ए वेरी ईज़ी डेथ / भाग 3 / सिमोन द बोउवा
"अगर वे खुश हैं, तो यह बड़ी बात है।"
शनिवार की शाम सोने से पहले हमने बातचीत की - "ये बड़ा अजीब है।" वह विचारवान सुर में बोली, "जब मैं मादामोसाइले लेबलोन के बारे में सोचती हूँ तो ऐसा लगता है वह मेरे फ्लैट में है, फूले हुए पुतले-सी जिसके हाथ न हों - जैसे ड्राइक्लीनर्स के यहाँ देखे होंगे तुमने।" "मैंने उससे कहा - "तुम्हें मेरी उपस्थिति की आदत हो गई है, अब मेरा होना तुम्हें डराता नहीं।"
"बिल्कुल नहीं।"
"लेकिन तुमने बताया था कि मैं तुम्हें डराती हूँ।"
"क्या ऐसा कहा? कभी-कभी कोई अजीब बात मुँह से निकल ही जाती है।"
मैं भी इस तरह के जीवन की आदी होने लगी। शाम के आठ बजे पहुँचने पर पपेट ने मुझे बताया कि दिन कैसा बीता, डॉ. एन. आए, मादामोसाइले कॉर्नेट आई, तब तक मैं लॉबी मैं बैठ कर पढ़ती रही, जब तक वह ड्रेसिंग करती रही। दिन में चार बार पट्टियाँ, गाज, रूई, स्टिकिंग प्लास्टर, टिन, बेसिन और कैंचियों से भरी मेज कमरे के भीतर ले जाई जाती। मादामोसाइले कॉर्नेट ने जान-पहचान की एक नर्स की सहायता से मामन को नहलाया और रात के लिए तैयार किया। मैं सोने चली गई। उसने मामन को बहुत-से इंजेक्शन दिए, फिर वह काफी पीने चली गई - तब तक मैं बेडसाइड लैम्प की रोशनी में पढ़ती रही। वह वापस लौट कर दरवाजे के निकट बैठ गई। दरवाजे को उसने ऐसे उड़काया कि रोशनी की एक पतली रेखा कमरे में आती रहे - वह पढ़ती और बुनती रही। कमरे में सिर्फ एक हल्की-सी आवाज थी जो बिस्तर से लगे स्वचालित कंपन करनेवाले उपकरण से आ रही थी। मैं सो गई। सात बजे, मामन की ड्रेसिंग के वक्त ईश्वर को धन्यवाद देते हुए अपना चेहरा दीवार की ओर घुमा लिया, जुकाम के कारण मेरी नाक बंद हो गई थी। लेकिन यह मेरे पक्ष में था कि मुझे कुछ पता ही नहीं चलता था, सिवाय यूडीकोलोन की गंध के जो मैं मामन के माथे और गालों पर अक्सर लगा देती थी। वह गंध, जो मुझे स्वदेयुक्त और रोगिणी लगती, मैं अब कभी भी उस ब्रांड का इस्तेमाल नहीं कर पाऊँगी।
मादामोसाइले कार्नेट चली गई, मैं तैयार हुई, नाश्ता किया, मामन के लिए एक सफेद-सी दवा का मिश्रण तैयार किया, जिसे उसने कुरुचिपूर्ण बताया, लेकिन उसकी पाचन शक्ति को इस दवा ने ही बढ़ाया। एक-एक चम्मच दवा मैंने उसे पिलाई, जिसमें एक बिस्कुट को चूरा कर के मिलाया हुआ था, नौकरानी ने कमरा झाड़ा-पोंछा। मैंने फूलों के गुच्छे पर पानी का छिड़काव कर के उन्हें सँवार कर व्यवस्थित कर दिया । टेलीफोन की घंटी बार-बार बजती थी, मैं दौड़ कर लॉबी में चली जाती, अपने पीछे से दरवाजा भी बंद कर देती, लेकिन मुझे पक्का यकीन नहीं था कि मामन बातचीत सुन नहीं पाती थी, मैं बहुत धीमे और सावधानी से बोलती। वह हँस पड़ी जब मैंने उससे कहा कि मादाम रेमण्ड ने मुझसे पूछा है कि तुम्हारे कूल्हे की हड्डी का दर्द अब कैसा है?
"वे इसके बारे में कुछ नहीं समझते।"
अक्सर ही एक नर्स, मामन के मित्र, रिश्तेदार मुझे उसकी हालत के बारे में जानने के लिए फोन करते। एक-एक से मिल सकने की ताकत उसमें नहीं थी, परंतु वह तो बस सबके ध्यान का केंद्र बन कर ही प्रसन्न थी। ड्रेसिंग के दौरान मैं बाहर चली गई। फिर मैंने उसे खाना खिलाया, वह चबाने में असमर्थ थी - मसली हुई सब्जियाँ, पिसे और उबले हुए फल, कस्टर्ड, उसने जबरन अपनी पूरी प्लेट खाली की - "मुझे अच्छी तरह खाना चाहिए।" - भोजन के बीच-बीच में वह ताजा फल के रस के घूँट भरती रही - इसमें विटामिन है, मेरे लिए अच्छा है ये।" तकरीबन दो बजे पपेट आई। "ये दिनचर्या मुझे पसंद आई।" मामन ने बड़े ही पछतावे से एक दिन कहा - "कैसा मूर्खतापूर्ण! अब जबकि तुम दोनों पहली बार मेरे पास एक साथ हो, मैं बीमार हूँ।"
