“द फोर हंड्रेड ब्लोज” किशोर मन की पेचीदा उलझनें / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : 27 सितम्बर 2014
यह एक 12 वर्षीय बालक अंतुआ दवानेल की कथा है, जो किशोर वय के मानसिक-शारीरिक परिवर्तनों से जूझ रहा है तथा जिसे उसके परिजन और शिक्षक कभी समझ नहीं पाए। इस फिल्म को किशोरावस्था की पृष्ठभूमि पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शुमार किया जाता है।
दुनिया में सिनेमा की शुरूआत का श्रेय फ्रांस को दिया जाता है। आरंभिक वर्षों में विभिन्ना देशों में जो भी फिल्म प्रदर्शन हुए या उपकरण जुटाए गए, उन सब पर फ्रैंच प्रभाव है। सिने आंदोलन के विकास और अभिकल्पन की दिशा में भी फ्रांस एक अग्रणी राष्ट्र रहा है। पिछले सौ से अधिक सालों में फ्रांस ने अनेक बेहतरीन फिल्मों और फिल्मकारों से विश्व सिनेमा को समृद्ध किया है। पचास के दशक के उत्तरार्द्ध में फ्रांस के नव-यथार्थवादी सिनेमा आंदोलन ने गंभीर और रचनतात्मक सिनेमा की एक नई धारा प्रवाहित की। सुप्रसिद्ध फिल्म निर्देशक फ्रांसुआ त्रूफा इस अवध्ाारणा के एक प्रमुख स्तंभ थे। यदि विश्व के सर्वाध्ािक प्रतिभाशाली फिल्मकारों की सूची बनाई जाए, तो उसमें फ्रांसुआ त्रूफा का नाम अवश्य ही शामिल होगा। वर्ष 1959 में प्रदर्शित उनकी पहली ही फिल्म 'द फोर हंड्रेड ब्लोज" ने दुनिया भर के फिल्मकारों और समीक्षकों को चकित कर दिया था। यह एक 12 वर्षीय बालक अंतुआ दवानेल की कथा है, जो किशोर वय के मानसिक-शारीरिक परिवर्तनों से जूझ रहा है तथा जिसे उसके परिजन और शिक्षक कभी समझ नहीं पाए। इस फिल्म को किशोरावस्था की पृष्ठभूमि पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शुमार किया जाता है।
फिल्म का शीर्षक 'द फोर हंड्रेड ब्लोज" (ले कात्र सौं कू) एक फ्रैंच मुहावरा है, जिसका अन्य भाषाओं में कोई उपयुक्त पर्यायवाची नहीं है। इसका स्थूल भावार्थ 'अशांति या अव्यवस्था पैदा करना" होता है। ऐसा माना जाता है कि यह फिल्म त्रूफा के ही बचपन का प्रतिबिंब है। इस फिल्म की कथा उनकी आगे की चार फिल्मों में भी चलती है। जिस तरह का बचपन त्रूफा ने गुजारा और जो कड़वे, खट्टे-मीठे अनुभव उस दौरान उन्हें जीवन की पाठशाला में हुए, उन्हें पूरी तीक्ष्णता के साथ उन्होंने इस फिल्म में उकेर दिया है। इस फिल्म को समझने के लिए हमें त्रूफा के आरंभिक जीवन पर एक नजर डालनी होगी।
फ्रांसुआ त्रूफा का बचपन अत्यंत कठिन परिस्थितियों में गुजरा था। उनके पिता के बारे कोई स्पष्ट एवं प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। जन्म होते ही उनकी मां ने उन्हें अपने से दूर कर दिया था। उनकी मां के अगले पति रोलां त्रूफा ने फ्रांसुआ को अपना सरनेम तो दिया किंतु वे दोनों उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहते थे। उनकी दादी ने कुछ समय तक उन्हें अपने पास रखा लेकिन फिर दादी का भी देहांत हो गया। दाइयों और आयाओं की गोद में पलकर बड़े हुए फ्रांसुआ ने ग्यारह वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया था। उन ग्यारह वर्षों में भी माता-पिता की अनिच्छा से मजबूरन उनके साथ रहने के कारण उनका अधिकांश समय घर के बाहर आवारा भटकते हुए बीतता था। बचपन से ही उन्हें किताबें पढ़ने का खूब शौक रहा। बॉलजाक उनके प्रिय लेखक थे। