ऋचा / भाग-3 / पुष्पा सक्सेना

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"अरे, इसमें परेशान होने की जरूरत नहीं है। हम यारों के यार हैं। जब तक तुम्हें, तुम्हारे घर में जगह नहीं दी जाती, तुम दोनों हमारे आउट-हाउस में रह सकते हो। वैसे भी वो खाली पड़ा है।"

"लो, अब तो कोई समस्या ही नहीं रह गई। थैंक्स, रोहित।"

"कमाल करती हो। अरे, सबसे बड़ी समस्या, इनकी शादी का क्या होगा?"

"अब ऋचा जी, हमारी भावी जुझारू पत्रकार, इनका हुक्म तो मानना ही होगा, पर एक रात का वक्त तो इस गरीब को देना ही होगा।"

रोहित की बातों पर सब हॅंस पड़े। लगा, अचानक कुहासा छंट गया। तय किया गया, कल दोपहर ऋचा किसी तरह स्मिता को अपने साथ रोहित के घर ले आए। नीरज भी अपने एक-दो दोस्तों के साथ ठीक समय पर पहुँच जाएगा। पण्डित और विवाह की तैयारी रोहित ने अपने जिम्मे ले ली। अक्सर ऐसे कामों में पिता द्वारा अर्जित की गई सम्पत्ति का रोहित इसी तरह सदुपयोग करता था। खुशी-खुशी सबको विदा कर, रोहित पण्डित जी को निमन्त्रण देने निकल गया।

घर पहुँचने पर आशा के विपरीत माँ को प्रसन्न देख, ऋचा ताज्जुब में पड़ गई। आज के अपने कारनामे के लिए वह डाँट खाने को तैयार आई थी, पर घर का तो माहौल ही दूसरा था। प्यार से माँ ने खाना खाने को बुलाया था -

"सारा दिन हो गया, खाना खाने की सुध नहीं आई। आ, तेरे मन की सब्जी बनाई है।"

"माँ, आज सूरज किधर से निकला था?"

"क्यों, क्या सूरज देवता रोज नया रास्ता चुनते हैं?" माँ ऋचा का परिहास नहीं समझ सकी।

"रोज की बात तो नहीं जानती, पर आज सूरज देवता ने कृपा की है।"

"अरी, हम तेरे दुश्मन थोड़ी हैं। जो कहते हैं, तेरे भले के लिए ही कहते हैं। आज तेरी गंगा मौसी आई थीं।"

"क्या कह रही थीं गंगा मौसी?" अचानक ऋचा के मुँह का स्वाद बिगड़ गया।

"अरें, गंगा हमारी सच्ची हमदर्द है। तेरे लिए अपने देवर का रिश्ता लाई है। बैंक में बाबू है...।" खुुशी से माँ उमगी पड़ रही थी।

"माँ, हज़ार बार कह चुकी हूँ, अभी मुझे शादी नहीं करनी है- नहीं करनी है। गंगा मौसी का देवर बाबू हो या महाराजा, हमें मतलब नहीं।"

थाली छोड़कर ऋचा उठ खड़ी हुई।

पस वाले कमरे से पापा भी आ गए। बोले -

"क्या बात है, ऋचा बेटी?"

"कोई नई बात नहीं है, पापा। माँ को हमारा घर में रहना नहीं सुहाता।"

"जरा देखो तो लड़़की की बातें? अरे, हम क्या इसके दुश्मन हैं? माँ हूँ इसकी ......" माँ ने आँचल आँखों पर रख लिया।

"ऋचा, तू तो समझदार है, क्यों माँ का दिल दुखाती है। मैंने कह दिया है न कि बिना तेरी मर्जी के तेरी शादी नहीं करूँगा। चलो, माँ से माफी माँग लो।" हमेशा की तरह पापा ने ऋचा को शान्त कर दिया।

