“द हंट” एक बेगुनाह का शिकार / राकेश मित्तल

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“द हंट” एक बेगुनाह का शिकार
प्रकाशन तिथि : 17 मई 2014


वर्ष 2012 में प्रदर्शित डेनिश फिल्मकार थॉमस विंटरबर्ग की फिल्म ' द हंट" एक जबर्दस्त इमोशनल ड्रामा फिल्म है, जो हमें कई स्तरों पर उद्वेलित करती है। यह फिल्म इस बात को प्रतिपादित करती है कि किस तरह अफवाहों के पंख लगाकर एक झूठ सच में तब्दील हो जाता है और किस तरह एक झूठा आरोप किसी निर्दोष व्यक्ति का जीवन बर्बाद कर सकता है। इस फिल्म को विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म के ऑस्कर एवं गोल्डन ग्लोब पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था।

इस फिल्म की कहानी डेनमार्क के एक छोटे-से गांव में केंद्रित है, जहां की जनसंख्या इतनी कम है कि सभी एक-दूसरे को भली-भांति जानते हैं। लुकास (मेड्स मिकेलसन) उस गांव में छोटे बच्चों के डे केयर सेंटर का शिक्षक है। हाल ही में वह तलाक की कठिन प्रक्रिया से होकर गुजरा है और अपने इकलौते किशोर वय पुत्र की अभिरक्षा पाने के लिए प्रयासरत है। डे केयर सेंटर के बच्चे और उनके माता-पिता उसे बेहद पसंद करते हैं और उसका आदर करते हैं। स्कूल की एक शिक्षिका नादिया (एलेक्जेंड्रा रेपेपोर्ट) उसे पसंद करती है और कुछ समय बाद प्रेमिका के रूप में उसके साथ रहने लगती है। उसके बेटे की तरफ से भी अच्छी खबरें आने लगती हैं और ध्ाीरे-ध्ाीरे उसके जीवन की गाड़ी पुन: पटरी पर आती प्रतीत होती है।

तभी एक दिन उसके सबसे अच्छे मित्र की पांच वर्षीय बेटी क्लारा (अनिका वेडरकॉप), जोकि डे केयर सेंटर में उसकी विद्यार्थी है, उससे छोटी-सी बात पर नाराज होकर सेंटर की प्रिंसिपल से झूठमूठ शिकायत कर देती है कि लुकास ने उसका यौन शोषण करने की कोशिश की। वह लुकास को बस, किसी तरह डांट पड़वाना चाहती है किंतु प्रिंसिपल और अन्य शिक्षक इस शिकायत को गंभीरता से ले लेते हैं। वे यह मानकर चलते हैं कि 'इस तरह के मामलों में छोटे बच्चे कभी झूठ नहीं बोलते"। लुकास की हर सफाई उस बच्ची की उम्र के सामने फीकी पड़ जाती है। छोटे-से गांव में यह खबर आग की तरह फैल जाती है। सभी लोग, खासकर बच्चों के माता-पिता, यकीन करने लगते हैं कि लुकास ने वाकई कुछ किया होगा, वर्ना इतनी छोटी बच्ची क्यों ऐसी शिकायत करेगी! वह, जो सबका चहेता शिक्षक था, एकाएक पूरे गांव में खलनायक बन जाता है। कोई उसके सामने ज्यादा कुछ नहीं बोलता लेकिन पीठ पीछे सब एक की चार लगाने लगते हैं। लुकास भी अपने दोस्तों और गांव वालों के बदलते चेहरों को देखकर चकित हो जाता है। उसके लिए स्थिति तब और विकट हो जाती है जब स्कूल प्रबंध्ान कोई पुख्ता सबूत न मिलने के कारण उस पर कार्यवाही करने से इनकार कर देता है। उसे बेगुनाह मानने के बजाए लोग यह मानने लगते हैं कि एक गुनहगार को बिना कोई सजा दिए छोड़ दिया गया है और अब गांव की हर लड़की खतरे में है। लुकास की प्रेमिका उसे छोड़कर चली जाती है और उसके बेटे को भी अपने दोस्तों के बीच बेहद अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ता है। परिस्थितियां एक के बाद एक कई करवटें लेती हैं।

फिल्म की सबसे बड़ी खूबी लुकास के रूप में मेड्स मिकेलसन का अभिनय है। जेम्स बॉण्ड फिल्म 'कैसिनो रोयाल" में खलनायक की भूमिका से चर्चा में आए मिकेलसन ने इस फिल्म में कमाल किया है। लुकास के जीवन में आए हर एक परिवर्तन और हर एक इमोशन को उन्होंने बखूबी व्यक्त किया है। अपने चेहरे, आवाज और दिल में उमड़ती भावनाओं पर काबू रखते हुए एक ऐसे व्यक्ति के दर्द को उभारना, जिसे उस अपराध्ा का दोषी माना जा रहा है, जो उसने किया ही नहीं, बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था। इस बेहतरीन अदायगी के लिए उन्हें कान के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया था। फिल्म की दूसरी बड़ी खूबी इसकी सिनेमेटोग्राफी है। हर दृश्य में कैमरा मानो बोल उठता है। शुरूआती दृश्यों में डेनमार्क की प्राकृतिक खूबसूरती देखते ही बनती है। बदलते हुए मौसम और चेहरों के कई क्लोज-अप शॉट्स बेहद उम्दा तरीके से फिल्माए गए हैं। फिल्म के मूड और टोन को मौसम के साथ जोड़ने की कोशिश की गई है। सितंबर-अक्टूबर के मौसम में, जब फिल्म की शुरूआत होती है, स्कैन्डेनेवियाई देश अपनी खूबसूरती के चरम पर होते हैं, जब चटकीली ध्ाूप खिली होती है और पेड़ंो के हरे पत्ते रंग बदलकर लाल, पीले और नारंगी हो जाते हैं। फिर दिसंबर आते-आते सब कुछ ध्ाूसर रंग में बदल जाता है और हर तरफ बर्फ की ठंडी चादर बिछ जाती है। ऐसे उदास मौसम में कैमरा एक तरफ क्लारा की भोली, मासूम आंखों को टटोलता है, जो समझ नहीं पा रही हैं कि यह सब क्या हो गया है! दूसरी तरफ लुकास के पथरीले चेहरे पर नजर गड़ाता है, जो दु:स्वप्न के खत्म होने का इंतजार कर रहा है...।