Vigyaapan / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
9 वृहत्त हिन्दी कोष के अनुसार- विज्ञापन का अर्थ है- “समझना, सूचना देना, इश्तहार, निवेदन या प्रार्थना” |
डॉ. एम. बाउस के मुताबिक- “एक सीधी कार्यवाही को उकसाने के उददेश्य से किसी संचार माध्यम में समय या स्थान को खरीद का नाम विज्ञापन है|”
रोजर रीवज ने कहा है कि- “विज्ञापन एक व्यक्ति के मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में एक विचार को स्थानान्तरित करने की कला है।“
कैनन एवं विचर्ट के अनुसार- “विज्ञापन में उन दृश्यों एवं मौखिक संदेशों को सम्मिलित किया जाता है जो समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं चलचित्र, रेडियो, टेलीविजन, परिवहन के साधनों अथवा बाहय बोर्डों पर दिए होते हैं और जिनके लिए विज्ञापनकर्ता भुगतान करते हैं और जिनका उद्देश्य उपभोक्ताओं के क्रय आचरण को प्रभावित करना होता है।
फेंक जेफकिन्स ने क्रय और विक्रय योग्य वस्तुओं को जनता तक पहुंचाने के माध्यम को विज्ञापन माना है। उन्होंने सस्ते दर पर उत्पादित सामग्रियों एवं सेवाओं के उचित ढंग से प्रभावकारी प्रस्तुतीकरण को विज्ञापन कहा है। विज्ञापन के अन्तर्गत हर प्रकार का वह कार्य सम्मिलित है जिसमें विक्रय योग्य वस्तुओं या सेवाओं के विक्रय को प्रोत्साहन देने हेतु सूचना का प्रसार किया जाता है विज्ञापन एक जटिल प्रक्रिया है। अब विज्ञापन की जगह बेची जाती है या उसका विपणन किया जाता है।
“'इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' के अनुसार किसी वस्तु के विक्रय अथवा किसी सेवा के प्रसार हेतु मूल्य चुका कर की गयी घोषणा ही विज्ञापन है। वास्तव में यह प्रचार का एक प्रभावशाली साधन है जिसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय का विकास होता है। विक्रय-व्यवस्था में विज्ञापन, वस्तु का परिचय कराने, उसकी विशेषताएं तथा उसके लाभ बताने का कार्या सम्पादित कर ग्राहकों को उत्पादित वस्तु के ब्रांड को लोकप्रिय बनाना तथा कम्पनी के नाम को जनता के मन-मस्तिष्क में जमाने का कार्य विज्ञापन ही करता है। विचार प्रधान विज्ञापन अब सामाजिक विकास के माध्यम बनते जा रहे हैं।
किसी व्यक्ति, वस्तु, सेवा या आंदोलन को प्रस्तुत करने वाली मुद्रित सामग्री, लिखित शब्द, बोले गये शब्द या चित्रांकन विज्ञापन है जिसे विज्ञापनदाता अपने खर्च पर बिक्री, प्रयोग, वोट या अन्य प्रकार की सहमति प्राप्ति के लिए खुल्लमखुल्ला प्रस्तुत कर सकता है। वर्तमान में तो विज्ञापन किसी भी उद्योग, वस्तु, संस्थान व समाचार माध्यमों हेतु अपरिहार्य वस्तु बन गया है। जिस तरह रक्त संचरण के बिना जीवन चलना असंभव है उसी तरह वर्तमान स्वरूप में बिना विज्ञापन के किसी भी उद्योग, वस्तु, संस्थान व समाचार माध्यमों (टीवी, रेडियो, समाचार पत्र-पत्रिकाओं) का चलना असंभव हो गया है।
विज्ञापन उन समस्त गतिविधियों का नाम है जिनका उद्देश्य अपने खर्च पर किसी विचार, वस्तु या सेवा के विषय में जानकारी प्रसारित करना हो, जिससे विज्ञापनदाता की इच्छा के अनुसार व्यक्ति कार्रवाई करने को मन से बाध्य हो जाए ।
इस परिभाषा में विज्ञापन के क्षेत्र की उन समस्त गतिविधियों का समावेश संभव है जिनमें-
1. बिकी-व्यवस्था के क्षेत्र में की गई गवेषणा, विज्ञापन और वस्तु की डिजाइन, 2. दूर-दृष्टियुक्त विज्ञापन-उद््दश्य, उसकी लागत, प्रसार माध्यम तथा उपयुक्त संदेश; 3. इन उद्देश्यों या योजना के अनुसार उठाये गये अल्पकालीन कदम; 4. विज्ञापन का वास्तविक प्रस्तुतीकरण-सामग्री-लेखन, ले-आउट, कलापक्ष तथा प्रस्तुतीकरण और 5. विज्ञापन-प्रयास के प्रभाव से संबंधित अधिक अनुसंधान आदि सभी कुछ सम्मिलित है। -0- 12 उ0 रामचन्द्र वर्मा की परिभाषा के अनुसार विज्ञापन की परिभाषा इस प्रकार है-- “जिसके द्वारा कोई बात लोगों को बतलायी जाए, वह सूचना पत्र, इश्तिहार, बिकी आदि के माध्यम से हो और जो सूचना माध्यमों के द्वारा दी जाए” वह विज्ञापन है।
प्र0 3- 'इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' के अनुसार विज्ञापन की परिभाषा क्या है?