सुबह पाँच बजे का अलार्म लगाकर ऋचा बिस्तर पर चली जरूर गई, पर आँखों में नींद का नाम नहीं था। स्मिता के मम्मी-पापा क्या उसका नीरज के साथ विवाह आसानी से स्वीकार कर लेंगे? धनी माँ-बाप की इकलौती बेटी स्मिता के यहाँ किसी चीज की कमी नहीं थी, कमी थी तो बस समय की। पिता अपने कारोबार को बढ़ाने की धुन में यह भूल ही गए कि घर में एक बेटी भी है, जो माता-पिता के प्यार को तरसती है। माँ ने अपने को किटी-पार्टीज और सोशल फंक्शन्स में बिजी कर लिया। बेटी को जन्म जरूर दिया, पर उसकी परवरिश गवर्नेस ने की। नैनी के कठोर अनुशासन ने स्मिता को भीरू बना दिया। वह अपनी बात कहने से भी डरती। ऊॅंची सोसायटी का कायदा-कानून सीखते-सीखते उसका आत्मविश्वास ही डगमगा गया।

कॅालेज में सहमी-डरी-सी स्मिता ने ऋचा का ध्यान आकृष्ट किया था। उसकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा, ऋचा ने उसके खोए आत्मविश्वास और कुण्ठा को काफ़ी हद तक दूर किया था। धीरे-धीरे स्मिता, ऋचा के निकट आती गई। उसका अकेलापन ऋचा को पाकर भर-सा गया। अक्सर उनकी दोस्ती को लेकर लोग मज़ाक करते। ऋचा जैसी दबंग लड़की की सहमी-सी स्मिता से मित्रता, शायद इसीलिए सम्भव थी कि हमेशा विपरीत वस्तुएँ एक-दूसरे के प्रति आकृष्ट होती हैं।

वैसी स्मिता का नीरज से प्यार होना, ऋचा को भी चैंका गया था। पहल नीरज की ओर से ही हुई थी। छुईमुई-सी स्मिता से नीरज का परिचय कॅालेज की लाइब्रेरी में हुआ था। उन दिनों ऋचा डिबेट के लिए दूसरे शहर गई हुई थी। एक किताब ढॅूँढ़ती स्मिता परेशान हो उठी थी। अचानक नीरज की आवाज ने चैंका दिया था- "मे आई हेल्प यू?"

"जी .....ई .....ई .... वो किताब ......" स्मिता हड़बड़ा आई थी। उसकी घबराहट देखकर नीरज हॅंस पड़ा।

"डरिए नहीं, मैं कोई हौआ नहीं, इसी कॅालेज का स्टूडेंट हूँ। बताइए, कौन-सी किताब चाहिए?"

अपने को सहेज, स्मिता ने किताब का नाम बताया था। कुछ ही देर में किताब स्मिता को थकाकर, नीरज ने अपना परिचय दे डाला। पूरे एक हफ्ते दोनों की मुलाकातंे लाइब्र्रेरी में होती रहीं। नीरज के गम्भीर स्वभाव में एक ठहराव था, जो स्मिता को आश्वस्त कर जाता। नीरज के साथ पंख समेटे, स्मिता के पंख खुलने लगे थे। उसने सपने देखने शुरू कर दिए .....। नीरज ने अपने बारे में कहीं कुछ नहीं छिपाया। मेधावी नीरज को पूरा विश्वास था, एम्.काम्. में टाॅप करने के बाद उसके लिए अच्छी नौकरी पाना कठिन नहीं होगा। स्मिता के साथ विवाह वह नौकरी के बाद ही करना चाहता था, पर आज परिस्थितियों ने ऐसा मोड़ ले लिया है कि नीरज भी अपने घरवालों से सहयोग की अपेक्षा नहीं रख सकता। दो ब्याह-योग्य बहनों के पहले नीरज का विवाह स्वीकार नहीं होगा।