प्राग की अपेक्षा मैं अधिक शांत थी। इसके पीछे मेरी माँ का जिंदा लाश में बदलते जाना भी एक कारण था। संसार जैसे उसके कमरे में आ कर सिमट गया था, जैसे ही मैंने टैक्सी से पेरिस की सीमा को पार किया, ऐसा लगा जैसे मंच पर अतिरिक्त लोग यूँ ही चहलकदमी कर रहे हैं, मेरा असल जीवन तो मामन के पास था, जिसका एकमात्र उद्देश्य था- उसे बचाना। रात को धीमी से धीमी आवाज भी मुझे बड़ी लगती, मादामोसाइले कार्नेट के कागज मोड़ने की फड़फड़ाहट, बिजली की मोटर की घुरघुराहट, मैं पूरे दिन कमरे में जुराबें पहन कर ही चला करती। सीढ़ियों पर चलने की आवाज, ग्यारह बजे और दोपहर के बीच ले जाई जानेवाली पहिएदार मेजें, जो धातु की थालियों और कटोरियों से भरी रहतीं - बड़ी षडयंत्रकारी-सी लगती उनकी खड़खड़ाहट। एक मूर्खा नौकरानी ने मामन को झपकी से जगा कर पूछा कि वह अगले दिन क्या खाना पसंद करेगी, मुझे उस पर बड़ा क्रोध आया और तब भी जब वह वायदा कर के गई कुछ और, पर लाई कुछ और। मुझे मामन की पसंद रास आने लगी। हम दोनों को मादामोसाइले कार्नेट पसंद थी, वह औरों से बेहतर थी।
अब हमें यह नर्सिंग होम पसंद नहीं आ रहा था। खुशमिजाज, दर्द को हर लेनेवाली नर्सें अतिरिक्त कार्यभार के तले दबी हुई थीं, वे बहुत कम तनख्वाह और रूखा व्यवहार पातीं। मादामोसाइले लेबलॉन अपनी काफी अपने साथ लाती, उसे यहाँ गर्म पानी के अलावा कुछ नहीं दिया जाता। रात्रि-नर्सों के आराम करने, नहाने या तरोताजा होने के लिए कोई जगह नहीं थी यहाँ, जहाँ वे निद्राहीन रात्रि के बाद कम से कम ताजा-दम हो लें। एक सुबह मादामोसाइले कार्नेट बड़ी परेशान थी, सिस्टर ने ड्यूटी के समय भूरे जूते पहनने का इल्जाम लगाया है। "उनकी हील नहीं है।" मादामोसाइले कार्नेट बोली - "लेकिन सफेद ही चाहिए।" मादामोसाइले दुखी थी, सिस्टर चिल्लाई - "दिन शुरू करने के पहले ही ऐसा चेहरा मत बनाओ।"
मामन यह बात दो दिनों तक बार-बार दुहराती रही : उसे जोरदार पक्षधरता करने में हमेशा आनंद आता। एक शाम मादामोसाइले कार्नेट की एक मित्र कमरे में आई, रोती हुई : उसका रोगी उससे बात करने के लिए तैयार नहीं था। इस पेशे ने इन लड़कियों को त्रासदियों के बहुत नजदीक ला कर रख दिया था, लेकिन निजी जीवन के इन छोटे-छोटे नाटकों को झेलने के लायक कठोर नहीं बनाया था।
"क्या तुमको ऐसा लग रहा है कि तुम कमअक्ल होती जा रही हो," पपेट बोली।
मेरे लिए ये सारी बातें मूर्खतापूर्ण थीं लेकिन दूर से, ऊपरी तौर पर कुछ कह देना कितना आसान होता है...
"इस काले चश्मे को लगा कर तुम बिल्कुल ग्रेटा गार्बो जैसी दीख रही हो।"
रेस्टोरेंट के मैनेजर से जब मैंने कहा - "बहुत अच्छा।" तब भी मुझे मालूम था कि यह सफेद झूठ है। मुझे हमेशा लगता था कि बाहरी दुनिया एक रंगमंच है, जिस पर मैं अभिनय कर रही हूँ। मैंने होटल को नर्सिंग होम के रूप में, होटल में काम करनेवालों को नर्सों के रूप में देखा। अब मैंने लोगों को नई दृष्टि से देखा, उनके कपड़ों के भीतर छिपी ट्यूबों को देखा। मैंने खुद को बदलते देखा।
पपेट हमेशा घबराई रहती। मेरा रक्तचाप बढ़ गया, माथे की रग तकतकाती रहती। मामन का मृत्युभय, उसे बार-बार आश्वासन देना और स्थिरता की कमी ने हमें थका डाला। पीड़ा और मृत्यु की इस दौड़ में हमने उम्मीद की थी कि मृत्यु पहले आएगी। मामन जब स्पंदनहीन चेहरा लिए सो चुकी होगी तब हम मृत्यु के उस काले फीते को उसकी सफेद बेड-जैकेट से पकड़ लेंगे। वह फीता - काला फीता - हमारे गले को भी ऐंठ देगा।
रविवार की मध्याह्न जब मैं वहाँ से चली, वह चंगी थी, सोमवार को उसके विकृत चेहरे ने मुझे आतंकित कर दिया, यह समझना मुश्किल न था कि उसकी हड्डियों और चमड़ी के बीच कोई अघट रहस्य चल रहा है, स्वस्थ कोशिकाएँ दिनोंदिन मरती जा रही हैं। रात के दस बजे पपेट ने नर्स को चुपके से एक पर्ची पर लिख कर पूछा "अपनी बहन को बुलाऊँ क्या?" नर्स ने सिर हिला दिया। मामन का दिल तेज़ी से धड़क रहा था लेकिन अभी तो घृणित पक्ष आना बाकी था, मादाम गानट्रांड ने मुझे मामन की दाहिनी करवट दिखलाई : त्वचा के छिद्रों से तरल द्रव्य टप-टप टपक रहा था - चादर भीग गई थी। उसने मुश्किल से पेशाब किया था, उसकी त्वचा फूल-सी गई थी, अपनी सूजी हुई उँगलियों को उसने उलझन भरी निगाह से देखा - "ऐसा इसलिए हुआ कि तुम हाथ को हिलातीं-डुलाती नहीं," मैंने बताया।
इक्वानिल और मार्फिया की बेहोशी के बावजूद वह अपनी बीमारी से परिचित थी, लेकिन धैयपूर्वक स्थिति को स्वीकार कर रही थी। "एक दिन जब मैं बेहतर थी तब तुम्हारी बहन ने मुझ से ऐसा कुछ कहा जो मेरे लिए बड़े काम का था, उसने कहा मुझे फिर से बीमार हो जाना चाहिए, इसलिए मुझे मालूम है ये सामान्य-सी बात है।"
उसने मादाम दि सेंतेज को एक क्षण के लिए देखा और बोली - "ओह मैं ठीक चल रही हूँ!"
