ऋचा / भाग-6 / पुष्पा सक्सेना
सुनीता के केस की रिपोर्ट तैयार कर, ऋचा ने साइकिल स्मिता के घर की ओर मोड़ दी। स्मिता ने घबराई आवाज में बताया था, कल रात ड्यूटी के वक्त शराब में धुत्त दो युवकों ने सुधा के साथ अभद्र व्यवहार करते हुए जबरदस्ती करनी चाही। सुधा ने एक लड़के को चाँटा मार दिया। बात ने तूल पकड़ लिया है, क्योंकि युवक शहर के प्रतिष्ठित नेता और उद्योगपति का बेटा है। होटल-मालिक ने सुधा से युवक से माफ़ी माँगने को कहा, पर सुधा ने इन्कार कर दिया। सुधा को नौकरी से निकाल दिया गया है। घर में तनातनी का माहौल है। ऋचा के पहुँचते ही स्मिता की सास ने बड़बड़ाना शुरू कर दिया -
"लो, आ गई सुधा की सलाहकार। अच्छी-भली घर में बैठी थी, इनके उकसाने पर होटल की नौकरी कर ली। ख़ानदान की नाक कटा दी। कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रखा।"
"माँ, तुम ऋचा दीदी को क्यों दोष दे रही हो? अपनी इज्ज़त बचाने से नाक नहीं कटती।" रागिनी ने माँ का विरोध कर, उन्हें और उत्तेजित कर दिया।
"हाँ-हाँ, सारे लोग थू-थू कर रहे हैं। अरे, भले घर की लड़कियों के क्या ये ढंग होते हैं। हमें तो डर है, लगा-लगाया रिश्ता न टूट जाए।" माँ रोने-रोने को हो आई।
"अब चुप भी रहो, माँ। तुम्हीं शोर मचा-मचाकर सारी दुनिया को बता रही हो।" ऋचा को रागिनी अपने कमरे में ले गई।
कमरे में सुधा बुत बनी बैठी थी। ऋचा ने जैसे ही उसकी पीठ पर प्यार से हाथ धरा, उसकी आँखों से आँसू बह निकले। स्मिता ने हाथ से आँसू पोंछ, ऋचा की ओर रूख किया।
"कल से ऐसे ही आँसू बहा रही है। एक तो उस हादसे की दहशत, उस पर सासू माँ ने बातें सुना-सुनाकर सुधा का जीना मुहाल कर दिया है।"
"अरे वाह! सुधा, तूने जिस बहादुरी का नमूना पेश किया है, वह तो काबिले तारीफ़ है। हमें नहीं पता था, हमारी भोली-भाली सुधा में एक झाँसी की रानी छिपी हुई है। मेरी बधाई!"
ऋचा की बात पर सुधा के सूखे ओठों पर हल्की-सी मुस्कान तिर आई।
"यह हुई न बात। सच ऋचा, तेरी बातों में जादू है। क्यों सुधा, ठीक कहा न?" स्मिता खुश हो गई।
"चल, इसी बात पर चाय पिला दे। सुबह से चाय नहीं पी है।"
"चाय तो रागिनी ला ही रही है, पर एक डर मुझे भी है। इस घटना की जानकारी से कहीं परेश जी के घरवाले रिश्ता न तोड़ दें।" स्मिता चिन्तित दिख रही थी।
"अगर परेश सच्चा मर्द है तो सुधा के काम से उसे खुश होना चाहिए। अगर वह रिश्ता तोड़ने की बात करे, तो ऐसे कायर से शादी न करना ही अच्छा है।" उत्तेजित ऋचा का मुँह लाल हो आया।
"बिल्कुल ठींक कह रही हैं, ऋचा दीदी। प्रकाश तो सुधा दीदी की बहादुरी की दाद दे रहे थे।" कुछ शर्मा के रागिनी ने कहा।
"रहने दे, दूसरों के बारे में लोग ऐसी ही बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। अपने पर बीते तो रंग बदल लेते हैं।" स्मिता ने पुरखिन की तरह निर्णय दे डाला।
"तुम्हारा मतलब, अगर मेरे साथ ऐसा ही कुछ घटता तो प्रकाश पीछे हट जाते?" रागिनी ने सीधा सवाल किया।
"शायद तू ठीक समझी, रागिनी। सासू माँ की बातों में कुछ सच्चाई तो जरूर हैै। लोगों को बात का बतंगड़ बनाने में मजा आता है। सुधा के मामले को ही लोग न जाने क्या रंग दे डालें। हमेशा दोष लड़की का होता है न?" स्मिता गम्भीर थी।
"स्मिता, तेरी बातों से बहुत निराशा हो रही है। जिस लड़की ने माँ-बाप की इच्छा के विरूद्ध, नीरज के साथ शादी करने का, इतना बड़ा फ़ैसला लिया। वह आज लोगों की बातों की परवाह कर रही है। तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। तुझे तो सुधा की ढाल बनकर खड़ा होना चाहिए।" ऋचा के चेहरे पर आक्रोश स्पष्ट था।
"तू ठीक कह रही है, ऋचा, पर मेरी स्थिति दूसरी थी। मेरे साथ नीरज थे। यहाँ सुधा का परेश कितना साथ देंगे, भगवान् जाने!"
