आधे-अधूरे / मोहन राकेश / पृष्ठ 3

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बड़ी लड़की : कि मैं इस घर से ही अपने अंदर कुछ ऐसी चीज ले कर गई हूँ जो किसी भी स्थिति में मुझे स्वाभाविक नहीं रहने देतीं।

स्त्री : (जैसे किसी ने उसे तमाचा मार दिया हो) क्या चीज ?

बड़ी लड़की : मैं पूछती हूँ क्या चीज,तो भी उसका एक ही जवाब होता है।

स्त्री : वह क्या ?

बड़ी लड़की : कि इसका पता मुझे अपने अंदर से, या इस घर के अंदर से चल सकता है। वह कुछ नहीं बता सकता।

पुरुष एक : (फिर उस तरफ मुड़ कर) यह सब कहता है वह ? और क्या-क्या कहता है ?

स्त्री : वह इस वक्त तुमसे बात नहीं कर रही।

पुरुष एक : पर बात तो मेरे घर की हो रही है।

स्त्री : तुम्हारा घर ! हँह !

पुरुष एक : तो मेरा घर नहीं है यह ? कह दो, नहीं है।

स्त्री : सचमुच तुम अपना घर समझते इसे तो...

पुरुष एक : कह दो, कह दो, जो कहना चाहती हो।

स्त्री : दस साल पहले कहना चाहिए था मुझे...जो कहना चाहती हूँ।

पुरुष एक : कह दो अब भी...इससे पहले कि दस-ग्यारह साल हो जाएँ।

स्त्री : नहीं होने पाएँगे ग्यारह साल... इसी तरह चलता रहा सब- कुछ तो।

पुरुष एक : (एकटक उसे देखता , काट के साथ) नहीं होने पाएँगे सचमुच...? काफी अच्छा आदमी है जगमोहन ! और फिर दिल्ली में उसका ट्रांसफर भी हो गया है। मिला था उस दिन कनॉट प्लेस में। कह रहा था, आएगा किसी दिन मिलने।

बड़ी लड़की : (धीरज खो कर) डैडी !

पुरुष एक : ऐसी क्या बात कही है मैंने? तारीफ ही की है उस आदमी की।

स्त्री : खूब करो तारीफ...और भी जिस-जिस की हो सके तुमसे। (बड़ी लड़की से) मनोज आज जो तुमसे कहता है यह सब, पहले जब खुद यहाँ आता रहा है, रात-दिन यहीं रहता रहा है, तब क्या उसे पता नहीं चला कि...

बड़ी लड़की : यह मैं उससे नहीं पूछती।

स्त्री : पर क्यों नहीं पूछती ?

बड़ी लड़की : क्योंकि मुझे कहीं लगता है कि...कैसे बताऊँ, क्या लगता है? वह जितने विश्वास के साथ यह बात कहता है, उससे... मुझे अपने से एक अजीब सी चिढ़ होने लगती है। मन करता है आस-पास कि हर चीज को तोड़-फोड़ डालूँ। कुछ ऐसा कर डालूँ जिससे....

स्त्री : जिससे ?

बड़ी लड़की : जिससे उसके मन को कड़ी-से-कड़ी चोट पहुँचा सकूँ। उसे मेरे लंबे बाल अच्छे लगते हैं। इसलिए सोचती हूँ, इन्हें जा कर कटा आऊँ। वह मेरे नौकरी करने के हक में नहीं है। इसलिए चाहती हूँ कहीं भी, कोई भी छोटी-मोटी नौकरी कर लूँ। कुछ भी ऐसी बात जिससे एक बार तो वह अंदर से वह तिलमिला उठे। पर कर मैं कुछ भी नहीं पाती और जब नहीं कर पाती, तो खीज कर...

स्त्री : यहाँ चली आती है ?

बड़ी लड़की पल-भर चुप रह कर सिर हिला देती है।

बड़ी लड़की : नहीं।

स्त्रीड : तो ?

