आधे-अधूरे / मोहन राकेश / पृष्ठ 6

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


स्त्री : यहीं कोने पर एक दुकान है।

पुरुष दो : अच्छी दुकान है। मैं प्रायः कहा करता हूँ कि खाना और पहनना, इन दो दृष्टियों से... वह अमरीकन भी यही बात कह रहा था कि जितनी विविधता इस देश के खान-पान और पहनावे में है...और वही क्या, सभी विदेशी लोग इस बात को स्वीकार करते हैं। क्या रूसी, क्या जर्मन ! मैं कहता हूँ, संसार में शीत युद्ध को कम करने में हमारी कुछ वास्तविक देन है, तो यही कि...तुम अपनी इस साड़ी को ही लो। कितनी साधारण है, फिर भी...यह हड़तालों-हड़तालों का चक्कर न चलता अपने यहाँ, तो हमारा वस्त्र उद्योग अब तक...अच्छा, तुमने वह नोटिस देखा है जो यूनियन ने मैनेजमेंट को दिया है ?

स्त्री 'हाँ' के लिए सिर हिला देती है।

कितनी बेतुकी बातें हैं उसमें !हमारे यहाँ डी॰ए॰ पहले ही इतना है कि...

लड़का दराज से एक पैड निकाल कर दराज बंद करता है। पुरुष दो फिर घूम कर उस तरफ देख लेता है। लड़का फिर मुस्कुरा देता है। पुरुष दो के मुँह मोड़ने के साथ ही वह पैड पर पेंसिल से लकीरें खींचने लगता है।

तो मैं कह रहा था कि...क्या कह रहा था ?

स्त्री : कह रहे थे... ।

बड़ी लड़की : कई बातें कह रहे थे।

पुरुष दो : पर बात शुरू कहाँ से की थी मैंने ?

लड़का : इटली की सबसे बड़ी विशेषता से।

पुरुष : हाँ, पर उसके बाद... ?

लड़का : खान-पान और पहनावे की विविधता...अमरीकन, जर्मन, रूसी... शीत-युद्ध, हड़तालें...वस्त्र-उद्योग...डी॰ए॰।

पुरुष दो : बहुत अच्छी स्मरण शक्ति है लड़के की। तो कहने का मतलब था कि...

स्त्री : थोड़ा और लीजिए।

पुरुष दो : और नहीं अब।

स्त्री : थोड़ा-सा...देखिए, जैसे भी हो, इसके लिए आपको कुछ-न-कुछ जरूर करना है ?

पुरुष दो : जरूर...। किसके लिए क्या करना है ?

स्त्री : (लड़के की तरफ देख कर) इसके लिए कुछ-न-कुछ।

पुरुष दो : हाँ-हाँ... जरूर। वह तो है ही। (लड़के की तरफ मुड़ कर) बी॰एससी॰ में कौन-सा डिवीजन था आपका ?

लड़का उँगली से हाथ में सिफर खींच देता है।

कौन-सा ?

लड़का : (तीन चार बार उँगली घुमा कर) ओ !

पुरुष दो : (जैसे बात समझ कर) ओ !

स्त्री : तीसरे साल में बीमार हो गया था, इसलिए...

पुरुष दो : अच्छा-अच्छा...हाँ।...ठीक हैं...देखूँगा मैं। (घड़ी देख कर) अब चलना चाहिए। बहुत समय हो गया है। (उठता हुआ) तुम घर पर आओ किसी दिन। बहुत दिनों से नहीं आई।

स्त्री और बड़ी लड़की साथ ही उठ खड़ी होती हैं।

स्त्री : मैं भी सोच रही थी आने के लिए। बेबी से मिलने।

पुरुष दो : वह पूछती रहती है, आंटी इतने दिनों से क्यों नहीं आई ? बहुत प्यार करती है अपनी आंटियों से। माँ के न होने से बेचारी...।

स्त्री : बहुत ही प्यारी बच्ची है। मैं पूछ लूँगी किसी दिन आपसे। इससे भी कह दूँ, आ कर मिल ले आप से एक बार।

पुरुष दो : (बड़ी लड़की को देखता) किससे ? इससे ?

स्त्री : अशोक से।

पुरुष दो : हाँ-हाँ...क्यों नहीं। पर तुम तो आओगी ही। तुम्हीं को बता दूँगा।

स्त्री : ये जा रहे हैं, अशोक !

लड़का : (जैसे पहले पता न चला हो) जा रहे हैं आप !

