आत्मकथा की झलक / राजकपूर सृजन प्रक्रिया / जयप्रकाश चौकसे
जयप्रकाश चौकसे
राजकपूर की फिल्मों में उनके जीवन के प्रसंग अथवा घटनाओं की झलक मिलती है। कहीं पर नरगिस है, तो कहीं पर लता मंगेशकर। अपने अनुभवों को उन्होंने चरित्र बनाकर पेश किया, जैसे प्रेमरोग का देवधर। अपने जीवन की हकीकतों को अफसानों में बदलने की महारत हासिल थी राजकपूर को।
राजकपूर ने पृथ्वी थियेटर में देखा था कि पृथ्वीराजकपूर अपने लेखकों से किस तरह अपनी मनपसन्द चीजें लिखवाते हैं। राजकपूर ने भी अपनी सारी फिल्में अपने मनपसंद अन्दाज में ही लिखवाई। उनकी अधिकांश फिल्मों के अनेक दृश्य उनके अपने जीवन से प्रेरित थे। जब जोकर को राजकपूर की आत्मकथा के रूप में प्रचारित किया गया, तो लोगों की आकांक्षाएँ जागीं, परन्तु उन्हें देखने को मिला राजकपूर की होबो छवि की आत्मकथा। राजकपूर का जीवन अनेक नाटकीय घटनाओं से भरा रहा और राजकपूर की हकीकत उसके अफसानों के लिए सही कच्चा माल साबित हुई।
'आग' के प्रारम्भ में राजकपूर ने एक संवाद का प्रयोग किया है, 'तीन बातों ने मेरे जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। काश, मैं इतना खूबसूरत न होता, लड़कियों की तरफ इतनी आसानी से आकर्षित नहीं होता और नाटकों तथा सिनेमा से मुझे इतना प्रेम न होता।'
पहली ही फिल्म के पहले ही दृश्य से आत्म कथात्मक बातें शुरू हो जाती हैं। राजकपूर के जीवन में घटी अविश्वसनीय बातों को राजकपूर ने फिल्मों में सम्मिलित किया और राजकपूर का प्रस्तुतीकरण इतना प्रभावोत्पादक रहा कि वे अविश्वसनीय बातें भी विश्वसनीय जैसी हो गईं, वरना आज कौन विश्वास कर सकता है कि संगम के नायक को हिन्दी नहीं आती? यह तथ्य उन्होंने पृथ्वीराज के जीवन से लिया है। संगम में ही एक पत्र को लेकर एक लम्बा घटनाक्रम है, जो नरगिस और राजकपूर के बीच घटित हुआं था। नरगिस के पास कोड भाषा में एक पत्र था जो राजकपूर के हाथ लग गया। नरगिस ने खत फाड़ दिया। संगम की दृश्य की तरह राजकपूर ने खत के टुकड़े जोड़े और कई दिन तक पीड़ा भोगी। जोकर के पहले भाग में सोलह वर्षीय युवा अपनी बाइस वर्षीय शिक्षिका से प्रेम करने लगता है, क्योंकि उम्र के उस नाजुक दौर में घोड़ा-सा भावनात्मक सहारा भी बहुत बड़ी बात होती है। जोकर की पहली नायिका उनके अपने अनुभव से उत्पन्न हुई थी, परन्तु दूसरी या तीसरी ने राजकपूर को कोई धोखा दिया, यह सच नहीं है।
'बॉबी' की पूरी पटकथा आर्ची कॉमिक्स से ली गई, परन्तु नायक-नायिका की प्रथम भेंट और बहुत से प्रेम दृश्य राजकपूर-नरगिस के जीवन से प्रेरित हैं। दरअसल राजकपूर और कृष्णाकपूर की पहली मुलाकात भी काफी नाटकीय थी, परन्तु इस अनुभव का प्रयोग उन्होंने कहीं नहीं किया।
'सत्यम् शिवम् सुन्दरम्' का मूल विचार राजकपूर और लता के सम्बन्ध से प्रेरित जरूर है, परन्तु यह भी आधी हकीकत और आधा फसाना है, क्योंकि राजकपूर के मन में लता के लिए सदैव आदर ही रहा। उन्हें लता, सरस्वती का साक्षात् अवतार ही लगती रहीं, इसलिए उन्होंने लता को कभी किसी और दृष्टि से नहीं देखा। सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की पटकथा के पहले संस्करण में एक मधुर आवाज और एक खूबसूरत अभिनेता की प्रेमकथा है। आवाज का चेहरा विकृत है और अभिनेता का जीवन आइनों में कैद है। बाद के संस्करण में बहुत से परिवर्तन किए गए।
प्रेमरोग का देवधर का चरित्र राजकपूर के अनुभव का परिणाम है। श्रीमती कामना चन्द्रा की कहानी पर फिल्म बनती, तो वह शुद्ध कला फिल्म बनती और शायद कभी प्रदर्शित भी नहीं होती। राजकपूर ने पद्मिनी के चरित्र में वह रंग डाला, जो उन्होंने स्वयं जवानी की दहलीज पर दस्तक देते ही एक सजातीय षोडसी में देखा था। 'ये गलियाँ ये चौबारा' भी प्रेरणा से बनाया गया गीत है। ठेंगा दिखाकर नाचना भी उसी की अल्हड़ अदा थी।
