सिलसिला जारी है औरत की मंडी का / संतोष श्रीवास्तव
भूमंडलीकरण के इस दौर में यदि सल्तनत युग, मुगलकाल, अरब अमीरात, दासप्रथा और सामंतवादी युग की बात करें तो उस जमाने में गाय-बैल की तरह बिकती औरतों की मंडी याद आ जाती है लेकिन बाजारवाद ने इतिहास के पन्नों में दर्ज औरतों की खरीद-फरोख्त की कहानी पीछे छोड़ते हुए दुनिया के सामने पिछले दस वर्षों का रेकॉर्ड प्रस्तुत किया है जब उसने औरतों के निर्यात के द्वारा अरबों खरबों डॉलर की रकम कमाई है। निर्यात करने वाले देशों के प्रति व्यक्ति आय से आयात करने वाले देशों में प्रति व्यक्ति आमदनी दुगनी है। जिन देशों पर भूमंडलीकरण की होड़ में कूदने के चक्कर में कर्ज चढ़ गया और उनकी कृषि और उद्योग इतने पर्याप्त नहीं है कि कर्ज से छुटकारा दिला सकें, वे देश औरतों का निर्यात करके डॉलर और पौंड कमाने लगे। सास्किया सासेन का कहना है कि सीमाओं के भीतर और उनके बाहर आर-पार होने वाली उस तिजारत में श्रम तथा अन्य सेवाओं के लिए औरतों का सहारा लिया जाता है। इसके लिए अपनाए जाने वाले अनेक प्रकार के तरीकों में जोर-जबरदस्ती का सहारा लिया जाता है। औरतें मानवीय, राजनीतिक और नागरिक अधिकार खो देती हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 1998 में चालीस लाख औरतों का निर्यात हुआ और निर्यातकर्ताओं को सात अरब डॉलर मुनाफा हुआ। इस दिशा में फिलीपिंस सबसे आगे है। जो विदेशी मुद्रा कमाने का सबसे बड़ा हिस्सा है। फिलीपीनी औरतें अमेरिका और जापान के अमीरों के घरों में उनके बेटों से ब्याह रचाकर उनकी दासी बनकर रह जाती हैं। फिलीपींस-अमेरिका में मुफ्त बाज़ार प्रणाली का एक बड़ा शो केस है और भी बड़े-बड़े राष्ट्र हैं जो औरतों के निर्यात में बढ़-चढ़कर हैं।
आधुनिक युग में सफलता के चरम पर पहुँची औरत क्या इस मंडी का अंत कर पाई जहाँ वह नीलाम की जाती है? और क्या समाज के रहनुमा जवाब दे पाये कि आज भी क्यों बिक रही है औरत? पाकिस्तान के सिंध प्रांत में कई स्थानों पर औरतें भेड़-बकरियों की तरह मंडी में खरीदी और बेची जा रही हैं। बिजनेस रिकॉर्डर नामक पत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह सनसनएकेज रहस्योद्घाटन किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार अंसार इंटरनेशनल वेलफेयर ट्रस्ट की उपाध्यक्ष शाहीन बर्नी का कहना है कि सिंध के थार और अन्य इलाकों में प्रभावशाली नेताओं की छत्रछाया में यह बाज़ार गरम रहता है। खरीदार औरतों को वस्तु की तरह ठोक बजाकर देखते हैं और तब बोली लगाते हैं। शाहीन बर्नी ने सिंध, पाकिस्तान अधिकृत पंजाब और बांग्लादेश से बिक्री के लिए लाई गई इन औरतों की आपबीती के वीडियो टेप भी तैयार किए हैं। सिंध प्रांत में धरकी के नजदीक एक गाँव में 200 कबूतरों और 10 तीतरों के बदले अपनी तेरह वर्षीय बेटी का सौदा करने वाला बाप भी मौजूद है जिसने इसके पहले अपनी बड़ी बेटी को भी चार शिकारी कुत्तों के बदले बेच दिया था।