बड़ी लड़की : कई-कई दिनों के लिए अपने को उससे काट लेती हूँ। पर धीरे-धीरे हर चीज फिर उसी ढर्रे पर लौट आती है। सब-कुछ उसी तरह होने लगता है जब तक कि हम... जब तक कि हम नए सिरे से उसी खोह में नहीं पहुँच जाते। मैं यहाँ आती हूँ... यहाँ आती हूँ तो सिर्फ इसलिए कि...

स्त्री : तेरा अपना घर है।

बड़ी लड़की : मेरा अपना घर !...हाँ। और मैं आती हूँ कि एक बार फिर खोजने

की कोशिश कर देखूँ कि क्या चीज है वह इस घर में जिसे ले कर बार-बार मुझे हीन किया जाता है। (लगभग टूटे स्वर में) तुम बता सकती हो ममा, कि क्या चीज है वह? और कहाँ है वह ? इस घर के खिड़कियों-दरवाजों में ? छत में? दीवारों में ? तुममें ? डैडी में ? किन्नी में अशोक में ? कहाँ छिपी है वह मनहूस चीज जो वह कहता है मै इस घर से अपने अंदर ले कर गई हूँ ?

(स्त्री की दोनों बाँहें हाथ में ले कर) बताओ ममा, क्या है ? कहाँ है वह इस घर में ?

काफी लंबा वक्फा। कुछ देर बड़ी लड़की के हाथ स्त्री की बाँहों पर रुके रहते हैं। और दोनों की आँखें मिली रहती हैं। धीरे-धीरे पुरुष एक की गरदन उनकी तरफ मुड़ती है। तभी स्त्री आहिस्ता से बड़ी लड़की के हाथ अपनी बाँहों से हटा देती है। उसकी आँखें पुरुष एक से मिलती हैं और वह जैसे उससे कुछ कहने के लिए कुछ कदम उसकी तरफ बढ़ाती है। बड़ी लड़की जैसे अब भी अपने सवाल का जवाब चाहती , अपनी जगह पर रुकी उन दोनों को देखती रहती है। पुरुष एक स्त्री को अपनी ओर आते देख आँखें उधर से हटा लेता है और एक-दो पल असमंजस में रहने के बाद अनजाने में ही अखबार को गोल करके दोनों हाथो से उसकी रस्सी बटने लगता है। स्त्री आधे रास्ते में ही कुछ कहने का विचार छोड़ कर अपने को सहेजती है। फिर बड़ी लड़की के पास वापस जा कर हलके से उसके कंधे को छूती है। बड़ी लड़की पल-भर आँखें मूँदे रह कर अपने आवेग दबाने का प्रयत्न करती है , फिर स्त्री का हाथ कंधे से हटा कर एक कुरसी का सहारा लिए उस पर बैठ जाती है। स्त्री यह समझ न आने से कि अब उसे क्या करना चाहिए, पल-भर दुविधा में हाथ उलझाए रहती है। उसकी आँखें फिर एक बार पुरुष एक से मिल जाती हैं। और वह जैसे आँखों से ही उसका तिरस्कार कर अपने को एक मोढ़े की स्थिति बदलने में व्यस्त कर लेती है। पुरुष एक अपनी जगह से उठ पड़ता है। अखबार की रस्सी अपने हाथों में देख कर अटपटा महसूस करता है। और कुछ देर अनिश्चित खड़ा रहने के बाद फिर से बैठ कर उस रस्सी के टुकड़े करने लगता है। तभी छोटी लड़की बाहर के दरवाजे से आती है और उन तीनों को उस तरह देख कर अचानक ठिठक जाती है।

छोटी लड़की : कुछ पता ही नहीं चलता यहाँ तो।

तीनों में से केवल एक ही स्त्री उसकी तरफ देखती है।

स्त्री : क्या कह रही है तू ?

छोटी लड़की : बताओ चलता है कुछ पता ? स्कूल से आई हूँ, तो तुम भी हो डैडी भी हैं, बिन्न-दी भी हैं- पर सबलोग ऐसे चुप हैं जैसे...