मुस्कुराने से उसके मसूढ़े दीखने लगे, पहले ही वह हड्डियों के ढाँचे में प्रेतनी-सी दीख रही थी, अब उसकी आँखें बुखार से मुँदी चली जा रही थीं। खाना खाने के तुरंत बाद उसकी हालत बदतर हो गई थी - मैं नर्स को बुलाने के लिए घंटी पर घंटी बजाने लगी : जो मैं चाहती थी वह हो रहा था, वह मर रही थी और इसने मुझे बुरी तरह डरा दिया था। दवा की एक गोली उसे वापस ले आई।
शाम को मैंने जैसे ही उसकी कल्पना मृतक के रूप में की - मेरा हृदय ऐंठ गया। पपेट से सुबह ही कहा था - स्थिति बेहतर हो रही है, यह कहने का मुझे बड़ा पश्चात्ताप हो रहा है। मामन इतनी चंगी थी कि वह सिमेनन के कुछ पन्ने पढ़ सकी। रात को उसने शरीर में दर्द की शिकायत की, उन्होंने मार्फिया का इंजेक्शन दिया, दिन में जब उसने आँखें खोलीं, उन आँखों में अनदेखी, काँच की-सी पारदर्शक दृष्टि थी। मैंने सोचा - "अब यह अंत है," वह फिर सो गई। मैंने एन. से पूछा - "क्या यह अंत है?"
"अरे नहीं," उसने थोड़ी कृपा, थोड़े उत्साह-मिश्रित सुर में कहा - "दवा ने अपना असर दिखाया है।"
"तो क्या दर्द जीत जाएगा?" "खत्म कर दो मुझे, मेरी रिवॉल्वर दो, मुझ पर दया करो।"
वह बोली - "सब तरफ दर्द करता है।"
उसने चिंता से अपनी सूजी हुई उँगलियों को देखा। "ये डॉक्टर मुझे चिढ़ा रहे हैं - अब मुझे इनसे चिढ़ होने लगी है, ये हमेशा कहते रहते हैं कि मैं ठीक हो रही हूँ लेकिन मेरी हालत तो बदतर होती जा रही है।"
यह मृत्यु-उन्मुख स्त्री मुझे अपनी ओर खींचती थी। त्रिसंध्या के समय जब हम बातें कर रहे थे, मुझे ऐसा लगा कि हम सब अपनी पुरानी बातें करें - जैसे मैं अपनी किशोरावस्था में मामन से किया करती थी, लेकिन वक्त के साथ-साथ बातें भी बदल जाती हैं। मेरी ही बातचीत में, वह किशोरावस्था का कच्चापन कहाँ रह गया था।
मैंने उसकी ओर देखा। वह थी वहीं - चेतन, जागृत और इस सब से बेखबर कि वह कैसे जी रही है। अपनी ही त्वचा के नीचे क्या हो रहा है - इससे अनजान रहना ही तो स्वाभाविक है। लेकिन उसके लिए शरीर के बाहर - उसका चोटिल पेट, फिश्तुला और उससे निकलता मवाद, उसकी त्वचा का नीलापन और रोमछिद्रों से टपकता द्रव्य, वह इन सब को लगभग पंगु हो चुके अपने हाथों से महसूस नहीं कर पा रही थी। और जब उन्होंने इलाज किया, उसके घाव की ड्रेसिंग कर दी, उसका सिर पीछे की ओर लटक-सा गया था। उसने देखने के लिए आईना नहीं माँगा, अपने मृतप्राय चेहरे का कोई अस्तित्व अब उसके लिए था नहीं। उसने आराम किया, सपने देखे, शरीर का एक-एक अंग बारी-बारी से गल रहा था, और उसके कान मेरे द्वारा बोले गए असत्य की ध्वनियों से भर गए थे, उसका पूरा व्यक्तित्व हमारी आत्मीय आकांक्षा के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गया था - वह ठीक हो रही थी, मुझे उसकी अनिच्छाओं से सहमति जतानी चाहिए थी -
"तुम्हें इस दवा को अब और खाने की जरूरत नहीं।"
"यह लेना तुम्हारे लिए बेहतर होगा।"
और वह पानी में घुला सफेद खड़िया के बुरादे जैसा दीखनेवाला पाउडर झट से पी जाती। उसे खाने में दिक्कत होती, "जबरदस्ती मत खाओ, इतना काफी है, और मत खाओ।"
क्या तुम्हें ऐसा लगता है?
उसने प्लेट की तरफ देखा, संभ्रम से बोली - "थोड़ा और दो मुझे।" अंत में, मैं उसके सामने से प्लेट हटा लेती।
"तुम पूरा खा चुकी हो।" उसने अपने-आप जबदरस्ती शाम को दही खाया। वह अक्सर फल का रस चाहती, उसने अपनी बाँह को थोड़ा हिलाया, धीरे से बहुत ही सावधानी के साथ अपने हाथों को थोड़ा ऊपर उठाया और मेरे हाथ से जूस के गिलास को थाम लिया, दोनों हाथों से गिलास को पकड़ कर मुँह के पास ले गई, जिसे मैंने अब भी पकड़ा हुआ था, लाभकारी विटामिनों को गिलास से जुड़ी स्ट्रॉ से मुँह के भीतर ले गई:
"पिशाच का लालायित मुख जिन्दगी को चूस रहा था।"
आँखें उसके वीरान चेहरे पर पूरी फैल गईं, उसने आँखों को पूरा खोला, जिसके लिए बहुत यत्न करना पड़ा, अपने-आपको मद्धम प्रकाशवाले निजी संसार से उठा कर उजाले में लाने का प्रयास किया, अपना पूरा अस्तित्व वहाँ संकेंद्रित कर दिया, मेरी तरफ मुलमुला कर अत्यंत नाटकीय स्थिरता से देख बोली - "मैं तुमको देख सकती हूँ।" हर बार उसे अंधकार पर विजय पानी होती थी। अपनी आँखों से ही वह इस संसार से संबद्ध और संपृक्त थी, जैसे अपनी मुट्ठियों की जकड़ से वह बिस्तर की चादर से जुड़ी थी - इससे वह खो जाने से बचती थी -
जियो! जियो!