नेपाल की खूबसूरत वादियों में तमांग नामक जाति निवास करती है। तमांग युवतियाँ नेपाल की सुंदरतम लड़कियाँ मानी जाती हैं। किसी जमाने में ये युवतियाँ नेपाली शाही महल की शोभा हुआ करती थीं किंतु नेपाल में लोकतंत्र की बहाली के साथ इनकी ज़रूरत खत्म हो गई। इनकी कमाई खाने का चस्का इनके परिवार वालों को लग चुका था। लिहाजा 200 से 600 डॉलर तक इनके सौंदर्य के मापदंड के अनुसार रकम वसूल कर इनके पिता, पति अथवा भाई इन्हें बेच देते हैं। इनमें से अधिकतर युवतियाँ मुंबई से सेक्स वर्कर के रूप में एड्स वायरस से ग्रसित हो गई। डॉ. अरुणा उप्रेती के क्लीनिक में ऐसी रोगी युवतियाँ बहुत अधिक संख्या में लाई गईं। डॉ. उप्रेती ही यह मामला मीडिया के सामने लाई। अधिकतर युवतियाँ नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश से खरीदी-बेची जाती हैं। खुली हवा में सांस लेने के लिए तरस गईं हैं ये युवतियाँ। हिमालय की वादियों में बसे अफने सुंदर नेपाल में लौटना उनका सपना बनकर रह गया है। इन्हें न तो नेपाल सरकार स्वीकार कर रही है और न इनके परिजन। नेपाली मीडिया भी इन्हें बेकार वस्तु मानती है। काठमांडु स्थित सामाजिक संगठन एबीसी की नेपाल की अध्यक्षा दुर्गा घिमिरे का कहना है कि इस विषय में नेपाल सरकार और युवतियों के सम्बंधी कुछ नहीं कहते या कहना नहीं चाहते।
मुंबई पुलिस के द्वारा सेक्स के बाज़ार से पकड़ी गई 218 नेपाली लड़कियों को जो कि प्रशिक्षण के बाद एड्स के लक्षणों से युक्त पाई गई नेपाल की सीमा में प्रवेश की पाबंदी लगा दी गई। सामाजिक कार्यकर्ता श्री प्रधान के अनुसार नेपाल सरकार ने कहा कि वह नेपाल को एड्स का डंपिंग स्टेशन नहीं बनाना चाहते। सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक उनका इलाज करने से मना कर देते हैं। क्या गुनाह है इनका जो इन्हें निर्वासन का दु: ख झेलना पड़ रहा है? अपने प्रशिक्षण के दौरान बीमारों की सेवा में बिना हिचक चौबीसों घंटे तत्पर रहने की शपथ लेने वाले चिकित्सक कैसे भूल जाते हैं अपनी जिम्मेदारी? औरत सदियों से बिना कुसूर सजा भोगती आ रही है फिर चाहे वह शाही घराने की हो या नीच घराने की, शिक्षित हो या अशिइक्षत। आधुनिक हो या आदिवासी। उसका जिस्म ही उसका दुश्मन है।
भारत में आदिवासी जातियों में एक जाति है कोरकू। कोरकू जाति की कोई युवति यदि किसी व्यक्ति से अवैध सम्बंध रखती है अथवा बलात्कार की शिकार होती है तो उसके सम्बंधी उसे त्याग देते हैं। उसका घर में प्रवेश वर्जित हो जाता है और वह गाय-बैल की कोठरी में तब तक रहती है जब तक पंचायत से उसकी नीलामी नहीं हो जाती। नीलामी के बाद उसे पुन: बिरादरी में ले लिया जाता है। इसी तरह बैतूल जिले के मुल्तई तहसील के आपसाप के गांवों में दिसम्बर से मई माह तक शोषित, उत्पीड़ित और तलाकशुदा औरतों की नीलामी होती है। उनका शृंगार करके, कोरे वस्त्रों में लाइन से खड़ा किया जाता है। सबसे अधिक बोली लगाने वाला उस औरत का मालिक हो जाता है और उसे गाय-बकरी की तरह खरीदकर अपने घर ले आता है। नीलामी में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, नीमाड़, मालवा तथा मध्य प्रदेश के अन्य जिलों से खरीदार आते हैं। बिक्री हुई औरत के लिये ये खरीदार बिल्कुल अपरिचित होते हैं। नीलामी में बिकने वाली युवतियों के परिवार वालों से जब एक पत्रकार ने पूछा कि इस तरह आप अपनी ही बेटी को क्यों नीलाम कर देते हैं तो उनका जवाब था-इसमें बुराई क्या है? बेटी पाल-पोसकर बड़ी की तो रकम वसूलेंगे न? यह कोई शर्मनाक बात नहीं है।