उठ कर पास आ जाता है।

पुरुष दो : (घड़ी देखता) सोचा नहीं था, इतनी देर रुकूँगा।(बाहर से दरवाजे की तरफ बढ़ता बड़ी लड़की से) तुम नहीं करती नौकरी ?

बड़ी लड़की : जी नहीं।

स्त्री : चाहती है करना, पर...(बड़ी लड़की से) चाहती है न ?

बड़ी लड़की : हाँ...नहीं...ऐसा है कि...।

स्त्री : डरती है।

पुरुष दो : डरती है ?

स्त्री : अपने पति से।

पुरुष दो : पति से ?

स्त्री : हाँ...उसे पसंद नहीं है।

पुरुष दो : यह लड़की ?

स्त्री : नहीं, इसका नौकरी करना।

पुरुष दो : अच्छा-अच्छा...हाँ...।

स्त्री : तो आपको ध्यान रहेगा न इसके लिए...?

पुरुष दो : इसके लिए ?

स्त्री : मेरा मतलब है उसके लिए...।

पुरुष दो : हाँ-हाँ-हाँ-हाँ-हाँ...तुम आओगी ही घर पर। दफ्तर की भी कुछ बातें करनीं हैं। वही जो यूनियन-ऊनीयन का झगड़ा है।

स्त्री : मैं तो आऊँगी ही। यह भी अगर मिल ले...?

पुरुष दो : (घड़ी देख कर) बहुत देर हो गई। (लड़के से) अच्छा, एक बात बताएँगे आप कि ये जो हड़तालें हो रही हैं सब क्षेत्रों में आजकल, इनके विषय में आप क्या सोचते हैं ?

लड़का ऐसे उचक जाता है जैसे कोई कीड़ा पतलून के अंदर चला आया हो।

लड़का : ओह ! ओह ! ओह !

जैसे बाहर से कीड़ा पकड़ने की कोशिश करने लगता है।

बड़ी लड़की : क्या हुआ ?

स्त्री : (कुछ खीज के साथ) उन्होंने क्या पूछा है ?

लड़का : (बड़ी लड़की से) हुआ कुछ नहीं...कीड़ा है एक।

बड़ी लड़की : कीड़ा ?

पुरुष दो : अपने देश में तो...।

लड़का : पकड़ा गया।

पुरुष दो : ...इतनी तरह का कीड़ा पाया जाता है कि...

लड़का : मसल दिया ।

पुरुष दो : मसल दिया ? शिव-शिव-शिव ! यह हिंसा की भावना...

स्त्री : बहुत है इसमें। कोई कीड़ा हाथ लग जाए सही।

लड़का : और कीड़ा चाहे जितनी हिंसा करता रहे ?

पुरुष दो : मूल्यों का प्रश्न है। मैं प्रायः कहा करता हूँ...बैठो तुम लोग।

स्त्री : मैं सड़क तक चल रही हूँ साथ।

पुरुष दो : इस देश में नैतिक मूल्यों के उत्थान के लिए...तुमने भाषण सुना है...वे जो आए हुए हैं आजकल, क्या नाम है उनका?

लड़का : निरोध महर्षि ?

पुरुष दो : हाँ-हाँ-हाँ...यही नाम है न ? इतना अच्छा भाषण देते हैं...जन्म-कुंडली भी बनाते हैं... वैसे आप भाषण? वाह-वाह-वाह !

अंतिम शब्दों के साथ दरवाजा लाँघ जाता है। स्त्री भी साथ ही बाहर चली जाती है।

लड़का : हाहा !

बड़ी लड़की : यह किस बात पर ?

लड़का : एक्टिंग देखा ?

बड़ी लड़की : किसका ?

लड़का : मेरा।

बड़ी लड़की : तो क्या तू...?

लड़का : उल्लू बना रहा था उसे।

बड़ी लड़की : पता नहीं, असल में कौन उल्लू बना रहा था।

लड़का : क्यों ?

ब ड़ी लड़की : उसे तो फिर भी पाँच हजार तनखाह मिल जाती है।

लड़का : चेहरा देखा है पाँच हजार तनखाहवाले का ?

पैड पर बनाया गया खाका ला कर उसे दिखाता है।

बड़ी लड़की : यह उसका चेहरा है।

लड़का : नहीं है ?

बड़ी लड़की : सिर पर क्या है यह ?

लड़का : सींग बनाए थे, काट दिए। कहते हैं...सींग नहीं होते।

बड़ी लड़की पैड उसके हाथ से ले कर देखती है। स्त्री लौट कर आती है।

स्त्री : तू एक मिनट जाएगा बाहर।

लड़का : क्यों ?

