उत्पीड़न बनाम औरत पर जुल्मों सितम / संतोष श्रीवास्तव

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औरतों ने अपनी योग्यता के बल पर यह तो साबित के बल पर यह तो साबित कर दिया है कि वे पुरुषों से दक्षता, क्षमता और योग्यता को लेकर किसी भी मायने में कम नहीं हैं। अपनी कार्यकुशलता से उन्होंने वे पद भी प्राप्त कर लिए हैं जो किसी जमाने में उनके लिए आकाश कुसुम थे। परन्तु जैसे-जैसे औरत तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ती गई वैसे-वैसे पुरुष की पाशविक वृत्तियाँ बढ़ती गईं, भयंकर रूप धारण करती गईं। औरत समझ नहीं पाई कि उसका कसूर क्या है? उसकी योग्यता को बढ़ावा देने की जगह पुरुष उसे मिटाने पर क्यों तुला है? वह पुरुष के संग मेहनत कर स्वर्ग-सा सुंदर संसार रचने को तत्पर है और पुरुष अनैतिक आचरण, भ्रष्टाचार और अपराधी प्रवृत्ति से उसकी जन्म-दर ही घटाता जा रहा है। औरतों की पुरुषों के मुकाबले में संख्या में कमी राष्ट्र विकास के लिए अशुभ संकेत है।

कोख में कन्या को नष्ट कर देना, दहेज हत्या तो एक आम बात हो गई है किन्तु पिछले कुछ वर्षों से नारी उत्पीड़न के साथ-साथ नारी हत्या के मामले भी सामने आए हैं। इन हत्याओं में राजनीति से जुड़े लोग या उनके बेटे लिप्त पाये गए हैं। कुछ ऐसी महिलाएँ थीं जिनकी हत्या ने सत्ता, षडयंत्र और उस पर पर्दा डालने की दास्तान के चलते अखबारों की सुर्खियों में उन्हें ला दिया। मीडिया ने जमकर इसका प्रचार किया और आम जनता के दिलो दिमाग को झंझोड़ डाला। 12 अगस्त 1980 को दसवीं कक्षा कि छात्रा 15 वर्षीया रूचिका गिरहेत्रा ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की छेड़खानी से तंग आकर इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसे पुरुषों की अदालत से न्याय नहीं मिला। 12 जुलाई 1995 को दिल्ली युवक कांग्रेस के कार्यकर्ता सइसील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी की गोली मारकर हत्या करने के बाद उसे तंदूर में डालकर जला डाला। 23 जनवरी 1996 को दिल्ली विश्वविद्यालय में विधि की छात्रा प्रियदर्शिनी मट्टू को आई. पी. एस. अधिकारी के पुत्र ने मौत के घाट उतार दिया। इसी तरह से तेजी से उभरती पत्रकार शिवानी भटनागर की रहस्यमय हत्या, महत्त्वाकांक्षा मॉडल जेसिका लाल की शराब परोसने से इंकार करने पर मंत्री के बेटे द्वारा हत्या, टीवी प्रोड्यूसर सुहेब इलियासी की पत्नी की पति द्वारा हत्या आदि बड़े-बड़े पदों, राजनीतिक हलकों से जुड़ी ऐसी घटनाएँ हैं जहाँ औरत बरसों बरस और उत्पीड़न की शिकार होने के बाद मौत के घाट उतार दी गई। ये सेलिब्रेटी घरानों की बातें थीं, अत: अखबारों और मीडिया में उछाली गई। ऐसी कितनी ही उत्पीड़न और हत्या कि घटनाएँ हैं जिन्हें कभी कोई जान ही नहीं पाया।