देर रात तक जागने के बाद अलार्म से ही ऋचा की नींद टूटी थी। काम-निबटाती ऋचा को अचानक विशाल याद हो आया। नीरज और स्मिता के विवाह के समय विशाल की उपस्थिति अच्छी रहेगी। पूरा वकील न सही, पर एकाध महीने में तो वह वकालत की परीक्षा पास कर ही लेगा। कोई कानूनी अड़चन आने पर विशाल की मदद मिल सकेगी। स्मिता को साथ लेकर पहले विशाल के पास जाने का निर्णय लेकर ऋचा तैयार होने लगी। रात की घटना की वजह से माँ अभी भी नाराज़ थी, कहीं किसी वजह से स्मिता को घर में न रोक लिया जाए।

स्मिता को घर से बाहर आता देख, ऋचा ने आश्वस्ति की साँस ली थी। स्मिता के चेहरे पर घबराहट देख, ऋचा ने तसल्ली दी थी-

"घबरा नहीं, सब ठीक होगा।"

"हमें डर लग रहा है, ऋचा......।"

"यह डर उस वक्त कहाँ था, जब नीरज के साथ प्रेम की पींगें बढ़ा रही थी?" ऋचा ने चिढ़ाय।

"न जाने क्या होगा, ऋचा?" स्मिता डरी हुई थी।

"अरे, अब हम आ गए हैं, डर की कोई बात नहीं है। बस थोड़ी देर बाद तू श्रीमती नीरज शर्मा बन जाएगी।" ऋचा ने हॅंसी में स्मिता का डर दूर करना चाहा।

"डरूँ कैसे नहीं। जानती है, सुबह-ब्रेकफास्ट पर वह प्रशान्त आ गया था।"

"सच! ल्गता है, बेचारा तेरे प्यार में दीवाना हो गया है। यह तो बता, तूने उसके लिए कौन-सी स्पेशल डिश बनाई थी। भई उसे इम्प्रेस तो करना ही था।" ऋचा को उस गम्भीर समय मंे भी मज़ाक सूझ रहा था।

"इस वक्त तेरा मज़ाक इन्ज्वाॅय करने के मूड में बिल्कुल नहीं हूँ, ऋचा। जानती है, मेरी अॅंगूठी का नाप ले गया है। मम्मी से शाम को चार बजे ज्वेलर के यहाँ ले जाने की इजाजत भी ले ली है।"

"ठीक है, उसकी दी हुई हीरे की अॅंगूठी पहनकर अपनी माँग का सिन्दूर दिखा देना। उसकी ओर से एक कीमती तोहफ़ा स्वीकार करने में कौन-सी बड़ी कठिनाई है। डाॅलर कमाने वाले के लिए एक अॅंगूठी कौन बड़ी चीज है।"

"ऋचा, अब बस कर, मेरी जान निकली जा रही है और तू है कि मज़ाक पर मज़ाक किए जा रही है। वक्त की नज़ाकत भी तो कोई चीज होती है।" स्मिता की आँखें भर आई।

"अच्छा, चल पहले उधर जाना है।" ऋचा ने उसका हाथ खींचा।

"अब किधर जा रही है एऋचा?" स्मिता ने पूछा।

"विशाल को साथ ले चलना है। तू यहीं रूक, मैं विशाल को लेकर आती हूँ।" स्मिता को सवाल पूछने का समय न दे, ऋचा विशाल डिपार्टमेंट की ओर बढ़ गई थी।

ऋचा को आया देख, विशाल का चेहरा खिल गया -

"अरे ऋचा, हमारा वादा तो शाम को कम्पनी बाग में मिलने का था। क्या शाम का इन्तज़ार कर पाना मुश्किल था?" विशाल हॅंस रहा था।

"अभी पूरी बात बताने का वक्त नहीं है, जल्दी चलो, ज़रूरी काम है।"

"वाह! हम पर इस तरह हक जमाने का आपका अन्दाज़ अच्छा लगा। कहिए, कहाँ चलना है? बन्दा तो आपके हुक्म का गुलाम है।"

