ए वेरी ईज़ी डेथ / अनुवादक का कथन / सिमोन द बोउवा

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सीमोन द बोउवार के आत्‍मकथात्‍मक उपन्‍यास 'ए वेरी ईजी डेथ' को पढ़ने से पहले मैंने सिर्फ 'सेकेंड सेक्‍स' का हिंदी अनुवाद पढ़ा था। भारत सरकार के सांस्‍कृतिक संबंध परिषद की ओर से जब क्रोएशिया (दक्षिण-मध्‍य यूरोप) के जाग्रेब विश्‍वविद्यालय में हिंदी भाषा विभाग स्‍थापित करने की पेशकश हुई तो अतिथि अध्‍यापक के तौर पर उस यूरोप से रू-ब-रू होने का सपना पूरा होता दिखाई देने लगा जो अपनी बौद्धिकता और वैचारिकता से भारत और एशियाई समाज को टक्‍कर और चुनौती देता चला आया है। बर्फानी यूरोप के जनवरी महीने में पहले तो लगा कि, यहाँ भारतीय संबंधों की ऊष्‍मा खोजना व्‍यर्थ है। भारतीय दूतावास के आडम्‍बरी माहौल से अलग भाषा और स्‍वधर्म के गर्व से युक्‍त क्रोएिशाई स्‍वाभिमानी चरित्रों से रू-ब-रू होते-होते कब धुर यूरोप की अकेली, दुकेली, लिपी-पुती, मेहनतकश, सर्बियाई, बोस्नियाई, बाल्‍कन, मस्‍तमौला, वृद्धाएँ, प्रौढ़ा, कुमारियाँ मुझसे अपनी जीवन-कथाएँ कहने लगीं, कब मेरे अवकाश का समय उनकी निजी जिंदगी के पन्‍नों से भर उठा पता ही नहीं चला। जहाँ सहजीवन, तलाक, प्रेम, विवाह बिल्‍कुल गैर-रोमांचकारी घटनाएँ हों, वहाँ की औरतें मेरी अब तक की देखी दुनिया से अलग थीं - सोचने-विचारने के क्रम में इटली, फ्रांस, जर्मनी और (तब के) यूगोस्‍लाविया (पहले) की कई स्त्रियों से बातचीत हुई और प्रस्‍थान बिंदु बनी - सीमोन द बोउवार।

दक्षिण-मध्‍य यूरोप के प्राचीनतम विश्‍वविद्यालयों में से स्‍वेस्लिस्‍ते उ जागरेबु (जाग्रेब विश्‍वविद्यालय) की स्‍थापना सन 1669 में हुई थी। इवाना उलीचीचा के दसवें मार्ग पर मुद्रोस्‍लोवनी फाकुल्‍तेत (दर्शन विभाग) के परिसर का वातानुकूलित पुस्‍तकालय मेरे लिए शरणस्‍थली बना था। धूप की हल्‍की किरणों को चारों ओर से घेरते बादल दिन में अँधेरा कर देते, बर्फीली बारिश चुपचाप टपकती और सब शांत, पेड़-पौधे स्‍वच्‍छ, और श्‍वेत बर्फ की चादर तले दिन और रात का फर्क कहीं गुम हो जाता। सड़कों, गलियों में इक्‍का-दुक्‍का लोग सिर से पैर तक ओवरकोट में ढँके हुए, कोई आत्‍मीय तो क्‍या परिचित चेहरा भी नहीं, ऐसे में पुस्‍तकालय की गर्माहट, बैठने, पुस्‍तकें देखने की सुरुचिपूर्ण व्‍यवस्‍था और आठ कूना (मुद्रा) की गर्म काफी का प्‍याला सीमोन के और नजदीक ले आता। सीमोन के रचनात्‍मक साहित्‍य ने घर से दूर होने की बेचैनी को कभी बढ़ाया, कभी थपथपा कर शांत किया। उसके उपन्‍यासों और आत्‍मकथाओं से हो कर गुजरना एक मधुर त्रासदी से हो कर गुजरना था। भारतीय मन और फ्रांसीसी सीमोन देश-काल-वातावरण से परे संग उठने-बैठने लगे। काफी हाउस का अपरिचित शोर समझ में आने लगा, धुएँ के छल्‍लों से भरे कहवाघर की मेज पर सीमोन बैठी दीखने लगी। स्‍काइप पर मिलने आते मित्र, परिजन, छात्र सीमोन को और न पढ़ने की ताकीद करने लगे - उन्‍हें मेरा होना खतरे में दीखने लगा। मैंने भी कई बार कोशिश की, सीमोन से बाहर निकलने की लेकिन... अनुवाद करते हुए एक-एक पंक्ति पर घंटों पहरा-सा बैठ जाता, कभी कलम फिसलती चली जाती। अपना ही लिखा फिर-फिर नया लगता। यहाँ तक कि फाइनल ड्राफ्ट करने की ताकत बची ही नहीं।

