ऋचा / भाग-5 / पुष्पा सक्सेना
"अपने डर की वजह से तुम फिर उसी नरक में जाने को तैयार हो, सुनीता?" ऋचा ने सीधा सवाल किया।
"नहीं......... ई ई ....... पर, मेरा बेटा?"
"बेटे के भविष्य के लिए ही तुम्हें सच्चाई बतानी चाहिए, सुनीता।"
इन्स्पेक्टर अतुल और ऋचा के चेहरों पर नजर डाल, सुनीता ने निर्णय ले डाला। उसपर किए गए अत्याचारों के पड़ोसी गवाह हैं। मीना दीदी ने तो कई बार कहा, सुनीता को अलग हो जाना चाहिए। वह उसके समर्थन में कचहरी में गवाही देंगी। पड़ोसियों की हर जरूरत के वक्त सुनीता ने मदद की है, इसीलिए उनकी हमदर्दी उसके साथ है। अब सुनीता को सच्चाई से नहीं भागना चाहिए। दृढ़ स्वर में सुनीता ने कहा-
"मैं आपको सच्चाई बताने को तैयार हूँ, पर मेरी और मेरे बेटे की रक्षा की जिम्मेदारी आपको लेनी होगी, इन्स्पेक्टर।"
"मुझे मंजूर है।" इन्स्पेक्टर अतुल ने बयान दर्ज करना शुरू किया था।
पूरी घटना सुनकर ऋचा सन्न रह गई। एक पति इतना क्रूर कैसे हो सकता है! जिस पत्नी के साथ वह रातों में सोया, जिसके साथ उसे यौन-तृप्ति मिली, वह निर्ममता से उसका जीवन ख़त्म कर सकता है! सुनीता भी तो राकेश के बच्चे की माँ बनी थी। पति के सुख के लिए सुनीता ने क्या नहीं किया? क्यों एक औरत दूसरी औरत का दर्द नहीं समझ पाती? राकेश की माँ को अपने बेटे का दर्द है, पर सुनीता की ममता का उसे कोई ख्याल नहीं है। ठीक कहा जाता है, औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है। पति की उपेक्षिता पत्नी को तो अक्सर भरपेट खाना भी नहीं मिलता। ऐसी स्थितियों मंे सास को बहू नहीं, मुफ्त की नौकरानी मिल जाती है। बेटे को बहू के विरूद्ध भड़काते रहने से सास का वर्चस्व बना रहता है। सुनीता के मामले से यह सिद्ध हो गया कि अपने पाँवों पर खड़ी स्त्रियों की स्थिति भी उतनी ही दयनीय हो सकती है। अचानक घड़ी पर निगाह पड़ते ही ऋचा चैंक गई। आज कॅालेज का आखिरी दिन है। स्मिता के कॅालेज आने की बात है। वह पहले ही लेट हो चुकी है। इन्स्पेक्टर अतुल से क्षमा माँग, वह कालेज जाने के लिए खड़ी हो गई।
"इन्स्पेक्टर, अब सुनीता को न्याय आपको दिलाना है। बाहर इनके पति और सास बैठे है। उनके साथ आपको क्या करना है, आप जानते हैं।"
"ठीक है। हाँ, सुनीता के बयान की आप भी एक साक्षी रहेंगी।"
"ज़रूर। सच्चाई का मैंने हमेशा साथ दिया है और देती रहूँगी।" सुनीता को तसल्ली देकर, ऋचा ने कॅालेज की ओर रूख किया।
स्मिता को क्लास में देख, ऋचा खिल गई। स्मिता के चेहरे की व्यग्रता भी गायब हो गई थी।
"अच्छा तो हमारी स्मिता को कॅालेज आने की इजाज़त मिल ही गई?"
