एक नई पहचान / भाग 4 / अनवर सुहैल

Gadya Kosh से
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पंकज उधास की गजल का एक शे'र यूनुस को याद हो आया -

दुनिया भर की यादें हमसे मिलने आती हैं

शाम ढले, इस सूने घर में मेला लगता है

दीवारों से, मिलकर रोना, अच्छा लगता है

हम भी पागल हो जाएँगे, ऐसा लगता है

जिंदगी के इस पड़ाव पर दुनिया भर की यादें यूनुस का पीछा कर रही थीं।

अब्बा, अम्मा, खाला, खालू, सलीम भार्इ, बड़की, सिंधी फलवाला, सनूबर, मलकीते, छंगू, जमाल साहब, डाक्टर, बन्ने उस्ताद, मन्नू भार्इ मिस्त्री, यादव जी, बानो और भी न जाने कितने जाने-अन्जाने चेहरे, हर चेहरे की एक अलग दास्तान...

उसकी नींद उचट चुकी थी।

चोपन-कटनी पैसेंजर किसी स्टेशन पर रुकी।

बर्थ पर पसरे-पसरे उसने झुककर खिड़की के बाहर झाँका।

तभी साधू महाराज बड़बड़ाए - 'लागत है ब्योहारी आ गवा।'

यूनुस उठ बैठा।

ब्योहारी में पैसेंजर कुछ देर रुकती है।

सिंगरौली और कटनी के बीच ब्योहारी ही वह जगह है जहाँ चाय-पानी का बंदोबस्त हो सकता है।

वह ट्रेन से नीचे उतरा।

सामने ही चाय मिल रही थी।

ठंड यहाँ भी काफी थी।

वह काँपते-ठिठुरते चाय के अड्डे तक पहुँचा।

टीटीर्इ, गार्ड और ड्राइवर चाय सुड़क रहे थे।

पोलिथीन के कप में उसने भी चाय ली। अपने हाथों को उस गर्म चाय के कप में सेंका और चाय सुड़कने लगा।

चाय पीकर उसने सिगरेट सुलगा ली और अपनी बोगी की तरफ चल पड़ा।

बोगी में चढ़कर वह टॉयलेट में घुस कर बाकी बची सिगरेट पीने लगा, दीवारों पर लिखी इबारतों को ध्यान-पूर्वक पढ़ते हुए पेशाब किया।

वापस अपनी बर्थ पर आकर वह बैठ गया।

साधू महाराज की बगल में स्त्री लंबलेट हो चुकी थी।

साधू-महाराज बैठे-बैठे सो रहे थे। दोनों एक ही कंबल में थे।

यूनुस ने एअर-बैग खोलकर अपनी डायरी निकाली।

डायरी के पहले पन्ने पर सनूबर की हस्तलिपि में यूनुस का नाम हिंदी और अंग्रेजी में दर्ज था।

साथ में बहुत सारी व्यक्तिगत जानकारी लिखी हुर्इ थी। जैसे पता के स्थान पर खालू के क्वाटर का पता। गाड़ी नंबर के स्थान पर खालू के स्कूटर का नंबर। टेलीफोन नंबर की जगह पांडे पीसीओ का फोन नंबर।

दूसरे पन्ने पर यादगार तिथियों के लिए जगह थी।

उसमें सनूबर ने यूनुस की और अपनी जन्मतिथि लिखी हुर्इ थी।

यूनुस : 1 जुलार्इ 1980

सनूबर : 20 अक्टूबर 1987

डायरी के एक पन्ने पर सनूबर ने अपने बारे में विस्तार से लिखा था।

पसंद का रंग : पिंक

पसंद का खाना : चिकन-बिरयानी

पसंद की मिठार्इ : रसमलार्इ

पसंद का टीवी कार्यक्रम : अंताक्षरी

किससे नफरत करती हो : धोखेबाजों से

किसे प्यार करती हो : 'मार्इ' से

यूनुस जानता है कि 'मार्इ' का मतलब क्या है? 'मार्इ' सनूबर का कोड-वर्ड है।

मार्इ याने एम और वाय।

एम से मोहम्मद और वाय से यूनुस।

आजकल की लड़कियाँ कितनी चालाक होती हैं। यूनुस हँस पड़ा।

फिर उसने कर्इ पन्ने पलटे।

कहीं कोर्इ गाना लिखा था, कहीं नात-शरीफ, कहीं कव्वाली और कहीं शेरोशायरी।

डायरी के आखिर में एक लिफाफा रखा था। जिस पर लिखा पता उसने एक बार पुनः पढ़ा -

टू,

मेसर्स मेहता कोल एजेंसी

ट्रांसपोर्ट नगर, कोरबा, छत्तीसगढ़

और भेजने वाले के पते की जगह लिखा था -

पुनीत खन्ना

मैनेजर

मेहता कोल एजेंसी

सिंगरौली, सीधी, म.प्र.

लिफाफा के अंदर पुनीत खन्ना साहब ने एमसीए की कोरबा यूनिट के मैनेजर के नाम एक सिफारशी खत लिखा था -

महोदय,

पत्रवाहक मोहम्मद यूनुस पेलोडर और पोकलैन आपरेटर है। वह सिंगरौली यूनिट का एक र्इमानदार, टेकनीकली-ट्रेंड, कमर्शियली बेस्ट वर्कर है। पारिवारिक कारणों से मो. यूनुस, अपना ट्रांसफर कोरबा चाह रहा है।

इसलिए आप इसे कोरबा-यूनिट में काम दे सकते हैं।

आपका

पुनीत खन्ना

यूनुस इस खत को पहले भी कर्इ बार पढ़ चुका था।

उसे गर्व हुआ कि अल्लाह के रहमो-करम से अब उसकी अपनी एक स्वतंत्र पहचान बन चुकी है।

उसने खत को डायरी में रखा और करवट बदल कर लेट गया।

गार्ड की व्हिसिल की आवाज आर्इ और फिर ट्रेन की सीटी गूँजी।

ट्रेन चल पड़ी।

खटर खट खट

खटर खट खट

सुबह तक कटनी पहुँचेगी ट्रेन...

यूनुस को नींद ने कब अपनी आगोश में ले लिया, उसे पता न चल सका...

समाप्त।