मुझे जन्म दो माँ / संतोष श्रीवास्तव
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मुझे जन्म दो माँ
रचनाकार | संतोष श्रीवास्तव |
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प्रकाशक | सामयिक प्रकाशन दिल्ली |
वर्ष | 2010 |
भाषा | हिंदी |
विषय | स्त्री विमर्श |
विधा | |
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विविध |
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इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ
- मुझे जन्म दो माँ (लेख) / संतोष श्रीवास्तव
- बालिका वधू-तन-मन दोनों से खिलवाड़ / संतोष श्रीवास्तव
- दहेज की बलिवेदी पर शहीद होती रहेंगी दुल्हनें / संतोष श्रीवास्तव
- तुम्हारे जाने का शून्य कैसे करे सिंगार मेरा / संतोष श्रीवास्तव
- पानी की सतह पर जमी सच्चाई की काई / संतोष श्रीवास्तव
- इस सिलसिले को सहो या लपटों को गले लगाओ / संतोष श्रीवास्तव
- पितृसत्ता को बदलना होगा / संतोष श्रीवास्तव
- चरमरा उठा है विवाह संस्था का ढांचा / संतोष श्रीवास्तव
- उत्पीड़न बनाम औरत पर जुल्मों सितम / संतोष श्रीवास्तव
- उसका माथा झुका है, पर उसके अंदर एक गुम बगावत कुलबुला रही है / संतोष श्रीवास्तव
- निश्चय ही रोड़े फूल बनेंगे / संतोष श्रीवास्तव
- इस चक्रव्यूह में न जाने कितने दरवाजे हैं? / संतोष श्रीवास्तव
- सिलसिला जारी है औरत की मंडी का / संतोष श्रीवास्तव
- इवा, ये मुहिम है या मकड़जाल! / संतोष श्रीवास्तव
- बोरसी की आग की तरह जल रहा है मेरा दिल / संतोष श्रीवास्तव
- दलित औरत का गुमनाम संघर्ष / संतोष श्रीवास्तव
- इस्लामी औरत: कठमुल्लाओं के लिए चुनौती / संतोष श्रीवास्तव
- परंपराएँ जिंदा रहीं, औरत मरती रही / संतोष श्रीवास्तव
- कानून की कागजी इबारतें: बेअसर समाज / संतोष श्रीवास्तव
- समता और सहभागिता के लिए आरक्षण मांगती औरतें / संतोष श्रीवास्तव
- शह और मात के खेल में फंसकर रह गई है औरत / संतोष श्रीवास्तव
- क्रांति का इतिहास रचा है तुमने / संतोष श्रीवास्तव
- संभलकर आगोश में आओ, जहर की पुड़िया हूँ मैं / संतोष श्रीवास्तव
- आदम को वर्जित फल नहीं चखाना था / संतोष श्रीवास्तव
- पुरुषों के प्रतिशोध, हार, कुंठा का नतीजा है बलात्कार / संतोष श्रीवास्तव
- असूर्यपश्या कि जड़ता क्या इस तरह तोड़ोगे? / संतोष श्रीवास्तव
- यौन शोषण: छेड़छाड़ और बलात्कार की अनवरत प्रक्रिया है / संतोष श्रीवास्तव
- औरतें: सिर्फ़ प्रजनन के लिए हैं, यौन सुख के लिए नहीं / संतोष श्रीवास्तव
- औरत की सत्ता से इंकार क्यों? / संतोष श्रीवास्तव
- शरीफ घरों की औरतें कहानियाँ नहीं लिखतीं / संतोष श्रीवास्तव
- विज्ञापन की भाषा स्त्री की देह से शुरू होती है / संतोष श्रीवास्तव
- खामोश चीखों का जंगल हैं बंदिनी प्रकोष्ठ / संतोष श्रीवास्तव
- यारा, सीली-सीली रात का जलना / संतोष श्रीवास्तव
- बस, इतनी-सी चाह है / संतोष श्रीवास्तव