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। वे बमबारी से नष्ट हुए मकानों का सामान चोरी कर उसे बाजार में बेच देते थे और उन पैसों से अपना पेट भरते थे। एक दिन उन्हें पुलिस ने पकड़कर पुन: उनके माता-पिता को सौंप दिया। फ्रांसुआ को सुधारने की गरज से उन्हें स्कूल में भर्ती करा दिया गया लेकिन वहां भी उनकी शरारतों और विद्रोही स्वभाव से उनके शिक्षक परेशान थे। 16 वर्ष की उम्र में उनकी मुलाकात फ्रांस के विख्यात फिल्म समीक्षक और लेखक आंद्रे वाजदां से हुई। आंद्रे को फ्रांसुआ में भरपूर संभावना दिखी और उन्होंने फ्रांसुआ को अपने घर पर रख लिया। इसके बाद फ्रांसुआ त्रूफा की जिंदगी ही बदल गई। आंद्रे उनके पालनहार, शिक्षक, मार्गदर्शक सभी कुछ थे। फिल्मों के कलात्मक और रचनात्मक पक्ष की सारी बारीकियां उन्होंने आंद्रे से ही सीखीं। दुर्भाग्य से 1958 में मात्र 40 वर्ष की उम्र में आंद्रे का ब्लड कैंसर से निधन हो गया।
यह फिल्म त्रूफां की आंद्रे को विनम्र श्रृद्धांजलि है। 52 वर्ष की आयु में त्रूफा का भी निधन हो गया। त्रूफा के बचपन से लेकर मृत्यु तक रॉबर्ट लेश्ने उनके अभिन्ना और निकटतम मित्र रहे। इस फिल्म में 'रेने" नामक पात्र रॉबर्ट लेश्ने का प्रतिबिंब है।
इस फिल्म में ऐसे अनेक दृश्य हैं, जो इससे पहले सिनेमा में कभी देखे नहीं गए थे। अपनी पहली ही फिल्म में त्रूफा ने जिस सिनेमाई कौशल का परिचय दिया है वह विस्मयकारी है। अंतुआ जिस तरह के माहौल में रहता है, वह किसी भी बालक के स्वस्थ विकास को अवरुद्ध कर सकता है। उसका एक शिक्षक है, जो बर्बरता की हद तक अशिष्ट है, मां है जो न केवल अपने पति के प्रति बेवफा है बल्कि झूठी, मक्कार और स्वयं के पुत्र के प्रति घोर असहिष्णु है। सौतेला पिता है, जिसने उसे नाम दिया पर वह भी किसी तरह अंतुआ से छुटकारा पाना चाहता है। अंतुआ को लगता है कि किसी को भी उसकी जरूरत नहीं है। उसे जो भी थोड़ी-बहुत खुशी मिलती है, वह अपने परम मित्र रेने के साथ समय बिताकर मिलती है।
अंतुआ की भूमिका में तेरह वर्षीय ज्यां पियरे लॉड ने अद्भुत काम किया है। बाद में वे त्रूफा की फिल्मों के लगभग स्थायी अभिनेता बन गए। एक उपेक्षित किशोर की पीड़ा और कुंठा को उन्होंने अत्यंत प्रभावी ढंग से दर्शाया है। 1959 के कान अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में 'द फोर हंड्रेड ब्लोज" को सर्वश्रेष्ठ फिल्म और त्रूफा को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिया गया था।