एक सेठानी और एक बेगम / दराबा / जयप्रकाश चौकसे
जयप्रकाश चौकसे
आत्माराम और उनके दत्तक पुत्र महेश का परिवार कई हिस्सों में बँट चुका था। पुश्तैनी दुकान की हालत खस्ता हो चुकी थी और वे पूड़ी-आलू बेचने के लिए बाध्य हो गए थे। कलकत्ता से कुछ मारवाड़ी बुरहानपुर आ गए थे और उन्होंने हैंडलूम चलाने वालों को इस शर्त पर सूत देना स्वीकार किया कि बुना हुआ कपड़ा खरीदने का अधिकार केवल उन्हें होगा। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा इजाद किया गया यह तरीका आज भी बुरहानपुर में सफलता से आजमाया जा रहा है। दरअसल भारत में गुजरी हुई सारी सदियाँ एक ही समय में साथ-साथ जीवित रहती हैं। हर छोटे-बड़े शहर में पुल के ऊपर से रेलगाड़ी गुजरती है और नीचे से बैलगाड़ी जाती है, आकाश में जेट उड़ता है। बुरहानपुर में हैंडलूमों की संख्या पचास हजार तक पहुँच गई। व्यापार की इसी धारा का विराट रूप उभरा जब कलकत्ता के आत्मारामजी ने पारसी मालिकों से ताप्ती कॉटन मिल खरीदी। यूढ़े पारसी मालिक परिवर्तन की लहर से तंग आ चुके थे। स्वतंत्रता के नाम पर अराजकता उन्हें पसंद नहीं थी। बुरहानपुर के आसपास कपास की खेती के कारण पारसी उद्यमी ने सदी के प्रारंभिक चरण में ही इस मिल की स्थापना की थी। हर जगह के वृद्ध पारसी बंबई में ही बसना चाहते हैं। यही उनका मक्का मदीना है। अब आसपास के गाँवों से अनेक लोग शहर आने लगे और रतन खत्री के सट्टे ने भी व्यापक रूप ले लिया जिसके परिणामस्वरूप कैलाश की लॉज भी चल पड़ी और उसके यहाँ धन की बरसात होने लगी। कैलाश की खेतीबाड़ी उसका मित्र विसाल देखता था परन्तु रोज मोटर साइकल पर गाँव आने-जाने के परिश्रम में उसे थका दिया और यह बीगार पड़ गया। कैलाश उसे देखने गया तो उसने आग्रह किया कि वह सट्टे के व्यवसाय को चलाने के लिए प्रताप की सहायता लेता है। उसे प्रताप की सहायता से उर्दू स्कूल में मास्टर की नौकरी दिला दे। मास्टरी में उसका पैदाइशी आलस्य निभ जाएगा क्योंकि मास्टर का घंटा 45 मिनट का होता है और महोना बमुश्किल 20-22 दिन का और साल 9 महीने का।
कैलाश खाना खाकर देर रात अपने घर की ओर लौटने लगे। सँकरी-सी गली में चलते-चलते वे कचरा पेटी से टकराकर गिर गए। किसी कमबख्त ने कचरा पेटी सड़क के किनारे न रखकर लगभग बीच में रख दी थी। कैलाश कराहते हुए उठे और अपनी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार अनजान आदमी को गालियाँ देने लगे। ठीक उसी वफा किसी लड़की के हँसने की ध्वनि सुनाई पड़ी। किसी लड़की के मौजूदगी का अहसास उन्हें अपनी दुर्दशा के प्रति अत्यंत संवेदनशील बना गया। उन्हें लगा कि सड़क के कचरे से ज्यादा इस हँसी से निजात पाना चाहिए और वो तेजी से चलने लगा। दोर-चार कदम के बाद ही उन्हें तबले और सारंगी की आवाज सुनाई दी और वे ठिठककर खड़े हो गए। उन्हें इस बात पर हैरानी हुई कि इस इलाके में गाने-बजाने वाली कैसे आ सकती है? ये शरीफों का मोहल्ला था और बाइयों की बस्ती यहाँ से कोस दो कोस दूर थी। लौटते समय उन्हें याद आया कि स्कूल के जमाने में एक बार अपने दो-तीन मित्रों के साथ वे बदनाम गर्यो गए थे और वहाँ नवाबजान ने उनके एक साधी बच्चू को पहचान लिया था, क्योंकि बच्चू के पिता ठेकेदार बसंतलाल नवाबजान के नियमित ग्राहक थे। नवाबजान ने सभी बच्चों को बड़ी इज्जत से बैठाया और खाने के लिए ढेर सारी टाफियाँ दीं। नवाबजान ने उस
