“द सांग ऑफ़ स्पैरोज़” टूटे सपनों का आल्हाद गीत / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : 20 सितम्बर 2014
ईरान के मशहूर फिल्म निर्देशक माजिद मजीदी के बारे में जितना लिखा जाए कम है | मानवमन की सूक्ष्मतम कोमल भावनाओं को जिस खूबसूरती से वे परदे पर उतारते हैं वह देखने लायक है | बच्चों से अभिनय कराने में उन्हें महारथ हासिल है | वे अपनी बड़ी बातें कहने के लिए छोटे बच्चों का सहारा लेते हैं क्योंकि उनके जरिये जो बातें कही जाती हैं उनमें सच्चाई होती है | बच्चों की बातों में आम तौर पर राष्ट्रीयता, धर्म और लिंग आदि का कोई आग्रह नहीं होता, वहां सिर्फ ख़ालिस भावनाएं और सुनहरे सपने होते हैं और इस तरह आसानी से वे पूरी दुनिया की बातें कह देते हैं | माजिद ईरान में फैली सामाजिक बुराईयों को अपनी फिल्मों का विषय नहीं बनाते बल्कि उनके विषय आम इंसान के भीतर की अच्छाईयाँ, बुराईयाँ, प्रश्न और उलझनें होतीं है इसलिए उनका सिनेमा बहुत आसानी से वैश्विक हो जाता है | वे अपनी फिल्मों में इतना आसान और खूबसूरत वितान रचते हैं कि लगने लगता है कि पूरा ईरान ही बहुत सुन्दर है और वहां किसी तरह की कोई समस्या नहीं है | माजिद जिस तरह से अपनी फिल्मों के माध्यम से पूरी दुनिया से संवाद कर लेते हैं वह अन्य फिल्मकारों के लिए उतना सहज नहीं होता | वर्ष २००८ में प्रदर्शित उनकी फिल्म “द सांग ऑफ़ स्पैरोज़” भी इसी कड़ी की एक नायाब फिल्म है | यह उस वर्ष ईरान की ओर से आस्कर की अधिकारिक प्रविष्टि थी | माजिद ईरान के एकमात्र फिल्मकार हैं जिनकी फिल्मों को आस्कर के लिए नामांकित किया गया है |
फिल्म का नाम ही माजिद की शैली को परिभाषित करता है | “स्पैरो” यानी चिड़िया सबसे साधारण पक्षी मानी जाती है | एक छोटी सी, बेहद सामान्य शक्ल सूरत वाली, बिना कोई विशेषता लिए, बिलकुल आम इंसान की तरह | जिसकी मौजूदगी तक को अक्सर नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है | लेकिन जब वे समवेत स्वर में चहचहाना शुरू कर देतीं हैं तो आप मुदित हुए बिना नहीं रह सकते | ऐसे ही लोग माजिद की फिल्मों की विषयवस्तु होते हैं जिनकी ज़िन्दगी में दुःख और उदासी बहुतायत से पायी जाती है इसलिए वे छोटी छोटी खुशियों को बहुत संभाल कर रखते हैं क्योंकि वही उनके जीने का संबल है |
करीम (नाज़ी रेजा) एक गरीब किसान है जो ईरान के एक छोटे से गाँव में पत्नी नर्गिस (मरियम अकबरी) और तीन बच्चों के साथ रहता है | वह एक शुतुर्मुर्गों के फ़ार्म पर काम करता है | एक दिन शुतुर्मुर्गों को दूसरे फ़ार्म में शिफ्ट करते समय एक शुतुर्मुर्ग निकल कर भाग जाता है जिसके कारण करीम की नौकरी चली जाती है | उसके घर पर छोटी बड़ी परेशानियों के अम्बार है | उसकी बड़ी लड़की बहरी है | उसकी सुननेवाली मशीन कीचड़युक्त गंदे नाले में गिर जाती है करीम, उसका छोटा बेटा हुसैन (हामेद अगाज़ी) और उसके दोस्त मिलकर मशीन ढूँढ निकालते