अष्टावक्र महागीता / ओशो / प्रवचन–162
पांचवां प्रश्न
पांचवां प्रश्न : आप तो सतत प्रभ—प्रसाद लटा रहे हैं, प्रभु—कृपा की वर्षा हो रही है, परंतु हम चूकते ही चले जाते हैं। पात्रता कैसे संभव होगी? मुल्ला नसरुद्दीन से कोई पूछता था कि आपकी सफलता का रहस्य क्या है? ‘सही निर्णय पर काम करना’, मुल्ला नसरुद्दीन ने उत्तर दिया। ‘लेकिन सही निर्णय किए कैसे जाते हैं?’ उस आदमी ने पूछा। ‘ अनुभवों के आधार पर’, मुल्ला ने कहा। ‘और अनुभव किस प्रकार प्राप्त होते हैं?’ उस आदमी ने फिर पूछा। मुल्ला ने कुछ सोचा और फिर कहा, ‘गलत निर्णयों पर काम करके।’ मैं तुमसे कुछ कह रहा हूं अब तुम यह प्रतीक्षा मत करो कि जब सही निर्णय होगा तब कुछ करेंगे। सही—गलत की अभी फिक्र छोड़ो। निर्णय करके तुम कुछ करोगे तो निर्णय कभी होगा नहीं। कुछ करो, उससे निर्णय होता है। तुम मुझे सुनते ही मत रहो। जो तुम्हें भा जाए, जल्दी से उसे करो। उसे जीवन में उतारों। मैं सागर उड़ेल दूं तुम में, तो किसी काम का नहीं; एक बूंद तुम उपयोग में ले आओ तो काम की सिद्ध होगी। वही तुम्हारा सागर बनेगी। सुनते ही मत रहो कि अभी तो गुनेंगे, सुनेंगे, समझेंगे, सोचेंगे, औरों से पूछेंगे, तुलना करेंगे, फिर निष्पत्तिया बनाएंगे, फिर अनुभव में उतारेंगे—तों तुम चूक जाओगे। तो यह वर्षा हो कर भी चली जाएगी, तुम खाली के खाली रह जाओगे। ये बादल आए और न आए बराबर हो जाएंगे। जैसे मैं साक्षी की बात कह रहा हूं —साक्षी बनो! थोड़ी— थोड़ी साक्षी की तरफ जीवन—चेतना को दौड़ाओ, थोड़े झरोखे खोलो। तुम कभी—कभी कुछ करते भी हो, ऐसा भी नहीं कि तुम नहीं करते; मगर तुम जो करते हो, वहां भी भूल कर जाते हो। वह भूल ऐसी है. अगर तुम क्रोध से भरे हो और मुझे सुनने आते हो तो तुम सुनते वक्त यही तरकीब लगाए रखते हो कि कोई ऐसी कुंजी मिल जाए जिससे क्रोध अलग हो जाए। तो मैं जो कह रहा हूं वह तुम सुन ही नहीं पाते, तुम अपनी कुंजी ही खोजते रहते हो। तुम अशांत हो तो तुम सुनते हो मेरी बातें—एक दृष्टि से कि शांति का कोई सूत्र मिल जाए शायद! तो बाकी सब सूत्र जो मैं लुटा रहा हूं वे खो जाते हैं। और उन्हीं सबको तुम समझते तो शांति का सूत्र भी समझ में आता।