दल्ले को आड़े हाथों लिया जो इन मासूमों को बदनाम बस्ती में लाया था। कैलाश को अभी भी याद है कि नवाबजान ने बच्चू को बड़े प्यार से अपने नजदीक बैठाया था और उसके माथे को चूमा भी था। उन्होंने अपने घर के बच्चों की सबसे मुलाकात करवाई और बच्चू की तरफ मुखातिब होकर बोली कि इस मोहल्ले के रिश्तों पर कोई यकीन नहीं रखता इसलिए मैं यह नहीं कहती बच्चू मियाँ कि ये तुम्हारे भाई हैं। हमारी तो बस्ती इतनी बदनसीब है कि यहाँ बेटा माँ को माँ कहने पर शर्मिंदगी महसूस करता है। नवाबजान ने बड़ी मोहब्बत के साथ सबको रुखसत किया। कैलाश का पहला तर्जुबा ही इतना अजीब था कि बाद में उन्होंने कभी उस बस्ती की ओर देखा तक नहीं। लेकिन आज की सारंगी तबला और वह बेखौफ हँसी उनके मन में बस गई। दूसरे दिन सुबह वह विसाल खाँ रफीक के घर जा पहुँचे। विसाल की अम्मा को थोड़ी हैरानी हुई, क्योंकि इतनी सुबह कैलाश कभी उनके घर नहीं आया। उधर कैलाश के मन में खलबली मची थी कि अम्मी बिदा हो तो वे अपने दोस्त को गुजरी रात के बारे में बात करें। किसी तरह दोनों को खुलकर बात करने का मौका मिला और कैलाश के कचरे के गिरने से लेकर तबले, सारंगी की सारी बात अपने दोस्त को बता दी। विसाल ने उसे समझाया कि बदनाम बस्ती में रहने वालों के कुछ नजदीकी लोग इन बस्तियों में रहते हैं, परंतु यहाँ पेशा नहीं करते। कमउम्र बच्चे यहाँ आते-जाते रहते हैं। कैलाश ने ये जिद की कि वह उस हँसने वाली आवारा का आशिक हो गया है और कहा कि किसी भी तरह से उस लड़की का पता लगाना चाहिए। विसाल ने कहा कि जिसको तुमने देखा ही नहीं उससे इश्क कैसे हो सकता है? कैलाश ने उससे पूछा- तुमने खुदा को देखा है? इश्क का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है। यह बात सुनकर विसाल खाँ जोर-जोर से हँसने लगा और हँसते-हँसते उसके पेट में बल पड़ गए। उसकी आवाज सुनकर अम्मी वापस कमरे में आ गई। विसाल ने हँसी रोकते हुए अपनी अम्मी से कहा-आपका ये मारवाड़ी बेटा कुछ सूफी ढंग की बातचीत कर रहा है। मैंने इसके मुँह से ऐसी जुबान कभी नहीं सुनी।
विसाल ने कैलाश के विरोध के बावजूद उसकी सारी बातें अम्मी को सुना दीं और कहा कि अब इस मारवाड़ी को मजनूं के नाम से पुकारने का जी चाहता है, क्योंकि इसे अनदेखे खुदा की तरह किसी अनजानी लड़की से इश्क हो गया है। कैलाश ने अपनी सफाई देने की कोशिश की और इस हड़बड़ाहट में उसका चेहरा लाल हो गया। उसकी यह हालत देखकर अम्मी को भी हँसी आ गई। कैलाश उठकर चल दिया। विसाल ने उसको बहुत रोकने की कोशिश की, पर वह तेजी से मेनरोड की तरफ चला गया। तांगे वाले अलीबख्श ने देखा कि भन्नाए-से कैलाश बाबू चले आ रहे हैं। अलीबख्श ने कहा हुजूर आपको पैदल चलना शोभा नहीं देता, आप मेरे तांगे में बैठिए मैं आपको घर छोड़ देता हूँ। इच्छा न होते हुए भी फैलाश अलीबख्श के तांगे में बैठ गया। बैठते ही कैलाश ने कहा-मेन सड़क से न जाते हुए बाएँ हाथ की गलियों से तांगा घुमाकर ले