स्त्री : (स्त्री उसकी तरफ आती है) तू अपना बता कि आते ही चली कहाँ गई थी ?

छोटी लड़की : कहीं भी चली गई थी। घर पर था कोई जिसके पास बैठती यहाँ ? दूध गरम हुआ है मेरा ?

स्त्री : अभी हुआ जाता है।

छोटी लड़की : अभी हुआ जाता है ! स्कूल में भूख लगे तो कोई पैसा नहीं होता पास

में। और घर आने पर घंटा-घंटा दूध ही नहीं होता गरम।

स्त्री : कहा है न तुमसे, अभी गरम हुआ जाता है। (पुरुष एक से) तुम उठ रहे हो या मैं जाऊँ ?

पुरुष एक अखबार के टुकड़े को दोनों हाथों में समेटे उठ खड़ा होता है।

पुरुष एक : (कोई भी कड़वी चीज निगलने की तरह) जा रहा हूँ मैं ही...।

अखबार के टुकड़े पर इस तरह नजर डाल लेता है जैसे कि वह कोई महत्वपूर्ण दस्तावेज था जिसे टुकड़े-टुकड़े कर दिया है।

स्त्री : (छोटी लड़की से) तू फिर एक किताब फाड़ लाई है आज ?

पुरुष एक चलते-चलते रुक जाता कि इस महत्वपूर्ण प्रकरण का भी निपटारा भी देख ही ले।

छोटी लड़की : अपने आप फट गई, तो मैं क्या करूँ ? आज सिलाई की क्लास में फिर वही हुआ मेरे साथ। मिस ने कहा....

स्त्री : तू मिस की बात बाद में करना। पहले यह बता कि..

छोटी लड़की : रोज कहती हो, बाद में करना। आज भी मुझे रीलें ला कर न दीं, तो मैं स्कूल नहीं जाऊँगी कल से। मिस ने सारी क्लास के सामने मुझसे कहा कि...

स्त्री : तू और तेरी मिस ! रोग लगा रखा है जान को !

छोटी लड़की : तो उठा लो न मुझे स्कूल से। जैसे शोकी मारा-मारा फिरता है सारा दिन, मैं भी फिरती रहा करूँगी।

बड़ी लड़की इस बीच काफी अस्थिर महसूस करती छोटी लड़की को देखती है।

बड़ी लड़की : (अपने को रोक पाने में असमर्थ) तुझे तमीज से बात करना नहीं आता ? बड़ा भाई है तेरा।

छोटी लड़की : क्यों...फिरता नहीं मारा-मारा सारा दिन ?

बड़ी लड़की : किन्नी !

छोटी लड़की : तुम यहाँ थीं, तो क्या कुछ कहा करती थीं उसके बारे में? तुम्हारा भी तो बड़ा भाई है। चाहे एक ही साल बड़ा है, है तो बड़ा ही।

बड़ी लड़की : (स्त्री से) ममा, तुमने इस लड़की की जबान बहुत खोल दी है।

पुरुष एक : अगर यही बात मैं कह दूँ ना इससे....।

स्त्री : पहले जो-जो कहना है, वह कह लो तुम। उसके बाद देख लेना अगर...

पुरुष एक : (अहाते के दरवाजे की तरफ चलता) कहना क्या है ? कहता ही नहीं कभी । मैं दूध गरम कर रहा हूँ इसका ।

दरवाजे से निकल जाता है ।

छोटी लड़की : कल मुझे रीलों का डिब्बा जरूर चाहिए और मिस बैनर्जी ने सब लड़कियों से कहा है आज कि फाऊंडर्स-डे पी. टी. के लिए तीन-तीन नए किट...

स्त्री : कितने ?

छोटी लड़की : तीन-तीन। सब लड़कियों को बनाने हैं। और तुमने कहा था क्लिप और मोजे इस हफ्ते जरूर आ जाएँगे, आ गए हैं ? कितनी शरम आती है मुझे फटे मोजे पहन कर स्कूल जाते!