उ0 'इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' के अनुसार किसी वस्तु के विक्रय अथवा किसी सेवा के प्रसार हेतु मूल्य चुका कर की गयी घोषणा ही विज्ञापन है।
प्र0 4+- फेंक जेफकिन्स ने विज्ञापन किसे माना है?
उ0 फेंक जेफकिन्स ने क्रय और विक्रय योग्य वस्तुओं को जनता तक पहुंचाने के माध्यम को विज्ञापन माना है।
1.3 विज्ञापन का उद्देश्य :
विज्ञापन का उद्देश्य विज्ञापन की उपरोक्त दी गयी परिभाषाओं से ही
निकल कर आता है लेकिन यहां विज्ञापन के उद्देश्यों को विस्तृत रूप से समझाने
का प्रयास किया गया है।
“विज्ञापन का उद्देश्य उत्पादक को लाभ पहुंचाना, उपभोक्ता को शिक्षित करना, विक्रेता की मदद करना, प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त कर व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करना और सबसे अधिक तो उत्पादक और उपभोक्ता के सम्बन्ध अच्छे बनाना होता है।” : ई.एफ. एल. ब्रेच
विज्ञापन. हमेशा ही 'लाभ' के उददेश्य को लेकर चलते हैं। यों तो अधिकांशतः यह लाभ प्रस्तुतकर्ता को वस्तु के बेचने से होने वाला मुनाफा ही होता 96 उ0 रामचन्द्र वर्मा की परिभाषा के अनुसार विज्ञापन की परिभाषा इस प्रकार है-- “जिसके द्वारा कोई बात लोगों को बतलायी जाए, वह सूचना पत्र, इश्तिहार, बिकी आदि के माध्यम से हो और जो सूचना माध्यमों के द्वारा दी जाए” वह विज्ञापन है।
प्र0 3- 'इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' के अनुसार विज्ञापन की परिभाषा क्या है?
उ0 'इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' के अनुसार किसी वस्तु के विक्रय अथवा किसी सेवा के प्रसार हेतु मूल्य चुका कर की गयी घोषणा ही विज्ञापन है।
प्र0 4+- फेंक जेफकिन्स ने विज्ञापन किसे माना है?
उ0 फेंक जेफकिन्स ने क्रय और विक्रय योग्य वस्तुओं को जनता तक पहुंचाने के माध्यम को विज्ञापन माना है।
1.3 विज्ञापन का उद्देश्य :
विज्ञापन का उद्देश्य विज्ञापन की उपरोक्त दी गयी परिभाषाओं से ही निकल कर आता है लेकिन यहां विज्ञापन के उद्देश्यों को विस्तृत रूप से समझाने का प्रयास किया गया है।
“विज्ञापन का उद्देश्य उत्पादक को लाभ पहुंचाना, उपभोक्ता को शिक्षित करना, विक्रेता की मदद करना, प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त कर व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करना और सबसे अधिक तो उत्पादक और उपभोक्ता के सम्बन्ध अच्छे बनाना होता है।” : ई.एफ. एल. ब्रेच
विज्ञापन. हमेशा ही 'लाभ' के उददेश्य को लेकर चलते हैं। यों तो अधिकांशतः यह लाभ प्रस्तुतकर्ता को वस्तु के बेचने से होने वाला मुनाफा ही होता hai 105
विज्ञापन के विकास के साथ साथ विज्ञापन की बनावट, शैली, भाषा और
प्रस्तुति में कई नकारात्मक प्रभाव भी पड़ गए हैं। इस तरह के प्रभावों से विज्ञापन
को बचाए रखने के लिए समय-समय पर अनेक आचार संहिता बनाई गई हैं। इस
तरह की आचार संहिताएं और नियम कानून विज्ञापनों की छवि और मर्यादा को
बचाए रखने के दिशाननिर्देश हैं और इनमें वक्त-वक्त में परिवर्तन होते रहे हैं।
मसलन एक दौर में शराब के विज्ञापन आसानी से किए जा सकते थे लेकिन अब
शराब के विज्ञापन किसी भी रूप में नहीं किए जा सकते। चूंकि विज्ञापन एक