चलो। अलीबख्श तजुर्बेदार आदमी थे। उसने कैलाश के चेहरे से टपकते हुए इश्क को भाँप लिया। उसने यह भी महसूस किया कि कैलाश की नफर इन सँकरी गलियों में किसी से भिड़ गई है। मौके की नजाकत को देखते हुए अलीबख्श ने खामोश रहना मुनासिब समझा। एक सँकरी गली के मोड़ पर कचरे के डिब्बे के पास कैलाश के मुँह से आह निकली और उसकी साँसें तेज हो गईं। अलीबख्श सब कुछ समझ गया। अगली गली के भोड़ पर कैलाश ने कहा-तांगा वापस ले चलो। अलीबख्श ने तांगा रोक दिया और कैलाश से कहा- हुजूर इन गलियों में तांगा बार-बार घुमाने से कुछ नहीं होगा। अगर आप थोड़ी-सी सहायता करें तो मैं लड़की को ढूंढ सकता हूँ। तसल्ली के इन शब्दों से कैलाश का मन कुछ स्थिर हुआ और उसने कहा-कल रात मैं कचो के डिब्बे से टकरा गया था और कोई लड़की मुझ पर हँसने लगी। ठीक उसी समय तबले सारंगी तथा हारमोनियम की आवारा आई। मैंने लड़की को देखा नहीं, न ही मैं ठीक से घर की तरफ इशारा कर सकता हूँ। अलीबख्श ने कहा-नुक्कड़ के उन मकानों में केवल एक मकान जाहिरा बेगम के रिश्तेदार का है। यकीनन जाहिरा के रिश्ते की कोई नई लड़की आई है जो इस घर में हुनर सीख रही है। ऐसा कई बार होता है कि नई लड़की को आते ही कोठे पर नहीं बैठाते और कुछ दिन वह शरीफों के मोहल्ले में रहकर हुनर सीखती है। मैं जाहिरा को बखूबी जानता हूँ। इंशा अल्ला शाम तक सब खबर ले आऊँगा। इतना कहकर अलीबख्श ने तांगा चौक की ओर हाँक दिया।
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अपने वादे के मुताबिक अलीबख्श शाम को लॉज पर आया। उसके इशारे पर कैलाश तांगे पर जा बैठा। अलीबख्श ने तांगे का रुख बोरवाड़ी की ओर किया। कैलाश को उसने खामोश रहने का इशारा किया। पतली गलियों से गुजरता हुआ तांगा निहायत गंदे मकान के सामने रुका। अलीबख्श कैलाश को लेकर कोठे के भीतर चले गए। एक छोटे से कमरे में अलीबख्श ने जाहिरा से कैलाश का परिचय कराया और खुद बाहर चला गया। जाहिरा की उम्र 50 के
आसपास थी। खंडहर बता रहे थे कि कभी इमारत बुलंद रही होगी। जाहिरा ने कहा-अलीबख्श की बातों से मालूम हुआ कि कल रात आपने मेरी भतीजी की आवास सुनी है। हुजूर मैं बिना किसी लाग लपेट के बता दूँ कि कुछ दिन पहले ही मेरी भतीजी लखनऊ से बुरहानपुर आई है और उसे मेरा मामूली-सा कोठा सखा नापसंद आया। इसलिए उसे मैंने अपने रिश्तेदार के घर कुछ दिनों के लिए ठहराया है। अभी हुनर सीखने में उसे बहुत वक्त लगेगा। मैं सिर्फ इतना वादा कर सकती हूँ कि मेरी भतीजी के बाजार में आने के पहले मैं आपसे उसकी मुलाकात करवा दूंगी और उसकी नथ उतारने का हक आपको होगा।
कैलाश ने बहुत बेताबी दिखाते हुए कहा कि आज ही उससे मेरी मुलाकात करा दो। अगर वह मुझे पसंद आ गई तो उसे हुनर सीखने की कोई जरूरत नहीं। मैं सारी उम्र की जवाबदारी उठाने को तैयार हूँ। थोड़ी देर की खामोशी के बाद जाहिरा ने पूछा- आप शायद समझ नहीं रहे हैं कि आप क्या कह रहे हैं। कैलाश ने कहा- मैं पूरे होश-हवास में हूँ और जानता हूँ कि क्या कह रहा हूँ। अगर लड़की मुझे पसंद आई तो मैं मुँह माँगे पैसे देने को तैयार हूँ। जाहिरा ने कहा- हुजूर मेरी भतीजी की उम्र अभी सिर्फ 16 साल है और