एक दिन, ज़रूर ही / बावरा बटोही / सुशोभित
सुशोभित
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शायद वह दुनिया का सबसे ख़ूबसूरत शहर होगा- नीदरलैंड्स का 'देल्फ़', जहाँ के उजले रंगों को वर्मीर ने अपने पनीले-से कॅनवास पर उभारा था, जिसकी नहरें हरसोग की फ़िल्म में आज तलक लहलहाती हैं।
मुझे वो ख़ूबसूरत शहर अपनी इन आँखों से देखना है!
और देन्यूब की बांक का वह शहर भी, जर्मनी का 'रेगेंस्बर्ग' जहाँ घनेरे जंगलों की आदिम दास्तानें हैं।
म्यूनिख़ के दुर्गों को निहारना है, बवेरिया के बावरे राजा ने राजपाट छोड़कर जिन्हें बनवाया था!
फ़्लोरेंस, जिसके बारे में महाकवि शैली ने कहा था 'फ़्लोरेंस बीनेथ सन / ऑफ़ सिटीज़ फ़ेयरेस्ट वन।'
और, ऑफ़कोर्स, वेनिस। वेनिस में 'आहों के पुल' पर खड़े होकर बहोत बहोत सुबकना है!
'नीली देन्यूब' के वो दो दिलक़श सपने- 'वियना' और 'बुदापेस्त'। मुझे 'बूदा कासल' की परछाइयों को
जल में हिलते देखना है। वियना में मोत्सार्ट की वायलिन की छांह तले सपने देखना है। साल्त्सबर्ग में 'फ़िगरो के ब्याह' वाला ऑपरा सुनना है।
'एलए' नहीं जाना, पेरिस तक नहीं, हॉन्गकॉन्ग तो बिलकुल नहीं! स्ट्रॉसबर्ग में रेड वाइन की ललछौंही ललक आँख में लिए सिल्विया को खोजना है। सिल्विया के क़दमों के निशां को छूकर देखना है।
क्रॉकोव देखना है, वॉरसा देखना है, ज़ख़्मी और लहूलुहान। 'ऑश्वित्ज़' की पटरियों पर बैठकर इमरे कर्तेश को याद करना है। लोर्का के ग्रानादा में 'सिएर्रा नेवादा' पहाड़ों को ताकना है। मालागा के समुद्रतट पर दौड़ना है। कि मुझे बार्सीलोना में 'कैम्प नोऊ' की घास बन जाना है!
मैंने प्राग में 'वल्तावा' के पुलों को गिनना है। 'लोरेंत्तो चैपल' की घंटियों को सुनना है। क्रीट की 'विंडमिल्स' को सफ़ेद फूलों की तरह देखना है, जैसे देखा था स्त्रोशेक ने, बावला होकर मर जाने से पहले!
यूनान में 'देल्फ़ी' की सीढ़ियों पर बैठकर देखना है आदिम रंगशाला का वैभव! खोज निकालना है खोया हुआ 'कार्थेज', बिसराया हुआ 'बेबीलोन', और वो 'मुर्दों का टीला', जो जाने कैसे हो गया था मटियामेट!
मुझे 'इन्सब्रुक' की खिड़की से देखना है 'आल्प्स' का पहाड़, 'बर्मिंघम' की लाल ईंटों की ठंडी लपट को अपने हाथों से सहलाना है! पेरू में कुज़्को के अमर पत्थरों पर लिखना है अपना नाम। पहाड़ पर बना वह शहर देखना है, जो नेरूदा की कल्पनाओं का आलम्बन है।
मुझे यूकायाली नदी के वर्षावनों में पहाड़ों पर गुमे जलपोत को खोजना है, जैसे खोजा था फ़िट्ज़काराल्डो ने! अमरीका के दक्खिन में मेम्फ़ीस, टेनसी और मिसिसिपी की बेमाप सड़कों पर भोर से सांझ तक चलते चले जाना है, फ़ॉकनर के कथादेश में।
और समरकन्द में आलूबुख़ारे जैसे गालों वाली अज़रबैजानी दोशीज़ाओं के भोले प्यार में मुझे हो जाना है गिरफ़्तार!
किर्ग़ीज़िस्तान की 'इस्सीक कूल' कहते हैं दुनिया की सबसे हसीन झील है, उस झील के शीशे में अपना चेहरा निहारना है। मैंने 'मानसरोवर' के हंसों को जलउर्मियों पर तिरते देखना है, और वर्ड्सवर्थ की कविता को याद करना है- 'द स्वैन एंड द शैडो / फ़्लोट डबल!'
बीकानेर और जैसलमेर की गलियों में भटकना है। बनारस के घाटों पर बैठकर मलाईदोना खाना है। ब्रह्मपुत्र की बांक को वन की रोमावलियों में गुम होते देखना है।
मैंने दार्जीलिंग की हवा में सांस लेते हुए देखना है कंजनजंघा पहाड़! लैंसडोन के सेंट मेरी चर्च में ढूंढना है एक खोया हुआ हेयरक्लिप!
हिमालय की सफ़ेद बर्फ पर मैंने भूरे रंग का रेखांकन करना है। बुराँस के फूलों को बालों में खोंसकर कलगीवाले मुर्गे की तरह इतराना है।
एक दिन अपने शहर से झोला उठाकर चल देना है, सच बतलाता हूँ!
करना है यह सब- एक दिन, ज़रूर ही!