आठवाँ दृश्य / अंक-2 / संग्राम / प्रेमचंद
समय : संध्या, जेठ का महीना।
स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं।
मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला।
सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था।
हरदास : पता लगना तो मुसकिल नहीं था।, हां जरा देर में लगता।
मंगई : कहां-कहां गए थे ?
फत्तू : पहले तो कानपुर गया। वहां के सब पुतलीघरों को देखा । कहीं पता न लगी। तब लोगों ने कहा, बंबई चले जाव। वहां चला गया। मुदा उतने बड़े शहर में कहां-कहां ढूंढ़ता। चार-पांच दिन पुतलीघरों में देखने गया, पर हिया। छूट गया। शहर काहे को है पूरा मुलुक है। जान पड़ता है संसार भर के आदमी वहीं आकर जमा हो गए हैं। तभी तो यहां गांव में आदमी नहीं मिलते। सच मानो, कुछ नहीं तो एक हजार मील तो होंगी। रात-दिन उनकी चिमनियों से धुआं निकला करता है। ऐसा जान पड़ता है, राक्षसों की गौज मुंह से आग निकालती आकाश से लड़ने जा रही है। आखिर निराश होकर वहां से चला आया। गाड़ी में एक बाबूजी से बातचीत होने लगी। मैंने सब राम?कहानी उन्हें सुनाई। बड़े दयावान आदमी थे।कहा , किसी अखबार में छपा दो कि जो उनका पता बता देगा उसे पचास रूपये इनाम दिया जाएगी। मेरे मन में भी बात जम गई। बाबूजी ही से मसौदा बनवा लिया और यहां गाड़ी से उतरते ही सीधे अखबार के दफ्तर में गया। छपाई का दाम देकर चला आया। पांचवें दिन वह चपरासी यहां आया जो मुझसे खड़ा बातें कर रहा था।उसने रत्ती-रत्ती सब पता बता दिया । हलधर न कलकत्ता गया है न बंबई, यहीं हिरासत में है। वही कहावत हुई, गोद में लड़का सहर में ढ़िढोरा।
मंगई : हिरासत में क्यों है ?
फत्तू : महाजन की मेहरबानी और क्या?माघ-पूस में कंचनसिंह के यहां से कुछ रूपये लाया था। बस नादिहंदी के मामले में गिरफ्तारी करा दिया ।
हरदास : उनके रूपये तो यहां और कई आदमियों पर आते हैं, किसी को गिरफ्तारी नहीं कराया। हलधर पर ही क्यों इतनी टेढ़ी निगाह की?
फत्तू : पहले सबको गिरफ्तारी कराना चाहते थे, पर बाद को सबलसिंह ने मना कर दिया । दावा दायर करने की सलाह थी। पर बड़े ठाकुर तो दयावान जीव हैं, दावा भी मुल्तवी कर दिया, इधर लगान भी मुआग कर दी। मुझसे जब चपरासी ने यह हाल कहा तो जैसे बदन में आग जल गई। सीधे कंचनसिंह के पास गया और मुंह में जो कुछ आया कह सुनाया। सोच लिया था।, दो-चार का सिर तोड़ के रख दूंगा, जो होगा देखा जाएगी। मगर बेचारे ने जबान तक नहीं खोली। जब मैंने कहा , आप बड़े धर्मात्मा की पूंछ बनते हैं, सौ-दो सौ रूपयों के लिए गरीबों को जेहल में डालते हैं, उस आदमी का तो यह हाल हुआ, उसकी घरवाली का कहीं पता नहीं, मालूम नहीं कहीं डूब मरी या क्या हुआ, यह सब पाप किसके सिर पड़ेगा, खुदाताला को क्या मुंह दिखाओगे तो बेचारे रोने लगे। लेकिन जब रूपयों की बात आई तो उस रकम में एक पैसा भी छोड़ने की हामी नहीं भरी।
सलोनी : इतनी दौड़धूप तो कोई अपने बेटे के लिए भी न करता। भगवान इसका फल तुम्हें देंगी।
हरदास : महाजन के कितने रूपये आते हैं ?
फत्तू : कोई ढाई सौ होंगे।थोड़ी?थोड़ी मदद कर दो तो आज ही हलधर को छुड़ा लूं। मैं बहुत जेरबारी में पड़ गया हूँ। नहीं तो तुम लोगों से न मांगता।
मंगई : भैया, यहां रूपये कहां, जो कुछ लेई-पूंजी थी वह बेटी के गौने में खर्च हो गई। उस पर पत्थर ने और भी चौपट कर दिया ।
सलोनी : बने के साथी सब होते हैं, बिगड़े का साथी कोई नहीं होता।
मंगई : जो चाहे समझो, पर मेरे पास कुछ नहीं है।
हरदास : अगर दस-बीस दे भी दें तो कौन जल्दी मिले जाते हैं। बरसों में मिलें तो मिलें। उसमें सबसे पहले अपनी जमा लेंगे, तब कहीं औरों को मिलेगी।
मंगई : भला इस दौड़-धूप में तुम्हारे कितने रूपये लगे होंगे ?