"हाँ, ऋचा। तेरी बातों का सुधा और रागिनी पर ऐसा असर हुआ कि दोनों माँ के सिर हो गई। बाबू जी तो पहले ही सीधे-सादे इन्सान हैं। उन्हें कोई ऐतराज नहीं था, पर माँ जी को मना पाना, मेरी ननदों के लिए ही सम्भव था।"
"चल, यह एक सुखद शुरूआत है। भगवान् को धन्यवाद दे कि तेरी ननदें समझदार हैं, वरना जिन परिस्थितियों में तेरी शादी हुई उसमें सभी अपना योगदान देकर, आग में घी डालने का काम करते हैं। सास, ननद और जेठानी यही तो नई ब्याहली के विरूद्ध मोर्चा-बन्दी करती हैं?"
"तू ठीक कहती है, पर मेरी ननदें अपवाद हैं। सास जी की भी अपनी मजबूरियाँ हैं। बाबू जी की छोटी-सी आय में परिवार चलाना और दो-दो बेटियों के ब्याह निबटाने की चिन्ता उन्हें खाए जाती है।"
"घबरा नहीं, यह एक अस्थायी स्थिति है। कुछ दिनों के बाद नीरज को अच्छी नौकरी मिल जाएगी। हाँ, अब तू भी नौकरी तलाश कर। कोई भी नौकरी कर ले, कहे तो अखबार के दफ्तर में काम देखॅंू?"
"ना .....ना, हमने न जाने क्यों जर्नलिस्म में एडमीशन ले लिया। हम इस प्रोफेशन के लिए बिल्कुल फ़िट नहीं हैं।"
"तब तो तूने बेकार एक सीट खराब की। अच्छा होता, प्रशान्त के साथ शादी करके अमेरिका जाकर मजे उड़ाती।" ऋचा ने परिहास किया।
"धत्, उसके पहले तो हम मर ही जाते। हम जैसे भी हैं, खुश हैं। नीरज हमें बहुत चाहते हैं।" स्मिता के चेहरे पर जरा-सा गर्व छलक आया।
"अच्छा-अच्छा, अब अपना नीरज-पुराण छोड़, चल आज क्लास के बाद कोई पिक्चर चलते हैं। कल से तो डटकर पढ़ाई करनी है।"
"नहीं, ऋचा। अगर हम देर से घर गए तो माँ जी नाराज होंगी। बेचारी सुधा और रागिनी को डाँट पड़ेगी।"
"ओह्हो, तो अब सुधा और रागिनी हमसे ज्यादा प्यारी हो गई? वैसे तेरी खुशी देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। सोचती हूँ, मैं भी किसी से प्रेम-विवाह कर डालूँ।" हॅंसते हुए ऋचा ने कहा।
"तेरे मुँह में घी-शक्कर। देर किस बात की है, जरा इशारा कर, लाइन लग जाएगी।"
"अच्छा, अब बड़ी बातें करने लगी है। हाँ, इतने दिन तूने जो क्लासेज मिस किए हैं, मैंने नोट्स तेरे लिए जीराॅक्स करा दिए हैं। पढ़ डाल। याद रख, तेरा पास होना ज़रूरी है।"
"थैंक्स, ऋचा। तू हमारा कितना ख्याल रखती है। तेरी मदद से हम ज़रूर पास हो जाएँगे।"
क्लासेज के बाद नीरज स्मिता को लेने आ गया था। ऋचा ने नीरज को छेड़ा-
"अब हम लोगों को भुला ही दिया। आज स्मिता आई है तो आप दिखाई दिए।"
"आपके पास हम जैसों के लिए समय ही कहाँ है? सुनते हैं, आज सवेरे-सवेरे भी आप किसी को इन्साफ़ दिलाने अस्पताल गई थीं।"
"हाँ, नीरज। बड़ी दुःख भरी कहानी है।" संक्षेप में ऋचा ने सुनीता के जलाए जाने की घटना सुना डाली। स्मिता काँप गई। दुनिया में ऐसे भी पति होते हैं? एक नीरज है, जो पूरे दिन पढ़ाई करने के बाद देर रात तक नौकरी करता है, ताकि स्मिता को कुछ सुख दे सके। नीरज पर प्यार-भरी दृष्टि डाल, स्मिता मुस्करा दी।
स्मिता के जाने के बाद ऋचा घर वापस लौटने ही वाली थी कि विशाल ने आकर चैंका दिया-
"अच्छा हुआ, आप पकड़ में आ गई, वरना मुझे अकेले ही भटकना पड़ता।" विशाल के चेहरे पर खुशी थी।
"अब भटकने का वक्त आप ही के पास होगा, वरना बाकी सब किताबों में डूब गए हैं।"
"ठीक कहती हैं। इन्सान अपने स्वभाव के व्यक्ति को तो पकड़ ही लेता है। इसीलिए तो सीधे चलकर आपके पास आया हूँ।"
"कहिए, क्या काम है?"