निरंतर विकसित होता क्षेत्र है इसलिए इसमें नए दोष आना, नई बुराईयां पनपना भी
लाजिमी है लेकिन आचार संहिताएं और विज्ञापन तथा मीडिया से जुड़े महत्वपूर्ण
लोग भी इन बुराइयों और दोषों को खत्म करने में समय-समय पर दखल देते रहते
हैं। सरकारी स्तर पर भी इस बारे में समय-समय पर नीति-निर्देश जारी होते रहते
हैं। इस तरह यह उम्मीद की जा सकती है कि बदलते दौर में भी विज्ञापन अपनी
छवि, महत्व और उपयोगिता बरकारार रख सरकेगा और उत्त्तरोत्तर नए-नए रूपों
में विकसित होता रहेगा।
3.8 शब्दावली : 1
01-ः ब्रेक के बाद : ब्रेक के बाद टेलीजिवन चैनलो में प्रयुक्त होने वाला एक मुहावरा है जिसका प्रयोग किसी कार्यकम के बीच में प्रायः विज्ञापनों के लिए समय निकालने के लिए किया जाता है। यह मुहावरा आज तक के प्रसिद्ध एंकर स्व. एसपी सिंह की देन है। उपयोगिता अपील : उत्पाद की उपयोगिता उपभोक्ता को उस उत्पाद को खरीदने के लिए प्रेरित करती है। उपभोक्ता को प्रेरित करने के लिए जब विज्ञापन उत्पाद की उपयोगिता को रेखांकित किया जाता है तब इसे उपभोक्ता अपील कहते हैं। भारतीय विज्ञापन परिषद : यह प्रमुख विज्ञापनकर्ताओं और विज्ञापन एजेंसियों द्वारा गठित एक स्वतंत्र संस्था है जो विज्ञापन के पाठकों, दर्शकों, श्रोताओं और -0- 101 कॉपी लेखक अपने सृजनात्मक कौशल से विज्ञापन में जान फूक देता है। वह उत्पाद की गुणवत्ता और उत्कष्टता को अभिव्यंजना शिल्प से शब्द-चित्रों में इस तरह उभारता है कि वह विश्वसनीय लगे और उपभोक्ताओं या लक्षित जनसमूह को सहज ही ग्राह्मय हो सके | विज्ञापन कॉपी के अंग : विज्ञापन कॉपी के चार प्रमुख अंग होते हैं- » शीर्षक
- उपशीर्षक
०» विस्तार वर्णन (बॉडी)
- उपसंहार |
विज्ञापन में शीर्षक का विशेष महत्व है, क्योंकि शीर्षक ही विज्ञापन की पाठय सामग्री को पूरा पढ़ने की इच्छा या विवशता पैदा करता है। शीर्षक पर दृष्टि पड़ते ही विज्ञापन आपके किसी मतलब का है कि नहीं, इसका अंदाजा लगा लिया जाता है। विशेषज्ञों की राय में शीर्षक के बिना विज्ञापन बिना चेहरे के व्यक्ति के समान है, जिसकी न तो कोई अलग पहचान है और न ही अपना व्यक्तित्व | अच्छे शीर्षक का गुण यह है कि उसमें वस्तु संकेत' अथवा उत्पाद की मूल विशेषता का संकेत हो। विज्ञापित वस्तु के वैशिष्ट्य को संक्षिप्त और सरल शब्दों में प्रकट करने वाला शीर्षक ही उपयुक्त शीर्षक माना जाता है। विज्ञापन के शीर्षक भी समाचार-प्रधान होते हैं, कभी प्रत्यक्ष लाभ प्रधान, तो कभी भावात्मक अपील से संपन्न शीर्षक गढ़े जाते हैं। शीर्षक में संक्षिप्तता पर बल दिए जाने के कारण विज्ञापन का उद्देश्य और वस्तु की क्षमता का प्रदर्शन पूरी तरह नहीं किया जा सकता। उसमें केवल संकेत ही होता है। लेकिन उपशीर्षक में विज्ञापन के उद्देश्य को थोड़े विस्तार के साथ -0-
ज्ञापन के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाते हैं। कॉपी लेखक शब्दों का पुल बनाता है और कला निदेशक चित्रों का।