आॅटो से तीनों रोहित के घर पहॅुचे। रोहित के कमरे में ही मण्डप बनाया गया था। रोहित और नीरज के चार-पाँच घनिष्ठ मित्र पहुँच चुके थे, पर नीरज अभी नहीं पहॅुंचा था। नीरज को न देख, स्मिता के चेहरे का रंग उड़-सा गया।

"कहीं नीरज ने अपना इरादा तो नहीं बदल दिया?" स्मिता शंकित थी।

"प्यार पर विश्वास नहीं था तो इतना बड़ा कदम क्यों उठाया, स्मिता?" ऋचा भी चिन्तित थी।

तभी नीरज आता दिखा। सबके चेहरे खिल गए। दोस्तों ने नीरज की पीठ ठोंक, बधाई दी। स्मिता ने पैकेट से एक लाल साड़ी निकालकर ऋचा की ओर बढ़ाते हुए कहा -

"आज इसी साड़ी से काम चलाना होगा, स्मिता। अगर तेरे घर से तेरी शादी होती तो बेशकीमती साड़ी पहनती।"

"प्यार से ज्यादा कीमती कोई दूसरी चीज नहीं होती, ऋचा। मेरे ख्याल में तो आज स्मिता और नीरज दुनिया के सबसे ज्यादा धनी इन्सान हैं।" विशाल ने ऋचा पर दृष्टि डाल, अपनी बात कही थी।

नीरज को रोहित ने अपना सिल्क का नया कुर्ता-पाजामा पहनाया। दोस्तों में अजीब उत्साह था। दोनों के साहस से वे अभिभूत थे। रोहित ने पण्डित जी से विवाह-संस्कार शुरू करने को कहा। तभी विशाल ने एक अजीब सवाल कर डाला-

"नीरज, एक सच बताना। कहीं तुम्हारे मन में स्मिता की सम्पत्ति का लोभ तो नहीं है? अगर स्मिता के मम्मी-पापा ने तुम्हें स्वीकार नहीं किया तो तुम्हें कुछ न मिलने का दुःख तो नहीं होगा?"

"स्मिता को पाकर मुझे सबकुछ मिल जाएगा। स्मिता की सम्पत्ति से मेरा कोई सरोकार नहीं। स्मिता के माता-पिता का दिया हुआ मुझे कुछ भी स्वीकार नहीं होगा, क्योंकि मेरा स्वाभिमान भीख-ग्रहण नहीं कर सकता।"

नीरज के जवाब पर दोस्तों ने तालियाँ बजा डालीं। नीरज के दृढ़ चेहरे पर मुग्ध दृष्टि डाल, स्मिता ने आँखें झुका लीं। पण्डित जी ने मन्त्रोच्चार शुरू कर दिए। रोहित ने ही कन्यादान का फ़र्र्ज़ पूरा किया। सोल्लास विवाह सम्पन्न हो गया।

रोहित ने सबके लिए लंच का आयोजन कर रखा था। विवाह के बाद ऋचा ने लड्डू खिलाकर वर-वधू का मुँह मीठा कराया। हल्के संगीत ने माहौल खुशनुमा कर दिया। दोस्तों के परिहास ने नीरज का मन हल्का जरूर कर दिया, पर आगे क्या होगा की चिन्ता सिर पर सवार थी। स्मिता का चेहरा लाज से लाल हो रहा था। इतना बड़ा कदम उठाना स्वप्नवत् था, पर नीरज का नाम सुनते ही मम्मी के चेहरे पर घृणा के जो भाव अंकित थे, उसके बाद नीरज के साथ विवाह की बात सोचना भी असम्भव था। मॅंुह बिचकाकर मम्मी ने कहा था-

"तू क्या सोचती है, वह तुझे प्यार करता है? देख स्मिता, मैं इस क्लास को अच्छी तरह जानती हूँ। जल्दी-से-जल्दी अमीर बन जाने के लिए किसी अमीर लड़की को फंसा लेना सबसे आसान तरीका है। वह तुझसे नहीं, तेरे पैसे से प्यार करता है।"