पिछले वर्षों में पूर्वोत्तर में औरतों की तस्करी में काबिले गौर इजाफा हुआ है। इसका प्रमुख केंद्र गुवाहाटी है जहाँ से इन औरतों को सिलीगुड़ी, कोलकाता और नई दिल्ली के वेश्यालयों में भेजा जाता है। गैर-सरकारी संगठन ग्लोबल आॅर्गनाइजेशन फॉर लाइफ डेवलपमेंट गोल्ड ने अपने अध्ययन से यह खुलासा किया है कि सिलीगुड़ी के खलपाड़ा में 48 प्रतिशत यौनकर्मी केवल असम की हैं और तीन प्रतिशत अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की। प्रत्येक वर्ष असम से लगभग 500 युवतियों को तस्करी के जरिए बाहर भेजा जाता है जिनमें कई नाबालिग होती हैं। आमतौर से तस्कर नदियों के किनारे रहने वाले गरीब परिवारों की लड़कियों को अपना शिकार बना कर उनको राज्य से बाहर भेजकर वेश्यावृत्ति करने पर मजबूर करते हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे सम्पन्न राज्यों में झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल जैसे पिछड़े राज्यों की गरीब लड़कियाँ गाय-बैल से भी कम कीमत पर बिक जाती हैं। इन्हें या तो घरेलू नौकरानी बनाकर रखा जाता है या फिर जिस्मफरोशी कराई जाती है।
सरकारी और गैर-सरकारी सूत्रों के मुताबिक इन दोनों राज्यों में गरीब खासकर आदिवासी लड़कियों की कीमत 5 हजार से 15 हजार रुपये तक है। दलालों और खरीददारों का एक व्यापक नेटवर्क इन पांच राज्यों में फैला हुआ है। फरीदाबाद में यह नेटवर्क पुलिस की शह पर सुसंगठित तरीके से जिस्मफरोशी के धंधे में बिल्कुल आधुनिक तरीके से लिप्त है। इस पेशे में कॉरपोरेट कल्चर का असर भी दिखने लगा है। डील पैकेज है, मेंबरशिप है, डिस्काउंट है और रहने व खाने की भी सुविधा है। खाने में रशियन, स्पैनिश, चाइनीज, इटैलियन भोजन भी शामिल है। मतलब उच्च वर्ग के ग्राहकों को जो कुछ चाहिए वह सब। इस व्यापार में अब सेलफोन पर सारी डील हो जाती है। ग्राहक को पैकेज की जानकारी दी जाती है। यदि ग्राहक तैयार है तो उसे एसएमएस के जरिए किसी बैंक का अकाउंट नंबर दिया जाता है। पैसा जमा होते ही ग्राहक अपनी पसंद की जगह पर सर्विस ले सकता है। न केवल फरीदाबाद बल्कि चंडीगढ़, जयपुर, लखनऊ, वाराणसी जैसे शहरों में भी ग्राहक इस नेटवर्क का लाभ उठा सकते हैं। सिर्फ़ दस हजार जमा करने पर ग्राहक को तीन महीने की सदस्यता मिल जाती है। वह पांच बार सर्विस सेंटर पर विजिट कर सकता है। सर्विस सेंटर दिल्ली, गुड़गांव, गाजियाबाद, नोएडा में भी है। जितने देशों के भोजन उतने ही देशों की कमसिन लड़कियाँ। आलीशान लोकेशन पर ग्राहक को 15-20 लड़कियाँ दिखाई जाती हैं। फिर इनका मोलभाव होता है, डिस्काउंट भी मिल जाता है। चार-पांच रातों का भोजन, शराब, आलीशान कमरा और मनपसंद कमसिन या कभी-कभी नाबालिग तक लड़की। ये लड़कियाँ तस्करी और विभिन्न देशों से आयात के द्वारा उपलब्ध की जाती है। न इसका कोई रखवाला है न कोई इन्हें इस नर्क से छुड़ाने वाला। जिस्म के बाज़ार में ये मात्र वस्तु हैं और इनका खरीददार पुरुष।
एक संवाददाता ने इस सारे रैकेट का पता खुद ग्राहक बनकर किया। गुड़गांव रेंज के आईजी से जब उसने पूछा कि आखिर इस मामले में पुलिस चुप क्यों है तो उनका सीधा जवाब था-पुलिस के पास इसकी सूचना है और वह इस नेटवर्क की ट्रेस करने में जुटी है।