"सुभाष मैदान में हैंडीक्राफ्ट का मेला लगा है, आपके साथ एक चक्कर लगाने का मन है।"
"वाह रे आप और आपका मन! हमारे पास फालतू वक्त नहीं है।"
"सुबह-सुबह अस्पताल जा सकती हैं, घटनाओं की रिपोर्टिग कर सकती हैं, पर इस विशाल के लिए आपके पास दो घण्टों का भी वक्त नहीं है? हाय रे दुर्भाग्य!"
"आपके साथ बेकार मटरगश्ती करने और किसी मुसीबत में पड़े इन्सान की मदद करने में बहुत फर्क है, जनाब। वादा करती हूँ, मुश्किल के वक्त आपको शिकायत का मौका नहीं दूँगी।" सहास्य ऋचा ने जवाब दिया।
"तो समझ लीजिए, आज हम सख्त मुश्किल में हैं। घर से छोटी बहिन ने अपने लिए हैंडीक्राफ्ट आइटेम्स खरीदने की डिमांड लिख भेजी है। मैं इस मामले में एकदम अनाड़ी ठहरा, लड़कियों की पसन्द-नापसन्द से एकदम अनजान। प्लीज ऋचा, इस मुसीबत में पड़े इन्सान की मदद करो।"
विशाल के नाटकीय अन्दाज पर ऋचा को हॅंसी आ गई। वैसे भी ऋचा के पास अभी कुछ समय था। लौटते वक्त अखबार के दफ्तर में ही बैठकर सुनीता के केस की खबर लिखकर दे देगी।
सुभाष पार्क में काफी भीड़ थी। विभिन्न प्रदेशों के कलाकारों द्वारा बनाई गई कलात्मक वस्तुएँ सचमुच सुन्दर थीं। बड़े उत्साह से ऋचा वस्तुएँ देख रही थी, पर विशाल को उसमें ज्यादा रूचि नहीं थी। एक साड़ी पर बड़ी सुन्दर काशीदाकारी की गई थी। काशीदाकारी में कलाकार की रूचि झलक रही थी-
"वाह! यह तो कला का अनुपम नमूना है। तुम्हारी बहिन को यह साड़ी जरूर पसन्द आएगी।"
"ठीक है, साड़ी पैक कर दो।"
कुछ और छोटी-मोटी वस्तुएँ लेने के बाद नीरज को ठण्डा पीने की जरूरत महसूस होने लगी। शीतल पेय लेकर दोनों एक घने पेड़ की छाया में पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए। अचानक माथे पर बड़ा-सा टीका लगाए, रामनामी ओढ़े पण्डित जी ने उन्हें आशीर्वाद देकर चैंका दिया-
"जोड़ी बनी रहे। वकील साहब मुकदमे जीत कर नाम कमाएँ और बिटिया अपराधियों को सजा दिलवाएँ। हमारा आशीर्वाद याद रखना।"
"अरे महाराज, आप तो अन्तर्यामी हैं। आपने कैसे जाना कि हम वकालत पढ़ रहे हैं।"
"हम तो बेटा, माथे की लकीरें और हाव-भाव देखकर मन की बात पता कर लेते हैं।"
"पर पण्डित जी, हमारी तो शादी नहीं हुई है और आपने जोड़ी बना डाली।" ऋचा हॅंस दी।
नहीं हुई तो हो जाएगी। तुम्हारी जोड़ी तो ऊपरवाले ने बनाकर भेजी है, पर बेटा, अपने अहम् को काबू में रखना। स्त्री का सम्मान करने वाला ही जीवन में सफल होता है।
दोनों को कुछ कहने का समय न दे, ज्योतिषी महाराज तेजी से चले गए। ऋचा और विशाल विस्मित देखते रह गए। कुछ देर मैं चैतन्य होते विशाल ने परिहास किया -
"सुन लिया, हमारी जोड़ी ऊपरवाले ने बनाकर भेजी है। अब क्या इरादा है, जनाब का?"
