“द टर्मिनल” करुणा में लिपटा हास्य / राकेश मित्तल

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“द टर्मिनल” करुणा में लिपटा हास्य
प्रकाशन तिथि : 24 मई 2014


महान फिल्मकार स्टीवन स्पीलबर्ग की वर्ष 2004 में प्रदर्शित फिल्म 'द टर्मिनल" उनकी अन्य फिल्मों की तरह भव्य एवं चर्चित नहीं रही किंतु यह अपने आप में एक अद्भुत फिल्म है, जिसे स्पीलबर्ग के जादुई स्पर्श ने और भी मजेदार बना दिया है। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जिसे परिस्थितियों का शिकार होकर मजबूरी में न्यूयॉर्क के जॉन एफ कैनेडी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर कई महीनों तक रहना पड़ता

पूर्वी योरप के 'क्राकोझिया" नामक देश में रहने वाला विक्टर नावोर्स्की (टॉम हैंक्स) जीवन में पहली बार न्यूयॉर्क पहुंचता है किंतु इसी बीच उसके देश क्राकोझिया में सैन्य क्रांति हो जाती है। सेना विद्रोह कर देती है और वर्तमान शासकों को नेस्तनाबूद कर समस्त सरकारी प्रतिष्ठानों एवं कार्यालयों पर कब्जा कर शासन अपने हाथ में ले लेती है। इस सत्ता परिवर्तन को दुनिया का कोई भी देश स्वीकार नहीं करता, अत: वहां के किसी भी सरकारी दस्तावेज जैसे पासपोर्ट, वीसा, करंसी आदि की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई मान्यता नहीं रहती। क्राकोझिया की सारी सीमाएं सील हो जाती हैं तथा वहां से जाने और आने की समस्त उड़ानें अस्थायी तौर पर निरस्त हो जाती हैं। विक्टर को इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं होता। न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर आव्रजन अधिकारी उसका पासपोर्ट जब्त कर लेते हैं और उसे अमेरिका की सीमा में घुसने से रोक दिया जाता है। अमेरिकी अधिकारी उसे जेल में नहीं डाल सकते क्योंकि उसने कोई अपराध नहीं किया है। उसे वापस क्राकोझिया नहीं भेज सकते क्योंकि वहां गृह युद्ध चल रहा है और वहां के लिए कोई उड़ान उपलब्ध नहीं है। उसे अमेरिका में प्रवेश नहीं दिया जा सकता क्योंकि उसका पासपोर्ट और वीसा निरस्त हो चुका है। ऐसी परिस्थिति में जब तक ये सारी जटिलताएं सुलझ नहीं जातीं, उसे एयरपोर्ट पर ही रहना होगा।

विक्टर को ये सारी पेचीदगियां समझ नहीं आतीं। उसे अंग्रेजी भी नहीं आती, जिस कारण स्थिति और भी जटिल हो जाती है। एयरपोर्ट का मुख्य सुरक्षा एवं आव्रजन अधिकारी फ्रैंक डिक्सन (स्टेनली टूसी) जब तक स्थिति स्पष्ट न हो जाए, उसे इंटरनेशनल ट्रांजिट लाउंज एरिया में बने रहने का आदेश देता है। दिन पर दिन गुजरते जाते हैं। भाषा की अनभिज्ञता और स्थानीय परिस्थितियां अनेक मनोरंजक प्रसंग उत्पन्ना करती हैं।

निर्देशक ने बड़ी कुशलतापूर्वक सहज परिस्थितिजन्य हास्य दृश्यों की रचना की है, जो दर्शकों को गुदगुदाते हैं। इन दृश्यों के बीच अनेक भावनात्मक प्रसंग भी हैं, जो दिल को छू लेते हैं। विक्टर की एमिलिया वॉरेन (कैथरीन जेटा जोन्स) नामक एयरहोस्टेस तथा एयरपोर्ट पर काम करने वाले कर्मचारियों से होने वाली नोंकझोंक कथा को विस्तार देती है। विक्टर की मासूमियत और सच्चाई दर्शकों की सहानुभूति अर्जित करती है। फिल्म में हास्य और करुणा के बीच अद्भुत सामंजस्य बैठाया गया है।

विक्टर के रूप में टॉम हैंक्स ने आप्रवासी विदेशी नागरिक के किरदार में जान फूंक दी है। उनका भाषा उच्चारण और हावभाव इतना सहज और वास्तविक प्रतीत होता है कि लगता ही नहीं वे अभिनय कर रहे हैं। विशेष रूप से उनका अंग्रेजी बोलने का तरीका और धीरे-धीरे होने वाला भाषा सुधार बेहद प्रभावित करता है।

यह फिल्म मेहरान करीमी नासेरी नामक ईरानी शरणार्थी की सच्ची कहानी से प्रेरित है। नासेरी को उसके दस्तावेज चोरी हो जाने के कारण पेरिस के चार्ल्स द गॉल एयरपोर्ट के टर्मिनल एक पर 1988 से 2006 के बीच लगभग 17 साल रहना पड़ा था। स्पीलबर्ग ने 2003 में नासेरी की जीवन गाथा पर फिल्म बनाने के अधिकार प्राप्त कर लिए थे। वे किसी वास्तविक एयरपोर्ट पर पूरी फिल्म की एक साथ शूटिंग करना चाहते थे लेकिन दुनिया के किसी एयरपोर्ट ने उन्हें इतने लंबे समय तक शूटिंग की इजाजत नहीं दी, तब उन्होंने हॉलीवुड में विशाल एयरपोर्ट टर्मिनल का सेट बनाकर शूटिंग की। फिल्म में उल्लेखित 'क्राकोझिया" एक काल्पनिक देश है, जो पूर्ववर्ती सोवियत रूस के समदृश्य है। वहां की स्थानीय भाषा के रूप में रूसी एवं बल्गेरियाई भाषा का उपयोग किया गया है।

यह फिल्म चार्ली चैपलिन शैली के हास्य का विस्तार है, जिसमें हास्य को करुणा की चाशनी में भिगोकर प्रस्तुत किया गया है।