"लड़की को किसी का सहारा जरूरी क्यों है, स्मिता? दूब घास देखी है? बार-बार पाँवों से कुचली जाकर भी दूर्वा सिर उठा-उठाकर खड़ी होती है या नहीं? औरत को दूर्वा की तरह जीना चाहिए।"
"वाह ऋचा दीदी, क्या बात कही है। अब आपको एक राज की बात बता दें।" रागिनी हॅंस रही थी।
"ज़रूर। तुम्हारा राज जाने बिना चैन नहीं पडे़गा।" ऋचा ने उत्सुकता दिखाई।
"जानती हैं, दीदी। स्कूल में मैट्रिक-परीक्षा के समय एक लड़के को नकल करते पकड़ लिया। उसे मैंने परीक्षा-हाॅल से बाहर कर दिया। अगले दिन जब मैं स्कूल जा रही थी, वह लड़का चार-पाँच गुण्डों के साथ खड़ा मेरा इन्तज़ार कर रहा था। मुझे जबरन एक मारूति वैन में ढकेल, वैन चला दी थी। सामने से आ रहे प्रकाश ने घटना देख ली। अपनी मोटरबाइक से पीछा किया। रास्ते में पुलिस-स्कवैड की मदद ली और मुझे बचा लाए। एक बार भी यह नहीं पूछा, उन गुण्डों ने मेरे साथ क्या किया।" रागिनी गम्भीर हो गई।
"अरे, तेरे साथ इतना बड़ा हादसा हो गया, और हमें बताया तक नहीं? कल को तुझे कुछ हो जाता तो?" इतनी देर से चुप्पी साधे सुधा सिहर गई।
"अगर बता देती तो क्या नौकरी करते रहने की इजाज़त मिल पाती, सुधा दीदी? प्रकाश ने ही चुप रहने की सलाह दी थी।"
ताली बजा, ऋचा ने रागिनी की पीठ थपथपा दी।
"यह तो बता, उन गुण्डों का क्या हुआ?"
