आधे-अधूरे / मोहन राकेश / पृष्ठ 4

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पुरुष एक : किसे सुना सकता हूँ ? कोई है जो सुन सकता है ? जिन्हें सुनना चाहिए, वे सब तो एक रबड़-स्टैंप के सिवा कुछ समझते ही नहीं मुझे। सिर्फ जरूरत पड़ने पर इस स्टैंप का ठप्पा लगा कर...

स्त्री : यह बहुत बड़ी बात नहीं कह रहे तुम ?

लड़का : (उसे रोकने की कोशिश में) ममा...!

स्त्री : मुझे सिर्फ इतना पूछ लेने दे इनसे कि रबड़-स्टैंप के माने क्या होते हैं? एक अधिकार, एक रुतबा, एक इज्जत यही न ?

लड़का : (फिर उसी कोशिश में) सुनो तो सही, ममा... !

स्त्री : (बिना किसी तरफ ध्यान दिए) यह सब कब-कब मिला है इनसे किसी को भी इस घर में ? किस माने में ये कहते है कि....?

पुरुष-एक : किसी माने में नहीं । मैं इस घर मेँ एक रबड़-स्टैंप भी नहीं, सिर्फ एक रबड़ का टुकड़ा हूँ--बार-बार घिसा जानेवाला रबड़ का टुकड़ा। इसके बाद क्या कोई मुझे वजह बता सकता है, एक भी ऐसी वजह, कि क्यों मुझे रहना चाहिए इस घर में?

सब लोग चुप रहते हैं।

नहीं बता सकता न ?

स्त्री : मैंने एक छोटी-सी बात पूछी है तुमसे...

पुरुष एक : (सिर हिलाता) हाँ...छोटी-सी बात ही तो है यह। अधिकार, रुतबा, इज्जत - यह सब बाहर के लोगों से मिल सकता है इस घर को। इस घर का आज तक कुछ बना है, या आगे बन सकता है, तो सिर्फ बाहर के लोगों के भरोसे। मेरे भरोसे तो सब-कुछ बिगड़ता आया है और आगे बिगड़-ही-बिगड़ सकता है। (लड़के की तरफ इशारा करके) यह आज तक बेकार क्यों घूम रहा है ? मेरी वजह से। (बड़ी लड़की की तरफ इशारा करके) यह बिना बताए एक रात घर से क्यों भाग गई थी ? मेरी वजह से। (स्त्री के बिलकुल सामने आ कर) और तुम भी...तुम भी इतने सालों से क्यों चाहती रही हो कि... ?

स्त्री : (बौखला कर , शेष तीनों से) सुन रहे हो तुम लोग ?

पुरुष एक : अपनी जिंदगी चौपट करने का जिम्मेदार मैं हूँ। इन सबकी जिंदगियाँ चौपट करने का जिम्मेदार मैं हूँ। फिर भी मैं इस घर से चिपका हूँ क्योंकि अंदर से मैं आराम-तलब हूँ, घरघुसरा हूँ, मेरी हड्डियों में जंग लगा है।

स्त्री : मैं नहीं जानती, तुम सचमुच ऐसा महसूस करते हो या.. ?

पुरुष : सचमुच महसूस करता हूँ। मुझे पता है, मैं एक कीड़ा हूँ जिसने अंदर-ही-अंदर इस घर को खा लिया है (बाहर के दरवाजे की तरफ चलता) पर अब पेट भर गया है मेरा। हमेशा के लिए भर गया है (दरवाजे के पास रुक कर) और बचा भी क्या है जिसे खाने के लिए और रहता रहूँ यहाँ ?

चला जाता है। कुछ देर के लिए सब लोग जड़-से हो रहते हैं। फिर छोटी लड़की हाथ के टोस्ट को मुँह की ओर ले जाती है।

बड़ी लड़की : तुम्हारा खयाल है, ममा...?

स्त्री : लौट आएँगे रात तक। हर शुक्र-शनीचर यही सब होता है यहाँ।

छोटी लड़की : (जूठे टोस्ट को प्लेट में वापस पटकती है) थू:-थू:।

बड़ी लड़की : (काफी गुस्से के साथ) तुझे क्या हो रहा है वहाँ ?