अगर छः महीने बाद भी बाजार में बैठी तो कम से कम 10 साल डटकर धंधा कर सकती है। वह मेरे बुढ़ापे का सहारा है। आप अगर मिठाई की बड़ी दुकान बेच भी दो तो भी एकमुश्त इतना पैसा मुझे नहीं दे सकते। फैलाश ने कहा- मैं आपको भारी रकम दूँगा और हर माह खर्चे के लिए आपको भरपूर राशि दूंगा। एक तरह से मैं अपनी सारी उम्र की कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा आपके नाम करने को तैयार हूँ। उठते हुए जाहिरा ने कहा- जब नौ मन तेल होगा तब राधा नाचेगी, अभी आप जाइए। कैलाश ने कुछ बोलने की कोशिश की तो जाहिरा ने
उसे मना कर दिया और अलीबख्श को आवारा लगाई जो पलक झपकते ही कमरे में आ गया क्योंकि वह सारे समय बाहर खड़ा था। उसने कैलाश का हाथ पकड़ा और सीढ़ियों से नीचे उतर गए। तांगे में बैठकर उन्होंने कैलाश से कहा- हुजूर आप तो जाहिरा का चक्कर छोड़ो, मैं आपको एक से बढ़कर एक लड़कियाँ दिखा सकता हूँ। कैलाश ने इंकार कर दिया।
दूसरे दिन कैलाश ने जाहिरा के घर जाकर उसे 10 हजार रुपए दिए और उससे कहा-ये रकम सिर्फ एक बार लड़की दिखाने के लिए दिए हैं। पसंद आने के बाद तुमको सोने से तौल दूंगा। इतना कहकर कैलाश कोठे से नीचे उतर आया। कुछ दिनों बाद अलीबख्श ने कैलाश को खबर दी कि आज रात के शो में कमल टाकीज में वह लड़की जिसका नाम नफीसा है सिनेमाघर में जाहिरा के साथ आएगी। आप सिनेमा में उससे कोई बात नहीं करेंगे।
कमल टाकीज में फर्स्ट क्लास के पीछे औरतों के लिए सुरक्षित क्लास हुआ करता था। उस जमाने में हर वर्ग की औरतें महिलाओं के विशेष कक्ष में बैठकर पिक्चर देखती थीं। उस दिन शाम से ही जबर्दस्त बारिश होने लगी थी।
कमल टाकीज के आंगन में कीचड़ हो गया था। अलीबख्श को साथ लिये कैलाश उस दरवाजे के पास खड़ा था जहाँ से महिलाएँ अपने आरक्षित कक्ष में जाती हैं। छः बजे शो शुरू हो गया, परंतु कोई बुरकाधारी औरत नहीं आई। कैलाश ने बेचैन होकर सिगरेट जलाई। अलीबख्श उसकी बेचैनी को महसूस कर रहा था। बरसात की गति बढ़ती जा रही थी और साढ़े छः बजे कैलाश को ऐसा लगा कि आज नफीसा नहीं आएगी। उसने अलीबख्श से पूछा कि क्या आज का प्रोग्राम पक्का था? अलीबख्श ने उसे यकीन दिलाने की कोशिश की कि जाहिरा के साथ नफीसा जरूर आएगी। आखिर सात बजे दो बुरकाधारी औरतें वहाँ पहुंचीं। कक्ष में प्रवेश करने के पहले नफीसा ने अपने चेहरे से बुरका हटाया। कैलाश जड़-सा खड़ा रहा। पलक झपकते ही नफीसा ने अपने चेहरे को नकाब से ढक लिया और भीतर चली गई।
अलीबख्श ने कैलाश को संभाला और सहारा देकर फर्स्ट क्लास के कक्ष में ले गया। इंटरवल में नफीसा ने कैलाश को एक झलक और दिखा दी। कैलाश का दीवानापन बहुत बढ़ गया। अलोबख्श ने उसे तसल्ली दी और नेक सलाह दी कि वह घर चला जाए। फिल्म खत्म होने पर अलीबख्श अपने तांगे पर नफीसा को उसके घर छोड़ देगा और रास्ते में उससे उसके मन की बात भी मालूम कर लेगा। कैलाश को बात समझ में आ गई और वह अपने घर चला गया।