स्त्री : गाड़ी चल नहीं रही उनकी ?

लड़का : क्या हुआ ?

स्त्री : बैटरी डाउन हो गई है। धक्का लगाना पड़ेगा।

लड़का : अभी से ? अभी तो नौकरी की बात तक नहीं की उसने...।

स्त्री : जल्दी चला जा। उन्हें पहले ही देर हो गई है।

लड़का : अगर सचमुच दिला दी उसने नौकरी, तब तो पता नहीं...।

बाहर के दरवाजे से चला जाता है।

स्त्री : कुछ समझ में नहीं आता, क्या होने को है इस लड़के का...यह तेरे हाथ में क्या है?

बड़ी लड़की : मेरे हाथ में? यह तो वह है...वह जो बना रहा था।

स्त्री : क्या बना रहा था ?...देखूँ !

बड़ी लड़की : (पैड उसकी तरफ बढ़ाती) ऐसे ही...पता नहीं क्या बना रहा था ! बैठे-बैठे इसे भी बस... ?

स्त्री पल-भर खाके को ले कर देखती रहती है।

स्त्री : यह चेहरा कुछ-कुछ वैसा नहीं है ?

बड़ी लड़की : कैसा ?

स्त्री : तेरे डैडी जैसा ?

बड़ी लड़की : डैडी जैसा ? नहीं तो।

स्त्री : लगता तो है कुछ-कुछ।

बड़ी लड़की : वह तो इस आदमी का चेहरा बना रहा था...यह जो अभी गया है।

स्त्री : (त्यौरी डाल कर) यह करतूत कर रहा था ?

लड़का लौट कर आ जाता है।

लड़का : (जैसे हाथों से गर्द झाड़ता) क्या तो अपनी सूरत है और क्या गाड़ी की !

स्त्री : इधर आ।

लड़का : (पास आता) गाड़ी का इंजन तो फिर भी धक्के से चल जाता है, पर जहाँ तक (माथे की तरफ इशारा करके) इस इंजन का सवाल है...

स्त्री : (कुछ सख्त स्वर में) यह क्या बना रहा था तू ?

लड़का : तुम्हें क्या लगता है?

स्त्री : तू क्या बना रहा था ?

लड़का : एक आदिम बन-मानुस ।

स्त्री : क्या ?

लड़का : बन-मानुस।

स्त्री : नाटक मत कर। ठीक से बता।

लड़का : देख नहीं रही यह लपलपाती जीभ, ये रिसती गुफाओं जैसी आँखेँ, ये...

स्त्री : मुझे तेरी ये हरकतें बिलकुल पसंद नहीं हैं। सुन रहा है तू ?

लड़का उत्तर न दे कर पढ़ने की मेज की तरफ बढ़ जाता है और वहाँ से तस्वीरें उठा कर देखने लगता है।

सुन रहा है या नहीं ?

लड़का : सुन रहा हूँ।

स्त्री : सुन रहा है, तो कुछ कहना नहीं है तुझे ?

लड़का उसी तरह तस्वीरें देखता रहता है।

नहीं कहना है ?

लड़का : (तस्वीरें वापस मेज पर रख देता) क्या कह सकता हूँ ?

स्त्री : मत कह, नहीं कह सकता तो। पर मैं मिन्नत-खुशामत से लोगों को घर पर बुलाऊँ और तू आने पर उनका मजाक उड़ाए, उनके कार्टून बनाए... ऐसी चीजें अब मुझे बिलकुल बरदाश्त नहीं हैं। सुन लिया? बिलकुल-बिलकुल बरदाश्त नहीं हैं।

लड़का : नहीं बरदाश्त है, तो बुलाती क्यों हो ऐसे लोगों को घर पर कि जिनके आने से... ?

स्त्री : हाँ-हाँ...बता, क्या होता है जिनके आने से ?

लड़का : रहने दो। मैं इसीलिए चला जाना चाहता था पहले ही।

स्त्री : तू बात पूरी कर अपनी।

लड़का : जिनके आने से हम जितने छोटे हैं, उससे और छोटे हो जाते हैं अपनी नजर में।

स्त्री : (कुछ स्तब्ध हो कर) मतलब ?

लड़का : मतलब वही जो मैने कहा है। आज तक जिस किसी को बुलाया है तुमने, जिस वजह से बुलाया है ?

स्त्री : तू क्या समझता है, किस वजह से बुलाया है ?

