आत्म-कथ्य : हृदयेश / पृष्ठ 2
‘लीजिए, खर्चा भी हुआ और उसका लाभ भी नहीं लिया. ज्यादा सिद्धांतवादिता, भाई साहब, ठीक नहीं है वैसे ही जैसे ज्यादा भोजन स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. आपको थोड़ा व्यवहारिक भी होना चाहिए.’ व्यवहारिक होने को जानदार बनाने के लिए उन्होंने ‘बी प्रेक्टिकल’ का टुकड़ा भी जड़ दिया था.
वह, यानी हृदयेश, चेतन वसिष्ठ को साक्षात्कार देने के लिए तैयार हो गए थे. एक तो इसलिए की चेतन ने उनकी सब तो नहीं, फिर भी कई पुस्तकें पढ़ रखी थीं, पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित दो-तीन ताजा कहानियाँ भी. दूसरे इसलिए भी कि नारायण बाबू की व्यवहारिकता वाली पिलायी गयी घुट्टी का असर अभी पूरी तरह उतरा नहीं था.
चेतन अपने साथ जेबी टेपरिकार्डर लाया था. उसने लगभग डेढ़ घंटे तक साक्षात्कार लिया था. उसके प्रश्न उनकी साहित्यिक यात्रा, ‘साहित्य के लामबंद संगठनों की जरूरतों तथा समय-समय पर किए जाने वाले विभिन्न आन्दोलनों की सकारात्मकता और नकारात्मकता के साथ-साथ आज के सांस्कृतिक और राजनीतिक माहौल, माफिया के वर्चस्व और बढ़ते बाजारवाद जैसे अनेक ज्वलंत बिन्दुओं पर उनके विचारों, उनकी सोच को लेकर भी थे.
टेपरिकार्डर का स्विच ऑफ करने के बाद बोला था, ‘पूछने को तो दिमाग में अभी कई और भी प्रश्न हैं, मगर आपको अब अधिक कष्ट दूंगा नहीं. जो पा लिया वह भी काफी महत्वपूर्ण है. इसके आलोक में आपके कृतित्व और व्यक्तित्व का मूल्यांकन सहजता से किया जा सकता है.’ यह भी कहा था कि पूरा साक्षात्कार तो किसी पत्रिका में ही दिया जाएगा, कुछ चुने हुए अंश वह किसी राष्ट्रीय दैनिक पत्र के रविवारीय अंक में भी देगा. ऐसा सब बताते हुए उसके चेहरे पर आश्वस्ति का भाव था.
वह अपने साथ कैमरा भी लाया था, जिससे उसने तीन-चार विभिन्न कोणों से फोटो भी खींचे थे.
हल्द्वानी वाले व्यक्ति ने साक्षात्कार की बात चलाते हुए कहा था कि उनके पास अपने फोटोग्राफ के कुछ फालतू प्रिन्ट्स होंगे. फोटो नया हो तो ज्यादा अच्छा रहेगा नहीं तो पुराने से भी काम चल जाएगा.
उन्होंने सब कुछ निपट जाने का बाद चेतन से इच्छा प्रकट की थी कि साक्षात्कार की पाण्डुलिपि कहीं प्रकाशन से पूर्व वह एक बार देखना चाहेंगे. टेपरिकार्डर के सामने उत्तर देते हुए कई स्थानों पर उन्हें लगता है कि उनका वाक्य विन्यास या तो गड़बड़ा गया है या वाक्य खंडित हो गए हैं. दो-एक प्रश्नों के उत्तर जिस तरह खुलना चाहिए था, वे भी उस तरह खुले नहीं हैं. स्पष्टता के लिए वह कुछ और जोड़ सकते हैं. चेतन ने एक पखवाड़े के अन्दर लिपिबद्ध साक्षात्कार अवलोकनार्थ भेज दिया था. उसने बाद में पढ़े गए उनके एक उपन्यास पर भी एक प्रश्न सम्मिलित किया था जिसका उत्तर भी उन्होंने लिख दिया था. लिपिबद्ध रूप में साक्षात्कार दस पृष्ठों का हो गया था. इस साक्षात्कार को उन्होंने अगले ही दिन अनुमोदित कर लौटा दिया था. उधर से यथाशीघ्र लौटा देने का निवेदन था भी.
