आइंस्टाइन का दिमाग़ / आइंस्टाइन के कान / सुशोभित
सुशोभित
अल्बर्ट आइंस्टाइन का दिमाग़ एक मिथ है। दुनिया के सबसे बड़े जीनियस का ब्रेन!
जब वह जीवित था, तभी से उसके दिमाग़ को लेकर उत्सुकताएं शुरू हो चुकी थीं! जब उसकी मृत्यु हो गई तो बाक़ायदा उसके दिमाग़ का परीक्षण भी किया गया। उसकी चीरफाड़ की गई।
जैसे ही यह पाया गया कि वह सामान्य मनुष्य के दिमाग़ से भारी था (उसका ब्रेन डेढ़ किलो का था) तो उससे जुड़ा मिथक और बलवान हुआ। जब यह पाया गया कि उसके दिमाग़ का "सिल्वियन फ़िशर" दूसरों के दिमाग़ की तुलना में छोटा था, तो आश्चर्यभरा कौतुक और आगे बढ़ा।
प्रिन्सटन हॉस्पिटल के पैथालॉजिस्ट थॉमस श्टॉल्ट्ज़ हार्वे ने 1955 में आइंस्टाइन की मृत्यु पर उसके दिमाग़ का परीक्षण किया था और उसे 240 विभिन्न टुकड़ों में बांट दिया था। हर लिहाज़ से, हर कोण से उसके दिमाग़ की पड़ताल की गई।
वास्तव में अपने जीनियस होने के मिथक को जाने-अनजाने आइंस्टाइन ने स्वयं ही बढ़ावा दिया था। उसकी ऐसी तस्वीरें खिंचवाई जाती रहीं कि वह एक ब्लैकबोर्ड के सामने खड़ा है, जिस पर एक लंबा-चौड़ा अबूझ फ़ॉर्मूला लिखा हुआ है, जिसे केवल वह ही बूझ सकता था। फिर ऐसी तस्वीरें सामने आईं कि उसके दिमाग़ से इलेक्ट्रॉनिक वायर्स जोड़ दिए गए हैं और उससे अनुरोध किया जा रहा है कि वह "रिलेटिविटी" के बारे में कुछ सोचे और मशीन पर उसके दिमाग़ की हलचलों को दर्ज किया जा रहा है। आइंस्टाइन में विनोदप्रियता की कमी नहीं थी। वह जानता था कि उसके इर्द-गिर्द क्या खेल खेला जा रहा है और वह इस खेल में ख़ुद भी शिरकत कर उसका मज़ा ले रहा था।
आइंस्टाइन की मृत्यु को लेकर रोलां बार्थ ने बड़ी दिलचस्प बात कही। उसने कहा इस व्यक्ति की मृत्यु की एक ही परिभाषा हो सकती है : "दुनिया के सबसे ताक़तवर ब्रेन ने अब काम करना बंद कर दिया!"
रोलां बार्थ ने अपनी किताब "मायथोलॉजीज़" में अनेक मिथकों पर चर्चा की थी, जैसे ग्रेटा गार्बो का चेहरा, रोमनों की वेषभूषा, जूल्स वेर्ने का नौका प्रेम, छुट्टियों पर लेखक, दूध बनाम शराब इत्यादि। इन्हीं में आइंस्टाइन का ब्रेन भी शामिल था।
आइंस्टाइन ने "मास एनर्जी इक्विवेलेंस" (E = mc2) (E यानी फ़िज़िकल सिस्टम की एनर्जी, m यानी मास और c यानी वैक्यूम में स्पीड ऑफ़ लाइट) की जो थ्योरी दी थी, उसे बार्थ ने एक ऐसे "कोड" की संज्ञा दी, जिसकी मदद से आइंस्टाइन ने सृष्टि के रहस्य को लगभग सुलझा लिया था!
मानो ब्रह्मांड एक संदूक़ की तरह हो, जिस पर लगे ताले को एक गुप्त और दुर्बोध "कोड" या "कॉम्बिनेशन" की मदद से खोला जा सकता हो, और अगर कोई एक व्यक्ति उसके सबसे क़रीब पहुंचा था तो वह आइंस्टाइन ही था!
बहरहाल, वह उसके क़रीब तक ही पहुंचा, गुत्थी को पूरी तरह सुलझा नहीं पाया। दुनिया का रहस्य अब भी अज्ञात बना हुआ है और यही आइंस्टाइन के दिमाग़ से जुड़ा सबसे बड़ा मिथक है!
उसकी मौत के बाद उसके ब्रेन की पड़ताल करने के पीछे उस एक कुंजी को रत्तीभर की दूरी से चूक जाने का संताप ही था।
एक मृत व्यक्ति के दिमाग़ की पड़ताल करके यूं भी आखिर क्या हासिल किया जा सकता है, चाहे वह दिमाग़ एक जीनियस का ही क्यों ना हो। जीवन की जिन तरंगों ने उसे आंदोलित किया था, वे तो जाती रहीं : E = mc2 से रत्तीभर और इसीलिए अनेक प्रकाश-वर्ष की दूरी पर!