आज मलेशिया जिस्मफरोशी का सबसे बड़ा केंद्र है। वहाँ वेश्यालयों को लेकर नियम कायदे काफी सरल हैं। मलेशिया के आंतरिक सुरक्षा मंत्री जोहरी बाहारूम ने जिन विदेशी औरतों की वेश्या के रूप में गिरफ्तारी के आंकड़े पाएँ उनमें 6000 चीन की, 4596 थाईलैंड की, 2613 फिलीपीन्स की और 1376 इंडोनेशिया कि औरतें हैं। इसी तरह विएतनाम, कंबोडिया, उज्बेकिस्तान, भारत, म्यांमार, रूस की भी औरतें वहाँ वेश्यावृत्ति करते पकड़ी गई। यह धर-पकड़ मात्र इसलिए क्योंकि मलेशिया में इस्लाम धर्म है और इस्लाम में वेश्यावृत्ति अनैतिक है। फिर भी मलेशिया, सिंगापुर, हांगकांग और बैंकाक जैसे देशों में यह व्यापार खूब फल-फूल रहा है। पैसे को तुरत-फुरत हासिल कर लेने की चाह में इन देशों में औरत अपने पति के साथ मिलकर जिस्मफरोशी करती है। उनकी ब्लू सीडी बनती है जो बाज़ार में अच्छे दामों में बिकती है। मुंबई में कॉल सेंटर में काम करने वाला एक जोड़ा हांगकांग में वेश्यावृत्ति और ब्लू सीडी के जुर्म में पकड़ा गया और धीरे-धीरे इस व्यवसाय का खुलासा हुआ। अक्सर उन पत्नियों को तलाक दे दिया जाता है जो मारपीट, डराने धमकाने के बावजूद भी इस व्यवसाय से नहीं जुड़तीं। रातोंरात अमीर बनने की चाह ऐसे अमानवीय कृत्य करा डालती है। ऐसे पति बीवियों को अपने दोस्त या ग्राहक के साथ कमरे में छोड़ देते हैं और कमरे में फिट कैमरा उनकी ब्लू फ़िल्म उतार लेता है।
क्या औचित्य रह गया है विवाह संस्थाओं का? विवाह संस्था कि स्थापना का उद्देश्य था समाज को व्याभिचार से बचाना। अव्वल तो व्याभिचार शब्द की सीमा सिर्फ़ औरतों के लिए तय की गई। यौन शुचिता का तमगा उसके गले लटकाकर पुरुष की मनचली प्रवृत्ति को काबू में रखने के लिए वेश्याओं की दहलीज रखी गई और पुरुष शब्दकोश से पवित्रता शब्द हटा दिया गया। ईसाई धर्मगुरु वेश्याओं का समाज में होना उतना ही ज़रूरी समझते हैं जितना ज़रूरी शहर की गंदगी और कचरा बहा ले जाने वाली नालियों का होना। परिवार में औरत को पवित्रता के घेरे में बाँधकर और पतिव्रत धर्म के पालन में ईमानदारी बरतने की शर्त रखकर पुरुष अपने आमोद-प्रमोद के लिए इन वेश्याओं के कोठे खटखटाते हैं। वेश्याएँ सर्वश्रेष्ठ पाप हैं क्योंकि वे पुरुष की मनचली प्रवृत्ति को संरक्षण देती हैं। थामे रखती हैं।
पिछले दिनों नाइजीरिया सरकार ने देह व्यापार त्यागकर शादी रचाने का इरादा रखने वाली वेश्याओं को पच्चीस हजार नाइरा (करीब 250 डॉलर) की सहायता देने का फैसला किया। जफराना प्रांत के गवर्नर, अहमद सानी की पत्नी करीमा सानी के अ्नुसार 27 वेश्याओं को उक्त योजना के तहत आर्थिक सहायता प्रदान की जा चुकी है। यह एक सराहनीय कदम है लेकिन शादी के बाद भी क्या पत्नी सुरक्षित है? कई घटनाएँ तुरत-फुरत धन कमाने और आलीशान जीवन जीने की चाह में पत्नियों में वेश्यावृत्ति कराने की है तो कई मात्र पेट भरने की नंगी हकीकत बयान करती है।
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में रांची तहसील है। इस तहसील में एक गाँव है सूका। सूका गाँव की शादीशुदा स्त्रियाँ गृहस्थ जीवन बिताते हुए अपने पति और बच्चों का पेट भरने के लिए जिस्मफरोशी करती हैं। ये सभी जनजातियाँ हैं जिनके विषय में कहा जाता है कि जनजातियाँ दुनिया के छल-प्रपंच से दूर सादगी भरा संतुष्ट जीवन बिताती हैं। लेकिन जब भूख का राक्षस पेट की आंते मरोड़ता है तो कहीं कोई अपराध नजर नहीं आता। इन औरतों को इनके पति इस पेशे के लिए मजबूर करते हैं, वे स्वयं इनके लिए ग्राहक ढूंढ़कर लाते हैं और इनकी सेज सजाते हैं। पत्नियों के इंकार