आधे-अधूरे / मोहन राकेश / पृष्ठ 5

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स्त्री : तो फिर ?

लड़का : तो फिर क्या ?

स्त्री : तो फिर क्या मरजी है तेरी ?

लड़का : किस चीज को ले कर ?

स्त्री : अपने-आपको।

लड़का : मुझे क्या हुआ ?

स्त्री : जिंदगी में तुझे भी कुछ करना-धरना है या बाप ही की तरह...?

लड़का : (फिर तीखा पकड़ कर) हर बात में खामखाह उनका जिक्र क्यों बीच में लाती हो ?

स्त्री : पढ़ाई थी, तो तूने पूरी नहीं की। एयर-फ्रिज में नौकरी दिलवाई थी, तो वहाँ से छह हफ्ते बाद छोड़ कर चला आया। अब मैं नए सिरे से कोशिश करना चाहती हूँ तो...

लड़का : पर क्यों करना चाहती हो ? मैंने कहा है तुमसे कोशिश करने के लिए ?

बड़ी लड़की : तो तेरा मतलब है कि तू...जिंदगी-भर कुछ भी नहीं करना चाहता?

लड़का : ऐसा कहा है मैंने ?

बड़ी लड़की : तो नौकरी के सिवा ऐसा क्या है जो तू....?

लड़का : यह मैं नहीं कह सकता। सिर्फ इतना कह सकता हूँ कि जिस चीज में मेरी अंदर से दिलचस्पी नहीं है...।

स्त्री : दिलचस्पी तो तेरी...।

बड़ी लड़की : ठहरो ममा... !

स्त्री : तू ठहर, मुझे बात करने दे। (लड़के से) दिलचस्पी तो तेरी सिर्फ तीन चीजों में है- दिन-भर ऊँघने में, तस्वीरे काटने में और...घर की यह चीज वह चीज ले जा कर....

लड़का : (कड़वी नजर से उसे देखता) इसे घर कहती हो तुम ?

स्त्री : तो तू इसे क्या समझ कर रहता है यहाँ ?

लड़का : मैं इसे...

बड़ी लड़की : (उसे बोलने न देने के लिए) देख अशोक, ममा के यह सब कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि...

लड़का : मैं नहीं जानता मतलब ? तू चली गई है यहाँ से, मैं तो अभी यहीं रहता हूँ।

स्त्री : (हताश भाव से) तो क्यों नहीं तू भी फिर... ?

बड़ी लड़की : (झिड़कने के स्वर में) कैसी बात कर रही हो, ममा !

स्त्री : कैसी बात कर रही हूँ ? यहाँ पर सब लोग समझते क्या हैं मुझे ? एक मशीन, जोकि सबके लिए आटा पीस कर रात को दिन और दिन को रात करती रहती है? मगर किसी के मन में जरा- सा भी खयाल नहीं है इस चीज के लिए कि कैसे मैं.. ।

इस बीच ही बाहर के दरवाजे पर पुरुष दो की आकृति दिखाई देती है जो किवाड़ को हलके से खटखटा देता है। स्त्री चौंक कर उधर देखती है और अपनी अधकही बात को बीच में ही चबा जाती है।

(स्वर को किसी तरह सँभालती) आप?.. आ गए हैं आप ? ...आइए-आइए अंदर।

बड़ी लड़की : (दायित्वपूर्ण ढंग से दरवाजे की तरफ बढ़ती) आइए।

पुरुष दो अभ्यस्त मुद्रा में उनके अभिवादन का उत्तर देता अंदर आ जाता है।

स्त्री : यह मेरी बड़ी लड़की बिन्नी। अशोक तो आपसे मिल ही चुका है।

पुरुष दो : अच्छा-अच्छा यही है वह लड़की। तुम चर्चा कर रही थीं इसकी। इसका ऑपरेशन हुआ था न पिछले साल...न-न-न न। वह तो मिसेज माथुर की लड़की का ? नहीं शायद...पर हुआ था किसी की लड़की का।

स्त्री : यहाँ आ जाइए सोफे पर !