लड़का : उसकी किसी 'बड़ी' चीज की वजह से। एक को कि वह इंटेलेक्चुअल बहुत बड़ा है। दूसरे को कि उसकी तनखाह पाँच हजार है। तीसरे को कि उसकी तख्ती चीफ कमिश्नर की है। जब भी बुलाया है, आदमी को नहीं-उसकी तनख्वाह को, नाम को, रुतबे को बुलाया है।

स्त्री : तू कहना क्या चाहता है इससे कि ऐसे लोगों के आने से इस घर के लोग छोटे हो जाते हैं ?

लड़का : बहुत-बहुत छोटे हो जाते हैं।

स्त्री : और मैं उन्हें इसलिए बुलाती हूँ कि...

लड़का : पता नहीं किसलिए बुलाती हो, पर बुलाती सिर्फ ऐसे ही लोगों को हो। अच्छा, तुम्हीं बताओ, किसलिए बुलाती हो ?

स्त्री : इसलिए कि किसी तरह इस घर का कुछ बन सके, कि मेरे अकेली के ऊपर बहुत बोझ है इस घर का। जिसे कोई और भी मेरे साथ देनेवाला हो सके। अगर मैं कुछ खास लोगों के साथ संबंध बना कर रखना चाहती हूँ तो अपने लिए नहीं, तुम लोगों के लिए। पर तुम लोग इससे छोटे होते हो, तो मैं छोड़ दूँगी कोशिश। हैं, इतना कह कर कि मैं अकेले दम इस घर की जिम्मेदारियाँ नहीं उठाती रह सकती और एक आदमी है जो घर का सारा पैसा डुबो कर सालों से हाथ धरे बैठा है। दूसरा अपनी कोशिश से कुछ करना तो दूर, मेरे सिर फोड़ने से भी किसी ठिकाने लगाना अपना अपमान समझता है। ऐसे में मुझसे भी नहीं निभ सकता। जब और किसी को यहाँ दर्द नहीं किसी चीज का, तो अकेली मैं ही क्यों अपने को चीथती रहूँ रात-दिन ? मैं भी क्यों न सुखर्रु हो कर बैठ रहूँ अपनी जगह ? उससे तो तुममें से कोई छोटा नहीं होगा।

लड़का चुप रह कर मेज की दराज खोलने-बंद करने लगता है।

चुप क्यों है अब ? बता न, अपने बड़प्पन से जिंदगी काटने का क्या तरीका सोच रखा है तूने ?

लड़का : बात को रहने दो, ममा ! नहीं चाहता, मेरे मुँह से कुछ ऐसा निकल जाए जिससे तुम...

स्त्री : जिससे मैं क्या ? कह, जो भी कहना है तुझे।

लड़का : (कुरसी पर बैठता) कुछ नहीं कहना है मुझे।

उड़ते मन से एक मैगजीन और कैंची दराज से निकाल कर उसे जोर बंद कर देता है।

स्त्री : कुछ नई तैना है तुझे। बैथ दा तुलछी पल औल तछवीलें तात । तितनी तछवीलें ताती ऐं अब तत लाजे मुन्ने ने ? अगर कुछ नहीं कहना था तुझे तो पहले ही क्यों नहीं अपनी जबान....?

बड़ी लड़की : (पास आ कर उसकी बाँह थामती) रुक जाओ ममा, मैं बात करूँगी इससे (लड़के से) देख अशोक... ।

लड़का : तेरा इस वक्त बात करना जरूरी है क्या ?

बड़ी लड़की : मैं तुझसे सिर्फ इतना पूछना चाहती हूँ कि...?

लड़का : पर क्यों पूछना चाहती हैं ? मैं इस वक्त किसी की किसी भी बात का जवाब नहीं देना चाहता।

बड़ी लड़की : (कुछ रुक कर) यह तू भी जानता है कि ममा ने ही आज तक...

लड़का : तू फिर भी कह रही है बात !

स्त्री : क्यों कर रही है बात तू इससे ? कोई जरूरी नहीं किसी से बात करने की। आज वक्त आ गया है जब खुद ही मुझे अपने लिए कोई-न-कोई फैसला....

लड़का : जरूर कर लेना चाहिए।

बड़ी लड़की : अशोक!

लड़का : मैं कहना नहीं चाहता था, लेकिन..

स्त्री : तो कह क्यों नहीं रहा है ?

लड़का : कहना पड़ रहा है क्योंकि...जब नहीं निभता इनसे यह सब, तो क्यों निभाए जाती हैं इसे ?

स्त्री : मैं निभाए जाती हूँ क्योंकि...