करने पर वे उन्हें बुरी तरह मारते पीटते हैं। शारीरिक और मानसिक प्रताड़नाएँ सहना तो इन स्त्रियों के लिए एक आम बात हो गई है। इन्हें पढ़ने तक की इजाजत नहीं है। सारे दिन ये घर के कामों में खटती हैं। कुएँ से पानी भर लाना, चक्की चलाना, रोटी पकाना, आंगन लीपना और शाम होते ही ग्राहक की हवस मिटाना। एक बुजुर्ग महिला जो कि ऐसे ही एक परिवार की है ने कहा, पूरा दोष मर्दों का नहीं है, सरकार का भी दोष है। हम गरीब हैं। मर्दों को काम नहीं मिलता। जंगल में लकड़ी नहीं मिलती, खेत में बोने को बीज नहीं मिलता। जब पेट भरने का कोई साधन नहीं तो हम क्या करें आखिर? अगर हमें सरकार पांच-पांच एकड़ जमीन दे-दे तो हम देह व्यापार नहीं करेंगे, यह पक्की बात है और इस गाँव की दूरदर्शिता देखिए... गाँव की सड़क पर बोर्ड लगा है जिसमें लिखा है-यहाँ नाच-गाना नहीं होता। यह देह व्यापार का खुला विज्ञापन नहीं तो और क्या है?
मध्य प्रदेश के बेड़िया समाज में परंपरानुसार प्रत्येक घर में जन्मी पहली लड़की को घुंघरू पहना दिए जाते हैं। यह परंपरा राजा-महाराजाओं, जमींदारों के समय थी। समय बदला पर परंपरा नहीं बदली। उस समय ये बेड़नियाँ उनकी रखैल हुआ करती थी लेकिन अब वेश्यावृत्ति से ये अपना पेट पालती हैं। पुरुषों का मनोरंजन करती हैं।
नारी संरक्षण गृह में भी औरत की सुरक्षा के नाम पर प्रश्नचिह्न लगे हैं। निराश्रित और बेबस औरतों के लिए बनाए गए सरकारी गैर सरकारी ये शरण स्थल अधिकांश वेश्यावृत्ति के धंधे से जुड़े हैं। समाज द्वारा ठुकराई गई इन अबला औरतों के यौन उत्पीड़न, शोषण और यंत्रणा कि कहानी से राजनीतिक दलों के नेताओं, सरकारी अधिकारियों और कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं के नित-प्रति जुड़ते जा रहे नामों की सूची स्तब्ध करती है। वाराणसी के नारी संरक्षण गृह में चल रही देह व्यापार की बात जब सामने आई और उसके तुरंत बाद इस संरक्षण गृह में पांच औरतों की हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ तो इस संगीन तथा सनसनएकेज रैकेट का मामला खुलकर सामने आया। यह संरक्षण गृह वाराणसी के शिवपुर नाम के कस्बे में है जो सरकारी है। इस संरक्षण गृह से बारह वर्ष की एक लड़की किसी तरह भागकर बाहर आई और उसने पुलिस के सामने सारी हकीकत बयान की। जिन पांच औरतों की हत्या कि गई है उन्होंने वेश्यावृत्ति करने से इंकार कर दिया था। शिवपुर के एक रिहायशी इलाके में चलाये जा रहे इस संरक्षण गृह बनाम वेश्यालय के कमरों में 25 लड़कियाँ रहती हैं। प्रतिदिन शाम होते ही ग्राहकों का आना-जाना शुरू हो जाता है। वे अपनी पसंद की लड़की चुनते हैं और संरक्षण गृह की अधीक्षिका को अच्छी खासी रकम देते हैं। जो लड़कियाँ जिस्मफरोशी से इंकार करती हैं उन्हें बुरी तरह मारा-पीटा जाता है और खास परिस्थितियों में हत्या तक कर दी जाती है।
कई बार मासूम लड़कियों का अपहरण कर पहले तो उनके साथ बलात्कार किया जाता है और फिर जिस्मफरोशी की दुनिया में बेच दिया जाता है। जिनके मां-बाप जेल की सजा काट रहे हैं उन्हें भी पड़ोसियों या रिश्तेदारों के द्वारा इस नर्क में ढकेला जाता है। अनाथ लड़कियों को लेकर तो ऐसे अपराधी गिरोहों को पूर्ण आजादी है। क्योंकि उन्हें कोई रोकने टोकने वाला नहीं है। कई मामलों में इन अपराधों में महिला भी शामिल पाई गई। औरत का शामिल होना पुरुषों के अपराध से भी बड़ा अपराध है क्योंकि वह खुद औरत है जो अपनी ही जाति की दुश्मन है।