"नीरज ऐसा लड़का नहीं है, मम्मी। वह हमें सचमुच प्यार करता है।"

डरते-डरते स्मिता इतना ही कह सकी थी।

"बेवकू।फ़ लड़की, तुझमें ऐसा क्या है जिसकी वजह से कोई तुझे प्यार करे? मेरी तो समझ में नहीं आता, लाख कोशिशों के बावजूद तेरी पर्सनैलिटी डेवलप क्यों नहीं हुई? कान खोलकर सुन ले, नीरज का नाम भी लिया तो मुझसे बुरा कोई नही होगा। वह कंगला मेरा दामाद बनने का सपना इसीलिए देख सका, क्योंकि तू मूर्ख है।"

उमड़ते आँसुओं के साथ स्मिता कमरे के पलंग पर ढह-सी गई थी। नीरज हमेशा कहता, स्मिता दूसरी लड़कियों से बिल्कुल अलग थी। उसका निष्पाप चेहरा, उसका भोलापन नीरज को कितना प्रिय है।

दूसरे दिन ही अमेरिका से प्रशान्त आ गया था। प्रशान्त की ख़ातिर में मम्मी ने कोई कसर नहीं उठा रखी। अकेले में स्मिता को अच्छी तरह चेतावनी दे डाली, अगर उसने जरा भी गड़बड़ की तो पापा-मम्मी उसे नहीं बख्शेंगे। यह उनके सम्मान का प्रश्न था। स्मिता की जरा-सी ग़लती से उनकी नाक कट जाएगी। प्रशान्त की हर बात का जवाब स्मिता हाँ-ना में देती रही, फिर भी स्मिता जैसी बेवकूफ लड़की प्रशान्त को पसन्द आ गई। प्रशान्त की 'हाँ' पर मम्मी फूली न समाई। पहली बार स्मिता को सीने से चिपटाकर प्यार किया। स्मिता के उदास चेहरे पर उनकी नजर ही कहाँ पड़ी थी! स्मिता ने पूरी रात जागकर काटी थी। नीरज के बिना वह जी नहीं सकेगी। सुबह तक वह निर्णय ले चुकी थी। मम्मी-पापा अगले सप्ताह उसके विवाह की तारीख तय कर, शादी की तैयारियों की सोच रहे थे, और आज ......... स्मिता की शादी भी हो गई। अचानक स्मिता काॅप उठी। मम्मी-पापा का रौद्र-रूप उसे डरा गया।

अब सबसे बड़ी समस्या स्मिता और नीरज के घरवालों को सूचना देने की थी। विशाल ने पहले स्मिता के घरवालों से आशीर्वाद लेने जाने की सलाह दी। स्मिता के पाॅव नहीं उठ रहे थे, पर नीरज ने कन्धे पर हाथ रखकर तसल्ली दी थी। रोहित ने साहस दिया -

"अगर तुम्हें स्वीकार नहीं किया जाए तो दुःखी मत होना। हम सब तुम्हारे साथ हैं।"

जैसी उम्मीद थी, स्मिता के साथ नीरज को देख, स्मिता की मम्मी की आँखों से चिनगारियाँ बरसने लगीं। नीरज के साथ माँ के पाँवों पर झुकने के प्रयास में वह गरज उठीं-

"तेरी यह हिमाकत? इस कंगले से ब्याह कर हमारी नाक कटा दी। दूर हो जा मेरी आँखों के सामने से। आज से तू हमारे लिए मर गई।"

"ऐसा न कहो, मम्मी! हम दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। अपना आशीर्वाद दे दो, मम्मी।" स्मिता की आँखों से आँसू बहने लगे।

"खबरदार जो मुझे मम्मी कहा! हाँ इतना याद रखना, अगर भूख से मर भी रही हो तो इस दरवाजे पर दस्तक देने मत आना।"

