“फ्रूटवेल स्टेशन” आधुनिक अमेरिका का नस्लभेदी चेहरा / राकेश मित्तल

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“फ्रूटवेल स्टेशन” आधुनिक अमेरिका का नस्लभेदी चेहरा
प्रकाशन तिथि : 07 जून 2014


विश्व सिनेमा पटल पर पिछले वर्ष प्रदर्शित फिल्मों में एक कम चर्चित किंतु महत्वपूर्ण फिल्म थी 'फ्रूटवेल स्टेशन", जो अमेरिका के युवा अश्वेत लेखक-निर्देशक रायन कूगलर की पहली फीचर फिल्म थी। सन् 2013 के सनडांस अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में इसका प्रीमियर हुआ, जहां इसे 'ग्रांड ज्यूरी प्राइज़" तथा 'ऑडियंस बेस्ट चॉइस अवॉर्ड" से नवाजा गया। बाद में कान फिल्म समारोह में इसे 'बेस्ट डेब्यू फिल्म" का पुरस्कार मिला।

यह फिल्म ऑस्कर ग्रांट नामक 22 वर्षीय अश्वेत अमेरिकी युवक की जिंदगी के अंतिम 24 घंटों की सच्ची कहानी है। ऑस्कर को कैलिफोर्निया के ऑकलैंड शहर में फ्रूटवेल रेलवे स्टेशन पर बे एरिया रैपिड ट्रंजिट पुलिस के एक अधिकारी ने बिना वजह गोली मार दी थी। रायन कूगलर स्वयं उसी क्षेत्र के निवासी हैं, जहां यह कांड हुआ था और वे इस फिल्म के माध्यम से सारी दुनिया के सामने वर्तमान अमेरिकी समाज के इस विद्रूप चेहरे को उजागर करना चाहते थे।

यह फिल्म हर स्तर पर इस बात का एहसास दिलाती है कि अमेरिका जैसे अत्याधुनिक और उदारवादी विचारधारा वाले देश में आज भी नस्लभेद और रंगभेद किसी-न-किसी रूप में गहरी जड़ें जमाए हुए हैं। पिछले कई दशकों से फिल्मों, टीवी एवं अन्य प्रचार माध्यमों के जरिये 'काले" व्यक्तियों को खलनायक, अपराधी एवं खतरनाक किस्म के चरित्रों के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है। यह 'छवि" अप्रत्यक्ष रूप से आम लोगों के अवचेतन में घर कर जाती है और अनजाने ही वे किसी संवेदनशील, कोमल भावनाओं वाले अश्वेत व्यक्ति की कल्पना से भी परहेज करने लगते हैं। रायन कूगलर इस पृष्ठभूमि और इतिहास से भली-भांति परिचित प्रतीत होते हुए बड़ी कुशलता से ऑस्कर की दिनचर्या के छोटे-छोटे अंश दिखाकर गोरे समाज में एक काले व्यक्ति के दबावों और चुनौतियों से हमें रूबरू कराते हैं। इन दृश्यों और घटनाओं को देखकर लगता है कि नस्लीय अवध्ाारणाएं कितने सामान्य और सहज रूप से हमारे आसपास अपना जाल बुनती हैं और हम इन्हें आम जीवन का हिस्सा मानकर बड़ी आसानी से झटक कर अपनी राह चल देते हैं।

फिल्म की शुरूआत उस घटना के वास्तविक सीसीटीवी एवं मोबाइल फुटेज से होती है, जहां कुछ पुलिस अधिकारी नव वर्ष के जश्न में मशगूल ऑस्कर और उसके साथियों को पीट रहे हैं। तभी अचानक गोली चलने की आवाज आती है और सब कुछ खामोश हो जाता है। फिल्म फ्लैशबैक में चली जाती है। बाकी की फिल्म ऑस्कर के जीवन के अंतिम चौबीस घंटों का नाट्य रूपांतरण है।

ऑस्कर ग्रांट (माइकल जॉर्डन) एक संवेदनशील इंसान है। एक भावुक पिता, प्रेमी, पुत्र और भाई है। उसका एक अतीत है, जब वह पेट भरने के लिए मारीजुआना बेचा करता था किंतु अब वह एक जिम्मेदार, समझदार नागरिक है। उसकी एक छोटी-सी दुनिया है, जिसमें उसकी मां वांडा जॉनसन (ऑक्टेविया स्पेन्सर), प्रेमिका सोफिया (मेलोनी डियाज) और चार वर्षीया पुत्री टेटियाना (आरियान नील) है, जिन्हें वह बेहद प्यार करता है। वह हर एक की मदद करने के लिए तत्पर रहता है। वह राह चलते कुत्ते पर भी अपना प्रेम बरसाता है और उसकी मौत पर आंसू बहाता है। वह एक अच्छे इंसान के रूप में रहना चाहता है किंतु परिस्थितियां बार-बार चुनौती बनकर उसके सामने खड़ी हो जाती हैं। उसकी नौकरी छिन चुकी है। मकान का किराया देने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं पर वह हर हाल में खुश रहने की कोशिश करता है। अपनी समस्याओं और चुनौतियों का वह परिवार के लोगों को एहसास भी नहीं होने देता। 31 दिसंबर 2008 की सुबह भी उसके लिए आम दिनों जैसी ही थी। इस दिन उसकी मां का जन्मदिन रहता है, जिसके लिए वह बध्ााई-पत्र और उपहार लेने निकल पड़ता है। छोटी-छोटी मुलाकातों, संवादों और घटनाओं के माध्यम से हम ऑस्कर के संसार से परिचित होते हैं। जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, हमारे भीतर कुछ भीगने लगता है और अंत तक आते-आते वह आर्द्रता आंखें नम कर देती है।

फिल्म की सबसे बड़ी ताकत ऑस्कर के रूप में माइकल जॉर्डन का अभिनय है। ऑस्कर के व्यक्तित्व के हर पहलू को उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ प्रस्तुत किया है। अन्य भूमिकाओं में साथी कलाकारों ने भी जबर्दस्त अभिनय किया है। फिल्म की पटकथा बेहद कसी हुई है और एक क्षण के लिए भी ध्यान भटकने नहीं देती। लेखन और निर्देशन के अपने पहले प्रयास में रायन कूगलर अभिभूत करते हैं।

इस गोली कांड ने उस वक्त समूचे अमेरिका को हिला दिया था। अनेक स्थानों पर उभ्र विरोध्ा प्रदर्शनों के बाद दोषी पुलिस अध्ािकारी को हत्या के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया था किंतु अदालत ने उसे 'भूलवश हुई गलती" मानकर मात्र ग्यारह महीने की सजा देकर छोड़ दिया। अभी भी ऑस्कर की स्मृति में प्रति वर्ष एक जनवरी को फ्रूटवेल रेलवे स्टेशन पर सैंकड़ों लोग अपनी संवेदना और विरोध प्रकट करने के लिए आते हैं। उन्हें अब भी न्याय का इंतजार है। फिल्म के अंतिम दृश्य में ऑस्कर की बेटी को विरोध प्रदर्शन स्थल पर देखना अत्यंत मार्मिक है।

यह फिल्म उन लोगों के लिए है, जो यह मानते हैं कि दुनिया के किसी भी मुल्क के किसी भी नस्ल, रंग या धर्म के व्यक्ति को पूरी स्वतंत्रता, सम्मान और अध्ािकार के साथ जीने का हक है।