“बेटलशिप पोटेमकिन” उत्कृष्ट सिनेमा का पाठ बोलती मूक फिल्म

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“बेटलशिप पोटेमकिन” उत्कृष्ट सिनेमा का पाठ बोलती मूक फिल्म
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विश्व सिनेमा के एक सौ सत्रह साल के इतिहास में 'बैटलशिप पोटेमकिन" एकमात्र ऐसी फिल्म है, जो मूक फिल्मों के युग में बनी होने के बावजूद आज भी प्रासंगिक है और इस बीच नवीनतम तकनीक और प्रचुर साधनों के उपयोग से बनी हजारों फिल्मों को पीछे छोड़ते हुए आज भी दुनिया की महानतम फिल्मों की सूची में शामिल की जाती है।

वर्ष 1925 में प्रदर्शित रूसी फिल्मकार सर्जेई आइसेंस्टीन द्वारा निर्देशित 'बैटलशिप पोटेमकिन" रूस में 1905 में हुई असफल क्रांति की पृष्ठभूमि पर बनी है। उस समय, जबकि फिल्म निर्माण तकनीक अपनी शैशव अवस्था में थी, ऐसी फिल्म बना देना किसी चमत्कार से कम नहीं था। इस फिल्म को 'ग्रेटेस्ट फिल्म ऑफ ऑल टाइम" की संज्ञा भी दी जाती है। ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट के प्रतिष्ठित 'साइट एंड साउंड ओपीनियन पोल" में भी हर बार इसे 'टॉप टेन ग्रेटेस्ट फिल्म्स ऑफ द वर्ल्ड" की सूची में शामिल किया जाता है। दुनिया के लगभग सभी फिल्मकार और समीक्षक इसे सिनेमाई उत्थान की दिशा में आधारभूत मील का पत्थर मानते हैं।

इस फिल्म में कोई कहानी नहीं है, कोई हीरो नहीं है। यह एक महत्वपूर्ण, सच्ची ऐतिहासिक घटना का सिनेमाई दस्तावेज है। इन अर्थों में इसे एक फीचर फिल्म के बजाए वृत्तचित्र कहना ज्यादा उचित होगा। इसकी विशेषता इसका प्रस्तुतिकरण और खास तौर से 'ओडेसा स्टेप्स" पर फिल्माया गया ग्यारह मिनिट लंबा कत्लेआम का शॉट है। इसके अलावा सिनेमा की दुनिया में पहली बार 'मोन्टाज एडिटिंग" तकनीक का इस्तेमाल इसी फिल्म में किया गया है, जिसके अंतर्गत अलग-अलग, स्वतंत्र रूप से फिल्माए गए दृश्यों को एक ही दृश्य के रूप में जोड़कर उसका समग्र प्रभाव उत्पन्न किया जाता है।

फिल्म की पृष्ठभूमि 1905 की असफल रूसी क्रांति है। उन दिनों शाही शासकों के खिलाफ जनसाधारण में घोर असंतोष पनप रहा था। धीरे-धीरे लोग अलग-अलग मोर्चों पर विभिन्ना तरीकों से अपना विरोध प्रकट कर रहे थे, जिसमें फैक्टरी कामगारों की हड़ताल, कृषक व खेतीहर मजदूरों की हड़ताल तथा सैन्य विद्रोह शामिल थे। लगभग ढाई साल चले इस संघर्ष में आखिर मजदूरों, कामगारों और आम जनता की हार हुई तथा शासकों द्वारा उनके विरोध को कुचल दिया गया। मगर धीरे-धीरे सुलगती हुई असंतोष की आग ने बाद में 1917 की रूसी क्रांति को जन्म दिया, जिसने मात्र छ: माह में राजशाही का तख्ता पलट दिया और लेनिन के नेतृत्व में कम्यूनिस्ट पार्टी ने रूस की सत्ता संभाली।

यह फिल्म उस असफल क्रांति के आरंभिक समय को दर्शाती है। सवा घंटे लंबी यह फिल्म पांच हिस्सों में बंटी हुई है। प्रत्येक हिस्से को अलग-अलग शीर्षक दिए गए हैं: (1) इंसान और कीड़े, (2) डेक पर हंगामा, (3) इंसाफ के लिए एक मृतक की गुहार, (4) ओडेसा की सीढ़ियां और (5) सबके विरुद्ध एक। फिल्म की शुरूआत जून 1905 में होती है, जब जापान के साथ युद्ध में रूस की करारी हार के बाद रूसी युद्धपोत 'पोटेमकिन" ब्लैक सी के रास्ते ओडेसा (यूक्रेन) की तरफ लौट रहा है।

जमीन पर शासकों के विरुद्ध असंतोष के स्वर फूटने लगे हैं किंतु इसकी आंच अभी समुद्री सतहों पर नहीं पहुंची है। हालांकि 'पोटेमकिन" के भीतर एक अलग तरह का असंतोष पनप रहा है। जहाज के मल्लाह कैप्टन व बड़े अधिकारियों के व्यवहार से नाराज हैं। खास तौर पर भोजन में दिए जाने वाले सड़े हुए, कीड़े लगे मांस को खाने से वे इनकार कर देते हैं। कैप्टन सभी को डेक पर बुलाकर उनके नेताओं को मरवाने का प्रयास करता है। इससे बाकी मल्लाह भड़क जाते हैं और खाने के विरोध स्वरूप की गई हड़ताल दंगे में तब्दील हो जाती है, जिसमें मल्लाहों की विजय होती है पर उनका प्रमुख नेता मारा जाता है। ओडेसा बंदरगाह पर पहुंचते ही यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल जाती है। एक तरफ की चिंगारी से दूसरी तरफ सुलग रही आग और भड़क जाती है। शासन द्वारा मासूम नागरिकों पर अन्धाधुन्द फायरिंग इस आग में घी का काम करती है। अनेक नाटकीय घटनाओं के बाद संघर्ष का सुखद अंत होता है।

उस समय इस फिल्म का इतना जबर्दस्त प्रभाव था कि कई देशों में इसके प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इन देशों के शासकों को भय था कि यह फिल्म वहां के नागरिकों को क्रांति के लिए उकसा सकती है। सिनेमा के विद्यार्थियों के लिए यह एक ऐतिहासिक और अकादमिक महत्व की फिल्म है।