एक कतरा खून / इस्मत चुग़ताई / पृष्ठ 4

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बचपन

हसन और हुसैन ऊपर-तले के भाई थे। दोनों की पैदाइश एक साल के अन्दर हुई थी। मुश्किल से दोनों में साल-भर का फ़र्क़ था। रसूलुल्लाह अपने नवासों को बहुत प्यार करते थे। उनका अपना कोई बेटा ज़िंदा न रहा, इसलिए नवासों को बेटों की तरह पाला। इन बच्चों को देखकर वह बस अपने नवासों के नाना बन जाते थे। वह सादगी ही उनकी अज़्मत की निशानी थी। उनकी मुहब्बत में ऐसी शिद्दत थी कि बच्चों को देखे बग़ैर चैन न पड़ता। सुबह अपने घर से निकलकर सीधे बेटी के घर जाते। बच्चों की ख़ैरियत पूछते, ‘‘रात को रोए तो नहीं, आराम से सोए ?’’ ‘‘जी हाँ, सब ख़ैरियत रही, बाबा, आप ख़्वाहमख़्वाह इन बच्चों के लिए फ़िक्रमंद रहते हैं।’’ बेटी हँसकर जवाब देतीं। तब उन्हें इत्मिनान हो जाता और वह मस्ज़िद तशरीफ ले जाते। वापसी में फिर बच्चों को देखने आते। थोड़ी देर उनके साथ खेलते, फिर घर आते। कहीं सफ़र को जाते तो सबसे आख़ीर में बच्चों से रुख़सत होते और लौटकर सीधे बच्चों के पास आ जाते।

जब बच्चे ज़रा बड़े हो गए तो उन्हें अपने साथ मस्जिद ले जाते। वहाँ बच्चे खेला करते। नमाज़ पढ़ते वक़्त कंधों पर चढ़ जाते। एक दिन रसूलुल्लाह मिम्बर1 पर बैठे ख़ुत्बा2 फ़र्मा रहे थे कि हुसैन भागते हुए आए तो ठोकर खाकर गिर पड़े। ख़ुत्बा छोड़कर नाना ने लपककर उठया और सीने से लगा लिया। उन्हें बहलाया। जब चुप हो गए तो फिर ख़ुत्बा जारी किया। रसूलुल्लाह को ही सब बच्चों से प्यार था। वह किसी बच्चे की रोने की आवाज़ सुनते ते बेचैन हो जाते। बच्चे, जो दुनिया का मुस्तक़्विल हैं। हसन और हुसैन को नाना और वाल्दैन की मुहब्बत बराबर मिलती रहती थी। फिर भी बच्चों में कभी ज़िद हो जाती और बहस चल निकलती। एक दिन दोनों ने तख़्तियाँ लिखीं और नाना से पूछा कि बताइए, किसकी लिख़ाई ज़्यादा ख़ूबसूरत है ? उन्होंने कह दिया, ‘‘जाओ, अपने बाप से पूछो। वह तो बहुत ख़ुशख़त हैं।’’

बच्चे बाप के पास गए। ‘‘भई, अपनी अम्मा से पूछो, वह बताएँगी।’’ बाप ने कह दिया। जब मुकद्दमा माँ के सामने पेश हुआ तो वह तज़बज़ुब3 में पड़ गईं।


1. मस्जिद में बना वह ऊँचा स्थान जहाँ इमाम धर्मोपदेश देता है, 2. धर्मोपदेश, भाषण 3. असमंजस।


‘‘दोनों की लिखाई ठीक है।’’ ‘‘नहीं, यह बताइए कि ज़्यादा किसकी अच्छी है ?’’ बच्चे ज़िद करने लगे। ‘‘यह फ़ैसला ज़रा मुश्किल है। मगर ठहरो, एक काम करो।’’ फ़ातिमा ज़ोहरा ने गले में पड़ा हुआ मोतियों का हार तोड़कर ज़मीन पर बिखेर दिया। ‘‘बस, तुममें से जो सबसे ज़्यादा मोती चुन ले उसी की लिखाई सबसे अच्छी मानी जाएगी। बच्चे जल्दी-जल्दी मोती चुनने लगे। एक मोती गिरने से दो टुकड़े हो गए। दोनों ने आधा-आधा बीन लिया। जब मोती गिने गए तो दोनों के पास बराबर मोती निकले। एक का आधा-आधा टुकड़ा। ‘‘इसका यह मतलब है कि तुम दोनों की लिखाई एक जैसी है।’’ बच्चे क़ायल हो गए। ‘‘मगर इसका यह मतलब नहीं कि और मश्क़ की ज़रूरत नहीं।’’

रसूलुल्लाह फ़ुर्सत का वक़्त आम तौर पर बेटी के यहाँ गुज़ारा करते थे। एक दिन चादर ओढ़े बैठे थे कि इतने में फ़ातिमा ज़ोहरा उधर किसी काम से आईं। बाप की गोद अब सिर्फ़ नवासों के लिए वक्फ़1 होकर रह गई थी। बाप पर प्यार आने लगा, बोलीं, ‘‘बाबा, हमें सर्दी लग रही है।’’ ‘‘आओ, हमारी चादर में आ जाओ।’’ उन्होंने बेटी को चादर में समेट लिया। वह बाप के कंधे पर सर रखकर बैछ गईं। अली ने देखा तो मुस्कराकर बोले, ‘‘या रसूलुल्लाह, सर्दी तो हमें भी लग रही है।’’ ‘‘आओ, तुम्हें किसने मना किया, हमारी चादर बड़ी लम्बी-चौड़ी है।’’ अली भी चादर में आ गए। बच्चों ने जब अपनी हक़तलफ़ी2 होते देखी तो दौड़कर वह भी घुस गए।

रसूलुल्लाह ने मुहब्बत से सराशर होकर सबको अपने करीब समेट लिया और मुस्कराकर बोले, ‘‘हम सब एक ही तो हैं। हमारे रास्ते एक हैं। हमारी मुश्किलात एक हैं। रास्ता बहुत दुश्वार है। सऊबतें3 ज़्यादा हैं। तुम लोग मेरे हो। मेरे बाद मेरे पैग़ाम के वारिस हो। तुम उसे लेकर दुनिया के दिलों को छू लोगे। मुझे तुम पर यक़ीन है। तुमसे कोई कोताही सरज़ न होगी।’’ उन्होंने आँखें बन्द कर लीं और चारों ओर आने वाली ज़िम्मेदारियों के बारे में सोचने लगे।

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