सन् 1964 में राजकपूर ने लोनी ग्राम में लगभग सौ एकड़ जमीन का एक फार्म खरीद लिया था और अपना अधिकांश समय वे वहीं बिताते थे। आस-पास के किसानों से उनकी दोस्ती हो गई थी। फार्म के नजदीक ही उन्होंने पृथ्वीराज मेमोरियल स्कूल बनाने में सहायता की। इस फार्म में राजकपूर ने कभी खेती नहीं की। उन्होंने शूटिंग के लिए आवश्यक फूल उगाए। कुछ समय तक अंगूर की खेती अवश्य की, क्योंकि वाइन बनाने का शौक पैदा हो गया था। इसी फार्म में उन्होंने प्रोजेक्टर भी लगाया है, क्योंकि फिल्म देखने का जोश उम्र के किसी दौर में कम नहीं हुआ था। लोनी के किसानों से दोस्ती, राजकपूर के लिए जीवन से सीधे आँख मिलाने की तरह था। लोनी, पूना से सिर्फ इक्कीस मील दूर है, परन्तु छलकपट से सैकड़ों मील दूर है। राजकपूर को जो सरलता, सहजता और मासूमियत आम भारतीय का आत्मज बनाती है, उसका बहुत-सा अनुभव उन्हें लोनी में मिला, परन्तु पहला अनुभव तो पृथ्वी थियेटर का ही था।
राजकपूर की मृत्यु के बाद लोनी के फार्म में उनकी समाधि बनाई गई है। उनके माता-पिता की समाधि भी वहाँ है। प्रतिदिन सुबह बहुत-से लोग राजकपूर की समाधि पर फूल चढ़ाने आते हैं। इन लोगों से बातचीत करने पर मालूम हुआ कि राजकपूर, लोनी के जीवन के अभिन्न अंग थे। यहाँ उन्होंने कोई लम्बा-चौड़ा दान-धर्म नहीं किया है, परन्तु रोजमर्रा के जीवन में सम्मिलित होकर वे उनके सगे-सम्बन्धी बन गए थे।
राजबाग के पुराने पट्टे देखने पर मालूम पड़ा कि लोनी का रेलवे स्टेशन भी राजबाग की जमीन पर ही बनाया गया और मेनरोड पर पेट्रोल पम्प भी राजकपूर के फार्म का ही एक हिस्सा है। संगम के बाद की सारी फिल्मों की बहुत-सी शूटिंग लोनी के राजबाग में हुई है। जोकर का पार्श्व संगीत भी जयकिशन और राजकपूर ने लोनी में ही बनाया था। लोनी के रेलवे स्टेशन का प्रयोग सत्यम् शिवम् सुन्दरम्, प्रेमरोग और राम तेरी गंगा मैली में हुआ है।
राजकपूर जब अपने फार्म में बैठे होते और दूर रेलगाड़ी की आवाज आती, तो उन्हें रेल से सम्बन्धित अपने और पापाजी के जीवन की अनेक घटनाएँ याद आ जातीं। कई बार वे रेलवे के नाम पर काल्पनिक घटनाएँ गढ़ने लगते थे। जोकर का रेल-दृश्य शायद भारतीय फिल्मों का सर्वश्रेष्ठ रेल-दृश्य है।
राजकपूर की पटकथा 'रिश्वत' का लगभग पूरा घटनाक्रम ही रेलगाड़ी में है-एक तरह से रिश्वत, जागते रहो का रेल संस्करण है। घूँघट की भी सबसे नाटकीय घटना रेलवे क्रासिंग पर ही घटित होती है। राजकपूर का भारतीय रेल के प्रति विशेष मोह था। आम आदमी का भी रेल के प्रति खास प्यार होता है, क्योंकि पश्चिम से आई वैज्ञानिक वस्तुओं में सबसे पहले उसने रेल को स्वीकार किया। रेल, आम आदमी के लिए वर्षों रोमांच की वस्तु रही है।
राजकपूर ने अपने जीवन की घटनाओं को आधार बनाकर अपनी फिल्मों के अनेक दृश्य बनाए हैं। लगभग हर सर्जक इस तरह का कार्य करता है, परन्तु इस प्रक्रिया में अन्तर्निहित खतरों से बचना कठिन है। सत्यम् शिवम् सुन्दरम् में राजकपूर के विचित्र और असम्भव से तजुर्बे पर दर्शक को विश्वास नहीं हुआ कि आप जिसके साथ प्यार करें और रातें गुजारें, उसकी शक्ल कभी न देखें। एकाध बार ऐसा सम्भव भी हो, परन्तु अनेक बार तो यह सम्भव नहीं है। सत्य और भ्रम के दार्शनिक अन्तर को स्पष्ट करने के लिए अज्ञात प्रेमिका और पत्नी के रूपक का प्रयोग आम आदमी के गले नहीं उतरा।
जोकर के निर्माण तक राजकपूर अपने जीवनकाल में ही किंवदन्ती बन चुके थे और पटकथा के प्रारम्भ में ही जोकर को महान कहकर पुकारा गया, जबकि पूरी फिल्म में उसने किसी के आँसू नहीं पोंछे। राजकपूर की अधिकांश फिल्में, दर्शक के नाम लिखा प्रेम-पत्र होती थीं, परन्तु जोकर राजकपूर द्वारा, राजकपूर के लिए राजकपूर को लिखा प्रेम-पत्र सिद्ध हुई।