पल-भर की औघड़ खामोशी।

स्त्री : (जैसे अपने को उस प्रकरण से बचाने की कोशिश में) अच्छा, देख... स्कूल से आ कर तू अपना बैग यहाँ खुला छोड़ गई थी ! मैंने आ कर बंद किया है। पहले इसे अंदर रख कर आ।

छोटी लड़की : तुमने मेरी बात सुनी है ?

स्त्री : सुन ली है।

छोटी लड़की : तो जवाब क्यों नहीं दिया कुछ? (कोने से बैग उठा कर झटके से अंदर को चलती) मै कर रही हूँ क्लिप और मोजों की बात और कह रही हैं बैग रख कर आ अंदर ।

चली जाती है। बड़ी लड़की कुरसी से उठ पड़ती है।

बड़ी लड़की : हम कह पाते थे कभी इतनी बात ? आधी बात भी कह दें इससे, तो रासें इस तरह कस दी जाती थीं कि बस !

स्त्री पल-भर अपने में डूबी खड़ी रहती है।

स्त्री : (चेष्टा से अपने को सहेज कर) क्या कहा तूने ?

बड़ी लड़की : मैंने कहा कि...(सहसा स्त्री के भाव के प्रति सचेत हो कर) तुम सोच रही थीं कुछ ?

स्त्री : नहीं...सोच नहीं रही थी (इधर-उधर नजर डालती) देख रही थी कि और कुछ समेटने को तो नहीं है। अभी कोई आनेवाला है बाहर से और....।

बड़ी लड़की : कौन आनेवाला है ?

पुरुष एक दूध के गिलास में चीनी हिलाता अहाते के दरवाजे से आता है।

पुरुष एक : सिंघानिया। इसका बॉस। वह नया आना शुरू हुआ है आजकल।

गिलास डायनिंग टेबल पर छोड़ कर बिना किसी की तरफ देखे वापस चला जाता है। स्त्री कड़ी नजर से उसे जाते देखती है। बड़ी लड़की स्त्री के पास जाती है।

बड़ी लड़की : ममा !

स्त्री की आँखें घूम कर बड़ी लड़की के चेहरे पर अस्थिर होती हैं। कह कुछ नहीं पाती।

क्या बात है, ममा !

स्त्री : कुछ नहीं।

बड़ी लड़की : फिर भी ?

स्त्री : कहा है ना, कुछ नहीं।

वहाँ से हट कर कबर्ड के पास चली जाती है और उसे खोल कर अंदर से कोई चीज ढूँढ़ने लगती है।

बड़ी लड़की : (उसके पीछे जा कर) ममा !

स्त्री कोई उत्तर न दे कर कबर्ड में से एक मेजपोश निकाल लेती और कबर्ड बंद कर देती है।

तुम तो आदी हो रोज-रोज ऐसी बातें सुनने की। कब तक इन्हें मन पर लाती रहोगी ?

स्त्री उसका वाक्य पूरा होने तक रुकी रहती है फिर जाकर तिपाई का मेजपोश बदलने लगती है।

(उसकी तरफ आती) एक तुम्हीं करनेवाली हो सब-कुछ इस घर में। अगर तुम्हीं....

स्त्री के बदलते भाव को देख कर बीच में ही रुक जाती है। स्त्री पुराने मेजपोश को हाथों में लिए एक नजर उसे देखती है , फिर उमड़ते आवेग को रोकने की कोशिश में चेहरा मेजपोश से ढँक लेती है।

(काफी धीमे स्वर में) ममा !

