13 वर्ष की यातना का लेखा-जोखा / जयप्रकाश चौकसे

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लोप होती स्मृति में तन्हा दिलीप कुमार
प्रकाशन तिथि :11 दिसम्बर 2015


मुंबई हाईकोर्ट ने अभिनेता सलमान खान को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है। यह प्रकरण विगत 13 वर्ष से चल रहा था और खान परिवार के सारे सदस्य 13 साल तक अवर्णनीय यातनाएं सहते रहे हैं। हर पेशी पर उनकी मां सलमा का क्या हाल रहा है, यह उनके नज़दीकी जानते हैं। पिता सलीम साहब ने एक पठान की तरह अपनी भावनाओं को छिपाकर रखा परंतु उनकी अनअभिव्यक्त वेदना का वर्णन संभव नहीं है। स्वयं सलमान पर क्या गुजरी यह भी महसूस किया जा सकता है। सलमान की तरह अनगिनत आम लोग हैं, जिन्होंने बरसों कोर्ट के चक्कर लगाए हैं और गलत ढंग से सजायाफ्ता लोगों के परिवारों ने जो यातना सही उसका कोई बही-खाता नहीं है। इस तरह के सबके अपने दुख-दर्द हैं।

बहाए हुए आंसू और रोके हुए आंसुओं के दर्द को भुक्तभोगी ही जानता है। हमारे देश की कछुए की रफ्तार से चलती अदालतें, पुलिस का निर्मम व्यवहार और जबर्दस्ती सबूत जुटाने की अमानवीय कोशिशों से उत्पन्न मानवीय यातना किसी कानून और किसी 'क्राइम एंड पनिशमेंट' के दायरे में नहीं आतीं। इसे सिर्फ भुगतना होता है। हिंदुस्तान की जेलों में अनगिनत गरीब युवा बंदी हैं और कई प्रकरण तो अदालत में उस समय प्रस्तुत होते हैं, जब आरोपी उससे अधिक समय जेल में रह चुका होता है, जितनी अवधि की सजा दोषी पाने पर उसे दी जा सकती है।

हमारी न्याय-प्रणाली अौर पुलिस महकमे का नेताओं के दबाव में रहना ऐसी समस्याएं हैं, जिनका िनदान कहीं नज़र नहीं आता। जैसे इस वर्ष के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा है कि राष्ट्रीय संपत्ति, आय और खर्च इत्यादि के आंकड़ों से मनुष्य की वेदना और सुख को खारिज कर दिया गया है। धनाढ्य देशों में भी दुखी लोगों की संख्या चौंकाने वाली है और भारत में विकास के सारे धुआंधार वायदों और भाषणों में कभी उन करोड़ों लोगों की बात ही नहीं शुमार होती, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी एक वक्त भी संपूर्ण अाहारयुक्त भोजन नहीं किया है। कभी नमक होता है, रोटी नहीं होती। रोटी होती है तो दाल नहीं होती और सब्जी तो हसीन सपना मात्र है। प्रोटीन की जरूरत जैसे गंभीर मामले की बात ही नहीं की जा सकती। सेहत की सुविधाओं का हाल सबको पता है। गौरतलब है कि गुजश्ता 13 वर्षों में कभी सलीम साहब ने इस मामले में अपने बेटे के बचाव के बाबत कोई बयान नहीं दिया है अौर हमेशा इतना ही कहा है कि उन्हें न्याय व्यवस्था में पूरा भरोसा है। उन्होंने तो आज तक अपने सफल बेटे के अभिनय की कभी सार्वजनिक अभिव्यक्ति नहीं की है। कई स्टार पिता अपने असफल अभिनेता पुत्र की इत्तफाक से आई किसी अच्छी फिल्म को सौ बार देखने का बयान देते हैं। यह भी गौरतलब है कि इन 13 वर्षों के अघोषित वनवास में सलमान खान ने अपने कॅरिअर और अवाम की भलाई के प्रयास सतत जारी रखे हैं।

क्या कैमरे के सामने खुशी की अभिव्यक्ति के समय उनके मन में अाशंकाएं नहीं बनी रहती थीं। आशंकाएं छिपाकर अभिनय करना भी बड़ी चुनौती है। इन 13 वर्षों में उन्होंने अनेक सफल फिल्मों में काम किया और 'बजरंगी भाईजान' जैसी महान फिल्म भी रची है। क्या इन 13 वर्षों में उनके मन में कभी निदा फाज़ली की ये पंक्तियां नहीं गूंजी होंगी, 'जो बीत गया वह इतिहास है तेरा, जो अब काटना है वनवास है तेरा।'

इस पूरे प्रकरण में सलमान खान की व्यापार प्रबंधक रेशमा शेट्‌टी और बहन अलविरा अग्निहोत्री ने अनेक कष्ट सहे और अनथक प्रयास जारी रखे हैं। सलमान के पास विलक्षण रेशमा/अलविरा हैं और बॉडीगार्ड शेरा भी है। यह 'रेशमा-शेरा' किसी फिल्म का नाम नहीं है। बहरहाल, सलमान के नज़दीकी लोग उन्हें उतना नहीं जानते, जितना वे असंख्य प्रशंसक, जो उनसे कभी मिले ही नहीं। 13 वर्ष सारे परिवार की यातना का कोई लेखा-जोखा नहीं है और न ही उन परिवारों की यातना हम जानते हैं, जिनके निर्दोष बच्चे जेलों में सड़ रहे हैं और आरोप-पत्र भी अभी तक नहीं बना है।