लड़का : कोई और निभानेवाला नहीं है। यह बात बहुत बार कही जा चुकी है इस घर में।

बड़ी लड़की : तो तू सोचता है कि मम्मा जो कुछ भी करती हैं यहाँ...?

लड़का : मैं पूछता हूँ क्यों करती हैं ? किसके लिए करती हैं...?

बड़ी लड़की : मेरे लिए करती थीं... ।

लड़का : तू घर छोड़ कर चली गई।

बड़ी लड़की : किन्नी के लिए करती हैं... ।

लड़का : वह दिन-ब-दिन पहले से बदतमीज होती जा रही है।

बड़ी लड़की : डैडी के लिए करती हैं...।

लड़का : और मैं ही शायद इस घर में सबसे ज्यादा नाकारा हूँ।...पर क्यों हूँ?

बड़ी लड़की : यह...यह मैं कैसे बता सकती हूँ ?

लड़का : कम-से-कम अपनी बात तो बता ही सकती है। तू यह घर छोड़ कर क्यों चली गई थी ?

बड़ी लड़की : (अप्रतिभ हो कर) मैं चली गई थी...चली गई थी... क्योंकि...

लड़का : क्योंकि तू मनोज से प्रेम करती थी।...खुद तुझे ही यह गुट्टी कमजोर नहीं लगती ?

बड़ी लड़की : (रुँआसी पड़ कर) तो तू मुझसे... मुझसे भी कह रहा है कि....?

शिथिल होती एक मोढ़े पर बैठ जाती है।

लड़का : मैंने कहा था कि मुझसे...मत कर बात।

स्त्री आहिस्ता से दो कदम चल कर लड़के के पास आ जाती है।

स्त्री : (अत्यधिक गंभीर) तुझे पता है न, तूने क्या बात कही है ?

लड़का बिना कहे मैगजीन खोल कर उसमें से एक तस्वीर काटने लगता है। लड़का उसी तरह चुपचाप तस्वीर काटता रहता है।

पता है न ?

लड़का उसी तरह चुपचाप तसवीर काटता रहता है।

तो ठीक है। आज से मैं सिर्फ अपनी जिंदगी को देखूँगी - तुम लोग अपनी-अपनी जिंदगी को खुद देख लेना।

बड़ी लड़की एक हाथ से दूसरे हाथ के नाखूनों को मसलने लगती है।

मेरे पास अब बहुत साल नहीं हैं जीने को। पर जितने हैं, उन्हें मैं इसी तरह और निभते हुए नहीं काटूँगी। मेरे करने से जो कुछ हो सकता था इस घर का, हो चुका आज तक। मेरे तरफ से यह अंत है उसका निश्चित अंत !

एक खँडहर की आत्मा को व्यक्त करता हलका संगीत। लड़का अपनी कटी तस्वीर पल-भर हाथ में ले कर देखता है , फिर चक-चक उसे बड़े-बड़े टुकड़ों में कतरने लगता है जो नीचे फर्श पर बिखरते जाते हैं। प्रकाश आकृतियों पर धुँधला कर कमरे के अलग-अलग कोनों में सिमटता विलीन होने लगता है। मंच पर पूरा अँधेरा होने के साथ संगीत रुक जाता है। पर कैंची की चक-चक फिर भी कुछ क्षण सुनाई देती रहती है।

[अंतराल विकल्प]

दो अलग-अलग प्रकाश-वृत्तों में लड़का और बड़ी लड़की। लड़का सोफे पर औंधा लेट कर टाँगें हिलाता सामने 'पेशेंस' के पत्ते फैलाए। बड़ी लड़की पढ़ने की मेज पर प्लेट में रखे स्लायसों पर मक्खन लगाती। पूरा प्रकाश होने पर कमरे में वह बिखराव नजर आता है जो एक दिन ठीक से देख-रेख न होने से आ सकता है। यहाँ-वहाँ चाय की खाली प्यालियाँ , उतरे हुए कपड़े और ऐसी ही अस्त-व्यस्त चीजें।

बड़ी लड़की : यह डिब्बा खोल देगा तू ?

लड़का : (पत्तों में व्यस्त) मुझसे नहीं खुलेगा।

बड़ी लड़की : नहीं खुलेगा तो लाया किसलिए था ?

लड़का : तूने कहा था जो-जो उधार मिल सके, ले आ बनिए से। मैं उधार में एक फोन भी कर आया।

बड़ी लड़की : कहाँ ?

लड़का : जुनेजा अंकल के यहाँ।

बड़ी लड़की : डैडी से बात हुई ?

लड़का : नहीं।

बड़ी लड़की : तो ?