स्त्री आहिस्ता से मोढ़े पर बैठती हुई मेजपोश चेहरे से हटाती है।

स्त्री : (रुलाई लिए स्वर में) अब मुझसे नहीं होता, बिन्नी। अब मुझसे नहीं सँभलता।

पुरुष एक अहाते के दरवाजे से आता है-दो जले टोस्ट एक प्लेट में लिए। स्त्री के शब्द उसके कानो में पड़ते हैं , पर वह जानबूझ कर अपने चेहरे से कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं होने देता। प्लेट दूध के गिलास के पास छोड़ कर किताबों के शेल्फ की तरफ चला जाता है और उसके निचले हिस्से में रखी फाइलों में से जैसे कोई खास फाइल ढूँढ़ने लगता है। बड़ी लड़की बात करने से पहले पल भर को वक्फा ले कर उसे देखती है।

बड़ी लड़की : (विशेष रूप से उसी को सुनाती , स्त्री से) जो तुमसे नहीं सँभलता, वह और किससे सँभल सकता है इस घर में... जान सकती हूँ ?

पुरुष एक जैसे फाइल की धूल झाड़ने के लिए उसे दो-एक जोर के हाथ लगा कर पीट देता है।

जब से बड़ी हुई हूँ तभी से देख रही हूँ। तुम सब-कुछ सह कर भी रात-दिन अपने को इस घर के लिए हलाक करती रही हो और...

पुरुष एक अब एक और फाइल को उससे भी तेज और ज्यादा बार पीट देता है

स्त्री : पर हुआ क्या है उससे?

न सह पाने की नजर से पुरुष एक की तरफ देख कर मोढ़े से उठ पड़ती है। पुरुष एक दोनों फाइलों को जोर-जोर आपस में से टकराता है।

(एकाएक पुरुष एक की थप-थप से उतावली पड़ कर) तुम्हें सारे घर में यह धूल इसी वक्त फैलानी है क्या ?

पुरुष एक : जुनेजा की फाइल ढूँढ़ रहा था। नहीं ढूँढ़ता।

जैसे-तैसे फाइलों को उसकी जगह में वापस ठूँसने लगता है। छोटी लड़की पाँव पटकती अंदर से आती है।

छोटी लड़की : देख लो ममा, यह मुझे फिर तंग कर रहा है।

बड़ी लड़की : (लगभग डाँटती) तू चिल्ला क्यों रही है इतना ?

छोटी लड़की : चिल्ला रही हूँ क्योंकि शोकी अंदर मुझे...

बड़ी लड़की : शोकी-शोकी क्या होता है ? तू अशोक भापाजी नहीं कह सकती ?

छोटी लड़की : अशोक भापाजी ?... वह ?

व्यंग्य के साथ हँसती है।

स्त्री : अशोक अंदर क्या कर रहा है इस वक्त ? मैं सोचती थी कि वह...

छोटी लड़की : पड़ा सो रहा था अब तक। मैंने जा कर जगा दिया, तो लगा मेरे बाल खींचने।

लड़का अंदर से आता है। लगता है , दो-तीन दिन से उसने शेव नहीं की।

लड़का : कौन सो रहा था ? मैं ? बिलकुल झूठ।

बड़ी लड़की : शेव करना छोड़ दिया है क्या तूने ?

लड़का : (अपने चेहरे को छूता) फ्रेंचकट रखने की सोच रहा हूँ। कैसी लगेगी मेरे चेहरे पर ?

छोटी लड़की : (उतावली पकड़ कर) मेरी बात सुनी नहीं किसी ने। अंदर मेरे बाल खींच रहा था और बाहर आ कर अपनी फ्रेंचकट बता रहा है।

डायनिंग टेबल से दूध का गिलास ले कर गटगट दूध पी जाती है। पुरुष एक इस बीच शेल्फ और फाइलों से उलझा रहता है। एक फाइल को किसी तरह अंदर समाता है तो कुछ और फाइलें बाहर को गिर आती है , उन्हें सँभालता है, तो पहले की फाइलें पीछे गिर जाती हैं।

स्त्री : (लड़के के पास आती) तुमसे एक बात पूछूँ ?

लड़का : पूछो ।

स्त्री : इस लड़की की क्या उम्र है ?

लड़का : यही तो मै तुमसे पूछना चाहता हूँ कि बारह साल की उम्र में यह लड़की... ?

बड़ी लड़की : तेरह साल की उम्र में।

स्त्री : तेरह साल की लड़की कितनी बड़ी होती है?