पूरे विश्व में विभिन्न परिस्थितियों में औरतें वेश्यालय की ओर रुख करती हैं। खाड़ी देशों में लगातार हो रही हिंसा और असुरक्षा कि स्थिति से उबरने के लिए हजारों महिलाएँ वेश्यावृत्ति का धंधा अपना रही हैं। इनके परिवार की जिम्मेवारी इन औरतों के कंधे पर है। न तो इन्हें नौकरी मिलती है, न ही कोई इनकी मदद के लिए आगे आता है। इराक, सीरिया जैसे देशों में पहले से ही बेरोजगारी थी, युद्ध ने हालत और बिगाड़ दी। पहली बार घर से बाहर निकली औरतों को केवल उनके जिस्म के आधार पर ही काम मिल रहा है। इन देशों में राहतकर्मियों के अनुसार इनमें से बहुत सारी ऐसी औरतें थीं जो नियमित स्कूल जाती थीं। साधारण परिधान और हिजाब पहनती थीं और पांचों वक्त की नमाज अदा करती थीं। लेकिन दु: ख की बात है कि ऐसी औरतों के जिस्म से कीमत वसूल कर ही पुरुष उनके हाथों में चंद रुपये थमा पाता है। अपने ही देश की इन शालीन, सभ्य, वक्त की मारी औरतों की वह देशभक्ति के नाम पर मदद नहीं कर सकता? दमिश्क में गुड शेफर्ड कान्वेंट की सीरियाई सिस्टर ने न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता को जब यह हवाला दिया तो वह रो पड़ी-अपने बच्चों के एडमीशन कराने आई हमारे देश की महिलाएँ आज इस घिनौने धंधे से जुड़कर अपने परिवार और बच्चों के भविष्य के लिए खुद की कुर्बानी दे रही हैं। फिर भी ईसाई धर्म गुरु सोचते हैं कि यदि वेश्यावृत्ति को खत्म कर दिया जाए तो परिवार टूट जाएंगे, उनमें व्याभिचार बढ़ जाएगा।
रूस जैसे विशाल राष्ट्र में युवा लड़कियों को इस नारकीय जीवन में ढकेलने का काम संगठित गिरोहों द्वारा बिना किसी दुश्वारी के बेहद आराम से किया जा रहा है। इस रास्ते पर उन्हें डालने के लिए उनके युवा सपनों और अरमानों को चारे की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सुंदर परिधान और मन मोह लेने वाली मुस्कुराहट से कोई रूआबदार महिला विदेशों में पर्यटन विभाग में नौकरी दिलाने का वादा करती है। एक अत्यंत मृदुभाषी व्यक्ति अमेरिकी पत्रिकाओं के लिए मॉडलिंग का आश्वासन देता है और किसी दुकान में सेल्स गर्ल का काम कर रही या वक्त के थपेड़ों का मुकाबला कर रही कोई सिंगल मदर अचानक किसी दूसरे देश में अपने आप को एक वेश्या के रूप में पाती है। उसके सामने न अपने अरमानों के लिए कोई जगह होती है और न इस स्थिति से निकल भागने का कोई रास्ता होता है। पिछले दिनों रूसी संसद ने इस अमानवीय यौन शोषण के व्यापार को रोकने के लिए कदम उठाया जिसकी शिद्दत से ज़रूरत थी। ड्यूमा ने एक कानून बनाया जिसके अनुसार सरकार औरतों और बच्चों को इस घृणित यौन गुलामी के बारे में आगाह करेगी। कानून को सरकारी मंजूरी मिल जाने के बाद नौकरी दिलाने वाले ऐसे गोरखधंधे अवैध माने जाएंगे और सरकार इस चक्रव्यूह में फंसी औरत की सहायता करेगी। इस तरह के कई कानून कागजों पर बनते रहते हैं और फिर भी अपराधी संगठन जिन्हें इस व्यापार से 7 अरब डॉलर का सालाना लाभ है फलते-फूलते रहते हैं। रूस अकेला देश नहीं है जहाँ सेक्स स्लेव्स पैदा किए जा रहे हैं। सन् 2000 में पास हुए कानून में अमेरिका ने दुनिया में इस समस्या को बढ़ाने वाले देशों की सूची जाहिर की थी और इस साल जॉर्ज बइस को वही कानून यह अधिकार देता है कि यदि तुर्की, बोस्निया, इंडोनेशिया, कंबोडिया जैसे देश इस नासूर को रोकने का प्रयास नहीं करते तो उनको दी जाने वाली मदद रोकी जा सकती है या उन पर सीमित आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं।