सीमोन का रचा पढ़ना एक ऐसे अनुभव लोक से गुजरना लगा जिसके कारण बीसवीं शती के विचारक और पाठक बड़े पैमाने पर उसकी ओर आकर्षित हुए थे। उसकी आत्‍मकथाएँ और उपन्‍यास पढ़ते हुए स्‍त्रीवाद को वैचारिक और राजनैतिक आंदोलन के तौर पर देखने का नजरिया मिला, जीवन जीने के लिए एक निर्देश का काम करता हुआ लगा। जहाँ 'सेकेंड सेक्‍स' मनुष्‍य की स्‍वतंत्रता की, मनुष्‍य के रूप में स्‍त्री की पराधीनता के कारणों की पड़ताल करता है, वहाँ सीमोन की आत्‍मकथाएँ यह बताने में कारगर लगने लगीं कि स्‍त्री स्‍वाधीनता कैसे पाई जा सकती है, यानी 'सेकेंड सेक्‍स' स्‍त्रीवाद के जिस सैद्धांतिक पक्ष को प्रस्‍तुत करता है वहीं आत्‍मकथाएँ स्‍त्रीवाद का व्‍यावहारिक रूप प्रस्‍तुत करती हैं हालाँकि बोउवार का कहना है कि उन्‍होंने पहले आत्‍मकथा लिखना शुरू किया, बाद में 'सेकेंड सेक्‍स' लिखा। 'वांटिंग टू टॉक अबाउट माइसेल्‍फ' में उनका कहना है कि "मुझे यह बात अच्‍छी तरह मालूम हो गई थी कि पहले सामान्‍य तौर पर स्त्रियों की स्थिति के बारे में बात करनी चाहिए।" उनकी आत्‍मकथाएँ 'मेमोआयर्स ऑफ ए ड्यूटीफुल डाटर', 'द प्राइम ऑफ लाइफ , 'फोर्स ऑफ सरकमस्‍टासेंज तथा 'आल सेड एण्‍ड डन' और उपन्‍यास 'शी केम टू स्‍टे' और 'द मेन्‍डरीन' हमारे लिए नए दौर के स्‍त्रीवादी चेहरे को पहचानने की निर्देशिका का काम करते हैं। इनमें एक बौद्धिक के रूप में, एक लेखक के रूप में, एक स्‍त्री की दृष्टि से लिखे विस्‍तृत ब्‍यौरे मिलते हैं। इनमें व्‍यक्‍त सीमोन का जीवन इसका उदाहरण है कि हम चाहे भारतीय हों या यूरोपीय, अपने माता-पिता की पीढ़ी से अलग अपने आसपास के समाज को देखते और समझते हुए कैसे जी सकते हैं। फोकाल्‍ट के शब्‍दों में कहें तो 'द यूज ऑफ प्‍लेजर' और 'द केयर ऑफ द सेल्‍फ', जिससे मिल कर ही आत्‍मनिर्भरता की अवधारणा बनती है, को सीमोन के साहित्‍य में देखा जा सकता है।

सीमोन की आत्‍मकथाओं से हो कर गुजरना दिलचस्‍प और ईमानदार अनुभव है, 'मेमोआयर्स ऑफ ए ड्यूटीफुल डॉटर' में विश्‍वविद्यालय में पढ़ने के दौरान 'पुरुष की तरह दिमाग होने की' इच्‍छा अभिव्‍यक्‍त करते हुए अपनी तुलना सार्त्र से करती है और इस निष्‍कर्ष पर पहुँचती है कि स्‍त्री के लिए पुरुष जैसी सोच होना संभव नहीं है। इसी तरह 'प्राइम ऑफ लाइफ' में उन्‍होंने अपने होटलों में रहने, एक के बाद दूसरा होटल बदलने का ज़िक्र किया है - जिन अनुभवों से गुजरते हुए लगता है कि सीमोन कैसे अपनी आर्थिक स्थिति का प्रबंधन करती होगी, यह भी कि होटलों में रहने का अर्थ हुआ कि आप हमेशा मेहमान हैं - बिस्‍तर, परदे, कुर्सी-टेबल कुछ भी आपका अपना नहीं। सीमोन के अनुभव पढ़ते हुए पाठक सीखता है कि कैफेटेरिया में कैसे बैठना चाहिए, लोगों से कैसे मिलना चाहिए, बहसें, पढ़ना-लिखना और सोचने का सलीका भी। सीमोन कहती है कि कैफे में घुसते हुए यदि आप अपने ही दो आत्‍मीय मित्रों को आपस में बात करते हुए देखें तो उनके निकट बैठ कर बातचीत में बाधा न डालें, बेहतर हो चुपचाप वहाँ से हट जाएँ। कहवाघर सामाजिकीकरण या बैठ कर पढ़ने-लिखने की जगह हो सकता है - इसे सीमोन साबित करती है और यह भी कैसे। वह बिना किसी संग-साथ की अपेक्षा के 1930 के आसपास मार्सिले और रोउन जैसे कस्‍बों में अध्‍यापन के वर्षों में, लंबी सैरों के लिए निकट जाया करती थी।