इसके बाद चेतन की ओर से एक लम्बी खामोशी रही थी. उन्होंने जो दो पत्र माह, डेढ़ माह के अन्तराल से डाले थे, वे भी इस खामोशी के शिकार हो गए थे.
अब चेतन का जो पत्र आया था उसमें साक्षात्कार प्रकाशित होने की सूचना के बजाय साक्षात्कार प्रकाशित न होने के पीछे की स्थितियों और कारणों से उनको अवगत कराया गया था. साक्षात्कार चेतन ने ‘जनसत्ता’ को तुरन्त दे दिया था. उसके बाद वह छह सप्ताह के लिए मुम्बई ट्रेनिंग के वास्ते चला गया था. मुम्बई से वह पंकज जी व ‘जनसत्ता’ के साहित्य संपादक से सम्पर्क बनाए रहा. मुम्बई से वापस आने पर साहित्य संपादक ने अपनी विवशता जाहिर कर दी कि साहित्यकारों के साक्षात्कारों को विराम दिया जा चुका है. अब दूसरे कला-अनुशासनों की चुनी हुई हस्तियों को पाठकों के सामने लाने की योजना है. चेतन ने तब साक्षात्कार ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ को दे दिया था. काफी समय तक वहां आश्वासन दिया जाता रहा कि वह शीघ्र ही प्रकाश में आएगा. उसके बाद बताया गया कि वह कहीं खो गया है. इस खो जाने की बात से चिढ़कर उसने साक्षात्कार में से कुछ अंश पुनः चुनकर ‘नवभारत टाइम्स’ को दे दिए थे. उस पत्र में साहित्य की डेस्क वाले व्यक्ति ने कुछ दिनों बाद यह सलाह दी कि हृदयेश हिन्दी कथा-साहित्य का एक सुपरिचित नाम है. उनके तथा पाठकों के साथ न्याय तभी होगा जब उनका पूरा साक्षात्कार प्रकाशित हो. पूरा साक्षात्कार किसी पत्रिका में ही स्थान पा सकता है. पंद्रह-बीस पंक्तियों का अंश निकालना निरी औपचारिकता ही होगी.
चेतन ने साक्षात्कार लेते समय दिल्ली से प्रकाशित होने वाले इन तीनों राष्ट्रीय दैनिक पत्रों के केवल नाम ही नहीं लिए थे, वहाँ कार्यरत पंकज जी, सलिल जी, मानव जी, नागर जी कई पत्रकारों से अपने घनिष्ठ संबंध होने की बात भी कही थी. चेतन ने इस पत्र में फिर जिस अनियतकालीन पत्रिका में वह पूरा साक्षात्कार प्रकाशनार्थ पड़ा हुआ है, उसका तज्किरा किया था. साथ में अनुरोध भी कि वह इस पत्रिका को अपनी एक ताज़ा कहानी अवश्य भेज दें. पत्रिका के संपादक को यह शिकायत है कि कई बार मांगने पर भी हृदयेश जी ने अपनी कोई कहानी अभी तक उनको नहीं दी है. उस अनुरोध के साथ इस अनुरोध का भी पुछल्ला जोड़ा गया था, जो अनुरोध से अधिक सलाह थी, कि कहानी भेजते हुए वह सम्पादक जी को यह लिख दें ज्यादा सही स्थिति यह होगी कि साक्षात्कार और कहानी पत्रिका में एक साथ स्थान पाएँ.
उन्होंने पत्र को गुड़ी-मुड़ी किया. संपादक ने साक्षात्कार छापने के लिए कहानी दी जाने की शर्त लगाई है. बल्कि माना जाए कि साक्षात्कार वाला काम तभी होगा जब कहानी की घूस दी जाएगी. उनको इस तरह घुटने टेकना कभी स्वीकार नहीं है. उन्होंने फिर गुड़ीमुड़ी किया वह पत्र फाड़ डाला.