"रहने दो, हम सब समझते हैं। यह जरूर तुम्हारी चाल थी। कहो, ज्योतिषी को कितने पैसे दिए थे?"
"यकीन करो ऋचा। मैं ऐसी फिल्मी बातों पर विश्वास नहीं करता। मैं खुद ताज्जुब में हूँ।"
अचानक घॅंुघरू छनकाती एक युवती ने बड़े अदब से सलाम कर, नृत्य शुरू कर दिया। युवती ने रंगीन घाघरा-चोली पहन रखा था। साथ में एक युवक ढोल लिए था। ढोल की थाप पर युवती के पाँव थिरक रहे थे। लोगों की भीड़ आसपास मिसट आई। नृत्य समाप्त कर युवती ने माथे पर छलक आई पसीने की बॅंूदें चुन्नी से पोंछ डालीं। ढोल रखकर युवक ने लोगों के सामने झोली फैला दी। युवती ऋचा के पास आकर जमीन पर बैठ गई।
"तुम दिन भर में कितना कमा लेती हो?"
"हमें क्या पता, उससे पूछो।" युवती ने युवक की ओर इशारा कर दिया।
"क्यों तुम नाचती हो, मेहनत करती हो, पर तुम्हें यह भी नहीं पता कि तुम कितना कमाती हो?"
"ऐ मेम साहब, वह हमारी जोरू है। उसको कमाई से क्या मतलब? जल्दी पैसा देने का ....."
"क्यों, जोरू होने का मतलब कमाई से औरत का कोई मतलब नहीं?" ऋचा का पत्रकार फुँफकार उठा।
"ज्यादा बात नहीं करने का, तमाशा देखो, पैसा देना है तो दो नहीं तो राम-राम।" युवक ने ढोल उठाकर चलने का उपक्रम किया।
"अरे अरे, रूको भाई। ये लो।" जेब से दस रूपए निकालकर विशाल ने युवक की ओर बढ़ा दिए।
"यह क्या, तुमने भी उस आदमी को ही पैसे दिए। औरत के साथ हमेशा ही अन्याय होता है।"
"अरे, जब उस औरत को कुछ अंतर नहीं पड़ता तो तुम क्यों बेकार अपना सिर खपा रही हो। तुम्हारा पारा नीचे उतारने के लिए, लगता है, कोल्ड ड्रिंक ही काफ़ी नहीं है, आइसक्रीम लानी होगी।" विशाल ने बात हॅंसी में उड़ानी चाही।
"तुम भी तो पुरूष हो, विशाल। तुम्हारा सोच अलग कैसे होगा?"
"तुम तो छोटी-सी बात का बतंगड़ बना रही हो। हम जब शादी करेंगे, तब तुम अपना वेतन बिल्कुल अलग रखना।"
"वाह, जनाब, कुछ मुलाकातों में शादी तक पहुँच गए। इस भुलावे में मत रहिएगा। अब चलें, मुझे आॅफिस में सुनीता की खबर भी छपने को देनी है।"
"तुम्हारा काम तो मेरा समय छीन लेता है। थोड़ी देर और रूको न?"