उस रात जाहिरा ने नफीसा को समझाया कि कैलाश जैसे अमीर ग्राहक को फाँसकर जीवनभर बेवकूफ बनाया जा सकता है। दूसरा रास्ता तो यह है कि जीवन भर शरीर को नुचवाते-फुटवाते रहो और असमय में आने वाले बुढ़ापे के लिए कुछ रकम बचा सको तो ठीक है, वर्ना अठन्नी वाले ग्राहक तक को झेलना पड़ता है। अलीबख्श से यह बात मालूम पड़ ही गई कि कैलाश धुन का पक्का और वफादार किस्म का इन्सान है। ऐसे भावुक इन्सान को बेवकूफ बनाना बहुत आसान काम है। नफीसा को रंडियों के मोहल्ले की गंदगी पसंद नहीं है। कैलाश उसने लिए शरीफों के मोहल्लों में नया घर बनाकर देगा। कैलाश जैसे ग्राहक खुशनसीब रंडी को मिलते हैं। नफीसा की उम्र बहुत कम थी और उसे दुनियादारी का कोई तजुर्बा नहीं था। जाहिरा ने अपने रिश्तेदारों से बात की। कैलाश को अपनी पत्नी से कोई औलाद नहीं है गोयाकि नफीसा के बच्चे ही वारिस होंगे। इसी बात ने पांसा पलट दिया।
कैलाश ने नफीसा के लिए घर खरीदने का निश्चय किया। उसने विसाल से सलाह मशविरा किया। विसाल इस इश्क के खिलाफ था। उसने कैलाश को समझाने की कोशिश की और विरोधस्वरूप उसकी मोटरसाइकल उसे लौटा दी। इतना ही नहीं उसने उर्दू प्राइमरी स्कूल में शिक्षक के रिक्त पद के लिए अर्जी भी लगा दी और खुद सिफारिश का इंतजाम भी कर लिया। कैलाश पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ। यह उसने विसाल को जरूर समझाया कि नफीसा के मामले में मतभेद के बावजूद वह उसके यहाँ काम कर सकता है और काम नहीं करते हुए भी दुकान से मनचाहा पैसा उठा सकता है। विसाल खाँ ने उसका शुक्रिया अदा किया परन्तु अपनी जिद पर कायम रहा। उसने कैलाश को स्पष्ट कर दिया कि मास्टरी की नौकरी उसकी मनपसंद नौकरी है। कैलाश ने कहा कि जब मास्टरी का शौक पूरा हो जाए तो दुकान पर आ जाना।
कसाई कल्लू खाँ को अपने बेटे की जिद पर बहुत गुस्सा आया। उनका कहना था कि मास्टर की तनख्वाह से ज्यादा पैसा तो वे बकरों की खाल से कमाते हैं। जब कल्लू खाँ अपने गुस्सा का इजहार कर रहे थे तब विसाल अपनी जुड़ी हुई उँगली को सहला रहा था और धीमे-धीमे मुस्कुरा रहा था। उसका इशारा कीमा काटते हुए जान-बूझकर उँगली काटने के हादसे की तरफ था जिसकी याद मात्र से कल्लू खाँ सिहर गए। उन्होंने बेटे पर उतारा जाने वाला गुस्सा अपनी बीबी पर उतार दिया। बेचारी बीनियों की किस्मत ही यह है कि उन्हें कभी बिस्तर बनना पड़ता है तो कभी तहमद। कभी तौलिया तो कभी पीकदान या वीर्य का मर्तबान।
विसाल खाँ को मास्टरी की नौकरी मिलने की पूरी उम्मीद थी क्योंकि प्रताप के साहबजादे युवा नेता महादेव की सिफारिश बेअसर नहीं हो सकती थी। नौकरी के इंतजार में विसाल खाँ प्रकाश टाकीत के पास बने लसीरा होटल में वक्त गुजारने लगे। दरअसल इस खाऊ ठिए का नाम लजीज ग्राहकों ने रखा था और कालांतर में मालिक खुर्शीद खुद अपना असली नाम भूल गए। इस ठिए पर एक दुअन्नी में कीने के दो समोसे, आधा कप नमकीन चाय और दो बीड़ियाँ ग्राहक को दी जाती थीं। ठंड के दिनों में लजीज की दुकान पर पाए और पाव मिलते थे। बकरी के पैरों के आखिरी हिस्से को सारी रात बड़ी देगची में मद्धम आँच पर पकाया जाता था। इसे पाये या ट्रोटर्स कहा जाता है। लजीत मियां पाए की गुणवत्ता इस तरह चेक करते थे कि खाने वाले की उंगलियाँ चिपक-सी जाएँ और साबुन से हाथ धोने पर भी चिकनाई नहीं जाए। लजीज के ठिए पर कोई दरवाजा नहीं था और यह चौबीसों घंटे खुला