“द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई” संकल्प और साहस की अनूठी दास्तान / राकेश मित्तल

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“द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई” संकल्प और साहस की अनूठी दास्तान
प्रकाशन तिथि : 05 अप्रैल 2014


“द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई” कई मायनों में एक विशिष्ट फिल्म है। वॉर फिल्म होते हुए भी इसमें युद्ध का एक भी दृश्य नहीं है। युद्ध की पृष्ठभूमि में यह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और संवेदनाओं की पड़ताल करती है

ब्रिटिश फिल्मकार डेविड लीन विश्व के महानतम निर्देशकों में शुमार किए जाते हैं। अपने जीवनकाल में उन्हें सात बार सर्वश्रेष्ठ निर्देशक के ऑस्कर पुरस्कार हेतु नामांकित किया गया था। ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट द्वारा घोषित सर्वश्रेष्ठ फिल्मों की सूची में पहली पांच में से तीन फिल्में डेविड लीन की हैं। वर्ष 1957 में प्रदर्शित 'द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई" उनकी श्रेष्ठतम फिल्मों में से एक है। इस फिल्म की करिश्माई सफलता के बाद 'लॉरेंस ऑफ अरेबिया" और 'डॉ. जिवागो" जैसी फिल्मों ने उन्हें प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया।

'द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई" कई मायनों में एक विशिष्ट फिल्म है। वॉर फिल्म होते हुए भी इसमें युद्ध का एक भी दृश्य नहीं है। युद्ध की पृष्ठभूमि में यह व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं और संवेदनाओं की पड़ताल करती है। हालांकि यह एक काल्पनिक फिल्म है किंतु इसके किरदार और घटनाएं इतिहास के पन्नाों से उठाए गए हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1942-43 में जापानी सेना ने अपने आवागमन की सहूलियत के लिए बैंकॉक से रंगून तक 415 किलोमीटर लंबा रेल मार्ग बनवाया था, जिसे 'बर्मा-सियाम रेलवे" का नाम दिया गया था। इसे बनाने के लिए उन्होंने हजारों युद्धबंदी सैनिकों और आम नागरिकों को जुल्म करते हुए काम पर लगाया था। इस रेल मार्ग को 'डेथ ट्रैक" भी कहा जाता है क्योंकि इसके बनने के दौरान लगभग 13 हजार सैनिक और एक लाख से ज्यादा नागरिक कठिन यातना भोगते हुए मौत के मुंह में समा गए और इसी ट्रैक के नीचे दफन हो गए थे। इसी रेल मार्ग पर थाईलैंड के कांचनबुरा शहर के करीब 'क्वाई येई" नदी के किनारे इन कैदियों द्वारा एक पुल बनाया गया था, जो इस रेल मार्ग का एक अहम हिस्सा था। इसी पुल के निर्माण को केंद्र में रखकर इस फिल्म का ताना-बाना बुना गया है।

फिल्म में दिखाया गया है कि बर्मा के पश्चिमी क्षेत्र में एक जापानी युद्धबंदी कैम्प क्वाई नामक नदी के किनारे पर स्थित है। इस केंद्र का प्रशासक सख्त, निर्मम और निष्ठुर जापानी कमांडर सैतो (सेसी हयाकावा) है। कमांडर सैतो को क्वाई नदी पर पांच माह में एक रेलवे पुल बनाने का लक्ष्य दिया गया है। यदि वह निर्धारित समय पर अपना काम पूरा नहीं करता है, तो जापानी सैन्य परंपरा के अनुसार उसे आत्महत्या करनी होगी। ब्रिटिश युद्धबंदियों का एक समूह कर्नल निकोलसन (एलेक गिनेस) के नेतृत्व में इस कैम्प पर पहुंचता है। इन कैदियों से कमांडर सैतो पुल निर्माण का कार्य शुरू करवाता है। वह सारे नियम-कायदों को ताक में रखकर कैदियों से निर्ममतापूर्वक कठोर श्रम करवाता है, ताकि निर्धारित समय के पूर्व वह अपना लक्ष्य पूरा कर सके। कर्नल निकोलसन एक आदर्शवादी और दृढ़ निश्चयी अफसर है। वह कमांडर सैतो के गैर-कानूनी और मनमाने आदेश मानने से इनकार कर देता है। इसके परिणामस्वरूप कमांडर सैतो उसे बुरी तरह प्रताड़ित करता है किंतु फिर भी वह निकोलसन को झुका नहीं पाता। मजदूर कैदी तमाम यातनाएं सहने के बावजूद जान-बूझकर धीमे और घटिया स्तर का काम करते हैं क्योंकि वे किसी भी कीमत पर स्वयं श्रम करके दुश्मन सेना के फायदे के लिए काम नहीं करना चाहते। साथी कैदियों के विचारों के विपरीत कर्नल निकोलसन श्रेष्ठतम पुल का निर्माण करना चाहता है क्योंकि पुल निर्माण के साथ ब्रिटिश सैनिकों का नाम जुड़ा है और वह अपने देश का नाम खराब नहीं करना चाहता।

इसी बीच तीन कैदी वहां से भागने का प्रयत्न करते हैं, जिनमें से दो जापानियों की गोली का शिकार होकर वहीं ढेर हो जाते हैं किंतु तीसरा कैदी शीयर्स (विलियम होल्डन), जो एक अमेरिकन नेवी कमांडर है, बुरी तरह घायल होने के बाद भी किसी तरह बच निकलने में कामयाब हो जाता है। श्रीलंका स्थित अपने सैन्य अस्पताल पहुंचकर वह वरिष्ठ ब्रिटिश अधिकारी मेजर वॉर्डन (जैक हॉकिन्स) को सारा हाल सुनाता है। मेजर वॉर्डन उसे पुन: उसी जगह एक गुप्त कमांडो मिशन पर भेजकर पुल को नष्ट करना चाहता है। वहीं दूसरी तरफ कर्नल निकोलसन तय समय में श्रेष्ठतम पुल के निर्माण हेतु कटिबद्ध हैं। सस्पेंस की चरम सीमा पर बेहद नाटकीय परिस्थितियों में फिल्म का अंत होता है।

फिल्म की पटकथा बेहद कसी हुई है और अंत तक रोमांच बना रहता है। सभी कलाकारों का अभिनय दर्शनीय है, विशेष रूप से कर्नल निकोलसन की भूमिका में एलेक गिनेस और कमांडर सैतो की भूमिका में अड़सठ वर्षीय जापानी अभिनेता सेसी हयाकावा ने कमाल किया है। फिल्म का संगीत बेहद प्रभावी है। विशेष रूप से कैदियों द्वारा सामूहिक सीटी बजाने वाली धुन उन दिनों अत्यंत लोकप्रिय हुई थी।

इस फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों की भरपूर सराहना मिली। इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म, निर्देशन, अभिनय, पटकथा, संगीत, संपादन और सिनेमेटोग्राफी के लिए सात ऑस्कर पुरस्कार मिले। इसने बॉक्स ऑफिस पर कमाई के झंडे गाड़े और 1958 में विश्व की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म रही। विश्व सिनेमा के इतिहास में अब तक बनी महानतम फिल्मों की सूची में इसका नाम शामिल किया जाता है।