एक थी तरु / भाग 3 / प्रतिभा सक्सेना

Gadya Kosh से
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एक से एक अजीब लोग भरे पड़े हैं दुनियां में। और डाक्टर! डाक्टरों की तो कौम ही निराली है -कोई दो प्राणी एक से नहीं।

असित घूमता फिरता है हाथ में बैग लटकाकर -स्मार्ट बना। और जीभ जैसे टेपरिकार्डर -हिन्दी, अंग्रेजी दोनो फर्राटे से। डॉक्टरों के सामने बैठ कर टेप चल गया तो चल गया। फिर पूरा बजे बिना कैसे रुक जाए। बस चालू हो जाता है, "यह गोली है हमारी फार्मेसी की नई ईजाद! जुकाम हो, बुखार हो सिर में दर्द हो, बदन में दर्द हो बस गुनगुने पानी से एक गोली मरीज को दें। ज्यादा सीरियस हो थोडी देर में रिपीट कर दें, फिर देखिये दर्द छू-मन्तर!। । पन्द्रह मिनट में असर करने लगेगी, घन्टे भर मे पूरा आराम। कोई बुरा साइड इफेक्ट नहीं, और बच्चे तक के लिये मुफीद है। इसका फ़ार्मूला बडी खोज-बीन के बाद हमारे केमिस्टों ने तैयार किया है। इन्टरनेशनल लेविल तक पहुँचे हुये केमिस्ट हैं हमारे! हर स्टेज पर टेस्ट किये हैं, साल भर तक खूब आजमा चुके हैं। ये रहे सैम्पुल!’

मुस्तैदी से सैम्पुल निकाल कर पकड़ाता हुआ कहता -"ट्राई करके देखिये "

और अंग्रेजी में शुरू हो जाये तो ऐसा गोल-गोल मुँह बना चबा-चबा कर उच्चारण करेगा जैसे हिन्दी का अक्षर तक मुँह में न गया हो। कुछ डाक्टर तो सिनिक समझते हैं इन मेडिकल रिप्रेज़ेन्टेटिव्ज़ को, सोचते हैं अच्छा उल्लू फँसा न। इधर-उधर के दर्जनों टॉपिक निकाल लेंगे, दवा पर कोई टिप्पणी नहीं। असित को पीछा छुड़ाना मुश्किल। फिर चाय का दौर चलेगा और पेमेन्ट करेगा बेवकूफ असित।

दूसरी तरह के डाक्टरों से भी पाला पडता है -हर कम्पनी की आलोचना और बुराइयाँ, हर दवा में नुक्स निकालना उनकी हॉबी हो जैसे! अरे, जब एलोपैथी में विश्वास नहीं था तो काहे पढ़ी डाक्टरी?बेकार इत्ता समय बर्बाद किया, बाप का पैसा खर्चा सो अलग। इससे तो पान की दूकान खोल बैठते कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होता और मुफ्त में दुनिया भर की पॉलिटिक्स डिस्कस करते, चूना लगाते मौज की जिन्दगी गुज़रती!

एक तीसरी किस्म और भी है -बडे प्रेम से बात सुनते हैं और सैम्पुल लेकर रख लेते हैं फिर वह टॉपिक क्लोज़। और चौथी प्रकार का डॉक्टर बड़ा दुर्लभ है -अच्छाई-बुराई पर रीजनेबल ढंग से चर्चा करते हैं, इन्टरेस्ट लेकर सीरियसली बात करते हैं -क्या फ़ार्मूला है इस पर भी विचार-विमर्ष हो जाता है।

हर जगह थोडी-बहुत दोस्ती पाल रखी है असित ने।

पर लेडी-डॉक्टरों के पास बड़ा अजीब-सा माहौल! पहली बात तो अधिकतर उनके पास वही केस आते जो पुरुष डॉक्टरों को बताते संकोच लगता है। और ऐसी दवाओं से वास्ता नहीं रखती गुडसन फ़ार्मेसी। जी मिचलाने, चक्कर आने की दवा चाहिये! एक से एक एनीमिया की पेशेन्ट, झुर्रीदीर, धब्बेदार पेशेन्ट गर्भ-धारण किये चली आरही हैं। किसी को दुई महीना चढे़ हैं, किसी को छठा है, कोई एडमिट होने को तैयार। पूछो कौन सा बच्चा है तो पहलौठी से लेकर ग्यरहवाँ और चौदहवाँ तक। असित बेकार है इन मामलों में, उसकी कम्पनी को इस सब से कोई मतलब नहीं

शुरू में कई बार लेडी डॉक्टरों के पास पहुँचा पर वहाँ के मरीजों का हाल ही कुछ और देखा। अब तो अस्पतालों की डॉक्टरनियों के पास चला जाता है या साफ़ बचा जाता है। वे कहती हैं, " हाँ, ये दे जाइये। पर हमारे मरीज दूसरी किस्म के होते हैं। "और उसकी ओर देख कर मुस्करा देतीं।

