एक गधे की आत्मकथा / कृश्न चन्दर / पृष्ठ 4
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जाना यमुनापार रामू धोबी के घर और मुलाकात करना गधे का म्युनिसिपल कमेटी के मुहर्रिर से
रामू धोबी किसी ज़माने में मोहल्ला सुईवालान में रहता था, लेकिन जब उसके बहुत से ग्राहक पाकिस्तान जा बसे और जो शेष रह गए वे इतने निर्धन हो गए कि स्वयं अपने हाथों कपड़े धोने लगे, तो रामू धोबी भी वहां से निकलकर यहां यमुनापार कृष्णनगर में आ बसा। यहां मुझे बहुत बड़ा परिश्रम करना पड़ा। रामू सुबह उठते ही कपड़ों की गठरियां मेरी पीठ पर लादकर चल देता और यमुना के किनारे पानी में खड़ा होकर ‘छुआ छू’ शुरू कर देता। दोपहर को उसकी पत्नी खाना लेकर आती थी और कुछ धुले हुए कपड़े मेरी पीठ पर लादकर लोहा करने ले जाती थी।
मैं दिन भर यमुना किनारे घास चरता रहता या पुल पर से गुज़रते लोगों को देखता रहता। दिन ढले रामू फिर मेरी पीठ पर कपड़े लादकर और स्वयं भी सवार होकर वापस घर चला आता और मुझे एक खूंटे से बांधकर, मेरे सामने घास डालकर थका हारा चारपाई पर पड़ जाता। सुबह से शाम तक कुछ इसी प्रकार जीवन व्यतीत होता था-एक खूंटे से दूसरे खूंटे तक; घर से घाट और घाट से वापस घर तक। बीच में न कोई पुस्तक आती, न ही कोई समाचार-पत्र। संसार में क्या हो रहा है ? विज्ञान किसे कहते हैं ? सिनेमा क्या होता है ?
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