मैं अकेली हो गई थी, बुधवार की शाम जब टैक्सी मुझे दूर ले जा रही थी - यात्रा लैंकोमे, हॉबीगेट, हर्मेस, लैंविन से गुजर रही थी, मैंने आलोचनात्मक निगाह से गरिमापूर्ण टोपियों, वेस्टकोट्स, रंगीन स्कार्फों, चप्पलों, जूतों को देखा। कुछ ही दूर पर सुंदर ड्रेसिंग गाउन थे - कोमल रंगोंवाले - सोचा, "मैं मामन के लिए एक खरीदूँगी।" इत्र, फर, अंत:वस्त्र, आभूषण-रत्न, एक परिपूर्ण, परितृप्त आक्रामक संसार जिसमें मृत्यु का कोई स्थान न था। लेकिन सच इसके पीछे छुपा हुआ था। नर्सिंग होम के अँधियारे रहस्य, अस्पताल, रोगियों के कमरे और मेरे लिए यही एकमात्र सत्य था।
बृहस्पतिवार को मामन के चेहरे ने मुझे सहमा दिया, हालाँकि वह हमेशा ऐसा करती थी, फिर भी इस बार तो उसने मुझे बहुत ज्यादा डरा दिया, लेकिन वह देख सकती थी, उसने मेरा निरीक्षण कर कहा - "मैं तुम्हें देख रही हूँ, तुम्हारे बाल ज्यादा ही भूरे हो गए हैं।"
"ठीक बात है, लेकिन तुम्हें तो ये हमेशा से मालूम था।"
"क्योंकि तुम दोनों बहनों के बालों में बड़ी सफेद धारी है, उसे मैं हमेशा ठीक से सँवारती थी।" उसने अपनी उँगलियाँ हिलाईं।
"सफेद बाल गिर रहे हैं, ऐसा नहीं है क्या?"
वह सो गई, फिर अपनी आँखें खोलीं - "जब मैं अपनी कलाई पर बँधा फीता देखती हूँ तब मुझे पता लगता है कि जागने का समय हो गया, सोते समय पेटीकोट पहन कर सो जाती हूँ - कौन-सी स्मृतियाँ उसे अपने आगोश में ले रही थीं? उसका जीवन हमेशा बाहर की ओर खुलता था और मैंने पाया कि बड़ा दुखदायी था यह देखना कि वह अचानक अपने ही भीतर गुम हो गई थी। वह अपना ध्यान बँटाया जाना पसंद नहीं करती थी। उस दिन एक मित्र मादामोसाइले वाधियर ने एक स्त्री की जिजीविषा के बारे में बताना शुरू किया, मैंने जल्द ही उससे अपना पीछा छुड़ा लिया। मामन ने तो अपनी आँखें ही बंद कर लीं। जब मैं वापस लौटी तो वह बोली, "तुम्हें समझना चाहिए कि बीमार लोगों को ऐसी कहानियाँ नहीं सुनानी चाहिए, उन्हें इसमें कोई दिलचस्पी नहीं होती।"
उस रात मैं मामन के साथ ही रही, वह दु:स्वप्नों से उतना ही डरती थी जितना दर्द से। डॉ. एन. के आने पर उसने अनुनय किया, बल्कि लगभग गिड़गिड़ा कर बोली कि वे चाहे जितने इंजेक्शन उसे दे सकते हैं और उसने नर्स के सुई भोंकने की मुद्रा का अनुकरण कर के दिखाया।
"हा-हा, तुम असली ड्रग एडिक्ट बन गई हो," - डॉ. एन. ने दिल्लगी की - "मार्फिया बहुत ही सस्ते दामों में दिलवा सकता हूँ मैं।" फिर मेरी तरफ तुरंत उन्मुख हो गंभीरता से कहा - "कोई भी स्वाभिमानी चिकित्सक दो मुद्दों पर कभी समझौता नहीं करता - दवाएँ और गर्भपात।"
शुक्रवार का दिन यूँ ही निकल गया, शनिवार को वह पूरा दिन सोती रही, पपेट को यह अभूतपूर्व लगा। उसने मामन से पूछा -
"तुमने विश्राम किया?"