"अच्छा जी, अब आपको भी हमारे काम से शिकायत होने लगी, शिकायत के लिए तो मेरी माँ ही काफ़ी हैं।"
"भला तुम्हारी माँ को तुम्हारे काम से क्या शिकायत हो सकती है। घर में अपना वेतन नहीं देतीं, क्या?"
"मज़ाक छोड़ो। एक तो लड़की, उसपर कुँवारी। भला माँ मेरे पैसों को हाथ लगाएगी? आज भी बाहर काम करने वाली लड़कियों की यही नियति है, विशाल। घर-बाहर के सारे काम करने पर भी बेटी को बेटे वाला सम्मान नहीं मिल पाता।" ऋचा कुछ उदास हो आई।
"ज़माना बदल रहा है, एक दिन तुम्हारी माँ भी तुम्हारा महत्त्व समझेंगी, ऋचा। चलो, तुम्हें तुम्हारें कार्यालय तक पहुँचा आऊॅं।"
यूनीवर्सिटी की फ़ाइनल परीक्षाएँ शुरू हो जाने की वजह से ऋचा, विशाल, नीरज, स्मिता सभी व्यस्त हो गए। ऋचा ने अखबार के दफ्तर से भी छुट्टी ले रखी थी। छुट्टी के लिए एप्लीकेशन देती ऋचा से सीतेश ने परिहास किया था-
"जब तक आप छुट्टी पर हैं, न किसी लड़की का बलात्कार होगा, न कोई औरत दहेज के लिए जलाई जाएगी।"
"ये तो रोज की कहानियाँ हैं, सीतेश। मेरे रहने न रहने से क्या फर्क पड़ता है?"
"पड़ता है, ऋचा जी। आप तो खोज-खोजकर ये खबरें लाती थी। दूसरों का शायद इन घटनाओं में उतना इन्टरेस्ट न हो।"
"ठीक कहते हो, सीतेश। जब तक रिपोर्टर ऐसी घटनाओं के साथ जुड़ाव न महसूस करें, उन्हें फर्क नहीं पड़ेगा। किसी शीला, लीला से उन्हें क्या लेना-देना।" ऋचा उदास हो आई।
"अरे अरे... आप तो सीरियस हो गई। मैंने तो मज़ाक किया था। हम हृदयहीन नहीं हैं, ऋचा जी, पर शायद जिस तरह आप इन घटनाओं से जुड़ जाती हैं, हम नहीं जुड़ पाते। विश्वास रखिए, ऐसी कोई भी दुःखद घटना नजर अन्दाज नहीं की जाएगी।"
"थैंक्स सीतेश!"
ऋचा के पेपर्स अच्छे हुए थे। अन्तिम पेपर के बाद बड़ा हल्का-हल्का महसूस कर रही थी। स्मिता ने बताया, सुधा और रागिनी ऋचा को याद कर रही हैं। घर में खासा हंगामा होने के बावजूद, रागिनी ने एक स्कूल में और सुधा ने होटल में रिसेप्शनिस्ट का जॅाब ले लिया था। स्मिता की सास ने बहुत शोर मचाया, पर नीरज और उसके पिता ने दोनों लड़कियों का साथ देकर, उन्हें शान्त कर दिया। अन्ततः तय किया गया, दोनों लड़कियों का वेतन उनकी शादी के लिए सुरक्षित रखा जाएगा, पर पहले ही महीने के वेतन से रागिनी ने माँ और भाभी के लिए साड़ियाँ खरीद डालीं। पिता और भाई के लिए कुरते-पाजामे के सेट ले आई। सुधा ने अच्छी लड़की की तरह पूरा वेतन माँ के हाथों पर रख दिया। माँ से झिड़की सुनने के बाद रागिनी ने सुधा को आड़े हाथों लिया था।
"वाह दीदी। शादी के लिए ऐसी भी क्या जल्दी है? कम-से-कम पहली तनख्वाह से अपने लिए एक ढंग की साड़ी तो ले लेतीं। अपने लिए न सही, छोटी बहिन को ही एक सलवार-सूट खरीद देतीं। एक महीने के वेतन से शादी की तारीख जल्दी नहीं आ जाएगी।" चुलबुली रागिनी छेड़ने से बाज नहीं आती।