सोफे की तरफ बढ़ते हुए पुरुष दो की आँखें लड़के से मिल जाती हैं। लड़का चलते ढंग से उसे हाथ जोड़ देता है। पुरुष दो फिर उसी अभ्यस्त ढंग से उत्तर देता है।

पुरुष दो : (बैठता हुआ) इतने लोगों से मिलना-जुलना होता है कि...(अपनी घड़ी देख कर) पाँच मिनट हैं सात में। उनका अनुरोध था, सात तक अवश्य पहुँच जाऊँ। कई लोगों को बुला रखा है उन्होंने - विशेष रूप से मिलने के लिए (बड़ी लड़की को ध्यान से देखता, स्त्री से) तुमने बताया था कुछ इसके विषय में। किस कॉलेज में है यह?

स्त्री : अब कॉलेज में नहीं है...

पुरुष दो : हाँ-हाँ-हाँ...बताया था तुमने। (बड़ी लड़की से) बैठो न। (स्त्री से) बैठो तुम भी।

स्त्री सोफे के पास कुरसी पर बैठ जाती है। बड़ी लड़की कुछ दुविधा में खड़ी रहती है।

स्त्री : बैठ जा, खड़ी क्यों है ?

बड़ी लड़की : ये जल्दी चले जाएँगे, सोच रही थी चाय का पानी... ।

पुरुष दो : नहीं-नहीं, चाये-वाय नहीं इस समय। वैसे भी बहुत कम पीता हूँ। एक लेख था कहीं रिजर्ड डाइजेस्ट में था?... कि अधिक चाय पीने से (जाँघ खुजलाता) रीडर्स डाइजेस्ट भी क्या चीज निकालते हैं ! अपने यहाँ तो बस ये कहानियाँ वो कहानियाँ, कोई अच्छी पत्रिका मिलती ही नहीं देखने को। एक अमेरिकन आया हुआ था पिछले दिनों। बता रहा था कि...

लड़का जो इतनी देर परे खड़ा रहता है , अब बढ़ कर उनके पास आ जाता हैं।

लड़का : (स्त्री से) ऐसा है ममा, कि...

स्त्री : रुक अभी। (पुरुष दो से) एक प्याली भी नहीं लेंगे ?

पुरुष दो : ना, बिलकुल नहीं।...अंतरराष्ट्रीय संपर्क हैं कंपनी के, सो सभी देशों के लोग मिलने आते रहते हैं। जापान से तो पूरा प्रतिनिधि-मंडल ही आया हुआ था पिछले दिनों...। कुछ भी कहिए, जापान ने सबकी नाक में नकेल कर रखी है आजकल। अभी उस दिन मैं जापान की पिछले वर्ष की औद्योगिक सांख्यकी देख रहा था... ।

लड़का : मैं क्षमा चाहूँगा क्योंकि...

स्त्री : तुमसे कहा है, रुक अभी थोड़ी देर। (पुरुष दो से) आप कॉफी पसंद करते हों, तो...

पुरुष दो : न चाय, न कॉफी। एक घटना सुनाऊँ आपको, कॉफी पीने के संबंध में। आज की बात नहीं, बहुत साल पहले की है। तब की जब मैं विश्वविद्यालय की साहित्य-सभा का मंत्री था। (मन में उस बात का रस लेता) हैं-हैं-ह-हैं-हाँ-हैं।...साहित्यिक गतिविधियों में रुचि आरंभ से ही थी। सो... (बड़ी लड़की और लड़के से) बैठ जाओ तुम लोग।

बड़ी लड़की बैठ जाती है।

लड़का : बात यह है कि...

स्त्री : (उठती हुई) ! मैं थोड़ा नमकीन ले कर आ रही हूँ।

लड़के को बैठने के लिए कोंच कर अहाते के दरवाजे से चली जाती है। लड़का असंतुष्ट भाव से उसे देखता है , फिर टहेलता हुआ पढ़ने की मेज के पास चला जाता है। बड़ी लड़की से आँख मिलने पर हलके से मुँह बनाता है और कुरसी का रुख थोड़ा सोफे की तरफ करके बैठ जाता है।

पुरुष दो : (बड़ी लड़की से) तुम्हें पहले कहीं देखा है... नहीं देखा ?

बड़ी लड़की : मुझे ?...आपने ?

पुरुष दो : किसी इंटरव्यू में ?

