत ईसाई समाज की स्थापित मान्यताओं एवं विश्वास के विरुद्ध हैं, जिसके कारण अनेक स्थानों पर ईसाई धर्मावलंबियों ने फिल्म के विरोध में उग्र प्रदर्शन किए। अधिकांश समीक्षकों ने भी इस विवाद के चलते फिल्म की कटु आलोचना की है। मगर तमाम आलोचनाओं और वैयक्तिक मतभेदों के बावजूद यह एक अत्यंत मनोरंजक फिल्म है और शायद यही इसकी सफलता का राज है। अनेक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे पुरस्कृत भी किया गया है।