मामन ने नि:श्वास फेंकते हुए कहा - "आज मैंने जिया नहीं।"
मरण कितना कष्टकर है, जबकि कोई जीवन को इतनी शिद्दत के साथ प्रेम करता हो। डॉक्टरों का अंदाजा था वह दो-तीन महीने और खींच लेगी। इसलिए हमें अपनी दिनचर्या इसी हिसाब से व्यवस्थित करने की जरूरत थी, साथ ही मामन को हमारे बिना भी कुछ घंटे रह पाने की आदत भी डालनी थी। पपेट का पति परसों रात ही पेरिस आया था, इसलिए उसने मामन के पास मादामोसाइले कार्नेट को छोड़ने का निर्णय लिया। उसे सुबह लौट आना था, मार्था को ढाई बजे दिन में और उसे पाँच बजे शाम तक मामन के पास पहुँचना था।
पाँच बजे मैं भीतर घुसी। पर्दे पसरे हुए थे और कमरे में घुप्प अँधेरा था। मार्था ने मामन का हाथ थामा हुआ था और मामन आँखों में कातर भाव लिए सिकुड़ी-सहमी लेटी हुई थी।
वह दाहिनी करवट इसलिए लेटी हुई थी, ताकि बाईं तरफ के "बेड सोर्स" उसे तकलीफ न दें। लेकिन इस तरह से सिर्फ दाहिनी करवट लेटे रहना भी उसके लिए पीड़ादायक था। उसने ग्यारह बजे तक बड़ी बेसब्री से पपेट और लॉयनल का इंतजार किया क्योंकि नर्सें घंटी के तार को बिस्तर से जोड़ना भूल गई थीं, स्विच बोर्ड उसकी पहुँच से दूर था और वह किसी को बुला पाने में असमर्थ थी। उसकी मित्र मादाम तारापिड उससे मिलने भी आई फिर भी उसने पपेट से शिकायत की कि वह उसे बर्बर नर्सों के बीच अकेला छोड़ गई (दरअसल, वह रविवार की ड्यूटी- नर्सों को पसंद नहीं करती थी)। फिर किसी तरह लॉयनेल से बोली - "तो तुम्हें उम्मीद थी कि तुम्हें सास से छुटकारा मिल जाएगा! लेकिन ऐसा नहीं है, जल्द होनेवाला भी नहीं।" लंच के बाद वह एक घंटे के लिए जैसे ही अकेली हुई, दुश्चिंताओं और डर ने हमला कर दिया। बीमार आवाज में उसने मुझसे कहा - किसी भी हालत में मुझे अकेला नहीं छोड़ा जाना चाहिए, मैं अभी भी बहुत कमजोर हूँ, मुझे बर्बर नर्सों के भरोसे मत छोड़ो।
"तुम्हें अब नहीं छोड़ेंगे अकेला।"
मार्था चली गई, मामन झपकियाँ लेने लगी और जगी तो एक नई शुरुआत के साथ - उसके दाहिने कूल्हे में दर्द था। मादाम गोनट्रेंड ने उसके कपड़े बदले, फिर भी मामन की शिकायत दूर नहीं हुई। मैंने सोचा कि दूसरी नर्स को बुलाया जाए - "कोई फायदा नहीं, वह मादाम गोनट्रेंड ही दुबारा आएगी, वह बिल्कुल बेकार है।"
मामन को वास्तव में दर्द था, उसके शरीर में तकलीफ थी, हाँ, इसके साथ ही यह भी सच था कि उसकी पसंदीदा नर्सें जैसे मादामोसाइले मार्टिन या मादामोसाइले पेरेंट आतीं तो उसका दर्द कुछ कम हो जाता। जो भी हो वह दोबारा सो गई। साढ़े छह बजे थोड़ा कस्टर्ड और सूप खाने से उसे तृप्ति मिली। तभी वह चिल्ला उठी : उसके बाएँ कूल्हे में भयंकर दर्द उठा था, यह आश्चर्यजनक नहीं था क्योंकि शरीर से ही निकले यूरिक एसिड से सारे अंग भीग गए थे, नर्सों की उँगलियाँ चादर बदलते वक्त यूरिक एसिड से जल रही थीं। मैं घबरा कर बार-बार घंटी बजाती, खैर मामन के कपड़े बदल दिए गए, मामन का हाथ थाम कर मैंने कहा - "तुम्हें अब इंजेक्शन दिया जाएगा, उससे दर्द में आराम होगा, बस एक मिनट।"
मामन चीखती हुई बोली - "बहुत जलन हो रही है, भयंकर दर्द है, मैं अब और सहन नहीं कर सकती," और लगभग सुबकती हुई बोली, "क्या कमबख्ती है?"
इस शिशुवत स्वर ने मेरा हृदय बींध दिया। कितनी अकेली थी वह! उसे छुआ मैंने, बात की, लेकिन उसका दर्द बाँट लेना असंभव था।
उसका दिल तेजी से धड़क रहा था, आँखों में कलौंछ-सी छा गई थी, मैंने "सोचा" - वह मर रही है।" तभी वह बुदबुदाई - "मैं बेहोश हो रही हूँ..." अंतत: मादाम गोनट्रेंड ने उसे मार्फिया का इंजेक्शन दे दिया। मुझे डर था कि इंजेक्शन का असर सुबह तक खत्म होते-होते दर्द लौट आएगा, जब मामन के पास कोई नहीं होगा और वह किसी को आवाज भी नहीं दे पाएगी। अब मामन को क्षण भर भी अकेला छोड़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता था। इस बार नर्सों ने मामन के कपड़े और बिस्तर बदल कर इक्वॉनिल दिया, साथ ही उसके खुले अंगों पर एक क्रीम भी लगा दी थी, जिससे उसकी त्वचा चमकने लगी थी। जलन अब बुझ गई थी लेकिन चौथाई घंटे की जलन अनंत काल की पीड़ा दे गई थी। इस पृथ्वी पर कोई भी... न मेरी बहन, न डॉक्टर, न ही मैं, इस व्यर्थ की पीड़ा का औचित्य समझ सकने में सक्षम था।
सोमवार की सुबह मैंने पपेट को फोन कर के मामन की दशा बताई, अंत निकट था। उदर की क्रियाएँ लगभग ठप थीं, आँतों का खुलना-बंद होना रुक गया था और शोथ से निकलते द्रव्य को सोख पाने में शरीर अक्षम हो गया था। डॉक्टर ने नर्सों को मामन को सिर्फ सेडेटिव्ज देने को कहा था, यही एक रास्ता बच रहा था।
दो बजे पपेट एक सौ चौदह नम्बर कमरे के बाहर दिखाई दी, वह बहुत परेशान थी। मादामोसाइले मार्टिन से बोली - "कल की तरह मामन को तकलीफ में अकेला छोड़ कर चली मत जाना।"
"लेकिन अगर मार्फीन के इंजेक्शन सिर्फ बेडसोर्स के दर्द को दबाने के लिए दिए जाएँगे तो बाद में चल कर मार्फीन काम नहीं करेगा।"
ये उसका आम जवाब था, जो वह सैकड़ों रोगियों को दे चुकी थी। वास्तविकता तो यह थी कि मामन जैसे अनेक रोगी मार्फिया के दौरान ही मौत की नींद सो गए थे। "मेरे ऊपर तरस खाओ, मार डालो मुझको," - वह ऐसी आवाजें सुनने की अभ्यस्त थी। अगर डॉक्टर पी. ने झूठ कहा हो तो? "एक रिवॉल्वर लाओ : मार दो मामन को, घोंट दो उसका गला!" ये सब स्वैर कल्पनाएँ मात्र थीं। लेकिन मेरे लिए उसकी घंटों दर्द भरी चीखें घंटों बर्दाश्त करना संभव नहीं था।
"हम डॉक्टर पी. से बात करेंगे।" उनके आते ही हमने उन्हें घेर लिया।
"आपने वायदा किया था कि उसे और कष्ट नहीं होगा।"
"उसे कष्ट नहीं होगा," क्योंकि वे किसी भी कीमत पर मामन की जिन्दगी लंबी करना चाहते थे इसलिए जरूरत पड़ने पर एक और ऑपरेशन और साथ ही ब्लड ट्रांस्फ्यूजन और जीवनरक्षक इंजेक्शन देंगे।
"हाँ।"
उसी सुबह डॉक्टर एन. ने पपेट से कहा था कि वे मामन को बचाने के लिए जो भी करना चाहते थे, कर चुके। अब मामन की पीड़ादायक जिंदगी को और लंबा करना परपीड़न के अलावा कुछ नहीं।" लेकिन सिर्फ इतने भर से हमारी शंकाओं का परिमार्जन संभव नहीं था। हमने पूछा डॉक्टर पी. से, "क्या मार्फिया उसके दर्द को खत्म कर देगा?"
