“बेन हर” सिनेमा इतिहास की भव्यतम फिल्म / राकेश मित्तल

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“बेन हर” सिनेमा इतिहास की भव्यतम फिल्म
प्रकाशन तिथि : 19 अप्रैल 2014


ईसा मसीह के जीवन या उनके संदेश पर आधारित जितनी भी फिल्में अब तक बनी हैं, उनमें "बेन हर" का स्थान सबसे ऊपर है। दिग्गज फिल्म निर्देशक विलियम वायलर की यह फिल्म वर्ष 1959 में प्रदर्शित हुई थी। इसे विश्व सिनेमा के इतिहास में सबसे ज्यादा ऑस्कर पुरस्कार मिले और आज तक कोई भी फिल्म इसका कीर्तिमान नहीं तोड़ पाई है। ऑस्कर की बारह श्रेणियों में इसका नामांकन हुआ था, जिसमें पटकथा लेखन को छोड़कर (क्योंकि एक से ज्यादा लेखकों में मूल लेखक होने के मसले पर विवाद था) अन्य सभी ग्यारह श्रेणियों में इसे पुरस्कार दिया गया। अब तक इसके अलावा केवल दो फिल्मों 'टाइटैनिक" (1997) और 'द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स" (2003) को इतने ऑस्कर मिले हैं। इसके अलावा उस वर्ष 'बेन हर" ने अन्य सभी प्रतिष्ठित पुरस्कारों पर भी कब्जा कर लिया था। आज भी इसे सिनेमा इतिहास की भव्यतम और सफलतम फिल्मों में गिना जाता है।

यह फिल्म मशहूर लेखक ल्यू वॉलेस द्वारा 1880 में लिखे गए बेस्टसेलर उपन्यास "बेन हर: अ टेल ऑफ द क्राइस्ट" पर आधारित है। इस उपन्यास पर पहले भी 1907 और 1926 में मूक फिल्में बनाई जा चुकी थीं। 1959 में बनी 'बेन हर" इसका बेहतरीन एवं सफलतम फिल्म संस्करण है। यह ईसा मसीह के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों को दर्शाती है। इस फिल्म ने दर्शकों को चमत्कृत कर दिया था। हालांकि ईसाई धर्मावलंबियों के लिए इस फिल्म का विशेष महत्व है किंतु इसे इस तरह बनाया गया है कि हर धर्म के लोगों को यह समान रूप से पसंद आए। इसमें शुद्ध मनोरंजन के सारे तत्व मौजूद हैं। इस कारण विश्व भर में करोड़ों दर्शकों ने बड़े चाव से इसे बार-बार देखा है।

फिल्म की कहानी प्रथम शताब्दी (ईसा के जीवनकाल) से शुरू होती है। जूडा बेन हर (चार्लटन हेस्टन) एक अमीर यहूदी राजकुमार है, जो येरूशलम में व्यापारी की हैसियत से रहता है। उसका बचपन का दोस्त मेसाला (स्टीफन बॉएड) रोमन सेना के एक सेनापति के रूप में वहां पहुंचता है। बचपन के दोस्त होने के बावजूद उनकी विपरीत राजनीतिक एवं सामाजिक विचारधारा उन्हें एक-दूसरे से दूर कर देती है। एक षड़यंत्र के तहत मेसाला जूडा के परिवार को कैद में डाल जूडा को अपना गुलाम बना लेता है। किसी तरह स्वतंत्र होने के बाद जूडा अपना बदला लेता है। आज की फिल्मों में कम्प्यूटर तकनीक से सृजित स्पेशल इफेक्ट्स का जबर्दस्त इस्तेमाल होता है। युद्ध एवं भीड़ के दृश्य आज इन्हीं तकनीकों के सहारे तैयार किए जाते हैं। उस जमाने में, जब ये सुविधाएँ नहीं थीं, "बेन हर" जैसी फिल्म बना देना किसी चमत्कार से कम नहीं है। सिनेमा के इतिहास में किसी एक फिल्म के लिए सबसे बड़े बजट के साथ सबसे ज्यादा सेट्स इसी में बनाए गए थे। पांच साल के गहन शोध और चौदह माह के अथक परिश्रम के बाद रोम के सिनेसिटा स्टूडियो में इस फिल्म के लिए 300 सेट्स बनाए गए थे, जो 148 एकड़ में फैले थे। कॉस्ट्यूम डिजाइनर एलिजाबेथ हैफेनडेन ने लगभग सौ बड़े ट्रक भरकर कपड़े तैयार किए थे, जिनका निर्माण उन्होंने शूटिंग शुरू होने के एक वर्ष पूर्व शुरू कर दिया था। मूल उपन्यास लगभग 550 पृष्ठों का है। इसकी 40 अलग-अलग पटकथाएं लिखी गई थीं। इस फिल्म की लागत उस जमाने में करीब डेढ़ करोड़ डॉलर आंकी गई थी। यदि महंगाई दर और मुद्रा अवमूल्यन को ध्यान में रखकर गणना की जाए, तो शायद इससे बड़े बजट की कोई फिल्म आज तक नहीं बनी है। हालांकि इसने अपने निर्माताओं को कतई निराश नहीं किया और अपनी लागत से दस गुना ज्यादा कमाई करके दी! दुर्भाग्यवश फिल्म की शूटिंग खत्म होने के दो माह पूर्व ही इसके निर्माता सैम जिम्बालिस्ट का हृदयगति रुक जाने से फिल्म के सेट पर ही निधन हो गया और वे इस फिल्म की कल्पनातीत सफलता के गवाह नहीं बन सके।

इस फिल्म का नौ मिनिट लंबा रथों की दौड़ का दृश्य रोंगटे खड़े कर देता है। इस दृश्य का फिल्मांकन एक सिनेमाई करिश्मा है। यह एक दृश्य ही पूरी फिल्म की तकनीकी गुणवत्ता को प्रतिपादित करने के लिए काफी है। इस दृश्य की शूटिंग पांच सप्ताह में पूरी हुई, जिसमें 15,000 से अधिक कलाकारों एवं सैंकड़ों पशुओं ने भाग लिया। इसका सेट 18 एकड़ में बनाया गया था। इसके फिल्मांकन के लिए उस समय दुनिया का सबसे महंगा 65 एमएम कमरा उपयोग में लाया गया था। पचास के दशक में ऐसी सिनेमेटोग्राफी कर पाना विलक्षण कार्य था।

सिनेमा के इतिहास में बहुत कम फिल्में ऐसी हैं जिन्हें भव्यता, महानता और सफलता तीनों पैमानों पर शीर्ष पर रखा जा सके। "बेन हर" ऐसी ही फिल्म है, जिसे देखना एक अविस्मरणीय अनुभव है।