बड़ी लड़की : नहीं तो।

पुरुष दो : फिर भी लगता है देखा है।...कोई और होगी। बिलकुल तुम्हारे जैसी थी। विचित्र बात नहीं है यह ?

बड़ी लड़की : क्या ?

पुरुष दो : कि बहुत-से लोग एक-दूसरे जैसे होते हैं। हमारे अंकल हैं एक। पीठ से देखो - मोरारजी भाई लगते हैं।

लड़का इस बीच मेज की दराज खोल कर तस्वीरें निकाल लेता है और उन्हें मेज पर फैलाने लगता है।

लड़का : हमारी आंटी हैं एक। गरदन काट कर देखो - जीता लोलोब्रिजिदा नजर आती हैं।

पुरुष दो : हाँ !...कई लोग होते हैं ऐसे। जीवन की विचित्रताओं की ओर ध्यान देने लगें, तो कई बार तो लगता है कि... (सहसा जेबें टटोलता) भूल तो नहीं आया घर पर ?(जेब से चश्मा निकाल कर वापस रखता) नहीं। तो मैं कह रहा था कि...क्या कह रहा था ?

बड़ी लड़की : कि जीवन की विचित्रताओं की ओर ध्यान देने लगें, तो...

लड़का : जापान की औद्योगिक... क्या थी वह ? उसकी बात नहीं कर रहे थे ?

स्त्री इस बीच नमकीन की प्लेट लिए अहाते के दरवाजे से आ जाती है।

स्त्री : कोई घटना सुना रहे थे कॉफी पीने के संबंध में।

पुरुष दो : हाँ...तो...तो...तो वह...वह जो...।

स्त्री : लीजिए थोड़ा-सा।

पुरुष दो : हाँ-हाँ... जरूर (बड़ी लड़की से) लो तुम भी (स्त्री से) बैठ जाओ अब।

स्त्री : (मोढ़े पर बैठती) उस विषय में सोचा आपने कुछ ?

पुरुष दो : (मुँह चलाता) किस विषय में ?

स्त्री : वह जो मैंने बात की थी आपसे...कि कोई ठीक-सी जगह हो आपकी नजर में, तो...

पुरुष दो : बहुत स्वादिष्ट है।

स्त्री : याद है न आपको ?

पुरुष दो : याद है। कुछ बात कि थी तुमने एक बार। अपनी किसी कजिन के लिए कहा था...नहीं वह तो मिसेज मल्होत्रा ने कहा था। तुमने किसके लिए कहा था ?

स्त्री : (लड़के की तरफ देखती) इसके लिए।

पुरुष दो घूम कर लड़के की तरफ देखता है , तो लड़का एक बनावटी मुस्कुराहट मुस्कुरा देता है।

पुरुष दो : हूँ-हूँ... । क्या पास किया है इसने ? बी॰ कॉम॰ ?

स्त्री : मैंने बताया था। बी॰ एससी॰ कर रहा था... तीसरे साल में बीमार हो गया इसलिए...

पुरुष दो : अच्छा-अच्छा...हाँ...बताया था तुमने कि कुछ दिन एयर इंडिया में...

स्त्री : एयर-फ्रिज में

पुरुष दो : हाँ, एयर-फ्रिज में।...हूँ-हूँ...हूँ।

फिर घूम कर लड़के की ओर की तरफ देख लेता है। लड़का फिर उसी तरह मुस्कुरा देता है।

इधर आ जाइए आप। वहाँ दूर क्यों बैठे हैं ?

लड़का : (अपनी नाक की तरफ इशारा करता) जी, मुझे जरा…

पुरुष दो : अच्छा-अच्छा देश का जलवायु ही ऐसा है, क्या किया जाए? जलवायु की दृष्टि से जो देश मुझे सबसे पसंद है, वह है इटली। पिछले वर्ष काफी यात्रा पर रहना पड़ा। पूरा यूरोप घूमा, पर जो बात मुझे इटली में मिली, वह और किसी देश में नहीं। इटली की सबसे बड़ी विशेषता पता है, क्या है ?...बहुत ही स्वादिस्ट है। कहाँ से लाती हो ? (घड़ी देख कर) सात पाँच यहीं हो गए। तो...

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