फ़ाइनल एग्जाम्स के बाद की पहली खाली शाम स्मिता के घर बिताने का निर्णय ले, ऋचा ने स्मिता के यहाँ पहुँच सबको चैंका दिया। स्मिता का चेहरा खिल गया। रागिनी और सुधा भी साथ आ बैठीं।
"कहो, तुम दोनों को कैसा लग रहा हैंघ्
पिंजरे से बाहर निकल, खुले आकाश में पहुॅच गए हैं।" सपनीली आँखों के साथ रागिनी ने कहा।
"रहने दे, काॅपियाँ जाँचते वक्त तो तू झूँझलाती है। ढेर का ढेर करेक्शन-वर्क लाती है, हमारी रागिनी।" स्नेह भरी दृष्टि डाल स्मिता ने ननद की बड़ाई की थी।
"हाँ, दीदी, यह तो सच है, पर बच्चों के साथ बड़ा अच्छा वक्त कट जाता है।"
"बच्चों के साथ या प्रकाश जी के साथ, सच-सच कह, रागिनी।" स्मिता ने रागिनी को छेड़ा।
"अरे, यह प्रकाश जी कौन हैं? क्या बात है, रागिनी।" ऋ़चा चैंक गई।
"रागिनी के स्कूल में सीनियर क्लासेज को फ़िजिक्स पढ़ाते हैं। उन्हें रागिनी बहुत अच्छी लगती है और रागिनी को प्रकाश बेहद नापसन्द हैं। ठीक कहा न, रागिनी?" स्मिता मुस्करा रही थी।
"भाभी, तुम भी बेकार की बातें करती हो। ऋचा दीदी के लिए चाय लाती हूँ।"
रागिनी के जाते ही स्मिता हॅंस पड़ी। ऋचा को बताया, रागिनी और प्रकाश एक-दूसरे को पसन्द करते हैं। नीरज को भी प्रकाश पसन्द है। सुधा की शादी भी परेश नाम के युवक से तय हो गई है। परेश एक कामकाजी लड़की चाहता था। सुधा की नौकरी ने शादी तय करने में मदद की है। ऋचा को स्मिता की खुशी से बहुत राहत मिल गई।
"अब तेरा क्या करने का इरादा है, स्मिता? कहीं शादी के बाद बस घर-गृहस्थी वाली बनकर ही तो नहीं रह जाएगी?"
"नहीं, दो दिन बाद मेरा इन्टरव्यू है। एक आॅफिस में सहायक जनसम्पर्क अधिकारी की जगह खाली है।"
"अरे वाह! तू तो सचमुच छिपी रूस्तम निकली। भगवान् तेरी मदद करें। अब चलती हूँ, वरना अम्मा की डाॅट खानी पड़ेगी।"
"तू क्या करेगी, ऋचा? शादी-वादी करनी है या यूूंॅ ही दूसरों की मदद के लिए दौड़ती रहेगी?" बड़े प्यार से स्मिता ने पूछा।
"अच्छा जी, शादी क्या हो गई कि जनाब हमें शिक्षा देने लगी। फिलहाल तो अखबार के दफ्तर में फुल-टाइम काम करने का इरादा है। आगे की भगवान् जाने।"
घर पहुँची ऋचा को माँ ने समझाया था - "देख ऋचा, तेरे इम्तिहान भी खतम हो गए। अब घर में बैठकर कुछ दुनियादारी सीख। हर वक्त मुँह उठाए, साइकिल पर दौड़ते रहना जवान लड़की को शोभा नहीं देता।"
"ठीक है, माँ, अब साइकिल मॅंुह नीचा करके चलाऊॅंगी।" माँ के गले में प्यार से हाथ डाल ऋचा हॅंस दी।