विज्ञापन के सृजनात्मक आयामों में लेआउट, उसके सिद्धांत और विभिन्न स्तरों और उसके सिद्धांतों का ज्ञान आवश्यक है। लेआउट और लेआउट के सिद्धांत : विज्ञापन का लेआउट बनाना विज्ञापन निर्माण का पहला चरण है। प्रायः कॉपीराइटर और कला निदेशक विज्ञापन के लिए विचार और चिंतन की प्रक्रिया से गुजरते हैं। इस प्रक्रिया में विज्ञापन का जो प्रारंभिक रूप या खाका तैयार होता है, वही लेआउट कहलाता है। विज्ञापन का लेआउट कई तत्वों के समन्वय से तैयार होता है, जैसे-हेडलाइन, दृश्य सामग्री, सब लीड, पंक्तियां, कॉपी कैप्शन, बैकग्राउंड, बाई लाइन, नारे (81027), अंतिम हिस्सा (?प्राए 1110), लोगो (,072०), निचली पंक्ति (&९?॥9प्रा०), कंपनी की मुहर, प्रोडक्ट, कूपन आदि। यह विज्ञापनदाता पर निर्भर करता है कि वह एक विज्ञापन में किन-किन तत्वों को शामिल करवाता है। आमतौर पर आकार, क्षेत्र, रंगों का संयोजन, बैकग्राउंड, विज्ञापन के लेआउट के मुख्य तत्व होते हैं।
लेआउट के अंतर्गत कॉपी लेखक, कला निदेशक और फोटोग्राफर मिलकर यह तय करते हैं कि विज्ञापन के तत्वों का किस प्रकार संयोजन किया जाए। लेआउट के जरिए यह जाना जा सकता है कि विज्ञापनों में किस स्थान पर चित्र होगा, कौन सा स्थान सादा होगा, कैप्शन कहां होगा, लोगो कहां होगा, हेडलाइन कहां होगी आदि-आदि। इस तरह से ले आऊट विज्ञापन का प्रारूप (ब्लूप्रिंट) तेयार करने का कार्य करता है। प्रिंट माध्यम में दिए जानेवाले विज्ञापनों के लेआउट में चित्र तथा कॉपी महत्वपूर्ण होती है, जबकि श्रव्य-दृश्य माध्यमों के विज्ञापनों का लेआउट स्टोरी बोर्ड के रूप में होता है।
लेआउट को तैयार करते समय निम्नलिखित सिद्धांतों को ध्यान में रखा जाता है- -0-
- संतुलन
» अनुपात » गति
- » एकता
- विरोध और प्राबल्य
जीवन, समाज और प्रकृति, सभी के लिए संतुलन आवश्यक है। असंतुलन से अव्यवस्था पैदा होती है। किसी भी चीज की अतिशयता असंतुलन की स्थिति पैदा कर सकती है। इसीलिए संतुलन विज्ञापन निर्माण का प्रमुख सिद्धांत है। -/लेआउट में ऊर्धवाकार रेखा खींचने पर दोनों ओर के तत्वों के भार व दूरी की व्यवस्था असमान हो तो लेआउट असमान संतुलन के अंतर्गत आता है। यह संतुलन सृजनात्मक, रुचिकर व जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला होता है। लेआउट में चाक्षुषीय केंद्र उसका संदर्भ केंद्र होता है। अनुमानतः लेआउट का चारक्षुषीय केंद्र गणितीय विधि से निकाले गए केंद्र के ऊपरी हिस्से के एक तिहाई ऊपर की दूरी पर होता है। यही उसका संदर्भित बिंदु होता है' | अनुपात का सिद्धांत भी विज्ञापन के लिए जरूरी है। इसे संबद्धता का नियम (39 ०1 २6९०४णाआ॥आ9) भी कहा जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार विज्ञापन के लेआउट में विज्ञापन के सब तत्वों के बीच उचित आनुपातिक समन्वय बैठाया जाता है। विज्ञापनों में कोन सा और कितना हिस्सा किस तत्व को दिया जाएगा इसका निर्णय लिया जाता है| गतिशीलता का तत्व संपूर्ण सृष्टि को जीवंत बनाता है। नदी की लहरों का, झरनों का जल प्रवाह अपनी गतिशीलता और प्रवाह के कारण भला किसे आकर्षित नहीं करता है। लेआउट में गतिशीलता का सिद्धांत ही उसे प्राणवान बनाता है। इसमें विज्ञापन को इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि पाठक और दर्शक की दृष्टि -0- लेआऊट निर्माण की प्रकिया तीन चरणों में पूरी होती है। 1- थंबनेल रेखा चित्र निर्माण >-- रफ ले आऊट निर्माण और 3- काम्प्रिहेन्सिव लेआऊट निर्माण
4.4 विज्ञापन एजेंसी :
