“3 आयरन” खामोश प्यार की अनूठा दास्तान / राकेश मित्तल

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“3 आयरन” खामोश प्यार की अनूठा दास्तान
प्रकाशन तिथि : 10 मई 2014


फिल्म के दोनों मुख्य पात्रों के बीच जिस तरह बिना संवादों के प्रेम पनपता है, वह देखने लायक है। कलाकारों ने भी सिर्फ चेहरे और आंखों की भंगिमाओं से कमाल का अभिनय किया है।

वर्ष 2004 में प्रदर्शित दक्षिण कोरियाई निर्देशक किम की डक की फिल्म '3 आयरन" एक अद्भुत फिल्म है। बिल्कुल नई संकल्पना, अनूठे कलेवर और उम्दा प्रस्तुतिकरण के चलते यह दर्शकों को सम्मोहित कर लेती है। यह निर्देशक का कमाल है कि पूरी फिल्म में नायक-नायिका ने एक शब्द भी नहीं बोला है किंतु उनके सारे संप्रेषण बहुत आसानी से समझ में आते हैं। अन्य कलाकारों ने भी न्यूनतम संवादों का उपयोग किया है।

किम की डक दक्षिण कोरिया के सर्वाधिक प्रतिष्ठित फिल्मकारों में से हैं। उनकी फिल्में न्यूनतम कलाकारों और संवादों के सहारे अधिकतम अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती हैं। दार्शनिक काव्यात्मकता और चाक्षुक सौंदर्य से भरपूर उनकी फिल्में रुपहले पर्दे पर कविता रचती हैं। इस फिल्म के निर्माण, निर्देशन और लेखन की तीनों जिम्मेदािरयां उन्होंने स्वयं उठाई हैं।

फिल्म का नायक ताई सुक (जे ही) एक आवारा, घुमंतु लड़का है, जो उन घरों में जाकर रहता है जिनमें रहने वाले बाहर गए हुए हैं। ऐसे घरों को खोजने का उसका तरीका भी एकदम नायाब है। वह घरों के मुख्य दरवाजों के बीचो-बीच इश्तेहार चिपका देता है और फिर उन पर नजर रखता है। यदि किसी घर में दो-तीन दिन तक उसी स्थान पर इश्तेहार चिपका रहता है, तो वह इस बात का संकेत है कि दरवाजा खुला नहीं है और घरवाले कहीं बाहर गए हैं। तब वह चुपचाप दरवाजे का ताला तोड़कर अंदर दाखिल हो जाता है और आराम से वहां रहने लगता है। वह वहीं के किचन में खाना बनाकर खाता है, उस घर के लोगों के कपड़े पहनकर उन्हीं के बेडरूम में सोता है और मजे से घर की सारी सुविध्ााओं का आनंद उठाता है। वह घरों से कोई चीज नहीं चुुराता, बल्कि इस जबर्दस्ती प्राप्त किए गए 'आतिथ्य" के एवज में वह घर की अच्छे से साफ-सफाई करता है, छोटी-मोटी मरम्मत कर देता है, घर के मालिकों के गंदे रखे कपड़े ध्ाो देता है और बगीचे में पानी डाल देता है। दिन में वह अन्य घरों की निगरानी हेतु घूमता रहता है और जैसे ही उसे कोई दूसरा घर पसंद आता है, वह पुराने घर को छोड़कर उध्ार शिफ्ट हो जाता है। एक बार वह इसी तरह एक घर में दाखिल होता है, जहां दीवारों पर एक खूबसूरत लड़की की तस्वीरें लगी हैं। वह अपने रूटीन के मुताबिक वहां रहने लगता है। उसे नहीं मालूम कि घर की मालकिन वह खूबसूरत लड़की अंदर ही है। उस लड़की का नाम सुन हुआ (ली स्यूं यान) है। वह शायद कई हफ्तों से घर से बाहर नहीं निकली है। उसके चेहरे और शरीर पर चोट के निशान हैं क्योंकि उसका पति मिन ग्यू ली (ह्युक हो क्वॉन) उसे बहुत मारता-पीटता है। ताई सुक की गतिविध्ाियों को सुन हुआ चुपचाप पर्दे के पीछे से छिपकर देखती रहती है। एक दिन अचानक उन दोनों का सामना हो जाता है पर वे एक-दूसरे से कुछ नहीं कहते। वे मन ही मन एक-दूसरे की स्थिति को समझने लगते हैं। सुन हुआ के चेहरे की चोटें देखकर ताई सुक के दिल में उसके प्रति हमदर्दी उत्पन्ना होती है। वे दोनों एक-दूसरे की निजता का सम्मान करते हुए एक-दूसरे की केयर करने लगते हैं। दोनों के बीच जिस तरह बिना संवादों के प्रेम पनपता है, वह देखने लायक है। इसी बीच एक रात सुन हुआ का पति प्रवास से लौट आता है। दोनों के बीच किसी बात पर झगड़ा होता है और वह सुन हुआ को पीटने लगता है। छिपकर देख रहे ताई सुक से यह सहन नहीं होता। वह सामने आ जाता है और गोल्फ की बॉल से सुन हुआ के पति को बुरी तरह मारता है। इसके बाद सुन हुआ अपने पति को छोड़कर ताई सुक की मोटरसाइकल के पीछे बैठकर चल देती है। वह भी ताई सुक के साथ उसी तरह खाली घरों में रहना शुरू कर देती है। आगे चलकर उन्हें कई अप्रिय परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है और फिल्म अनेक घटनाक्रमों से गुजरते हुए एक रोचक अंत की तरफ अग्रसर होती है।

इस फिल्म को देखना एक अद्भुत अनुभव है। इसे किम की डक के निर्देशकीय कौशल के लिए देखा जाना चाहिए। अनेक दृश्यों में उन्होंने अपने जीनियस होने का परिचय दिया है। पटकथा इतनी कसी हुई है कि एक क्षण के लिए भी फिल्म से ध्यान भटकने नहीं देती। कलाकारों ने भी सिर्फ चेहरे और आंखों की भंगिमाओं से कमाल का अभिनय किया है।

वेनिस के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में इस फिल्म का प्रीमियर हुआ था, जहां इसे सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का पुरस्कार मिला। इसके अलावा योरप और एशिया के लगभग सभी प्रतिष्ठित फिल्म समारोहों में इसे भरपूर सराहना और पुरस्कार मिले।