हैं किन्तु वह खराब हो चुकी है | उसकी बेटी की सालाना परीक्षा निकट है इसलिए करीम जल्द से जल्द मशीन ठीक कराना चाहता है | मशीन सुधरवाने वह अपनी पुरानी मोटर सायकल पर तेहरान जाता है | रास्ते में लोग उसे मोटर सायकल टैक्सी ड्राइवर समझ कर बैठाने के लिए आग्रह करते हैं और इस तरह करीम को एक नया धंधा मिल जाता है | इस काम में उसे अपेक्षा से अधिक पैसा मिलता है | अब वह पूरे जूनून के साथ तेहरान की भीड़ भरी सड़कों पर लोगों और सामान को ढोने का काम शुरू कर देता है | पैसा और काम मिलने के साथ साथ वह रूखा और अव्यवहारिक होता जाता है | इसी बीच अनेक छोटी बड़ी रोचक घटनाओं के बीच परिवार पुरानी खुशियाँ लौटाने का प्रयास करता है |
माजिद अपने पात्रों को लगातार सुख़-दुःख और नैतिकता के प्रश्नों में उलझाते रहते हैं | उनके जीवन में भाग्य आकस्मिक करवटें लेता रहता है | कभी अचानक आशाओं के दीप जलने लगते हैं तो दूसरे ही क्षण वे बुझते प्रतीत होते हैं | उनकी फिल्मों को देख कर लगता है कि सब कुछ यहीं कहीं आसपास वास्तव में घटित हो रहा है | पात्रों के सुख और दुःख से दर्शक भी एकाकार हो जाते हैं | इन्हीं घटनाओं के बीच सहज हास्य और विनोद के कई क्षण आते हैं जो दर्शकों को गुदगुदाते हैं | फिल्म की शुरुआत और अंत शुतुर्मुर्ग के साथ ही होता है | पूरी फिल्म में करीम अपना घर चलाने के लिए मोटर सायकल पर सवारियां और सामान ढोता है पर उसकी नज़र और कान हमेशा शुतुर्मुर्ग की खबर पर ही लगे रहते हैं | फिल्म के अंतिम हिस्सों में जब उसे पता चलता है की शुतुर्मुर्ग अपने आप वापस लौट आया है तो हमेशा उसकी तलाश में लगे उस इंसान के चेहरे की मायूसी बहुत कुछ कह देती है जो शुतुर्मुर्ग को ख़ोजने के लिए खुद शुतुर्मुर्ग बन चुका है |
फिल्म में तूराज़ मंसूरी का अद्भुत कैमरा वर्क है | ईरान के गाँवों की निश्छल पगडंडियों से लेकर तेहरान की कठोर शहरी संस्कृति उनके कैमरे से झलकती है | जीवन की आशा, निराशा, दुःख और कुंठाओं से भरे चेहरों और उमड़ती आँखों की अभिव्यक्तियों को उन्होंने बड़ी कुशलता से कैद किया है | एरियल शॉट्स में तो उन्होंने कमाल किये हैं | करीम का शुतुर्मुर्ग की तरह डंडा लेकर चलने वाला तथा पड़ोसी से दरवाजा उठा कर लाने वाले शॉट्स अद्भुत हैं | माजिद के पसंदीदा अभिनेता नाज़ी रेजा फिल्म की जान हैं | यह उनकी माजिद के साथ लगातार चौथी फिल्म है | इस फिल्म के लिए उन्हें एशिया पेसिफ़िक स्क्रीन अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता तथा बर्लिन के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में सिल्वर बियर पुरस्कार से नवाज़ा गया था | वे इस फिल्म में एकमात्र व्यावसायिक अभिनेता है, अन्य सभी कलाकार स्थानीय ईरानी नागरिक हैं जिन्होंने अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की है, विशेष रूप से बालक हुसैन के रूप में हामेद अगाज़ी ने जबरदस्त अभिनय किया है |