छोटी लड़की : मुझे क्या हो रहा है यहाँ ? यह टोस्ट है, कोयला है ?

स्त्री : (दाँत भींचे) तू इधर आएगी एक मिनट ?

छोटी लड़की : नहीं आऊँगी।

बड़ी लड़की : नहीं आएगी ?

छोटी लड़की : नहीं आऊँगी। (सहसा उठ कर बाहर को चलती) अंदर जाओ, तो बाल खींचे जाते हैं। बाहर आओ, तो किटपिट-किटपिट-किटपिट और खाने को कोयला - अब उधर आ कर इनके तमाचे और खाने हैं।

चली जाती है।

लड़का : (उसके पीछे जाने को हो कर) मैं देखता हूँ इसे कम-से-कम लड़की को तो मुझे...

दरवाजे के पास पहुँचता ही है कि पीछे से स्त्री आवाज दे कर उसे रोक लेती है।

स्त्री : सुन।

लड़का : (किसी तरह निकल जाने की कोशिश में) पहले मैं जा कर इसे...

स्त्री : (काफी सख्त स्वर में) पहले तू आ कर यहाँ... बात सुन मेरी।

लड़का किसी जरूरी काम पर जाने से रोक लिए जाने की मुद्रा में लौट कर स्त्री के पास आ जाता है।

लड़का : बताओ।

स्त्री : कम-से-कम तुझे इस वक्त कहीं नहीं जाना है। वह आज फिर आनेवाला है थोड़ी देर में और...

लड़का : ('मुझे क्या, कोई आनेवाला है तो ?' की मुद्रा में) कौन आनेवाला है?

बड़ी लड़की : ममा का बॉस...क्या नाम है उसका ?

लड़का : अच्छा, वह... आदमी !

बड़ी लड़की : तू मिला है उससे ?

लड़का : दो बार।

बड़ी लड़की : कहाँ ?

लड़का : इसी घर में।

स्त्री : (बड़ी लड़की से) दोनों बार के लिए बुलाया था मैंने उसे, आज भी इसी की खातिर?

लड़का : (कुछ तीखा पड़ कर) मेरी खातिर ? मुझे क्या लेना-देना है उससे ?

बड़ी लड़की : ममा उसके जरिए तेरी नौकरी के लिए कोशिश कर रही होंगी न... ।

लड़का : मुझे नहीं चाहिए नौकरी। कम-से-कम उस आदमी के जरिए हरगिज नहीं।

बड़ी लड़की : क्यों, उस आदमी को क्या है ?

लड़का : चुकंदर है। वह आदमी है जिसे बैठने का शऊर है, न बात करने का।

स्त्री : पाँच हजार तनख्वाह है उसकी। पूरा दफ्तर सँभलता है।

लड़का : पाँच हजार तनख्वाह है, पूरा दफ्तर सँभलता है, पर इतना होश नहीं है कि अपनी पतलून के बटन...

स्त्री : अशोक !

लड़का : तुम्हारा बॉस न होता, तो उस दिन मैं कान से पकड़ कर घर से निकाल दिया होता। सोफे पे टाँग पसारे आप सोच कुछ रहे हैं, जाँघ खुजलाते देख किसी तरफ रहे है और बात मुझसे कर रहे हैं... (नकल उतारता) 'अच्छा, यह बतलाइए कि आपके राजनीतिक विचार क्या हैं?' राजनीतिक विचार हैं मेरी खुजली और उसकी मरहम !

स्त्री : (अपना माथा सहला कर बड़ी लड़की से) ये लोग हैं जिनके लिए मैं जानमारी करती हूँ रात-दिन।

लड़का : पहले पाँच सेकंड आदमी की आँखों में देखता रहेगा फिर होंठों के दाहिने कोनो से जरा-सा मुस्कुराएगा। फिर एक-एक लफ्ज को चबाता हुआ पूछेगा... (उसके स्वर में) 'आप क्या सोचते हैं, आजकल युवा लोगों में इतनी अराजकता क्यों है?' ढूँढ़-ढूँढ़ कर सरकारी हिंदी के लफ्ज लाता है-युवा लोगों में ! अराजकता !

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