स्त्री : तेरह साल की लड़की तेरह साल बड़ी होती है और तेरह साल

बड़ी ही होनी चाहिए उसे, जबकि यह लड़की....

स्त्री : बच्ची नहीं है अब जो तू इसके बाल खींचता रहे।

छोटी लड़की लड़के की तरफ जबान निकालती है। पुरुष एक फाइलों को किसी तरह समेट कर उठ पड़ता है।

लड़का : तब तो सचमुच मुझे गलती माननी चाहिए।

स्त्री : जरूर माननी चाहिए... ।

लड़का : कि मैंने खामखाह इसके हाथ से वह किताब छीन ली।

पुरुष एक : (अपनी तटस्थता बनाए रखने में असमर्थ , आगे आता) कौन- सी किताब ?

छोटी लड़की : झूठ बोल रहा है। मैंने कोई किताब नहीं ली इसकी।

टोस्टों वाली प्लेट हाथ में लिए मेज पर बैठ जाती है।

पुरुष एक : (लड़की के पास पहुँच कर) कौन-सी किताब ?

लड़का : (बुशर्ट के अंदर से किताब निकाल कर दिखाता) यह किताब।

छोटी लड़की : झूठ, बिलकुल झूठ। मैंने देखी भी नहीं यह किताब।

लड़का : (आँखे फाड़ कर उसे देखता) नहीं देखी ?

छोटी लड़की : (कमजोर पड़ कर ढीठपन के साथ) तू तकिए के नीचे रख कर सोए, तो भी नहीं। मैंने जरा निकाल कर देख देख-भर ली, तो...।

पुरुष एक : (हाथ बढ़ा कर) मैं देख सकता हूँ ?

लड़का : (किताब वापस बुशर्ट में रखता) नहीं...आपके देखने की नहीं है। (स्त्री से) अब फिर पूछो मुझसे कि इसकी उम्र कितने साल है ?

बड़ी लड़की : क्यों अशोक... यह वही किताब है न कैसानोवा... ?

पुरुष : (ऊँचे स्वर में) ठहरो (बारी-बारी से उन सबकी ओर देखता) पहले मैं यह जान सकता हूँ यहाँ किसी से कि मेरी उम्र कितने साल की है ?

कुछ पलों का व्यवधान , जिसमें सिर्फ छोटी लड़की की मुँह और टाँगें चलती रहती हैं ।

स्त्री : ऐसी क्या बात कह दी किसी ने कि...

पुरुष : (एक-एक शब्द पर जोर देता) मैं पूछ रहा हूँ कि मेरी उम्र कितने साल की है ? कितने साल है मेरी उम्र ?

स्त्री : (उठ रही स्थिति के लिए तैयार हो कर) यह तुम्हें पूछ कर जानना है क्या ?

पुरुष एक : हाँ, पूछ कर ही जानना है आज। कितने साल हो चुके हैं मुझे जिंदगी का भार ढोते ? उनमें से कितने साल बीते हैं मेरे परिवार की देख-रेख करते ? और उस सबके बाद मैं आज पहुँचा कहाँ हूँ ? यहाँ कि जिसे देखो वही मुझसे उलटे ढंग से बात करता है ? जिसे देखो, वही मुझसे बदतमीजी से पेश आता है ?

लड़का : (अपनी सफाई देने की कोशिश में) मैंने तो सिर्फ इसलिए कहा था, डैडी, कि...

पुरुष एक : हर-एक के पास एक-न-एक वजह होती है। इसने इसलिए कहा था। उसने उसलिए कहा था। मैं जानना चाहता हूँ कि मेरी क्या यही हैसियत है इस घर में कि जो जब जिस वजह से जो भी कह दे मैं चुपचाप सुन लिया करूँ ? हर वक्त की दुत्कार, हर वक्त की कोंच, बस यही कमाई है यहाँ मेरी इतने सालों की...

स्त्री : (वितृष्णा से उसे देखती) यह सब किसे सुना रहे हो तुम ?

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