"क्षमा करें, ऐसा दिन कभी नहीं आएगा। स्मिता मेरी ज़िम्मेदारी है, उसे सुख देने का पूरा प्रयास करूँगा, मम्मी जी।" इस बार नीरज ने दृढ़ता से कहा।

"अरे, तुम जैसे बहुत देखे हैं। अचानक अमीर बन जाने के लिए स्मिता जैसी मूर्ख और धनी लड़की को फंसा लेना बहुत आसान होता है, पर तेरा यहाँ सपना कभी पूरा नहीं होगा।" स्मिता के पापा के शब्दों में नीरज के प्रति सा।फ़ हिकारत झलक रही थी।

"माफ़ करें, आप बड़े हैं इसलिए आपका यह अपमान सह रहा हूँ। आपने शायद ऐसे ही व्यक्ति देखे होंगे, जो धोखेधड़ी से अमीर बन जाते हैं। हम तो बस आपका आशीर्वाद लेने आए थे, आपके पैसों से हमें कुछ भी लेना-देना नहीं है। चलो स्मिता।"

"हाँ-हाँ! फौरन हमारी नज़रों के सामने से हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाओ। इस कुलकलंकिनी का मैं मुँह भी नहीं देखना चाहता। अब ज्यादा देर रूके तो पता नहीं, मैं क्या कर डालूँ। यह लड़की हमारे लिए मर गई है।" गरजते स्मिता के पापा ने उन दोनों के मॅंुह पर ही दरवाज़ा जोरों से बन्द कर दिया।

स्मिता की आँखों से आँसू बह निकले। प्यार से आँसू पोंछ, नीरज ने समझाया -

"हम दोनों इस स्थिति के लिए तैयार थे, स्मिता। तुम्हारे मन की हालत समझता हूँ, पर विश्वास रखो, जीवन में कभी तुम्हें दुःख नहीं पहुँचाऊॅंगा। मुझ पर यकीन है, न?"

'हाँ' में सिर हिला, स्मिता ने विश्वास भरी दृष्टि से नीरज को गर्व से देखा था।

"अभी तो एक ही मंजिल तय की है, इससे भी बड़ी परीक्षा मेरे घर में देनी होगी। तैयार हो जाओ, स्मिता।" अन्दर से चिन्तित नीरज ऊपर से मुस्करा रहा था।

नीरज के घर तो तूफ़ान ही आ गया। माँ-बाप फटी-फटी आँखों से देखते रह गए। जिस बेटे पर उन्होंने आशा लगा रखी थी, उसने बिना इजाज़त, बिना दहेज, घर पर एक और बोझ लाद दिया था। दो जवान बहनों की शादी किए बिना, बेटा बहू ब्याह लाया। माँ ने छाती पीट-पीट कर कोहराम मचा दिया। बहू की आरती उतारने की जगह चैखट पार न करने की कसम दे डाली। नीरज की छोटी बहनें सुधा और रागिनी भी विस्मित थीं। दरवाजे पर खड़े भाई और भाभी को घर के अन्दर लाने के लिए उन्होंने ही पहल की। सुधा ने समझाया था-

"माँ, जो हो गया सो हो गया। अब भइया-भाभी को दरवाजे पर खड़ा रखकर जग-हॅंसाई न कराओ।"

"हाँ, भाग्यवान। हमारी किस्मत में जो था, सो हो गया। अब उन्हें घर के अन्दर आने की इजाजत दे दो, नीरज की माँ।" धीमी आवाज में पिता ने कहा।

पड़ोसियों की भीड़ जमा देख, नीरज की माँ दरवाजे से पीछे ज़रूर हो गई, पर आग्नेय दृष्टि से स्मिता को देखकर अपशब्दों की बौछार करती रहीं। आँसुओं से धुंधली आँखों के साथ स्मिता ने श्वसुर-गृह में प्रवेश किया था। क्या इसी स्वागत के उसने सपने देखे थे?