"जितनी जरूरत है उतना मार्फिया उसे दिया जाएगा।"
उनकी दृढ़ता ने हमें साहस दिया। हम थोड़े शांत हो गए। वे मामन के कमरे में ड्रेसिंग देखने गए।
"वह सो रही है।" हमने बताया।
"उसे पता भी नहीं चलेगा कि मैं यहाँ हूँ।" इसमें कोई शक नहीं था कि डॉक्टर के जाने तक मामन गहरी नींद में थी। लेकिन पिछले दिन उसके डर को याद कर के मैंने पपेट से कहा कि हम में से कोई न कोई उसके पास जरूर होना चाहिए जब वह नींद से जागे।
मेरी बहन ने दरवाजा खोला, मेरी तरफ मुड़ी, पीला-जर्द चेहरा लिए बेंच पर लगभग गिर पड़ी।
"मैंने उसका पेट देखा है। मैं उसके लिए इक्वानिल लाने गई थी। उसी समय डॉक्टर पी. लौटे थे वहीं। उसने मामन का पेट देखा था!
"कितनी बुरी स्थिति है।"
ओह नहीं, डॉक्टर पी. ने कहा तो, ऐसे रोगियों में ये सामान्य-सी बात है, लेकिन उनके चेहरे पर भी असमंजस का भाव था।
"वह जीते जी सड़ रही है।" पपेट बोली।
मैंने उससे कोई सवाल नहीं किया। हम ने बातें कीं, फिर मैं मामन के बगल में बैठ गई, लगभग छह बजे उसने आँखें खोलीं।
"समय क्या हुआ? समझ में कुछ नहीं आ रहा है, क्या रात हो चुकी है?"
"तुम पूरी दोपहर सोती रहीं।"
"मैं अड़तालीस घंटे सोई!"
"नहीं-नहीं," मैंने कहा और पिछले दिन की बातें याद दिलाईं। खिड़की के पार के अँधेरे और नियॉन बत्तियों की ओर देख कर बुदबुदाई - "मुझे समझ नहीं आ रहा।" आवाज में नाराजगी थी। उसे बताया मैंने, आनेवाले लोगों और फोन कॉल्स के बारे में।
"मुझे क्या फर्क पड़ता है इससे," वह बोली।
उसके कानों में अधूरी पड़ी आवाजें गूँज रही थीं।
मैंने डॉक्टरों की आवाजें सुनी थीं, वे कह रहे थे - "इसे नीम-बेहोशी की दवा दी गई है।"
वे सावधानी बरतना पहली बार भूले थे। मैंने समझाया कि डॉक्टर कह रहे थे कि जब तक उसके बेड सोर्स सूख नहीं जाते तब तक उसका गहरी नींद में सोना अच्छा है।
"हाँ, लेकिन इतने दिन तो मेरे हाथ से निकल गए न।"
"आज का दिन मैंने नहीं जिया। मेरे दिन घटते जा रहे हैं।" हर दिन उसके लिए अमूल्य था और वह मरने जा रही थी।
वो ये नहीं जानती थी : लेकिन मुझे मालूम था उसके नाम पर मैं रिवॉल्वर की गोली दाग चुकी थी। उसने थोड़ा सूप लिया, हम पपेट की प्रतीक्षा कर रहे थे।
"यहाँ सोने से वह थक जाती है," मामन बोली।
"नहीं, ऐसा नहीं है," मैंने कहा
उसने नि:श्वास भरा - "अब मेरे लिए कोई फर्क नहीं पड़ता तो मुझे चिंता किस बात की है।"
सोने जाने से पहले उसने कुछ शंका से पूछा - "लेकिन क्या लोगों को ऐसे बेहोश किया जा सकता है! ऐसे?"
क्या ये प्रतिरोध था?
मुझे लगता है वह पुनराश्वासन चाहती थी।
मादामोसाइले कार्नेट के आने पर मामन ने आँखें खोलीं। वे भटकीं, थोड़ी ही देर उसने नजर को नर्स पर टिका पाने में सफलता पाई, जैसे नवजात शिशु पहली बार सृष्टि को चकित नेत्रों से देखता है - यह कुछ-कुछ वैसा ही था।
"तुम, वहाँ हो, कौन हो तुम?"
"मैं मादामोसाइले कार्नेट हूँ।"
"तुम इस वक्त यहाँ क्या कर रही हो?
"अब रात हो चुकी है," -मैंने फिर बताया उसे। उसने मादामोसाइले के चेहरे पर अपनी चौड़ी आँखें टिका कर फिर पूछा।
"तुम यहाँ क्यों आईं?"
"आप को जरूर याद होगा मैंने आप के बगल में बैठ कर कई रातें गुजारी हैं।"
"वास्तव में! क्या बात है! " मामन ने कहा।
मैं ज्यों ही चलने को प्रस्तुत हुई तो मामन ने पूछा -
"क्या जा रही हो तुम?"