लड़का : जुनेजा अंकल से हुई।

बड़ी लड़की : कुछ कहा उन्होंने ?

लड़का : बात हुई, इसका यह मतलब नहीं कि...

बड़ी लड़की : मतलब डैडी के घर आने के बारे में।

लड़का : कहा - नहीं आएँगे।

बड़ी लड़की : नहीं आएँगे ?

लड़का : नहीं।

बड़ी लड़की : तो पहले क्यों नहीं बताया तूने ? मैं ऐसे ही ये सैंडविच- ऐंडविच...?

लड़का : मैंने सोचा, चीज सैंडविच तुझे खुद पसंद है, इसलिए कह रही है।

बड़ी लड़की : मैंने कहा नहीं था कि ममा के दफ्तर से लौटने तक डैडी भी आ जाएँ शायद ? चीज सैंडविच दोनों को पसंद हैं ।

लड़का : जुनेजा अंकल को भी पसंद हैं। वे आएँगे, उन्हें खिला देना।

बड़ी लड़की : कहा है आएँगे ?

लड़का : ममा से बात करना चाहते हैं। छह-साढ़े छह तक आएँ शायद।

बड़ी लड़की : ममा का मूड वैसे ही ऑफ है, ऊपर से वे आ कर बात करेंगे। तो...चेहरा देखा था ममा का सुबह दफ्तर जाते वक्त ?

लड़का : मैं पड़ा ही नहीं सामने।

बड़ी लड़की : रात से ही चुप थीं, सुबह तो...। इतनी चुप पहले कभी नहीं देखा।

लड़का : बात हुई थी तेरी तेरी कुछ ?

बड़ी लड़की : यही चाय-वाय के बारे में।

लड़का : साड़ी तो बहुत बढ़िया बाँध कर गई हैं - जैसे किसी ब्याह का न्यौता हो।

बड़ी लड़की : देखा था तूने ?

लड़का : झलक पड़ी थी जब बाहर निकल रही थीं ।

बड़ी लड़की : मैंने सोचा दफ्तर से कहीं और जाएँगी वह। कहा, साढ़े पाँच तक आ जाएँगी - रोज की तरह।

लड़का : तूने पूछा था ?

बड़ी लड़की : इसलिए पूछा था कि मैं भी उसी हिसाब से अपना प्रोग्राम...पर सच कुछ पता नहीं चला।

लड़का : किस चीज का ?

बड़ी लड़की : कि मन में क्या सोच रही हैं। कहा तो कि साढ़े पाँच तक लौट आएँगी, पर चेहरे पर लगता था जैसे...

लड़का : जैसे ?

बड़ी लड़का : जैसे सचमुच मन में कोई फैसला कर लिया हो और...

लड़का : अच्छा नहीं है यह ?

बड़ी लड़की : अच्छा कहता है इसे ?

लड़का : इसलिए कि हो सकता है, कुछ-न-कुछ हो इससे।

बड़ी लड़की : क्या हो ?

लड़का : कुछ भी। जो चीज बरसों से एक जगह रुकी है, वह रुकी ही नहीं चाहिए।

बड़ी लड़की : तो तू सचमुच चाहता है कि...

लड़का : (अपनी बाजी का अंतिम पत्ता चलता) सचमुच चाहता हूँ कि बात किसी भी एक नतीजे तक पहुँच जाए। तू नहीं चाहती ?

पत्ते समेटता उठ खड़ा होता है।

बड़ी लड़की : मुझे तेरी बातों से डर लगता है आजकल।

लड़का : (उसकी तरफ आता) पर गलत तो नहीं लगतीं मेरी बातें?

बड़ी लड़की : पता नहीं...सही भी नहीं लगतीं हालाँकि...। (डब्बा और टिन-कटर हाथ में ले कर) यह डब्बा.... ?

लड़का : इस टिन-कटर से नहीं खुलेगा। इसकी नोक इतनी मर चुकी है कि...

बड़ी लड़की : तो क्या करें फिर ?

लड़का : कोई और चीज नहीं है ?

बड़ी लड़की : मैं कैसे बता सकती हूँ ? मैं तो इतनी बेगानी महसूस करती हूँ अब इस घर में कि...

लड़का : पहले नहीं करती थी ?

बड़ी लड़की : पहले ? पहले तो....।

लड़का : महसूस करना ही महसूस नहीं होता था। और कुछ-कुछ महसूस होना शुरू हुआ, तो पहला मौका मिलते ही घर से चली गई ।

बड़ी लड़की : (तीखी पड़ कर ) तू फिर कलवाली बात कह रहा है ?