'फोर्स ऑफ सरकमस्‍टांसेज' में सीमोन द बोउवार ने युद्धोत्‍तर पेरिस का चित्रण किया है, जिसमें नए और बेहतर समाज के निर्माण का स्‍वप्‍न है। स्‍वतंत्रता के प्रति उत्‍तरदायित्‍व का बोध है। आत्‍मकथा के इसी भाग में अपने प्रकाशकों से हुई बातचीत, नेल्‍सन एल्‍ग्रेन के साथ संपर्क की चर्चा है। नेल्‍सन एल्‍ग्रेन के साथ फायरप्‍लेस के समक्ष संभोग और फिर पेरिस और शिकागो में दोनों का अलग-अलग जीवन बिताना भी वर्णित है। भौगोलिक दूरी के कारण कैसे इस आत्‍मीय संबंध का अंत हुआ, यह भी कि लिखने के लिए सीमोन ने पेरिस छोड़ना पसंद नहीं किया, इसके साथ ही बोउवार की उत्‍तर अफ्रीका, अमेरिका की वे लंबी यात्राएँ जो उसने अकेले कीं। एक जगह सीमोन ने यह भी लिखा कि इतने सारे व्‍यापक जीवनानुभव, जीवन-यात्राएँ ये सब उसके साथ ही खत्‍म हो जाएँगे। वह उन पत्रों का भी उल्‍लेख करती है जो जीवन के उत्‍तरार्ध में, दुनिया के अलग-अलग देशों की स्त्रियों ने उसे लिखे हैं। 'ऑल सेड एण्‍ड डन' में अपने मित्र सिल्विए बॉन के साथ आत्‍मीय संपर्क के विषय में उसका कहना है कि उसने कभी कल्‍पना भी नहीं की थी कि उम्र के साठवें वर्ष में उसे कोई सहयोगी और मित्र मिलेगा, लेकिन मिला। इन आत्‍मकथाओं में सबसे महत्‍वपूर्ण दो बातें उभर कर सामने आती हैं, या यों कह लें कि आत्‍मकथाएँ समग्र रूप से दो बातों पर केंद्रित हैं - एक तो आत्‍मनिर्भरता, अपनी जिम्‍मेदारी स्‍वयं उठाना और दूसरे, अपने को हमेशा बेहतर ढंग से समझने का प्रयास।

'प्राइम ऑफ लाइफ' में सीमोन के जीवन का वह कालखंड केंद्र में है जब वह माता-पिता का घर छोड़ कर अपना वयस्‍क जीवन प्रारंभ करती है - वह अपने उस कमरे का चित्रण करती है, जो पेरिस में अपनी दादी के मकान में उसे रहने के लिए मिला, जहाँ अति साधारण किस्‍म का फर्नीचर है, नारंगी कागजों से दीवारें ढँकी हैं, दीवान और किरोसीन का हीटर है। पैसे बचाने के लिए सस्‍ता भोजन करती है - दोपहर के भोजन में 'डोमिनिक' का एक कटोरी दलिया और शाम में 'ला कपोले' से एक कप गर्म चाकलेट खरीदती है और सबसे दिलचस्‍प बात जो वह लिखती है - "कपड़ों और प्रसाधन में मेरी अतिरिक्‍त रुचि कभी नहीं रही और अपने को सजाने में कभी आनंद नहीं आया, मैंने अपनी रुचि के अनुसार पूरा जीवन ऊनी या सूती फ्रॉक पहना, इसलिए अब उसी की प्रतिक्रियास्‍वरूप मैंने चाइना क्रेप और वेलवेट से बनी पोशाक चुनी जो पूरी सर्दियाँ पहनी जाती... मैं हमेशा एक जैसे कपड़े पहना करती और इसे मैं आत्‍मनियंत्रण से जोड़ कर देखती हूँ। यदि हम स्‍वयं को पूरी तरह आत्‍मनिर्भर एजेंट मानते हैं, तब यह करना जरूरी है, साथ ही एक लेखक होने के लिए आपका अपने ऊपर, अपनी इच्‍छाओं पर पूरी तरह नियंत्रण होना जरूरी है।"