नीरज और स्मिता के रहने के स्थान की समस्या थी। दो कमरों के घर में उनके लिए अलग कमरा कहाँ से मिलता। सुधा और रागिनी ने स्टोर का सामान इधर-उधर कर, एक खाट स्टोर में डाल दी।

गुलाब और बेले की लड़ियों से महकते सुवासित सुहाग-कक्ष की जगह मसालों और पुराने सामान की गन्ध थी। संकुचित नीरज, स्मिता की दुविधा समझ रहा था। प्यार से स्मिता को आलिंगन मे ले, नीरज ने क्षमा-सी माँगी थी-

"ऐसे सुहाग-कक्ष की तुम कल्पना भी नहीं कर सकती थीं, स्मिता। यकीन रखो, एक दिन हमारी ज़िन्दगी में गुलाब की सुगन्ध जरूर होगी। मुझे माफ़ कर सकती हो?"

"यह क्या कह रहे हो? तुम्हारे साथ मुझे काँटों की सेज भी स्वीकार है। तुम्हारे साथ काँटे भी फूल बन जाएँगे। बस हमें तुम्हारा प्यार चाहिए।" भावभीने शब्दांे में स्मिता ने कहा।

"मेरे प्यार पर बस तुम्हारा नाम लिखा है, स्मिता। हम दोनों मिलकर ज़िन्दगी को स्वर्ग बनाएँगे। एक दिन हमारे जीवन में सुनहरा सवेरा जरूर आएगा।" विश्वास से नीरज ने कहा।

"हमारी जिन्दगी में तो सुनहरा सवेरा आ ही गया है, नीरज। तुम मेरे सूरज हो।"

"वाह! अब तो मेरी स्मिता प्यारपगी बातें बनाने लगी हैं।"

नीरज के वक्ष में मॅंुह छिपा, स्मिता गौरैया-सी दुबक गई।

रोहित के घर से वापस लौटते विशाल ने ऋचा से अपना मेहनताना माँग डाला-

"आज का पूरा दिन आपके नाम समर्पित रहा, मोहतरमा, हमारी फ़ीस?"

"ओह गाॅड, तुम तो बड़े स्वार्थी वकील हो, उपकार या परोपकार नाम का शब्द शायद जनाब की डिक्शनरी में ही नहीं है? कहिए, क्या फ़ीस चाहिए?"

"जो माँगू मिलेगा? वादा करती हैं?"

"हाँ वादा करती हूँ। आज आपने इतनी मदद की है, बदले में कुछ दे सकॅंू तो हिसाब बराबर हो जाएगा।"

"अब जब बात हिसाब-किताब की आ गई तो अपना मेहनताना आप पर उधार छोड़ता हूँ। कभी ठीक वक्त पर मय-सूद वसूल लूँगा। "

"बड़े पक्के हिसाबी हैं, आप। चलिए, आज हमारी ओर से एक-एक आइसक्रीम हो जाए।" ऋचा खुश दिख रही थी।

"आपसे आइसक्रीम नहीं, पूरी दावत लूँगा। आखिर आपकी सहेली की शादी में मैं भी एक गवाह था।"

"जरूर! भगवान् करे सब ठीक रहे।"

"सच्चे प्रेमी हर तकलीफ़ हॅंसकर सह लेते हैं। वे दोनों बहादुर प्रेमी हैं। उनकी चिन्ता छोड़कर अपने पर ध्यान दीजिए।"

"सचमुच, प्रेम में बड़ी ताकत होती है, वरना स्मिता जैसी डरपोक लड़की भला इतना बड़ा कदम उठा पाती? भगवान् उसे सुखी रखें।" ऋचा ने सच्चे मन से कामना की थी।

"चलिए, आज का दिन हमेशा याद रहेगा। वैसे एक सलाह है, अब परोपकार छोड़कर पढ़ाई पर ध्यान दीजिए। बहुत कम दिन बचे हैं, परीक्षा में पहले नम्बर पर आना है न?"

"सलाह के लिए शुक्रिया। आज ही से जुट जाती हूँ। आपके लिए भी हमारी यही सलाह है।"