राजधानी में बसे गांवों, पुनर्वास कॉलोनियों में औरतों का उत्पीड़न अलग तरीके से किया जाता है। संयुक्त परिवार में रहने वाली इन औरतों को न तो दहेज के लिए उत्पीड़ित किया जाता है और न अन्य कारणों से मार पिटाई की जाती है बल्कि परिवार के अंदर ही उन्हें अन्य पुरुषों से सम्बंध स्थापित करने के लिए मजबूर किया जाता है। कम पढ़ी-लिखी होने के कारण ये महिलाएँ इस बात का ज़्यादा विरोध नहीं कर पातीं और बरसों उनका यौन शोषण घरों के अंदर ही होता रहता है और बाहर इस बात की भनक नहीं लगती है। इन जगहों पर स्थित स्वास्थ्य क्लीनिक में इन महिलाओं की स्वास्थ्य जांच के दौरान ये महिलाएँ गोपनीय वार्ता के दौरान इस तथ्य को कार्यकर्ताओं के समक्ष लाती हैं। इसके अलावा गांवों तथा पिछड़े इलाकों में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्थाओं का भी कहना है कि हर वर्ग में इस प्रकार के मामले प्रकाश में आ रहे हैं। कई मामलों में तो उनके ससुर के साथ भी दैहिक सम्बंध हैं।

पिछड़े इलाकों में रहने वाली कुछ जातियों में संयुक्त परिवारों के अंदर भाइयों के बीच पत्नियों की अधला-बदली की परंपरा जोर पकड़ रही है। ससुर, जेठों, देवरों के बीच औरत खिलौने की तरह खेली, भोगी जाती है। इन औरतों को ये भी पता नहीं होता कि उनकी कोख में पल रही औलाद का पिता कौन है? शादी के बाद शुरू-शुरू में नवविवाहिता इसका विरोध करती है लेकिन जब देखती है कि परिवार में इसके बिना उसका गुजारा होना मुश्किल है तो समर्पण कर देती है। धीरे-धीरे वे इसकी आदी हो जाती है और अपने ही शरीर पर से उनका अधिकार जाता रहता है। वे काठ बनी, सब कुछ सहती उम्र गुजार देती है। यदि कोई औरत ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाई और लगातार इसका विरोध करती रही तो उस पर चरित्रहीन होने का लांछन लगाकर इतना बदनाम कर दिया जाता है कि वह या तो घर छोड़ने पर मजबूर हो जाती है या शर्म के कारण आत्महत्या कर लेती है। ये बातें इसलिए प्रकाश में नहीं आती क्योंकि संयुक्त परिवारों में अंदर ही अंदर सब घटता है। कई बार घर के युवा स्वस्थ व्यक्ति से धोखे से लड़की की शादी कराके उसे बीमार, शराबी या बूढ़े ससुर, जेठ के हवाले कर दिया जाता है। यदि पति आर्थिक या शारीरिक रूप से कमजोर है तो औरत का फायदा उसके ससुर या जेठ उठाते हैं।

उच्च घरानों में, शहरों, महानगरों में वाइफ स्वैपिंग एक आधुनिक मौज मस्ती के रूप में उभरा है लेकिन यहाँ की औरतें शिक्षित हैं, स्वावलंबी है, अत: इसका खुलकर विरोध करती हैं और नौबत तलाक तक आ जाती है। लेकिन अधिकतर औरतें न तो उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाती हैं न घरेलू हिंसा के।

इस्लाम में औरत की खइसी उस शख्स के साथ जुड़ी है जो उसका खाविंद बनकर आया है। हजरत अली की पत्नी बीबी फातिमा उस औरत से मिलने गई जो लकड़हारे की पत्नी थी क्योंकि खुदा ने बीबी फातिमा को बताया था कि जन्नती घोड़े पर जन्नत जाने के लिए तो तुम सवार होगी पर जन्नत के दरवाजे में सबसे पहले लकड़हारे की पत्नी प्रवेश करेंगी क्योंकि उस घोड़े की लगाम उसके हाथों में होगी। बीबी फातिमा ने देखा कि झोपड़ी में लकड़हारे की पत्नी ने पति के खाना खाने के लिए आसन बिछाकर रखा है और आसन के चारों तरफ पत्थर और लकड़ी के डंडे बिखरे हैं। उसने इस तैयारी का कारण बताया कि वह दिन भर जंगल में लकड़ी काटकर, बेचकर घर आते हैं। थके-मांदे रहते हैं। भोजन में नमक मिर्च कम हो तो उन्हें मुझ पर गुस्सा आना लाजिमी है ऐसे में क्या वे मुझे मारने को डंडा, पत्थर खोजेंगे? जब मजहबी किताबों में घरेलू हिंसा का उळ्लेख मिलता है तो आम आदमी उसे क्यों न जायज कहे। सदियों से औरत घरेलू हिंसा का शिकार रही है।