आज भी हैं मुग़ल हमाम / संतोष श्रीवास्तव

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स्पा के इस युग में शायद ही किसी को यकीन होगा कि मुम्बई जैसे महानगर में मुग़ल हमाम भी हुआ करते थे बल्कि थोड़ी-सी खोजबीन से उनके आज भी मौजूद होने की पुख़्तगी हासिल हुई. सैंडहर्स्ट रोड से कुछ ही दूरी पर स्थित डोंगरी में ये मुग़ल हमाम मौजूद हैं। हालाँकि वहाँ स्थित ईरानी या मुग़ल मस्जिद जैसी शान इस हमाम को नहीं मिल पाई है पर यह उससे भी ज़्यादा पुराना और ऐतिहासिक है। डोंगरी की मेन इमामबाड़ा रोड पर मौजूद इसे देखकर कोई नहीं कहेगा कि यह हमाम अतीत में वैभव से सम्पन्न था। इसकी दीवार पर उर्दू में हमाम लिखा है। हमाम के अंदर पानी आदि के गरम होने की व्यवस्था है लेकिन भीतरी दीवार पर हमाम में स्नान करने की शर्त आपका मुस्लिम धर्मावलम्बी होना ज़रूरी है। इस अजीबोग़रीब शर्त से और जिज्ञासा बढ़ी, पूछने पर पता चला कि सीज़न के दिनों में नहाने के ख्वाहिशमंदों के साथ यहाँ मालिश की जगहों पर बैठकर इत्मीनान से मालिश करवाने और चंपी करवाने के लिए लोग आते हैं। मालिश के बाद गरम पानी की हौज में पंद्रह मिनट तक नहाने की क्रिया चलती है जो शरीर को बड़ा आराम देती है।

मसाज पार्लरों से प्रतिस्पर्धा के इस युग में पास की मस्जिद से जुमे की नमाज़ के बाद उमड़ी भीड़ ने आज भी इसे जीवंत बनाये रखा है। मुम्बई में बसे ईरानी परिवार की चौथी पीढ़ी द्वारा इसकी देख रेख, मेंटनेंस होती है। यही वजह है कि इस हमाम में ठंडे और गर्म पानी के हौजों सेचंदन के साबुन की खुशबू, गर्म भाफ़, सुगंधित इत्र और गुलाब की पंखुड़ियों की खुशबू उड़ती रहती है। ईरानी परिवार के मुखिया ने बताया किउन दिनों जब हमाम परिवार के सदस्यों से गुलज़ार रहते थे। दोस्तों से मुलाकातों का अड्डा भी ये हमाम ही हुआ करते थे। फल खाना, शरबत पीना, मेहंदी लगवाना, मालिश करवाना और सफेदोब (खुरदुरा) पत्थर से बदनको चिकना बनानायानी पूरा दिन तफ़रीह में निकल जाता था और रुख़सत होते समय सब ताज़ादम महसूस करते थे।

आज से दो सौ साल पहले जब ईरान से लोगों ने मुम्बई आकर यहाँ रेस्टोरेंट और होटल बनाए तो उन्होंने अपनी परम्परा और सुख सुविधा से भरी आदत के लिए हमाम भी बनवाए. हालाँकि अब वक़्त बदल गया है। मसाज पार्लर, स्पा के चलते हमाम को लोग भूल गये हैं परये आधुनिकता भी तो उसी का बदलारूप है। और तो और हमें मुम्बई के एक फाइव स्टार होटल में भी हमाम का पता चला है। लेकिन आधुनिक स्पा के मज़े उसकी बहुत कम कीमत पर मुहैया कराने वाले इस टर्किशबाथ यानी हमाम के ग्राहक अब शहर के ईरानियों के अलावा भिंडी बाज़ार के ही कुछ बाशिंदे रह गये हैं। वैसे सऊदी अरब से आये अरबों का भी यहाँ आना इसकी लोकप्रियता का गवाह है।