"प्रकाश जी ने उन्हें इस तरह समझाया कि चारों ने मेरे पैर पड़कर माफ़ी माँगी। अगर हम चाहते उन्हें सज़ा दिलवा सकते थे, पर प्रकाश का कहना है, सज़ा के मुकाबले, प्यार में ज्यादा ताकत होती है।"
"वाह! तेरे प्रकाश तो सच्चे शिक्षक हैं। उनसे मुलाकात करनी होगी।" ऋचा के स्वर में सच्ची प्रशंसा थी।
"हाँ, दीदी। मैं सचमुच भाग्यवान हूँ, प्रकाश जैसा मित्र किस्मत से ही मिलता है।"
"अब तेरे यह मित्र जीवनसाथी कब बन रहे हैं, रागिनी?" ऋचा ने चुटकी ली।
"ठीक कह रही है। नीरज से कहूँगी, दोनों बहिनों की एक साथ ही शादी की तैयारी करें।"
"अब तू बता, तेरे जॅाब का क्या रहा, स्मिता?" ऋचा को स्मिता के इन्टरव्यू की बात याद हो आई।
"उस जगह तो किसी और को नौकरी मिल गई। एक जगह टेलीफोन आॅपरेटर की जगह खाली है। सोचती हूँ, खाली बैठने से अच्छा कोई काम ही कर लूँ। कुछ पैसे ही हाथ आएँगे।"
"वाह, अब हमारी स्मिता भी गृहस्थी वाली हो गई हैं, वैसे काम कोई भी छोटा नहीं होता। अभी ये जॅाब ले ले। बाद में कोई दूसरा जॅाब ढूँढ़ लेना।"
वापस जाती ऋचा ने सुधा को फिर समझाया, उसे हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। उसने कोई ग़लत काम नहीं किया है, जो कदम उठाया है। उससे पीछे हटना कायरता है। जरूरत पड़ी तो ऋचा परेश से भी बात करेगी। सुधा के चेहरे पर आश्वस्ति भरी मुस्कान तिर आई।
सुधा और सुनीता की विस्तृत रिपोर्ट बनाते वक्त दोनों घटनाएँ उसकी आँखों के समक्ष उभरने लगीं। रात के सन्नाटे में अगर सुधा का शील-हरण हो जाता, तब भी क्या उसे नौकरी से हटा दिया जाता। अपने सम्मान की रक्षा के लिए चाँटा मारना तो बहुत कम सज़ा है। ऋचा को खुशी थी, सीधी-सादी सुधा वह साहस कर सकी। सुनीता के अपने पति ने उसे खत्म कर देना चाहा। जिस पति ने पत्नी की रक्षा का वचन दिया, वहीं उसकी हत्या करनेवाला था? सुनीता का केस विशाल के साथ डिस्कस करने का निर्णय ले, ऋचा अखबार के दफ्तर में रिपोर्ट देने के पहले विशाल के पास जा पहुँची। इतनी शाम को ऋचा को देख, विशाल ताज्जुब में पड़ गया। जल्दी-जल्दी सुधा और सुनीता के केसों को बताकर ऋचा ने विशाल की राय चाही थी। कुछ सोचकर विशाल ने कहा -
"सुनीता के केस में चश्मदीद गवाह के कारण काफी दम है। रही बात सुधा की तो तुमने ठीक राय दी है, परेश पर शादी करने-न करने की बात निर्भर करती है। मेरे ख्याल में एक कायर से शादी करने की अपेक्षा अविवाहित रहना ज्यादा अच्छा है।"
"थैंक्स, विशाल! मुझे खुशी है, तुम दूसरे पुरूषों की तरह नहीं सोचते। तुमसे बात करके मन हल्का हो गया।"
"अजी, हम चीज ही ऐसी हैं। एक बात बताऊॅं, जब साथ रहने लग जाओगी, तब तुम्हारे मन पर कोई बोझ नहीं रहने दूँगा। मुझसे शादी करोगी, ऋचा?"
विशाल का प्रश्न इतना अप्रत्याशित था कि ऋचा चैंक गई-
"क्या क्या आ ?"
"हाँ ऋचा, मुझसे शादी करोगी?"
"विशाल, तुमने यह सवाल इतना अचानक पूछा है कि मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूँ।"
"समझने के लिए जितना चाहिए वक्त ले लो, पर जवाब 'हाँ' में चाहिए।" विशाल हॅंस दिया।
"वाह! यह अच्छी जबरदस्ती है। तुम्हारे घरवाले क्या तैयार होंगे?"
"यह मेरी जिम्मेवारी है। मेरी छोटी बहिन माधवी तो तुम्हारी भक्त बन बैठी है।"
"अरे वाह! कोई मेरी पूजा करे, ऐसा तो कुछ भी नहीं है।"
"तुम्हारी प्रेरणा से एयरफ़ोर्स ज्वाइन करने की जिद किए बैठी है। शायद तुम्हारा कोई लेख छपा था, बिना अपने पाँव पर खड़ी औरत का कोई वजूद नहीं, वह तो बस एक कठपुतली भर है।"
"हाँ, पर क्या यह गलत है, विशाल?"