सार्त्र के बारे में सीमोन ने लिखा है कि उनके पास बहुत कम धन था, लेकिन बेपरवाही उनके स्‍वभाव में थी। धन की चिंता से बेखबर वे पीते बहुत थे, और सीमोन के साथ लंबी सैरों में विचारोत्‍तेजक बहसें हुआ करतीं - "ऐसा कभी-कभी ही होता था कि मैं रात के दो बजे से पहले सोने जाती, इसलिए पूरा दिन जल्‍दी ही बीत जाता था, क्‍योंकि मैं सोई होती थी।" सार्त्र की पहल पर वे दोनों एक दीर्घकालिक संबंध के लिए राजी हुए, जिसमें दूसरों के लिए भी जगह होनी थी। वे दोनों एक-दूसरे को हर बात बताएँगे, कुछ छिपाएँगे नहीं और ईमानदार संबंध बनाएँगे। बाद में, सार्त्र ने उससे विवाह का प्रस्‍ताव किया ताकि दोनों की नियुक्ति एक ही शहर में हो जाए, लेकिन सीमोन का निर्णय अटल था कि वह कभी बच्‍चे पैदा नहीं करेगी। विवाह संस्‍था में उसकी गहरी अनास्‍था थी। उसने सार्त्र के साथ बहुत-सी चीजें, संवेदनाएँ बाँटीं, लेकिन स्‍वतंत्रता के मायने दोनों के लिए अलग-अलग थे। सीमोन के लिए जो स्‍वाधीनता थी, वह सार्त्र के लिए उबाऊ कर्तव्‍य था। सीमोन ने लिखा - "अद्भुत थी स्‍वाधीनता! मैं अपने अतीत से मुक्‍त हो गई थी और स्‍वयं में परिपूर्ण और दृढ़निश्‍चयी अनुभव करती थी। मैंने अपनी सत्‍ता एक बार में ही स्‍थापित कर ली थी, उससे मुझे अब कोई वंचित नहीं कर सकता था। दूसरी ओर सार्त्र एक पुरुष होने के नाते बमुश्किल ही किसी ऐसी स्थिति में पहुँचा था, जिसके बारे में उसने बहुत दिन पहले कल्‍पना की हो... वह वयस्‍कों के उस संसार में प्रविष्‍ट हो रहा था, जिससे उसे हमेशा से घृणा थी।" उस समय तक सीमोन की दिलचस्‍पी राजनीति में बहुत कम थी, विशेषकर संसदीय राजनीति में या यह हो सकता है कि इसका उल्‍लेख ही सीमोन ने बहुत कम किया हो। उस समय तक, जब फ्रांस में स्त्रियाँ मताधिकार से वंचित थीं - "कैबिनेट में परिवर्तन और लीग ऑफ नेशन्‍स की बहसें हमें निरर्थक लगतीं... बड़े-बड़े आर्थिक घोटाले हमें चौंकाते नहीं, क्‍योंकि हमारे लिए पूँजीवाद और भ्रष्‍टाचार दोनों पर्यायवाची थे।"

सीमोन ने रोउन-प्रवास के दौरान रविवार और बृहस्‍पतिवार की अपनी लंबी सैरों का जिक्र किया है। वह नई दिनचर्या के बारे में लिखती है - "मैं काम करती, कॉपियाँ जाँचती और ब्राएस्‍सर में खाना खाती जहाँ बहुत कम लोग आते क्‍योंकि वहाँ खाना अच्‍छा नहीं मिलता था - वहाँ की निश्‍शब्‍दता, अनौपचारिक-सा व्‍यवहार, मंद पीली रोशनी सब मुझे अपनी ओर आकर्षित करते।" यहीं पर ओल्‍गा से सीमोन की मित्रता हुई जो बाद में चल कर सार्त्र से प्रेम करने लगी - उन्‍होंने एक तिकड़ी बनाई जो बाद में टूट गई - "रविवार की भीड़, फैशनेबल औरतें-मर्द, कस्‍बाई जीवन, मनुष्‍यता, हमें रोमांचक संगीत अच्‍छा लगता और रात की निस्‍तब्‍धता भी।"