लड़का : बुरा क्यों मानती है ? मैं खुद अपने को बेगाना महसूस करता हूँ यहाँ...और महसूस करना शुरू किया है मैंने तेरे जाने के दिन से ।

बड़ी लड़की : मेरे जाने के दिन से ?

लड़का : महसूस शायद पहले भी करता था, पर सोचना तभी से शुरू किया है।

बड़ी लड़की : और सोच कर जाना है कि...

लड़का : एक खास चीज है इस घर के अंदर जो...

बड़ी लड़की : (अस्थिर हो कर) तू भी यही कहता है ?

लड़का : और कौन कहता है ?

बड़ी लड़की : कोई भी...पर कौन-सी चीज है वह ?

लड़का : (स्थिर दृष्टि से उसे देखता) तू नहीं जानती ?

बड़ी लड़की : (आँखें बचाती) मैं ? मैं कैसे ?

लड़का : तुझसे तो मैंने जाना है उसे, और तू कहती है, तू कैसे ?

बड़ी लड़की : तूने मुझसे जाना है उसे - मैं नहीं समझी ?

लड़का : ठीक है, ठीक है। उस चीज को जान कर भी न जानना ही बेहतर है शायद। पर दूसरे को धोखा दे भी ले आदमी, अपने आपको कैसे दे ?

बड़ी लड़की इस तरह हो जाती है कि उसका हाथ ठीक से स्लाइस पर मक्खन नहीं लगा पाता ।

बड़ी लड़की : तू तो बस हमेशा ही ..... देख, ऐसा है कि.... मैं कह रही थी तुझसे कि... भाई, यह डब्बा खुला कर ला पहले कहीं से। या अगर नही खुलेगा, तो...

लड़का : हाथ काँप क्यों रहा है तेरा ? (डब्बा लेता ) अभी खुल जाता है यह। तेज औजार चाहिए... एक मिनट नहीं लगेगा।

बाहर के दरवाजे से चला जाता है। बड़ी लड़की काम जारी रखने की कोशिश करती है , पर हाथ नहीं चलते, तो छोड़ देती है।

बड़ी लड़की : (माथे पर हाथ फेरती , शिथिल स्वर में) कैसे कहता है यह? ...मैं सचमुच जानती हूँ क्या ?

सिर को झटक लेती है-जैसे अंदर एक बवंडर उठ रहा हो। कोशिश से अपने को सहेज कर उठ पड़ती है और अंदर के दरवाजे के पास जा कर आवाज देती है।

किन्नी !

जवाब नहीं मिलाता , तो एक बार अंदर झाँक कर लौट आती है।

कहाँ चली जाती है ? सुबह स्कूल जाने से पहले रोना कि जब तक चीजें नहीं आएँगी, नहीं जाएगी। और अब दिन-भर पता नहीं, कब घर में है, कब बाहर है।

लड़का बाहर के दरवाजे से छोटी लड़की को अंदर ढकेलता है।

लड़का : चल अंदर।

छोटी लड़की अपने को बचा कर बाहर जाती भाग जाना चाहती है , पर वह उसे बाँह से पकड़ लेता है।

कहा है, अंदर चल।

बड़ी लड़की : (ताव से) यह क्या हो रहा है ?

छोटी लड़की : देख लो बिन्नी दी, यह मुझे...

झटके से हाथ छुड़ाने की कोशिश करती है , पर लड़का उसे सख्ती से खींच कर अंदर ले आता है।

लड़का : इधर आना, पता चलता है तुझे....

बड़ी लड़की पास आ कर छोटी लड़की की बाँह छुड़ाती है।

लड़का : छोड़ दे इसे। किया क्या है इसने जो... ?

लड़का : (डिब्बा उसे देता) यह डिब्बा ले। खुल गया है (छोटी लड़की पर तमाचा उठा कर) इसे तो मैं अभी... ।

बड़ी लड़की : (उसका हाथ रोकती) सिर फिर गया तेरा ?

लड़का : फिर नहीं, फिर जाएगा।....बाई जोव !

बड़ी लड़की : क्या बात है ?

लड़का : इससे पूछ, क्या बात हुई है।.... माई गॉड !

बड़ी लड़की : क्या बात हुई है, किन्नी ? क्या कर रही थी तू ?

छोटी लड़की जवाब न दे कर सुबकने लगती है ।

बता न, क्या कर रही थी ?

छोटी लड़की चुपचाप सुबकती रहती है।

लड़का : कर नहीं, कह रही थी किसी से कुछ।

बड़ी लड़की : क्या ?