"मैंने कब कहा कि यह गलत है। अगर मेरा सोच ऐसा ही होता तो क्या तुम जैसी जुझारू लड़की से शादी करने की हिम्मत कर पाता?" विशाल परिहास पर उतर आया।
"मुझे खुशी है, माधवी एयरफ़ोर्स ज्वाइन कर रही है। हमारी उसे बधाई जरूर देना, विशाल।"
"बधाई तो जरूर दूँगा, पर घर में उसके इस निर्णय से तूफान आ गया है। एयरफ़ोर्स में लड़की के जाने की कल्पना से ही अम्मा को लगता है, वह बमबारी करेगी।" विशाल ने हॅंस दिया।
"माधवी के इस निर्णय में तुम्हारी क्या भूमिका है, विशाल?"
"मेरी भूमिका नगण्य है, पर माधवी के मंगेतर ने सगाई तोड़ने की धमकी दे डाली है। स्कूल-कॅालेज की नौकरी तक तो बात बर्दाश्त की जा सकती है, पर एयरफ़ोर्स की नौकरी उसे सहृय नहीं है।"
"माधवी का क्या फ़ैसला है?"
"तुम्हारी तरह अपनी बात पर अटल है। रोहित अगर सगाई भी तोड़ दे तो उसे फर्क नहीं पड़नेवाला। यूनीवर्सिटी में एन.सी.सी. की बेस्ट कैडेट रही है माधवी।"
"मुझे बहुत खुशी है, विशाल। लड़कियाँ अब अपने पिंजरे से बाहर आ रही हैं। वक्त मिलते ही माधवी से मिलकर उसकी पीठ जरूर ठोंकूँगी।"
अखबार के दफ्तर में पता लगा, सम्पादक जी चार दिन के अवकाश पर गए हैं। सुधा और सुनीता की केस-रिपोर्ट छपने को देकर, ऋचा दूसरे कामों में व्यस्त हो गई। रिपोर्टे पढ़कर सीतेश पास आया था -
"ऋचा जी, सुधा की रिपोर्ट में क्या दोषी युवक और उसके पिता का नाम देना चाहिए? याद है, पिछली बार कामिनी के केस में कम्पनी का नाम दिया गया था, अपराधी का नाम काट दिया गया था।"
"अगर एक बार कोई ग़लती हो जाए तो क्या उसे दोबारा दोहराना समझदारी है, सीतेश? रिपोर्ट जैसी दी है, वैसी ही छपेगी।"
"एक बार फिर सोच लीजिए। ये लोग बहुत इंफ्लुएंशियल हैं। हमारा दैनिक मुश्किल में पड़ सकता है। कम-से-कम इन्क्वॅायरी कराने की बात ही छोड़ दीजिए।"
"ओह। तो तुम्हें अपनी नौकरी जाने का डर है? डरो नहीं, मैं भी तुम्हारे साथ हूँ। ऐसा कुछ होने से हम हार नहीं मानेंगे, समझे।"
परेशान-सा सीतेश चला गया।
दूसरे दिन ऋचा की दी गई पूरी रिपोर्ट विस्तार में छपी थी। रिपोर्टिग में भी ऋचा के नाम का उल्लेख था। ऋचा उत्साहित हो उठी। अब होटल वालों को सुधा के साथ न्यायपूर्ण फेसला देना होगा। सुनीता का केस तो पहले से ही मजबूत है। कार्यालय जाने के पहले घबराया नीरज आ पहुँचा।
"ऋचा, यह तुमने क्या किया? सुधा का नाम अखबार में छप गया। घर-मुहल्ले में तहलका मच गया है। सुबह से पड़ोसियों ने पूछ-पूछकर परेशान कर डाला है।"
"सुधा के साथ अन्याय हुआ है, उसे चुपचाप सहना क्या ठीक बात है, नीरज?"