दूसरे ही दिन से ऋचा ने अखबार के कार्यालय में काम शुरू कर दिया। विशाल ने भी शहर के नामी वकील के साथ ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी। ऋचा और विशाल की शामें एक साथ गुजरने लगीं। एक-दूसरे से मिले बिना दोनों को चैन नहीं पड़ता।
तभी एक साथ दो हादसे हो गए। सुनीता ने हाॅस्पिटल से वापस आकर एक अलग घर लेकर रहना शुरू कर दिया था। इन्स्पेक्टर अतुल की मदद से सुनीता का बेटा अर्जुन भी सुनीता के ही साथ रह रहा था। सुनीता का पति इसे अपनी हार मानकर बौखला उठा। सुनीता के अस्पताल के कर्मचारियों से सुनीता की चरित्रहीनता की बातें करता, कभी गुण्डों द्वारा धमकी दिलवाता।
एक रात सुनीता अस्पताल से वापस लौट रही थी तभी राकेश ने उसपर लोहे की राॅड से हमला कर दिया। सुनीता धरती पर गिर गई, पर सौभाग्यवश सामने से सीनियर नर्स, मारिया की कार की रोशनी दोनों पर आ पड़ी। रोशनी पड़ते ही राकेश भाग गया, पर सिस्टर मारिया की नजरों से बच नहीं सका। सुनीता को सिस्टर मारिया अस्पताल ले गई और पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी। इन्स्पेक्टर अतुल तुरन्त ही सुनीता का बयान लेने अस्पताल पहॅुच गया। फोन से ऋचा को भी खबर दे दी थी। ऋचा और अतुल को देख सुनीता रो पड़ी। अब उसे अर्जुन के साथ अपनी माँ और भाई-बहिनों की ज़िन्दगी के लिए भी डर हो गया था। अतुल ने बयान दर्ज कर, राकेश की गिरफ्तारी के लिए निर्देश दे दिए।
"डरो नहीं, सुनीता। राकेश की इस करतूत से तुम्हारा केस और ज्यादा मजबूत हो गया है। मैं खुद सिस्टर मारिया जैसी साहसी चश्मदीद गवाह के साथ राकेश के खिलाफ गवाही दूँगी।"
सिस्टर मारिया ने ऋचा से बातें करते हुए अपनी आपबीती भी सुना डाली। सुनीता और उनकी कहानी लगभग एक-सी थी। पिता की मृत्यु के समय मारिया नर्सिग के दूसरे वर्ष मंे थीं। पिता के अलावा घर में कमाने वाला कोई दूसरा नहीं था। मारिया ने अपने पिता के एक मित्र से सहायता माँगी थी। नर्सिग का कोर्स पूरा करने के बाद वह उनका कर्ज चुका देगी। पिता के मित्र ने मारिया की माँ को अस्पताल में नौकरी दिला दी, पर बदले मंे वह मारिया का यौन-शोषण करता रहा। नर्स बनने के बाद मारिया ने विद्रोह का स्वर मुखर किया और पुलिस मंे रिपोर्ट कराने की धमकी देकर, शोषण से तो छुटकारा पा लिया, पर बहुत दिनों तक दहशत में जीती रहीं। सौभाग्य से मारिया का परिचय जेम्स नाम के एक अच्छे इन्सान से हो गया। मारिया ने जेम्स से कुछ भी नहीं छिपाया और आज दोनों सुखी विवाहित जीवन जी रहे हैं। मारिया की एक प्यारी-सी बेटी रोज़ी भी है। ऋचा ने कहा, उसे खुशी है, जहाँ एक ओर राकेश जैसा राक्षस है, वहीं जेम्स जैसे अच्छे इन्सान भी हैं। शायद इसीलिए दुनिया में अच्छाई कभी पूरी तरह विलुप्त नहीं हो सकी है।