"मेरे जाने से तुमको परेशानी होगी? "
एक बार फिर उसने वही जवाब दिया - "मेरे लिए अब सब बराबर है।"
उसी समय मुझ से जाया नहीं गया : दिनवाली नर्स ने कहा था कि मामन ये रात गुजार नहीं पाएगी, उसकी नब्ज अड़तालीस से सौ के बीच गिरती-उठती रही थी। दस बजे के करीब नब्ज की गति स्थिर हुई। पपेट वहीं लेटी, मैं घर लौट आई। मामन एक-दो दिन में ही मर जाएगी बिना किसी विशेष कष्ट के।
सुबह उसका दिमाग बिल्कुल साफ था। जैसे ही वह दर्द से कराहती, वे उसे एक "सेडेटिव" दे देते। तीन बजे लौटने पर मैंने देखा वह शंताल के साथ बिस्तर पर गहरी नींद में सोई हुई है।
बेचारा शंताल!
थोड़ी देर बाद ही उसने मुझसे कहा - "उसे इतना काम रहता है मैं उसका इतना समय ले लेती हूँ।"
"लेकिन वह तुम्हारे पास आना पसंद करता है, उसे तुमसे लगाव है।"
आश्चर्य और दुख मिश्रित आवाज में मामन ने कहा - "मेरे लिए तो.. मैं अब बिल्कुल जानती नहीं कि मैं किसी को पसंद करती भी हूँ या नहीं।"
मुझे उसका अभिमान याद आया - "लोग मुझे इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि मैं खुशमिजाज हूँ।" धीरे-धीरे कई लोग उसके प्रति उदासीन हो गए थे। अब उसका हृदय बिल्कुल जड़-सा हो गया था : थकान उससे उसका सब कुछ छीन चुकी थी। अब भी उसके प्यारे शब्द मेरे दिल को हिला देते थे, ठीक वैसे ही जैसे इस निर्लिप्ततापूर्ण कथन ने मेरे दिल को हिला दिया। पहले तो बने-बताए मुहावरे और पुरानी भाव-भंगिमाएँ उसकी सच्ची भावनाओं को ढँक लेते थे लेकिन अब उसमें दिखावे की गर्माहट भी नहीं बची थी इसलिए मुझे संवेदना के ठंडेपन की अनुभूति हो रही थी।
उसकी धड़कन बिल्कुल धीमी थी, ठीक उसी समय मैंने सोचा - अगर यहीं सब खत्म हो जाए, बिना किसी शोर-शराबे के। लेकिन काला रिबन उठा और गिर गया, छलाँग इतनी आसान नहीं थी। पाँच बजे जगाया, उसी के कहने पर क्योंकि वह दही खाना चाहती थी - "तुम्हारी बहन चाहती है कि मैं दही खाऊँ, यह मेरे लिए अच्छा है।"
उसने दो-तीन चम्मच दही खाया, कई देशों में मृतक को खाना देने का रिवाज है, मैंने उसके बारे में सोचा। सूँघने को एक गुलाब का फूल दिया, जो कैथरीन पिछले दिन ले कर आई थी। मामन ने उस पर व्यस्त-सा दृष्टिपात किया और दुबारा गहरी नींद में डूब गई, उसके कूल्हों के जलते हुए दर्द ने उसे जगा दिया। मार्फिया इंजेक्शन का कोई प्रभाव उस पर नहीं दीख रहा था। दो दिन पहले जैसे मैंने उसका हाथ थामा था, वैसे ही फिर थामा और उससे गुजारिश की - "एक मिनट और! एक मिनट में ही इंजेक्शन काम करनेवाला है - बस एक मिनट!"
मैंने नर्स से दूसरा इंजेक्शन देने की गुजारिश की। नर्स ने मामन को थोड़ा खिसका कर बिस्तर ठीक कर दिया। मामन फिर से सो गई, उसके हाथ बुरी तरह ठंडे थे - बिल्कुल बर्फीले। नौकरानी झुँझलाई हुई थी क्योंकि वह शाम छह बजे ही रात का भोजन ले कर चली आई थी, जिसे मैंने लौटा दिया था। मृत्यु और मृत्युशय्याएँ ही इस क्लीनिक का जीवन थीं। साढ़े सात बजे मामन बोली - "ओह, अब मुझे कुछ ठीक लग रहा है। सच में ठीक। एक लंबे समय बाद मैं अपने-आप को ठीक-ठाक स्वस्थ महसूस कर पा रही हूँ। जीन की बड़ी बेटी आई थी, जिसने मामन को काफी, कस्टर्ड और थोड़ा सूप पिलाने में मेरी मदद की। खाँसी के कारण उसे कुछ तरल पिलाना कठिन हो रहा था, उसका गला रुँध जाता था। पपेट और मादामोसाइले कार्नेट ने मुझे लौटने का सुझाव दिया। रात को कुछ नहीं होगा, संभावना इसी की थी और मेरा रात को वहाँ होना मामन को चिंतित कर देगा। मैंने उसे चूमा तो वह अपनी धुली-सी मुस्कान में बोली - "मैं खुश हूँ, तुम मुझे स्वस्थ देख कर जा रही हो!
आधे घंटे के बाद मैं बिस्तर पर थी। मैंने नींद की गोलियाँ ली हुई थीं। जब जगी, टेलीफोन बज रहा था - "सिर्फ कुछ ही मिनट में मार्शल तुम्हें लेने कार से आ रहा है।" आधी रात को लॉयनेल का चचेरा भाई पेरिस की सुनसान सड़कों पर मुझे कार में ले जा रहा था। हमने पोर्ट शैंपरेट में थोड़ी कॉफी गुटकी। पपेट नर्सिंग होम के बगीचे में हमसे मिलने आई -"सब खत्म हो गया।"
हम सीढ़ियों से ऊपर गए। यह सब अचानक नहीं था पर अकल्पनीय था, कि मामन के बिस्तर पर एक मृत शरीर लेटा हुआ था।
उसके हाथ और माथा बिल्कुल ठंडे थे। वह अभी तक मामन थी, लेकिन अब वह हमेशा के लिए अनुपस्थित थी। उसकी ठोढ़ी पर एक पट्टी बँधी हुई थी, जिससे उसका चेहरा फ्रेम में बँधा हुआ-सा लग रहा था। मेरी बहन र्-यू यब्लोमेट जा कर कुछ कपड़े लाना चाहती थी।
"क्या फायदा?"