"बात न्याय-अन्याय की नहीं है, बात लड़की की बदनामी की है। हमारा ख़ानदान बदनाम हो जाएगा। जानती हो, सुबह-सुबह परेश के घर से फ़ोन आ गया, उन्होंने सुधा के साथ परेश की सगाई तोड़ दी है। रो-रोकर माँ का बुरा हाल है।"
"तुम्हारी माँ तो तुम्हारी शादी होने पर भी रोई थीं, सुधा के अपमान के सामने उनका रोना महत्वहीन है, नीरज।"
"नहीं, ऋचा। हमें हमारे हाल पर छोड़ दो। हमें अपने घर की बहू-बेटियों का नाम अखबार में नहीं उछालना है। अच्छा हो, कल के पेपर में समाचार का खण्डन छाप दो।"
"वाह नीरज, तुम भी ऐसा ही सोचते हो? वो नीरज कहाँ गया जिसने घरवालों की चिन्ता न कर स्मिता से विवाह किया था?"
"मेरी बात और है, मैं पुरूष हूँ। पुरूष के सौ खून माफ़ किए जा सकते हैं, पर लड़की के नाम पर धब्बा लग जाए तो उसे कभी मिटाया नहीं जा सकता।"
"स्मिता क्या लड़की नहीं थी? क्या उसका सम्मान दाँव पर नहीं लगा था? अगर स्मिता ने साहस के साथ कदम उठाया तो सुधा को अन्याय के विरूद्ध कदम उठाने का हक क्यों नहीं है, नीरज?"
"स्मिता के साथ मैं था, पर सुधा का मंगेतर उसका साथ कहाँ तक दे पाएगा? तुमने हमें सचमुच मुश्किल में डाल दिया, ऋचा।"
"मुझे दुःख है, नीरज, मैंने तुम्हें समझने में भूल की। मेरा ख्याल था, सुधा के साथ हुए अन्याय में तुम उसके साथ खड़े होगे। अब मुझे ही कुछ करना होगा।"
"देखो ऋचा, जो करो, सोच-समझकर करना। हम पर और ज्यादा कीचड़ मत उछालना।"
परेशान नीरज वापस चला गया, पर ऋचा का मन खट्टा हो गया। नीरज भी अन्ततः एक सामान्य पुरूष ही निकला। स्मिता के साथ नीरज के विवाह में भी शायद स्मिता की भूमिका ही ज्यादा अहम् थी। अगर स्मिता ने नीरज के सिवा किसी और के साथ शादी न करने का अल्टीमेटम न दे दिया होता तो शायद नीरज अपनी समस्याओं के बहाने बनाकर अलग हट गया होता। स्मिता जैसी भीरू लड़की भी नीरज से ज्यादा साहसी निकली। हो सकता है, कहीं नीरज के मन में स्मिता के पिता की सम्पत्ति का भी थोड़ा-सा लोभ रहा हो। अपने सोच पर ऋचा को झुँझलाहट हो आई, बेकार मंे नीरज को दोष देना क्या ठीक है। मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की का नाम ऐसी घटनाओं में छपना, आज भी सामान्य बात नहीं मानी जाती। वैसे भी लड़़की के साथ अच्छा-बुरा कुछ भी हो, दोषी लड़की ही ठहराई जाती है। कार्यालय से जल्दी निकलकर ऋचा ने परेश से मिलने जाने की बात तय कर डाली।
कुर्सी पर बैठते ही फ़ोन की घण्टी बज उठी। बेमन से फोन उठा ऋचा ने जैसे ही 'हेलो' कहा, दूसरी ओर से धमकी भरा पुरूष-स्वर सुनाई दिया-
"अपने को बड़ी तीसमारखाँ समझती है? यह क्या उल्टा-सीधा छाप दिया है। जानती है, इसका क्या अंजाम होगा? सीधे-सीधे कल के अखबार में माफ़ी माँग ले, वरना सुधा की तरह तेरा भी इन्तज़ाम कर देंगे।"
फ़ोन काट दिया गया था। ऋचा का चेहरा तमतमा आया-'डरपोक कहीं का, हिम्मत है तो सामने आकर बात करे!'