विज्ञापन व्यवसाय तीन मुख्य आधारों पर खड़ा है। विज्ञापनदाता, जनसंचार माध्यम तथा विज्ञापन एजेंसियाँ। विज्ञापन एजेंसियों ने विज्ञापन व्यवसाय को व्यवस्थित रूप दिया है। उपभोक्ता संबंधी ज्ञान के विशेषज्ञ के रूप में विज्ञापन एजेंसियों ने मुख्य अपनी भूमिका निभाई है। विज्ञापन कर्म में रचनाशीलता और माध्यमों पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूरे उपभोक्ता कार्यक्रमों को संगठित रूप देने का प्रयास भी विज्ञापन एजेंसियों ने ही किया है, इसीलिए विज्ञापन एजेंसियों को विज्ञापन विशेषज्ञों का संगठन' माना जाता है। विलियम जे. स्टांटेन के अनुसार- “विज्ञापन. एजेंसी एक स्वतंत्र कंपनी है, जो सामान्यतः विज्ञापन और विशेषतः: विज्ञापन को विशिष्ट सेवाएँ प्रदान करने के लिए स्थापित की जाती है।” एक अन्य परिभाषा के अनुसार विज्ञापन एजेंसी एक स्वतंत्र व्यवसाय है जो व्यावसायिक विशेषज्ञों द्वारा संचालित होता है। यह व्यवसाय विज्ञापन की योजना, उसकी तैयारी और उसके प्रसार से संबंधित सृजनात्मक और व्यावसायिक सेवाएं उपलब्ध कराता है।
जी.बी.गाइल्स के अनुसार (विज्ञापन एजेंसियां, विज्ञापन नियोजन, निर्माण एवं प्रस्तुतीकरण कार्यों की विशेषज्ञ होती हैं, जो विज्ञापनकर्ता और माध्यम मालिकों के बीच मध्यस्थ का कार्य भी करती हैं' |
आज राष्ट्रीय और बहराष्ट्रीय कंपनियां अपने उत्पादों के विज्ञापन हेतु तथा सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएँ अपनी योजनाओं के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए एवं जनहित में विज्ञापन एजेंसियों की सेवाएँ लेतीहैँ| बाजार, उपभोक्ता और -0- मिलने लगी हैं और यह एक आकर्षक रोजागर क्षेत्र भी हो गया है। कला की समझ, प्रतिभा, अध्ययन और संप्रेषण के कौशल को निखार कर कोई भी युवा इस क्षेत्र मं हाथ आजमा सकता है। पत्रकारिता से गहरा संबंध अर्न्तसंबंध होने से पत्रकारों के लिए भी इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं और संभावनओं के नए द्वार भी खुल रहे हैं। 4.7 शब्दावली : विज्ञापन कापी : विज्ञापन की कॉपी मूल रूप से किसी उत्पाद का पूर्ण विज्ञापन है। इसमें विज्ञापन का मुख्य संदेश और उसकी पूर्ण व्याख्या होती है। मुद्रित माध्यमों में यह विज्ञापन के बीच का मुख्य अंश और शीर्षक से लेकर अंतिम भाग तक के विवरण के रूप में होती है। इलेक्ट्रानिक माध्यमों में यह तुलनात्मक रूप से छोटी होती है। इसी के आधार पर विज्ञापन का निर्माण होता है। सिग्नेचर लाइन : सिग्नेचर लाइन या पंच लाइन विज्ञापन की कॉपी का सबसे मुख्य भाग होता है। यह वह छोटी सी पंक्ति या वाक्य होते हैं जो विज्ञापन पढ़ने या देखने-सुनने वालों के मन-मस्तिष्क पर अंकित हो जाती है। उस एक पंक्ति या वाक्य के जरिए विज्ञापनकर्ता अपने उत्पाद की पहचान पाठक या दर्शक श्रोता के दिमाग में दर्ज करा देता है और वही उस उत्पाद या विज्ञापन की पहचान बन जाती है। ले आऊट : ले आऊट या खाका विज्ञापन का तकनीकी पहलू है। कोई भी विज्ञापन तैयार करने से पूर्व उसका ले आऊट बनाया जाता है। इसमें विज्ञापन के विभिन्न तत्वों को एक साथ प्रस्तुत किया जाता है ठीक उसी तरह जिस तरह मकान बनाने के लिए आकिटेक्ट द्वारा नक्शा तैयार किया जाता है। विज्ञापन निर्माण प्रकिया का यह जरूरी हिस्सा है। -0-