अष्टावक्र महागीता / ओशो / प्रवचन–161
Gadya Kosh से
धार्मिक व्यक्ति एक सहज शांति है
धार्मिक व्यक्ति एक सहज शांति है। सौ में से निन्यानबे मौकों पर तो तुम उसे कभी विरोध में न पाओगे। ही, एक मौके पर वह ‘नहीं’ कहेगा, जरूर कहेगा। और उस मौके पर जब वह ‘नहीं’ कहेगा तो वह ‘नहीं’ निरपेक्ष ‘नहीं’ होगी, उसमें कोई शर्त न होगी, उसके ‘ही’ में बदलने का कोई उपाय नहीं है। तुम मार डाल सकते हो सुकरात को। तुम जीसस को सूली पर लटका सकते हो। तुम मैसूर का गला काट सकते हो। लेकिन उस एक मौके पर जब वह ‘नहीं’ कहता है तो उसकी ‘नहीं’ शाश्वत है, उसको तुम ‘ही’ में नहीं बदल सकते। क्योंकि वह उसी एक मौके पर ‘नहीं’ कहता है जहा उसकी आत्मा को खोने का सवाल है, अन्यथा तो उसके पास खोने को कुछ भी नहीं है; अन्यथा तो सब खेल है।