44वें फिल्म समारोह की चर्चा / जयप्रकाश चौकसे

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44वें फिल्म समारोह की चर्चा
प्रकाशन तिथि : 22 नवम्बर 2013


चेकोस्लोवाकिया के फिल्मकार जिरी मेन्जेल की 2013 में प्रदर्शित 'डॉन जुआन' से गोवा में 44वें भारतीय फिल्म समारोह का उद्घाटन हुआ। इस फिल्मकार को जीवन पर्यंत सिनेमा सेवा के लिए सम्मानित किया गया। समारोह में फिल्म की शताब्दी के अवसर पर वहीदा रहमान का भी स?मान किया गया। सभा में मौजूद सारे लोग उनके सम्मान में उठ कर खड़े हो गए। वहीदा रहमान ने कहा कि इस सम्मान के लिए उनके तमाम लेखकों, फिल्मकारों और तकनीशियनों का वह शुक्रिया अदा करना चाहतीं हैं जिनके सहयोग के बिना वे कुछ नहीं कर पातीं। उनकी यह विनम्रता काबिले तारीफ है। परंतु उन्हें गुरुदत्त का नाम अवश्य लेना चाहिए था जिन्होंने उन्हें खोजा, अवसर दिए और संवारा भी। यह सचमुच अजीब लगता है कि प्रेम में होने की तरह नहीं समझा जाए, इसलिए एक महिला कलाकार अपने प्रिय फिल्मकार का नाम ही नहीं ले। दरअसल वहीदा रहमान की इस अतिरिक्त सावधानी का कारण मीडिया द्वारा असली-नकली प्रेम प्रकरणों का उछाला जाना है। एक विवाहित और मां की हैसियत रखने वाली कलाकार को यह भय भी लगता है कि उसके बच्चे उसे गलत न समझ लें। हम लोगों ने अपने लिए कितने कांच के रंगमहल बनाए हैं कि शिष्या गुरु का नाम ले तो कांच महल तड़क जायेगा। मजे की बात यह है कि समारोह की उद्घाटन फिल्म में भी इसी तरह के मुद्दे को उठाया गया है।

उद्घाटन समारोह में बिरजू महाराज के द्वारा संयोजित फिल्म नृत्य दृश्य परदे पर दिखाए गए परंतु मंच पर उनके शिष्यों ने उसी नृत्य को अपनी कलात्मक बारीकियों के साथ प्रस्तुत भी किया। यह एक सर्वथा नया प्रयोग था। 'मुगल-ए-आजम' और 'शतरंज के खिलाड़ी' के नृत्य दृश्य भी इसमें शामिल थे और अंत में स्वयं बिरजू महाराज ने एक अविस्मरणीय प्रस्तुति भी दी, परंतु बिरजू महाराज ने यह बताना जरूरी नहीं समझा कि 'मुगल-ए-आजम' और 'शतरंज के खिलाड़ी' में प्रस्तुत गीत वाजिद अली शाह के बनाए हैं और 'मोहे पनघट पे नंदलाल छोड़ गयो रे' स्वयं वाजिद अली शाह प्रस्तुत करते थे और उनके नृत्य प्रशिक्षक बिरजू महाराज के परिवार के ही पुरोधा थे। 1857 के स्वाधीनता संग्राम के समय अवध के नवाब वाजिद अली शाह गीत संगीत और अन्य कलाओं के महान जानकार थे उस मुसलमान नवाब को 'मोहे पनघट पे नंदलाल' के सृजन का अभिमान था और हिन्दुस्तानी संस्कृति में इस तरह के अनेक सत्य हैं परन्तु आज गंगा-जमुना संस्कृति को राजनैतिक वजहों से नकारा जा रहा है।

बहरहाल उद्घाटन फिल्म में गहरी माननीय संवेदना के दृश्य भी हास्य के लहजे में प्रस्तुत किए गए हैं। फिल्म का नायक रंगमंच का प्रेमी है और मोजार्ट से प्रेरित लिब्रेटो पर कृति रच रहा है। अपनी कृति के लिए वह अपने ही शहर के एक पुराने खिलंदड़ अभिनेता को अमेरीका से आमंत्रित करता है और इस जांबाज खिलंदड़ वृद्ध को अपनी जवानी के दिन याद आते हैं, शहर में उसकी अनेक प्रेमिकाएं भी हैं और उन्हें अपनी किशोर अवस्था में किए गए प्रेम को छुपाने में कोई रूचि नहीं है। फिल्म कथा प्रवाह के साथ यह बात भी रेखांकित की गई है कि पुराने जर्जर नाट्य ग्रह को तोड़कर मॉल बनाया जाएगा, क्योंकि अब ऑपेरा के दर्शक कम हो गए हैं। इस तथाकथित विकास ने पूरी दुनिया में सांस्कृतिक ठिओं का नाश कर दिया है।