ही रहता था। कुछ ग्राहक आधी रात के बाद आते थे। सिनेमा घर में आखिरी शो देखने वालों की भूख जाग उठती थी। हथकरघों पर काम करने वाले लोग किसी भी वक्त आ जाते थे। सुबह पाये तो आधी रात के बाद के ग्राहकों को खिचड़ा मिलता था जो सभी प्रकार की दालों, गेहूँ और गोश्त मिलाकर बनाया जाता था। लजीज होटल में शायरों के बैठने की जगह तय थी और उनकी गैरहाजरी में वह जगह खाली रखी जाती थी। अदब के कद्रदान ग्राहक शायरों के लिए चाय-नाश्ते के पैसे काउंटर पर दे दिया करते थे। कद्रदानों के नहीं आने पर लजीज मियां शायरों को मुफ्त में चाय पिलाया करते थे। हिन्दी और उर्दू के अखबार इन शायरों के लिए बुलाए जाते थे। शायरों की तरह स्कूल के मास्टरों की जगह भी तय थी। आम ग्राहक शायरों के सामने नजर नहीं उठाते थे और शायर मास्टरों को सलाम करते थे। यह महज खाने-पीने का ठिकाना नहीं था, वरन अदब का केंद्र था। लजीज की असली कमाई उन हिन्दू ग्राहकों से थी जो चोरी-छुपे डिब्बों में बंद खाना अपने घर मंगाया करते थे। इन ग्राहकों का कोड था पालक वाली सब्जी। लजीत के लिए ठिए पर अंडे का हलवा भी बनाया जाता था जिसमें मावा, शक्कर और अंडे होते थे। हिन्दू ग्राहकों ने इसे कोड नाम दिया था मूंग का हलवा।
विसाल खाँ की नौकरी नहीं तुथी परन्तु उन्हें मास्टरों वाली इज्जत के साथ लगीरा के अदबी क्लब में जगह मिली। इस दुकान से विसाल का एक और रिश्ता यह था कि रात उसके पिता की दुकान से आता था। कैलाश इसी दुकान पर अपने दोस्त को मने आया परन्तु उसूल उसे कैलाश नफीसा का रिश्ता पसंद नहीं था और उसने दूर रहना ही ठीक समझा।
कैलाश के नए घर बसने परमाल समाज में हड़कंप मच गया। उसे समाज से बहिष्कार करने की धमकी भी दी गई। सभी भाइयों ने उसे समझाया। लक्ष्मण ने उससे कहा कि दूध पीने के लिए बैंस बाँधने की आवश्यकता नहीं होती। कैलाश पर किसी की बात का असर नहीं हुआ।
कैलाश की पत्नी ने बच्चों को जन्म नहीं दिया, परन्तु कैलाश की रखैल नफीसा ने पाँच साल में तीन बच्चे जने और कैलाश अपने बच्चों को जान देने की हद तक प्यार करता था। कुछ ही वर्षों में नफीसा का डील डौल और हावभाव मारवाड़ी सेठानी की तरह हो गया और उसे देखकर यह बताना कठिन था कि वह तवायफों के घराने से आई है। उधर कैलाश की बीवी ने तवायफ के नाज-नखरे और अदाएँ अपना लीं, लेकिन पति का दिल नहीं जीत पाई थक-हारकर उसने अपना सारा ध्यान खाना खाने और वजन बढ़ाने में लग दिया। गम से कुछ लोगों की भूख मर जाती है और कुछ लोग ज्यादा खाने लगते हैं। दोनों ही परिस्थितियों में दरअसल गम ही मनुष्य का भक्षण कर रहा होता है।
धीरे-धीरे उसे गहने बनवाने और तुड़वाने का भी शौक हो गया। नियमित रूप से कैलाश जो पैसे घर खर्च के लिए देता था, वे सारे पैसे उसने अपने गहनों में लगा दिए और घर खर्च के लिए कैलाश की गैरहाजरी में अपना नौकर भेजकर वह दुकान के गल्ले से रुपए उठाने लगी, क्योंकि इस परिवार की सभी बहुएँ और माताएँ पवित्र चोरी का यह कार्य वर्षों से करती चली आ रही हैं और कैलाश की बहू ने सोचा कि कम से कम एक अर्थ में तो उस घर की बहू बन जाए। यशोदा से लेकर कैलाश की बहू और सीता तक इस कार्य में निपुण रहे हैं।