"ऐसा ही किया जाता है।"
मुझे यह विचार ही अजीब-सा लग रहा था कि मामन को हम वो जूते और कपड़े पहनाएँ, जैसे कि वह डिनर पार्टी पर जा रही हो, और मुझे लगा कि वह भी ऐसा तो नहीं ही चाहती होगी - वह हमेशा कहा करती कि मृत्यु के बाद उसके शरीर का क्या होगा, इससे उसे कुछ फर्क नहीं पड़ता।
"उसे लंबीवाली रात्रिपोशाक पहना दो।" मैंने मादामोसाइले कार्नेट से कहा।
"और उसकी शादीवाली अँगूठी का क्या होगा?" पपेट ने पूछा। टेबल के ड्राअर में से वह अँगूठी निकाल कर उसकी उँगली में पहना दी गई।
क्यों?
इसमें क्या शक था कि वह सोने का गोल टुकड़ा धरती पर किसी का भी नहीं था।
पपेट बुरी तरह थक गई थी। मामन की मृत देह को एक बार दिखा कर मैं उसे जल्दी से बाहर ले गई। हमने मार्शल के साथ बार में जा कर एक ड्रिंक लिया जहाँ उसने बताया कि हुआ क्या था।
लगभग नौ बजे डॉक्टर एन. कमरे से बाहर आ कर गुस्से में बोले - "दूसरी क्लिप भी निकल गई है, आखिर ये सब तो उसी के लिए किया गया है, झुँझलाहट हो रही है!" वे चले गए, मेरी बहन बुत की तरह खड़ी की खड़ी रह गई। मामन ने अचानक गर्मी लगने की शिकायत की थी, उसे साँस लेने में थोड़ी दिक्कत पेश आ रही थी, उसे इंजेक्शन दिया गया और वह सो गई। पपेट ने कपड़े बदले, बिस्तर में लेट कर एक जासूसी कहानी पढ़ने लगी। आधी रात के करीब मामन जगी, पपेट और नर्स उसके बिस्तर के बगल में खड़ी थीं, उसने आँखें खोलीं - "तुम यहाँ क्या कर रही हो? इतनी चिंतित क्यों दिखाई देती हो? मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"
"तुम कोई बुरा सपना देख रही थी," कहते हुए मादामोसाइले कार्नेट ने मामन के बिस्तर की सलवटें ठीक कीं, इतने में उसका हाथ मामन के पाँवों से छू गया, पाँव बर्फ की तरह ठंडे थे, मेरी बहन यह तय नहीं कर पा रही थी कि मुझे फोन करे या नहीं, लेकिन रात के इस पहर में अचानक मेरी उपस्थिति मामन को डरा सकती थी, जिसका दिमाग बिल्कुल साफ था, वह सब कुछ ठीक से समझ रही थी। पपेट वापस सोने चली गई। रात के एक बजे मामन फिर बेचैन हो गई, बड़ी ही कर्कश और खुरदुरी आवाज में उसने एक पुरानी टेक के शब्द फुसफुसाए जो पापा गाया करते थे - "तुम दूर जा रहे हो... और तुम हमें छोड़ जाओगे..."
"नहीं... नहीं," पपेट बोली - "मैं तुमको नहीं छोड़ूँगी।" मामन ने अर्थपूर्ण मुस्कुराहट फेंकी।
उसे साँस लेने में दिक्कत थी। दूसरे इंजेक्शन के बाद थोड़ी स्पष्ट आवाज में बुदबुदाई - "हमें जरूर.... जरूर... वापस।"
"हमें डेस्क पर वापस आना चाहिए।"
"नहीं," मामन ने कहा- "डेस्क नहीं, डेथ।"
उसने "डेथ" शब्द पर ज्यादा जोर दिया। फिर बोली - "मैं मरना नहीं चाहती।"
"लेकिन तुम पहले से बेहतर हो? तुम ठीक हो रही हो।"
इसके बाद वह थोड़ा टलमलाई, कुछ अनर्गल बोलने लगी। मेरी बहन ने कपड़े पहने : मामन लगभग अचेत हो चुकी थी। अचानक वह चिल्लाई - "मैं साँस नहीं ले पा रही।"
उसका मुँह खुल गया, आँखें फट कर बाहर निकलने को हो गईं, सिकुड़न भरा चेहरा, जोर से उसका शरीर ऐंठा और वह कोमा में चली गई।
"जाओ, टेलीफोन करो," मादामोसाइले कार्नेट बोली, पपेट ने मुझे फोन किया : मैंने फोन नहीं उठाया। ऑपरेटर लगातार मुझे फोन करती रही, आधे घंटे बाद मेरी नींद खुली थी।
इस बीच पपेट वापस मामन के पास गई : अब वो वहाँ नहीं थी- उसका दिल धड़क रहा था, वह साँस भी ले पा रही थी, शून्य आँखों से वह किसी को देख नहीं पा सकती थी, और इसके बाद सब कुछ खत्म था।
डॉक्टरों ने कहा - "उसे मोमबत्ती की तरह ही जाना था।"
"यह ऐसा नहीं होना था, ऐसा नहीं होना था..." सुबकती हुई पपेट बोली।
"लेकिन मादाम," नर्स ने कहा - "मैं इतना कह सकती हूँ कि इट वाज ए वेरी ईजी डेथ।"
मामन पूरा जीवन कैंसर से बुरी तरह भयभीत रही, हो सकता है जब वह नर्सिंग होम में थी तब भी उसे कैंसर का भय हो, जब वे लोग उसे एक्स-रे के लिए ले कर गए थे। ऑपरेशन के बाद तो उसने कभी एक क्षण के लिए भी इसके बारे में नहीं सोचा। कुछ दिन ऐसे भी थे जब वह लगातार हमेशा कैंसर के बारे में सोचती रही थी, उसे कैंसर ने धर दबोचा है। यदि उसे मालूम हो जाता तो शायद वह इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाती और तभी मर जाती। लेकिन उसके दिमाग में इस संदेह का लेशमात्र भी न था : उसका ऑपरेशन पेरिटोनाइटिस के लिए ही हुआ है - जो भयंकर तो है, लाइलाज नहीं।