असूर्यपश्या कि जड़ता क्या इस तरह तोड़ोगे? / संतोष श्रीवास्तव
पर भारत की राजधानी बने महाभारत कालीन इस प्राचीन शहर दिल्ली में आए दिन बलात्कार, छेड़छाड़, एसिड फेंकना आदि घटनाओं के मद्देनजर क्या दिल्ली से औरत भयभीत रहें या उस पर शर्म करें... हर सुबह औरतों के लिए ज़्यादा और ज़्यादा असुरक्षित होता जा रहा यह शहर अन्य शहरों को क्या सबक दे रहा है? कहाँ जा रहा है यह समाज? आधुनिकता और संपन्नता के नाम पर हम बेलगाम उस दिशा में दौड़ रहे हैं जहाँ दुनिया कि हर चीज उपभोग के लिए है। विज्ञापनों और संचार माध्यमों ने इस सोच को मजबूत किया है कि औरत भी एक वस्तु है, जो एक ब्लेड से लेकर टूथपेस्ट तक के लिए उपलब्ध है। औरत भी बेपरवाह घूमने और पुरुषों को दोस्त बनाने को आजादी का सूचक मानने लगी है। इस पृष्ठभूमि में मसाज सेंटर और फ्रेंडशिप क्लब भी हैं। ऐसे में औरत के लिए यह तय कर पाना मुश्किल है कि कौन-सा व्यक्ति उसे अपना शिकार समझ रहा है और कौन सचमुच मित्र या मददगार है। बलात्कारियों के प्रोफाइल कभी भी पेशेवर अपराधियों के नहीं होते। पढ़े लिखे, अनपढ़, क्लासमेट, रिश्तेदार, पड़ोसी, अजनबी, सहकर्मी, पुलिस, सैनिक, ठेकेदार, नवधनाढ्य, आॅटो चालक, टैक्सी चालक, बस चालक, कंडक्टर... इनमें से कोई भी बलात्कारियों के प्रोफाइल की रेंज में आ जाता है। इस तरह समाज में एक नया अपराधी वर्ग उदित हो रहा है। मौजूदा पुलिसिया संस्कृति ऐसे बलात्कारियों को और निडर बनाती है, क्योंकि वह बलात्कारी के प्रति नहीं उसकी शिकार बनी औरत के प्रति ही ज़्यादा आक्रामक और अनुदार है। अपराध और नैतिकता हमेशा समाज सापेक्ष होती है। जब किसी टीवी चैनल पर सनबाथ, बार डांस या डेटिंग के पक्ष में दलील देखकर हम भी उशे अपनाना चाहते हैं तो वह अक्सर हमारे समाज की मानसिकता के लिए बेमेल साबित होती है। पूरे देश में औरतों की स्थिति के बारे में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के द्वारा चौंकाने वाले आंकड़े दिए गए हैं। भारत में प्रत्येक 12 मिनट में लड़कियों के साथ छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज होता है। प्रत्येक 32 मिनट में तीन वर्ष की बालिका से लेकर सत्तर वर्ष की वृद्ध महिला तक बलात्कार की शिकार होती है और 77 मिनट में हत्या कर दी जाती है। इन आंकड़ों ने महिला संगठनों और कुछ गिने चुने और सुसंस्कृत लोगों की नींद उड़ाकर रख दी है। न केवल भारत बल्कि एशिया के तमाम राष्ट्रों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और पक्षपात के विरोध में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) पर रैलियों और विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया गया। कुछ जगहों पर लम्बी लड़ाई के बाद मिली विजय को लेकर जश्न मनाया गया।
बांग्लादेश में प्रत्येक वर्ष सैकड़ों महिलाएँ एसिड फेंक कर किए जाने वाले हमले का शिकार होती हैं। इसी प्रकार की पीड़ित महिलाएँ राजधानी ढाका में इस प्रकार के नृशंस हमलों को रोकने के लिए सरकारी प्रयास बढ़ाने का आग्रह करने के लिए एकजुट हुई। एसिड हमलों की शिकार हुई महिलाओं की संस्था एसिड सर्वाइवर फाउंडेशन के अनुसार 1999 से 2002 तक करीब दो हजार महिलाओं पर इस तरह के हमले किए जा चुके हैं। इन सारे हमलों को अंजाम देने वाले प्रेम में असफल नवयुवक या लड़की के माता-पिता, भाई से प्रतिशोध वश पुरुषों द्वारा किए गए। बहुत बचपन की एक घटना मेरे जेहन में आज भी कील-सी गड़ी है। जबलपुर (मेरे गृहनगर) में रॉबर्टसन कॉलेज के वार्षिक महोत्सव में मैं अपनी बहन-बहनोई के साथ गई थी। कार्यक्रम के दौरान उसी कॉलेज में पढ़ने वाली दस बारह विद्यार्थियों द्वारा लॉन में दर्शकों के लिए लगी कुर्सियों पर बैठे विद्यार्थी तथा उनके अभिभावकों पर एसिड की बोतलें फेंकी गई। इन विद्यार्थियों का निशाना थीं वे तीन खूबसूरत लड़कियाँ जिनके प्रेम में असफल होकर उनकी खूबसूरती को नष्ट करने और उन्हें प्रेम करने के लायक ही न छोड़ने के इरादे से इस कांड को सरंजाम दिया गया। इसकी चपेट में लगभग पचास साठ निर्दोष व्यक्ति भी आए। डर के मारे अपनी कुर्सी के नीचे छिपी मैं, भगदड़, चएक पुकार और जलती चमड़ी की बदबू से घबराई हुई इस कदर भयभीत थी कि दो लोगों ने लगभग खींचते हुए मुझे कुर्सी के नीचे से निकाला था। विज्ञान प्रयोगशाला में छटपटाती हुई लड़कियाँ, मांओं, पिताओं का प्राथमिक उपचार किया जा रहा था। इस घटना ने महीनों मेरे बाल मन को आंदोलित किया।