"किसकी बात कर रही हैं, ऋचा जी। जब से पहुँचा हूँ, कोई बार-बार आपका नाम पूछ रहा था।" सीतेश कंसर्न दिख रहा था।
"शहर में गुण्डों की तो कमी नहीं है। सोचते हैं, धमकी देकर अपने गुनाह छिपा लेंगे, लेकिन वे ऋचा को नहीं जानते।"
"आप ठीक कह रही हैं, पर कभी-कभी इन गुण्डों से पंगा लेना भारी पड़ सकता है, ऋचा जी। इसीलिए कल भी मैंने आपसे रिपोर्ट में अपराधी का नाम न देने को कहा था।"
"वाह सीतेश। पत्रकार हो, पर पत्रकारिता में लाग-लपेट कर बात कहने की सलाह देते हो। तुम्हीं सोचो, विश्वसनीयता के लिए नाम देना जरूरी है या नहीं? होटल में शराब में धुत्त युवक एक लड़की का शील-हरण करने की कोशिश करे, ऐसे लड़के का नाम छिपाना क्या ठीक है?"
"आपकी बात में सच्चाई है, पर इस घटना के साथ जिस लड़की का नाम जुड़ेगा, क्या लोग उसकी ओर उॅंगली उठाने से बाज आएँगे।"
"किसी-न-किसी को तो साहस करना ही होगा, वरना ऐसी घटनाएँ अन्तहीन कहानियाँ भर बनकर रह जाएँगी।"
"मैं आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ। काश् हमारे देश की हर लड़की आप जैसी साहसी होती।" सीतेश ने पेन उठा काम शुरू कर दिया।
कार्यालय का काम जल्दी निबटा, ऋचा ने साइकिल परेश के आॅफिस की ओर मोड दी। ऋचा का परिचय पा, परेश चैंक गया।
"परेश जी, आपसे कुछ बात करनी है।"
"देखिए, अगर आप सुधा के बारे में बात करने आई हैं तो क्षमा करें। सुधा के विषय में मेरी ज्यादा जानकारी नहीं है।"
"हाँ, यह दुर्भाग्य ही है कि अरेन्ज्ड मैरिजेस में शादी के पहले लड़का या लड़की एक-दूसरे से अनजान ही होते हैं, फिर भी शादी का जुआ खेलने को तैयार हो जाते हैं।" ऋचा ने लम्बी साँस ली।
"इसके लिए तो आप सिर्फ मुझे ही दोष नहीं दे सकतीं, ऋचा जी।"
"देखिए, परेश जी। शादी के लिए आपने वर्किग-गर्ल की शर्त रखी थी, इससे उम्मीद बॅंधी थी कि आप खुले ख्यालाातों वाले इन्सान होंगे।"
"हर इन्सान अलग होता है, ऋचा जी। वैसे आप मुझसे क्या आशा रखती हैं?"
"सिर्फ इतनी कि इस मुश्किल के वक्त आप सुधा का साथ दें। अपने सम्मान की रक्षा करना क्या अपराध है? अगर वह अपनी बेइज्ज़ती चुपचाप पी जाती तो क्या वह विवाह के लिए उपयुक्त पात्री थी?"
"आपने यह कैसे समझ लिया, अब सुधा मेरे साथ विवाह के लिए उपयुक्त पात्री नहीं है?"
"क्या? आप सच कह रहे हैं?"
"आपको इस सच पर शंका क्यांे है? सुधा से मेरी सगाई हुई है और सगाई तोड़ने का मेरा कतई कोई इरादा नहीं है।"
"लेकिन आपके घर से मॅंगनी तोड़ने का फोन गया था।"
"वह मेरी माँ का ग़लत कदम था। मुझे सुधा के साहस पर गर्व है। खुशी है, मेरी होनेवाली जीवन-संगिनी इतने दृढ़ चरित्र वाली है। "
"ओह परेश जी, आपने मेरे दिल का बोझ कम कर दिया। असल में वह खबर मैंने ही प्रेस में दी थी, इसलिए अपने को अपराधी समझ रही थी।" ऋचा के चेहरे पर खुशी थी।
"आइए, इसी बात पर एक-एक ठण्डा कोक हो जाए।" परेश मुस्करा रहा था।
"नो थैंक्स! स्बसे पहले सुधा को यह खुशखबरी देनी है।"
"वह काम मैं पहले ही कर चुका हूँ। आज शाम सुधा से मिलने जा रहा हूँ। इस केस में आगे की कार्रवाई पर चर्चा करनी है। बिना इन्क्वॅायरी किसी को काम से हटा देना अन्याय है।"