असित बेवकूफ सा बैठा रह जाता। शुरू-शुरू मे वह आँखें झुका लेता था अब तो धृष्ट बना देखता रहता है। कभी-कभी मुस्करा भी देता है।

"फिजीशियंस सैम्पल" की मुहर लगी दवायें बाँट आता है। पर कुछ डॉक्टर तो उन्हें भी बेंच लेते हैं। मेडिकल स्टोर्स से खूब पटाये रखता है-असली खपत तो वहीं होती है। इसीलिये केमिस्टों से दोस्ती गाँठने मे विषेश रुचि लेता है। उसने सोच लिया है जहाँ अधिक सप्लाई हो वहीं के लिये फार्मेसी के थर्मामीटर और शो-पीसेज, बाकी जगह कैलेण्टर और की-रिंग से काम चलाना है। अधिक कुछ कहनेवालों को पेन-स्टैँड और पेपर-वेट तक सीमित रखना है। खास-खास गिफ्ट्स हरेक को कैसे दी जा सकती हैं! जहाँ माल की माँग और खपत हो वहीं दाना डालना है, सो हरेक को मुँह नहीं लगाता।

सुबह से रात तक की दौड़ और थकान! मन ऊबने लगता है तब चाह होती है मनोरंजन की -ऐसा मनोरंजन जिसमे तन-मन डूब जाय और तरो-ताजा होकर बाहर निकले।

असित कोई अकेला तो है नहीं इस लाइन में, और बहुत से हैं एक-दूसरे को समझनेवाले, कम्पनी देनेवाले।

अच्छी कमाई, ठाठ का रहन-सहन, सारी टीमटाम है। लड़कीवाले दौड रहे हैं। हाँ कहने भर की देर है। लडकियों की तो भरमार है इस देश में, साथ में अच्छा-खासा दहेज भी! माँगने जरूरत नहीं अपने आप देंगे वे। जितेन्द्र का विवाह तय हो गया है। दोनों कई बार साथ घूमते देखे गये हैं। सुहास चन्द्रा को भी घेरा जा रहा है।

"क्या बतायें यार घर पे सब लोग पीछे पडे हैं, हाँ कहना ही पडा। बडी स्मार्ट और ब्यूटिफुल है। सारी गृहस्थी मिलेगी साथ में। "

"अच्छा है, "असित प्रत्युत्तर में कहता है, ’ फँसना तो हई फिर अच्छी तरह देख कर फँसो। अपने यहाँ तो घरवालों को लगता हैकि मैनें भी कहीं चक्कर चला रखा है। , इसीलिये तैयार नहीं होता। "

"तो चला लो चक्कर। कमी क्या है?---या मोटा आसामी ढूँढ रहे हो?"

असित मुस्करा देता है।

अभी जल्दी क्या है, चार-पाँच साल तो यों ही निकल सकते हैं:और फिर अभी तो लोग लिफ्ट देते हैं फिर घास भी नहीं डालेंगे। "

"लिफ्ट देनेवाले बहुत मिलेंगे, खुद में दम होना चाहिये। फर्म पैसा दे रही है, काम ले रही है। डट कर काम करो, जम कर इनज्वाय करो। क्यों असित, क्या खयाल है? "चन्द्रा ने आँख मारी।

"दुरुस्त है। ये डिमाण्ड -सप्लाईवाली बात ठीक है। टेम्परेरी तौर पर सब चलता जाता है। पर मुझे लगता है जब तक किसी के बारे में कुछ पता न हो कैसे जिन्दगी भर के लिये बँध जाया जाय। अनजानी लडकी के साथ शरीर के संबंध जोड़ना कैसा अजीब लगता होगा! "

ठहाका मार कर हँसे वे लोग।

"जैसे कभी जोड़ा नहीं होगा किसी से! अरे ऐसे जोड़ा वैसे जोड़ा बात एक ही है। आदमी को हर जरूरत पूरी करनी है। क्यों होटलों-रेस्तराओं में क्या-कुछ नहीं होता? "

एक और आवाज उठी, "अरे, पहचानी से जोड़ लो। पहले संबंध जोड़ लो फिर शादी कर लो। "

"जिस-जिस से जोड़ें सब से कैसे की जा सकती है?"जितेन्द्र की आवाज थी।

फिर हँसी का एक दौर।

"बत्तमीजी मत करो, अभी मैं सीरियस नहीं हूँ। गृहस्थी चलाना मेरे बस का नहीं है। पाँव में चक्कर है, जिन्दगी भर घूमना पडेगा। किसे-किसे गले से बाँध लूं?"

"गले से बाँधो, ये किसने कहा।?",

सम्मिलित हँसी से काफी-हाउस गूँज उठा। कुछ लोग चौंक कर देखने लगे,

"सुहास चन्द्रा की एक यहाँ भी है, आज उसने कमरा रिजर्व कराया है। चाहो तो असित तुम भी शेअर कर लो। "

"सुहास को ही मुबारक हो!"