पेरिस लौट कर वापस वह उसी होटल में रहने लगी जहाँ एक दीवान था, किताबों की रैक थी और आरामदेह डेस्‍क थी। सीमोन ने किताबों की रैक और डेस्‍क का जो विवरण दिया है वह महत्‍वपूर्ण है। उसके लिए किसी भी और चीज से अधिक महत्‍वपूर्ण थी - लिखने की लालसा। उसके लिए लेखन और स्‍वावलंबन से ज्‍यादा अहम कुछ भी नहीं था। वह लिखती है - "मैंने अपने स्‍त्रीत्‍व को नकारा नहीं, बल्कि उसे महत्‍व नहीं दिया, बस उपेक्षा की, मुझे पुरुषों जैसी स्‍वतंत्रता और जिम्‍मेदारियाँ थी।" 'फोर्स ऑफ सरकमस्‍टांसेज' में सीमोन अपनी चिंता व्‍यक्‍त करते हुए लिखती है - "मुझे यह सोच कर उदासी होती है कि मैंने जो इतनी किताबें पढ़ी हैं, इतनी जगहें देखी हैं, इतनी सारी जो जानकारी जुटाई है - इनमें से कुछ भी बचा नहीं रहेगा। सारा संगीत, सारे चित्र, सारी संस्‍कृति... इतनी सारी जगहें और अचानक कुछ भी नहीं।

सीमोन ने सन 1964 में बतौर उपन्‍यासिका आत्‍मकथा लिखी - 'ए वेरी ईजी डेथ' जिसका प्रकाशन उसकी माँ की मृत्‍यु के साल भर बाद हुआ। छह सप्‍ताह के कालखंड में मरणशय्या पर मामन और सीमोन के साथ बातचीत में यह आत्‍मकथा गहरे निजत्‍व, दुख, पश्‍चात्ताप, पीड़ा के क्षणों का आख्‍यान है, माँ-बेटी की बदलती भूमिकाएँ, डॉक्‍टर और मरीज के संबंध, नैतिकता अस्‍पतालों की आंतरिक राजनीति के विविध पड़ावों से गुजरती हैं। मामन पिछले चौबीस वर्षों से विधवा और एकाकी है - सीमोन भी अपने स्‍वतंत्र जीवन और लेखन में व्‍यस्‍त है। मामन को अंत तक मालूम नहीं कि उसे प्राणघातक 'कैंसर' है - वह मरना नहीं चाहती - ठीक हो कर 78 वर्ष की अवस्‍था में जीवन को नए सिरे से जीना चाहती है। जीवन ही उसके लिए सत्‍य है - स्‍मृति के आईने में वह और सीमोन अपना अतीत देखते हैं। ताउम्र मामन से तमाम शिकायतों के बावजूद बतौर बेटी वह मामन को अंतिम समय में 'सहज मृत्‍यु' के पलों से ही गुजारना चाहती है। सीमोन का कहना है - 'मामन के प्रति पूरे सम्‍मान के साथ मैं यह महसूस करती हूँ कि हमने मामन के प्रति कोई अपराध नहीं किया, वे अंतिम वर्ष जिनमें उसकी देखभाल नहीं की गई, मामन के प्रति बेरुखी, विलोपन और अनुपस्थिति के वे पिछले कुछ वर्ष जिनमें मामन की उतनी देखभाल हमने नहीं की, उसके अंतिम समय में शांति दे कर, उसके पास रह कर, भय और पीड़ा पर विजय पाने में उसका साथ दे कर हमने उसका प्रायश्चित कर लिया, ऐसा हमें लगता है। हमारी लगभग दु:साध्‍य रात-दिन की देखभाल के बिना वह ज्‍यादा यंत्रणा झेलती। सच है, बल्कि तुलनात्‍मक दृष्टि से मैं कह सकती हूँ कि उसकी मृत्‍यु एक सहज और आसान मृत्‍यु थी।"

भावानुवाद पाठकों के सामने है - जिसकी प्रेरणा सर्जी मिखाइलिच ने दी, जिन्‍होंने बताया कि दूर से देखने पर कभी-कभी चीजें ज्‍यादा साफ दीखती हैं और ये भी कि हम सब जीवन के रंगमंच पर अपना-अपना पार्ट अदा करने को अभिशप्त हैं। सीमोन को पढ़ने और आत्‍मकथा के पुनर्प्रस्‍तुतीकरण की प्रक्रिया ने मुझे भीतर से अकेला कर दिया था - लेकिन फिर वही अकेलापन ही तो रचनाकार की उप‍लब्धि है।