“रेज द रेड लैंटर्न” - स्त्री अस्मिता का संघर्ष / राकेश मित्तल
प्रकाशन तिथि : 21 जून 2014
झांग यिमोउ चीन के सर्वाधिक प्रतिष्ठित फिल्मकारों में से एक हैं। चीनी सिनेमा को विश्व पटल पर स्थापित करने में उनका बड़ा योगदान है। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। उनकी फिल्मों में चीन के सामाजिक परिवेश में महिलाओं की दशा का बहुत प्रभावशाली चित्रण होता है। वर्ष 1991 में प्रदर्शित उनकी फिल्म 'रेज द रेड लैंटर्न" भी इसी कड़ी की एक बेहद सशक्त फिल्म है। यह फिल्म विख्यात चीनी लेखक सू तोंग के प्रसिद्ध उपन्यास 'वाइव्स एंड कानक्यूबाइन्स" पर आधारित है जिसे झांग ने बाद में एक बैले के रूप में भी निर्देशित किया है। स्टीवन श्नाईडर की विख्यात सूची "25 फिल्म्स यू मस्ट सी बिफोर यू डाय" में भी यह फिल्म शामिल है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित होते ही अपने बोल्ड एवं तीक्ष्ण कथानक के कारण यह चीनी सरकार की आंखों में खटकने लगी।
सामाजिक विद्रूपताओं के अलावा इसे चीन की कठोर राजनीतिक-प्रशासनिक अनुशासन व्यवस्था पर व्यंग्य के रूप में देखा गया, जिसके चलते सेंसर से पास हो जाने के बावजूद सरकार ने इसके चीन में प्रदर्शन पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगा दिया था। फिल्म की कहानी 1920 के कालखंड के दौरान चीनी सामाजिक परिवेश की पृष्ठभूमि में बुनी गई है। उन्नीस वर्षीया खूबसूरत युवती सोंगलियान (गोंग ली) पिता की मृत्यु हो जाने एवं परिवार की दिवालिया आर्थिक स्थिति के कारण एक पचास वर्षीय अधेड़, धनाढ्य जमींदार चेन झोकियान (मा झिंग वू) से जबर्दस्ती ब्याह दी जाती है। चेन की पहले से तीन पत्नियां हैं जो उसकी महलनुमा अट्टालिका में अलग-अलग घरों में रहती हैं। प्रतिदिन चेन यह तय करता है कि वह रात किस पत्नी के साथ बिताएगा। जिस भी पत्नी का चयन वह रात बिताने के लिए करता है उसके घर के दरवाजे पर एक लाल रंग का कंदील जलाकर रख दिया जाता है। चयनित पत्नी को उस दिन श्रेष्ठतम सुख-सुविधा प्रदान की जाती है। उसेे दासियों द्वारा सुगंधित द्रव्यों से मालिश व स्नान करवाकर बेहतरीन पोषाख और सौंदर्य प्रसाधनों से सजाया जाता है, उसकी पसंद का भोजन दिया जाता है और उस दिन उससे घर का कोई काम नहीं करवाया जाता है।
दिन भर की विलासितापूर्ण खातिरदारी के बाद उसे शाम को चेन के शयन कक्ष में भेज दिया जाता है। इस व्यवस्था के चलते सभी पत्नियों में कड़ी प्रतिस्पर्धा और जलन की भावना बनी रहती है। वे तरह-तरह से चेन को प्रभावित करने की कोशिश करती हैं क्योंकि उनका चयन घर में उनकी प्रतिष्ठा, सम्मान, शक्ति और हैसियत में वृद्धि करता है। चेन की पहली पत्नी उसी की उम्र की है तथा चेन से उसका एक जवान बेटा भी है। वह लगभग भुला दी गई है और निर्वासित-सा जीवन जी रही है। दूसरी और तीसरी पत्नियां युवा और खूबसूरत हैं। सोंगलियान के आने से उनमें असुरक्षा की भावना उत्पन्ना हो जाती है। चारों के बीच छल, कपट, षड्यंत्र, विश्वासघात तथा शह और मात का खेल चलता रहता है। सोंगलियान अपनी तीनों प्रतिद्वंदियों को किनारे करने के लिए गर्भवती हो जाने का ढोंग करती है जिसके चलते चेन की सारी एकाग्रता उस पर केंद्रित हो जाती है किंतु एक दासी उसका भांडा फोड़ देती है जो स्वयं चेन की पत्नी बनने की फिराक में हैं। धीरे-धीरे स्थितियां जटिल और नियंत्रण से बाहर होती जाती हैं।
यह फिल्म स्त्री की अस्मिता और स्वायत्तता के हनन का जीवंत दस्तावेज है। अपने राजनीतिक निहितार्थों के अलावा यह एक बंद, सड़ी-गली सामाजिक व्यवस्था पर तीक्ष्ण प्रहार करती है। सदियों से चीनी दर्शन का यह मूल मंत्र रहा है कि जो नियम-पालन करे उसे पुरस्कृत करो और न पालन करे उसे नष्ट कर दो। पालन करने और न करने के बीच कोई विकल्प नहीं है। ऐसी जड़ और आदिम व्यवस्था में अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए यहां स्त्री की स्त्री के विरुद्ध लड़ाई है जिसमें पुरुष भी एक मोहरा है। इस लड़ाई में हर परिस्थिति में किसी न किसी स्त्री की पराजय सुनिश्चित है। सोंगलियान की भूमिका में गोंग ली ने जबर्दस्त अभिनय किया है। यह उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। वे निर्देशक झांग की पसंदीदा अभिनेत्री है और उनकी अधिकांश फिल्मों में काम कर चुकी हैं।
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी कमाल की है। झांग अपनी फिल्मों में गहरे उदात्त रंगों के प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। इस फिल्म में भी रंगों का संयोजन फ्रेम दर फ्रेम कलाकारों के बदलते मनोभावों के साथ सामंजस्य बैठाता है। इस फिल्म को विश्व सिनेमा में नब्बे के दशक की लैंडमार्क फिल्म माना जाता है। व्यावसायिक सफलता के साथ-साथ समीक्षकों और समकालीन फिल्मकारों की भी इसे भरपूर सराहना मिली। ऑस्कर, गोल्डन ग्लोब एवं बाफ्टा सहित ग्यारह प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में इसे 'विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म" हेतु नामांकित किया गया जिनमें से सात स्थानों पर यह विजेता रही। वेनिस के अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में झांग यिमोउ को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का 'सिल्वर लायन" पुरस्कार दिया गया।