फत्तू : क्या जाने, मेरे पास कोई हिसाब-किताब थोड़े ही है!
मंगई : तब भी अंदाज से ?
फत्तू : कोई एक सौ बीस रूपये लगे होंगी।
मंगई : (हरदास को कनखियों से देखकर) बेचारा हलधर तो बिना मौत मर गया। सौ रूपये इन्होंने चढ़ा दिए, ढाई सौ रूपये महाजन के होते हैं, गरी। कहां तक भरेगा ?
फत्तू : मुसीबत में जो मदद की जाती है वह अल्लाह की राह में की जाती है। उसे कर्ज नहीं समझा जाता।
हरदास : तुम अपने सौ रूपये तो सीधे कर लोगे ?
सलोनी : (मुंह चिढ़ाकर) हां, दलाली के कुछ पैसे तुझे भी मिल जाएंगी। मुंह धो रखना। हां बेटा, उसे छुड़ाने के लिए ढाई सौ रूपये की क्या गिकर करोगे ? कोई महाजन खड़ा किया है ?
फत्तू : नहीं, काकी, महाजनों के जाल में न पडूंगा। कुछ तुम्हारी बहू के गहने-पाते हैं वह गिरो रख दूंगा। रूपये भी उसके पास कुछ-न-कुछ निकल ही आएंगे। बाकी रूपये अपने दोनों नाटे बेचकर खड़े कर लूंगा।
सलोनी : महीने ही भर में तो तुम्हें फिर बैल चाहने होंगी।
फत्तू : देखा जाएगी। हलधर के बैलों से काम चलाऊँगा।
बेटा : बेटा, तुम तो हलधर के पीछे तबाह हो गए।
फत्तू : काकी, इन्हीं दिनों के लिए तो छाती गाड़-गाड़ कमाते हैं।
और लोग थाने-अदालतों में रूपये बर्बाद करते हैं। मैंने तो एक पैसा भी बर्बाद नहीं किया। हलधर कोई गैर तो नहीं है, अपना ही लड़का है। अपना लड़का इस मुसीबत में होता तो उसकोछुड़ाना पड़ता न ! समझ लूंगा कि अपनी बेटी के निकाह में लग गए।
सलोनी : (हरदास की ओर देखकर) देखा, मर्द ऐसे होते हैं। ऐसे सपूतों के जन्म से माता का जीवन सुफल होता है। तुम दोनों हलधर के पट्टीदार हो, एक ही परदादा के परपोते हो, पर तुम्हारा लोहू सफेद हो गया है। तुम तो मन में खुश होगे कि अच्छा हुआ वह गया, अब उसके खेतों पर हम कब्जा कर हुई।
हरदास : काकी, मुंह न खुलवाओ। हमें कौन हलधर से वाह-वाही लूटनी है, न एक के दो वसूल करने हैं। हम क्यों इस झमेले में पडें। यहां न ऊधो का लेना, न माधो का देना, अपने काम-से-काम है। फिर हलधर ने कौन यहां किसी की मदद कर दी ? प्यासों मर भी जाते तो पानी को न पूछता। हां, दूसरों के लिए चाहे घर लुटा देते हों।
मंगई : हलधर की बात ही क्या है, अभी कल का लड़का है। उसके बाप ने भी कभी किसी की मदद की ? चार दिन की आई बहू है, वह भी हमें दुसमन समझती है।
सलोनी : (फत्तू से) बेटा, सांझ हुई, दीयाबत्ती करने जाती हूँ। तुम थोड़ी देर में मेरे पास आना, कुछ सलाह करूंगी।
फत्तू : अच्छा एक गीत तो सुनाती जाओ। महीनों हो गए तुम्हारा गाना नहीं सुना।
सलोनी : इन दोनों को अब कभी अपना गाना न सुनाऊँगी।
हरदास : लो, हम कानों में उंगली रखे लेते हैं।
सलोनी : हां, कान खोलना मत।
गाती है।
ढूंढ़ गिरी सारा संसार, नहीं मिला कोई अपना।
भाई भाई बैरी है गए, बाप हुआ जमदूत।
दया-धरम का उठ गया डेरा, सज्जनता है सपना।
नहीं मिला कोई अपना।
जाती है।