बावजूद इसके कई देशों में वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता मिली हुई है और इस काम में मुब्तिला औरतों को स्क्स वर्कर कहा जाता है। अब तो वे रैली निकालकर बाकायदा अपने अधिकारों की मांग करती है। 1 मई, 2008 को मजदूर दिवस के दिन इस तरह की रैली कोलकाता में निकाली गई। वहाँ की 3, 500 से अधिक वेश्याओं ने उनके अधिकारों के लिए काम कर रही संस्था गैर सरकारी संगठन दरबार की मदद से एक कैंडिल रैली निकाली जिसमें अपने सामाजिक अधिकारों की मांग करते हुए यह अपील की गई की उन्हें भी उचित मान-सम्मान दिया जाए। उन्हें एक धब्बे के रूप में न माना जाए क्योंकि एक तो वे अत्यधिक मेहनत करती हैं? दूसरे अगर ग्राहक नहीं होगा तो कैसा बाजार? तो जब पुरुषों को कोई दोषी नहीं मानता तो उन्हें क्यों? कुछ इसी तरह की मांग केरल में वेश्याओं के लिए काम कर रही गैर सरकारी संस्था सेक्स वर्कर फोरम ने भी की। इस संस्था ने वेश्या बनने का कारण यौन शिक्षा कि सही जानकारी न होना बताया क्योंकि पुरुष खासकर नवयुवक केवल सेक्स की जिज्ञासावश इस ओर का रुख करते हैं। परिवार में बेटा, बेटी में समान रूप से पालन-पोषण न होना भी एक कारण है। परिवार से उपेक्षित लड़कियाँ अपराधी गिरोहों के चंगुल में फंस जाती हैं और ग़लत रास्ता अपना लेती हैं। नौकरी और सेक्स इंडस्ट्री दोनों ही वजहों से औरतों को भौगोलिक सीमाओं के आर-पार एक तरह से गुलाम बनाया जा रहा है। यह कामकाजी महिलाओं पर बढ़ते भूमंडलीकरण का असर है जिसकी दोषी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ हैं।
पॉपुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल के सहयोग से संघमित्रा नामक गैर सरकारी संगठन मुंबई में गठित हुआ जिसका उद्देश्य यौनकर्मियों के लिए एक ऐसा मंच उपलब्ध कराना था जिसके जरिए वे स्वतंत्र और सामूहिक तरीके से अपनी आवाज बुलंद कर सकें। इस तरह ताकतवर गुटों द्वारा उनका शोषण कम किया जा सकेगा और उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। संघमित्रा को एचआईवी पीड़ितों के लिए कार्य करने और वेश्याओं में इस रोग के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए रेड रॉबिन अवार्ड 2008 से भी नवाजा गया है। यह पुरस्कार हर दो वर्ष के पश्चात इंटरनेशनल एड्स कांफ्रेंस के मौके पर प्रदान किया जाता है। वेश्याएँ अक्सर एचआईवी पीड़ित होती हैं। इसके अलावा लगातार पांच वर्ष तक इस पेशे में रहने के बाद उन्हें सिफलिस नामक बीमारी भी हो जाती है। कम उम्र की वेश्याओं को गनोरिया नामक बीमारी के कारण आॅपरेशन कराना पड़ता है। क्षय रोग अब घातक नहीं रहा लेकिन वेश्याएँ लगातार नशीले पदार्थों, शराब आदि के सेवन से और तनाव कुंठा से ग्रस्त हो अमूमन इस रोग की रोगी पाई गई हैं। अस्थमा उनके घुटन भरे माहौल तंग कोठरी की देन है जहाँ वे खुलकर सांस नहीं ले पातीं। यौन रोगों से पीड़ित होना तो आम बात है। यही वजह है कि इनकी जीवन दर लगातार कम हो रही है और कभी-कभी ये 40 की उम्र भी पार नहीं कर पातीं। इनके ग्राहक इन्हें