“द इनसाइडर” एक वैज्ञानिक का विद्रोह / राकेश मित्तल

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“द इनसाइडर” एक वैज्ञानिक का विद्रोह
प्रकाशन तिथि : 06 सितम्बर 2014


बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जाल और दबदबा कितना सशक्त और प्रभावशाली है यह शायद हम सतह पर बैठ कर महसूस नहीं कर सकते किन्तु जो लोग इनकी आतंरिक संरचना और कार्यशैली से परिचित हैं वे इस प्रभाव को बखूबी जानते हैं I वर्ष १९९९ में प्रदर्शित अमेरिकी निर्देशक माइकल मेन की फिल्म “द इनसाइडर” इस बात को बहुत स्पष्ट तरीके से दिखाती है | यह एक अमेरिकी वैज्ञानिक जेफ़री विगंड की सच्ची कहानी है जिन्होंने तम्बाखू व सिगरेट बनाने वाली विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की थी | अल पचीनो, रसल क्रो और क्रिस्टोफर प्लमर जैसे सितारों से सजी इस फिल्म ने विश्व भर के फिल्मकारों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था | इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, निर्देशन, संपादन और पटकथा सहित सात श्रेणियों में आस्कर पुरस्कारों हेतु नामांकित किया गया था | इसके अलावा अनेक अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे पुरस्कृत किया गया था |

डॉ. जेफ़री विगंड मूलतः अमेरिकी वैज्ञानिक हैं | उनके स्वास्थ्य संबंधी शोध पत्र अनेकों अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं और सराहे गए हैं | फाईज़र, जॉनसन एंड जॉनसन तथा यूनियन कार्बाइड जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने के बाद उन्हें मशहूर स्वास्थ्य सलाहकार फर्म “ब्राउन एंड विलियम्सन लेबोरेटरीज़” ने सीनीयर वाईस प्रेसिडेंट एवं रिसर्च एनालिस्ट के पद पर नियुक्त किया था | ब्राउन एंड विलियम्सन लेबोरेटरीज़ को विश्व की सात सबसे बड़ी सिगरेट व तम्बाखू बनाने वाली कंपनियों के समूह ने “न्यूनतम हानिकारक सिगरेट” बनाने के फार्मूले पर शोध कर अपनी रिपोर्ट देने को कहा था और इस काम की जिम्मेदारी डॉ. जेफ़री विगंड के पास थी | डॉ. विगंड के अनुसार इन कंपनियों ने जान बूझ कर उनकी रिपोर्ट के ठीक विपरीत न केवल सिगरेट निर्माण में निकोटिन की मात्रा बढ़ा दी बल्कि उन पदार्थों को भी शामिल किया जो ज्यादा नशीले और सेहत के लिए बेहद खतरनाक थे ताकि उनके उत्पादों की बिक्री बढ़ सके और वे ज्यादा मुनाफ़ा कमा सकें | डॉ. विगंड के विरोध करने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया | इस पर उन्होंने अपनी पूरी कहानी सीबीएस टीवी चेनल के मशहूर कार्यक्रम “सिक्सटी मिनिट्स” पर सूना दी किन्तु सीबीएस चैनल के मालिक लारेंस टीश, जो स्वयं एक बड़ी सिगरेट कंपनी के भी मालिक थे, के विरोध एवं ब्राउन एंड विलियम्सन लेबोरेटरीज़ द्वारा अरबों डॉलर का मुकदमा ठोक दिए जाने की धमकी के बाद इस कहानी के केवल सम्पादित अंश ही दिखाए गए | बाद में डॉ. विगंड की जिद और लोगों की पुरजोर मांग के कारण यह कहानी अपने मूल स्वरूप में बिना किसी छेड़छाड़ के ४ फरवरी १९९६ को प्रसारित की गई जिसके बाद तम्बाखू उद्योग में भूचाल आ गया | बाद में डॉ. विगंड ने बाकायदा मिसिसिपी की अदालत में अपनी बातों के समर्थन में एक अधिकृत बयान भी दिया |

इस पूरे घटनाक्रम पर पत्रकार मेरी ब्रेनर ने “वेनिटी फेअर” नामक पत्रिका के मई १९९६ के अंक में “द मेन हू न्यू टू मच” शीर्षक से एक लंबा आलेख लिखा जो इस फिल्म की पटकथा का आधार है | फिल्म में डॉ. विगंड की भूमिका रसल क्रो ने निभाई है और सीबीएस चैनल के मालिक लारेंस टीश का रोल अल पचीनो ने किया है | टीवी रिपोर्टर माईक वालेस की भूमिका वेटरन अभिनेता क्रिस्टोफर प्लमर ने निभाई है | एक नीरस विषय और अकादमिक कथानक होने के बावजूद माइकल मेन ने इस पर बेहद उम्दा और रोचक फिल्म का निर्माण किया है | निष्णात कलाकारों के अभिनय ने उनके इस प्रयास में चार चाँद लगा दिए हैं | फिल्म की पटकथा और संपादन इतना कसा हुआ है कि एक क्षण के लिए भी दर्शक इसके प्रभाव से बाहर नहीं आ पाता | सभी कलाकारों ने अपनी भूमिकाओं को बेहतरीन ढंग से निभाया है पर रसल क्रो ने डॉ. विगंड को जैसे परदे पर जीवंत कर दिया है | माइकल पहले वाल किलमर को इस भूमिका में लेना चाहते थे किन्तु “एल. ए. कान्फिडेंशियल” देखने के बाद उन्होंने न्यूज़ीलैंड के इस नीली आँखों वाले अभिनेता के नाम पर मुहर लगा दी | अधेड़ उम्र के डॉ. विगंड के व्यक्तित्व को आत्मसात करने के लिए रसल ने छ: हफ़्तों तक कड़ी मेहनत की | इसके लिए उन्होंने न केवल अपना १५ किलो वजन बढ़ाया बल्कि अपने बालों को सात बार ब्लीच किया और प्रतिदिन चेहरे पर झुर्रियां लगाई | फिल्म की गोपनीयता को बनाए रखने के लिए उन्हें डॉ. विगंड से मिलने की मनाही थी किन्तु उन्होंने उनके भाषणों और कार्यकलापों वाले छ: घंटे के विडियो को रोज कई बार देखा | इस भूमिका के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के आस्कर पुरस्कार हेतु नामांकित किया गया था |

अमेरिकन फिल्म इंस्टिट्यूट ने इस फिल्म को शताब्दी की श्रेष्ठतम फिल्मों में शामिल किया है तथा रसल क्रो के अभिनय को “वन आफ द ग्रेटेस्ट परफार्मेंस आफ आल टाइम” की संज्ञा दी है | इतनी अच्छी फिल्म होने के बावजूद इसे युवा दर्शकों का समर्थन नहीं मिल पाया और बॉक्स आफिस पर यह कोई कमाल नहीं दिखा पाई |

डॉ. विगंड को अपने इन कार्यकलापों की भारी कीमत चुकानी पड़ी किन्तु उन्होंने किसी भी बात की परवाह नहीं की और अपने सिद्धांतों पर अड़े रहे | इन दिनों वह पूरी दुनिया में तम्बाखू के दुष्परिणामों पर व्याख्यान देते हैं और उसकी आय से एक स्वयंसेवी संस्था “स्मोक फ्री किड्स” का संचालन करते हैं |