लड़का : इसी से पूछ ।

बड़ी लड़की : (छोटी लड़की से) बोलती क्यों नहीं ? जबान सिल गई है तेरी ?

लड़का : सिल नहीं, थक गई है। बताने में कि औरतें और मर्द किस तरह से आपस में...

बड़ी लड़की : क्या ? ? ?

लड़का : पूछ ले इससे। अभी बता देगी तुझे सब...जो सुरेखा को बता रही थी बाहर।

छोटी लड़की : (सुबकने के बीच) वह बता रही थी मुझे कि मैं उसे बता रही थी ?

लड़का : तू बता रही थी।

छोटी लड़की : वह बता रही थी।

लड़का : तू बता रही थी। अचानक मुझ पर नजर पड़ी कि मैं पीछे खड़ा सुन रहा हूँ तो...

छोटी लड़की : सुरेखा भागी थी कि मैं भागी थी ?

लड़का : तू भागी थी।

छोटी लड़की : सुरेखा भागी थी।

लड़का : तू भागी थी और मैंने पकड़ लिया दौड़ कर, तो लगी चिल्ला कर आस-पास को सुनाने कि यह ममा से मेरी शिकायतें करता है और ममा घर पर नहीं हैं। इसलिए मैं इसे पीट रहा हूँ ।

बड़ी लड़की : (छोटी लड़की से) यह सच कहा रहा है।

छोटी लड़की : बात सुरेखा से की थी। वह बता रही थी कि कैसे उसके मम्मी-डैडी...

बड़ी लड़की : (सख्त पड़ कर) और तुझे शौक है जानने का कि कैसे उसके मम्मी-डैडी आपस में...?

लड़का : आपस में नहीं। यही तो बात थी खास ।

बड़ी लड़की : चुप रह, अशोक !

छोटी लड़की : इससे कभी कुछ नहीं कहता कोई। रोज किसी-किसी बात पर मुझे पीट देता है।

बड़ी लड़की : क्यों पीट देता है ?

छोटी लड़की : क्योंकि मैं सब चीजें इसे नहीं ले जाने देती उसे देने।

बड़ी लड़की : किसे देने ?

बड़ी लड़की : वह जो है इसकी...कभी मेरी बर्थडे प्रजेंट की चूड़ियाँ दे आता है उसे, कभी-कभी मेरे प्राइज का फाउंटेन पेन। मैं अगर ममा से कह देती हूँ, अकेले में मेरा गला दबाने लगता है।

बड़ी लड़की : (लड़के से) किसकी बात कर रही है यह ?

लड़का : ऐसे ही बक रही है। झूठ-मूठ।

छोटी लड़की : झूठ-मूठ? मेरी फाउंटेन पेन वर्णा के पास नहीं है ?

बड़ी लड़की : वर्णा कौन ?

छोटी लड़की : वही उद्योग सेंटरवाली, जिसके पीछे जूतियाँ चटकाता फिरता है।

लड़का : (फिर से उसे पकड़ने को हो कर) तू ठहर जा, आज मैं तेरी जान निकाल कर रहूँगा।

छोटी लड़की उससे बचने के लिए इधर-उधर भागती है। लड़का उसका पीछा करता है।

बड़ी लड़की : अशोक !

लड़का : आज मैं नहीं छोड़ने का इसे। इसकी जबान जिस तरह से खुल गई है उससे...

छोटी लड़की रास्ता पा कर बाहर के दरवाजे से निकल जाती है।

छोटी लड़की : (जाती हुई) वर्णा उद्योग सेंटरवाली लड़की... वर्णा उद्योग सेंटरवाली लड़की ! वर्णा उद्योग सेंटरवाली लड़की !!

लड़का उसके पीछे बाहर जाने ही लगता है कि अचानक स्त्री को अंदर आते देख कर ठिठक जाता है। स्त्री अंदर आती है जैसे वहाँ की किसी चीज से उसे मतलब ही नहीं है। वातावरण के प्रति उदासीनता के अतिरिक्त चेहरे पर संकल्प और असमंजस का मिला-जुला भाव। उन लोगों की ओर न देख कर वह हाथ का सामान परे की एक कुरसी पर रखती है। लड़का अपने को एक भोंड़ी स्थिति में पाता है , इस चीज उस चीज को छू कर देखने लगता है। बड़ी लड़की प्लेट, स्लाइसें और चीज का डब्बा लिए अहाते के दरवाजे की तरफ चल देती है।

पुस्तक पढें >>