त्वचा और छूत की बीमारियाँ सौंप जाते हैं। ये बीमारियाँ वेश्याओं के द्वारा दूसरे ग्राहकों के जरिए फैलती हैं। इसीलिए इन्हें समाज में निकृष्ट माना जाता है। स्त्रियोचित गुणों मातृत्व, कोमलता, लज्जा, हया को ताक पर रख कर इन्हें अपने मन को लोहा पिघला देने वाली भट्टी में झोंक देना पड़ता है ताकि उसका नामोनिशान मिट जाए और वह इस्पात के टुकड़े की शक्ल में इनके मन की रिक्त जगह में धंस जाए। इन्हें सस्ते, बाजारू, वल्गर शृंगार से खुद को सजाना पड़ता है। कामांगों पर झीना आवरण इस तरह डालना होता है कि पुरुष अधिक से अधिक उत्तेजित होकर बार-बार उसकी मांग करें।
यूरोपीय देशों में तो वेश्याओं को कोड़ों से पीटकर पुरुष की उत्तेजना जागती है। ऐसे पुरुष सैडिस्ट कहलाते हैं-जो पर-पीड़ा से अपने अंदर काम उत्तेजना पाते हैं। इन्हें खइस करने के लिए वेश्याएँ गिन-गिन कर कोड़े खाती हैं। उनके बदन लहूलुहान हो जाते हैं। सिगरेट से उनके स्तन और जांघे जलाई जाती है और इस प्रकार दर्द और पीड़ा से बिलबिलाती वेश्या के साथ संभोग कर ये महान आनंद पाते हैं। एक औरत अपने पति के द्वारा अपनी सात वर्षीया बेटी की कोड़ों से तथा गांठों वाली संटी से पिटाई इसलिए बर्दाश्त कर लेती थी कि उसका पति उत्तेजित हो उसे काम क्रीड़ा का सुख देता था। जब दर्द बढ़ता है, पीड़ा प्रभावशाली होती है तो एन्द्रिक सुख और अधिक मिलता है।
एक ईरानी लेखिका ने अपने उपन्यास वुमेन विदाउट मेन में वेश्यावृत्ति में झुकी औरतों के जीवन से जुड़ी वास्तविक घटनाओं का उल्लेख किया है। ये औरतें हालात से अपनी-अपनी तरह से लड़ रही हैं। अंधेरों में रास्ते बनाने और पगडंड़ियाँ टोहने में लगी हैं। जरीना कोहला 26 साल की वेश्या है जो अपने ग्राहकों को संतुष्ट करते समय हर बार यही कल्पना करती है कि वे बिना सिर वाले हैं। इससे बढ़कर एक औरत की पीड़ा और क्या हो सकती है? प्रख्यात फ़िल्मकार महेश भट्ट कहते हैं कि मैं वेश्या हूँ क्योंकि मैं लोगों में आनंद बेचता हूँ और मैं संत होने के बजाए वेश्या बनना पसंद करूंगा। क्या कोई औरत बोल सकती है ऐसे संवाद? नहीं, क्योंकि उसकी शुचिता उसके जिस्म से ही नापी जाती है। आज से पचास वर्ष पहले फ्रांसीसी लेखिका सिमोन द बुवा ने लिखा था-वेश्या कि स्थिति एक बलि के बकरे जैसी है। चाहे वेश्या वैध रूप से पुलिस की देखरेख में रहे, चाहे अवैध रूप से छिप-छिपकर अपना काम करे, उसे हमेशा अछूत की तरह ही देखा जाता है।
मुंबई जैसी आर्थिक राजधानियों, व्यापारिक शहरों में मिल, कारखाने ठप्प पड़ेंगे, सरकार कमाठीपुरा, सोनागाछी बंद करेगी तो बियर बार, लेडीज बार, मसाज पार्लर तो खुलेंगे ही। इन जगहों पर देह व्यापार धड़ल्ले से होता है। मंत्री से लेकर संतरी तक जुड़ा होता है इन केंद्रों से। कहाँ बचा है औरत के पास कोई विकल्प रोजी-रोटी कमाने का? जिन एशियाई देशों में सेक्स-टूरिज्म आमदनी का प्रमुख स्रोत है और जहाँ औरत के लिए ऐसी दलदलें तैयार हैं वहाँ उसके उद्धार के मायने क्या? इनके लिए हजार कोशिशें हों पुनर्वास की, विवाह की, इज्जतदार ज़िन्दगी की, मगर जब तक उन्हें वेश्या बनाने वाली मनोवृत्ति नहीं बदलती तब तक जन्म लेती रहेंगी आम्रपालियाँ और आबाद होती रहेगी वैशाली... इनके लिए न घर सुरक्षित है न समाज। इंच-इंच भूमि पर नारी मांसलता का रोपन है। कहाँ समाए वैदेही?