“फ्रीडा” अंतहीन दर्द का रचनात्मक सफ़र / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : 31 मई 2014
मैक्सिको की सार्वाधिक चर्चित महिला चित्रकार फ्रीडा काहलो के जीवन पर वर्ष २००२ में अमेरिकी नाट्य एवं ऑपेरा निर्देशिका जूली तैमूर ने एक बहुत ही खूबसूरत फिल्म बनाई है जो फ्रीडा के दर्द और संघर्ष भरे जीवन का यथार्थ चित्रण करती है | हॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री सलमा हायक ने फ्रीडा के चरित्र को परदे पर साकार किया है | वे इस फिल्म की निर्मात्री भी हैं | फ्रीडा के जीवन पर फिल्म बनाने के लिए अनेक निर्माता, निर्देशक और कलाकार प्रयासरत थे | अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में फ्रीडा के "सेल्फ पोर्ट्रेट्स" की बढ़ती नीलामी कीमतों ने इन प्रयासों को और बढ़ावा दिया किंतु अंततः सफलता जूली तैमूर और सलमा हायक की जोड़ी को मिली |
बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में फ्रीडा काहलो मैक्सिको की नई क्रांतिकारी पीढ़ी में स्त्री स्वातंत्र्य और उन्मुक्त विचारधारा की पुरोधा बन कर उभरी जिसने स्थापित मान्यताओं के परे नारी संघर्ष की नई परिभाषा लिखी | वे अपने "सेल्फ पोर्ट्रेट्स" के लिए पूरी दुनिया में चर्चित रहीं | उनके काम को मैक्सिकन संस्कृति और लोक कला का बेहतरीन उदाहरण माना जाता है | उन्होंने दुनिया भर की महिलाओं को अपनी शर्तों पर जीने के लिए प्रेरित किया | उनका पूरा जीवन त्रासदियों से भरा रहा | अनेक शारीरिक व्याधियों के चलते जुलाई १९५४ में मात्र ४६ वर्ष की अल्पायु में उनका निधन हो गया लेकिन इस छोटे संघर्षपूर्ण जीवन को उन्होंने चित्रों की अभिव्यक्ति देकर अमर बना दिया |
जर्मन पिता और मैक्सिकन माता की संतान फ्रीडा जीवन भर असहनीय वेदना और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझती रही | उनका बचपन मैक्सिको की सड़कों पर क्रांति के दौरान हिंसक सशस्त्र संघर्षों का भी गवाह रहा | जन्म से ही उनकी रीढ़ की हड्डी में गठान थी जिस कारण उन्हें झुकने और सीधे खड़े होने में तकलीफ होती थी | छः वर्ष की उम्र में वे पोलियो की शिकार हो गई जिस कारण उनका दांया पैर बांये पैर की तुलना में बेहद पतला रह गया था | किशोरावस्था में एक सड़क हादसे में बुरी तरह घायल हो जाने से उनकी रीढ़ की हड्डी सहित हाथ, पैर, कंधे, कूल्हे और पसलियों की करीब तीस से अधिक हड्डियाँ टूट गई थी तथा एक लोहे की मोटी छड़ उनके पेट के निचले हिस्से से घुस कर गर्भाशय को चीरती हुई कंधे के आर पार हो गई थी | इतना कुछ होने के बाद भी अपनी अदम्य इच्छाशक्ति, संघर्ष क्षमता और जिजीविषा के बल पर वह मौत के मुहं से बाहर आने में कामयाब रही | हालांकि इलाज के बाद वे चलने फिरने और सामान्य जीवन जीने के क़ाबिल हो गई थीं किन्तु रह रह कर उन्हें असहनीय दर्द के झोंके बार बार आते रहते थे | इलाज की इस प्रक्रिया में महीनों बिस्तर पर जकड़े रहने के कारण वे मित्रों और समाज से लगभग कट गई थीं | अपने दर्द और एकाकीपन को उन्होंने चित्रों के माध्यम से व्यक्त किया | उनके अधिकांश चित्र समय समय पर उनके मन के घुमड़ते भावों और स्थितियों की अभिव्यक्ति है | एक बार उन्होंने कहा था की मैं सिर्फ अपने आप को देख पाती हूँ इसलिए अपने चित्र बनाती हूँ |
मैक्सिको के विश्व प्रसिद्ध महान म्यूरल आर्टिस्ट ( भित्ति चित्रकार ) डिएगो रिवेरा से वे आसक्ति की हद तक प्रभावित थीं | फ्रीडा के चित्रों पर रिवेरा शैली का गहरा प्रभाव रहा | उनके अन्दर के कलाकार को डिएगो रिवेरा ने ही प्रोत्साहित किया | बाद में अपने से दोगुनी उम्र के होने के बावजूद उन्होंने रिवेरा से शादी कर ली | उनका दांपत्य जीवन भी बेहद उथल पुथल भरा रहा | प्रेम और रचनात्मकता के तीव्र आवेगों के कारण वे जूनून की हद तक एक दूसरे से प्यार और झगडा करते थे | एक दूसरे की निष्ठाओं पर सवाल उठाते हुए दस साल वैवाहिक जीवन गुजारने के बाद उन्होंने तलाक़ ले लिया किन्तु एक साल बाद पुनः एक दूसरे से विवाह कर लिया | फ्रीडा के जीवन के इन सभी पहलुओं को जूली तैमूर ने बड़ी कुशलता से चित्रित किया है | फिल्म का अंत बेहद कलात्मक एवं भावुक अंदाज में किया गया है |
सलमा हायक ने फ्रीडा की भूमिका में अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के आस्कर, गोल्डन ग्लोब, बाफ्टा एवं स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया था | उन्होंने फ्रीडा के स्कूली जीवन से मृत्यु तक के लगभग ३० वर्षों के लम्बे अंतराल को फिल्म में जिया है जो एक बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य था | उनके इस प्रयास में मेकअप का भी विशेष योगदान रहा है | फिल्म की सिनेमेटोग्राफी एवं संगीत भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है |
इस फिल्म को व्यावसायिक सफलता के साथ साथ समीक्षकों की भी जबरदस्त सराहना मिली | इसे छः आस्कर सहित तीस अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए नामांकित किया गया जिनमे से उन्नीस पुरस्कार इसकी झोली में गिरे | इस फिल्म को देखना एक अद्भुत अनुभव से गुजरना है |