कमिनिया.. / ट्विंकल रक्षिता
वही सपना... पैसों से भरी नाव, किनारे खड़े ढेरों चीखते चिल्लाते लोग। संधू एक एक बंडल नदी में बहाती जाती और जब उसकी बारी आती तबतक वो नींद से जाग चुकी होती, पसीने से तर शरीर और सूखी कंठ... गट गट एक गिलास पानी पी के फिर सो जाना, यही चल रहा था पिछले कुछ दिनों से उसके सपनों में, जब से उसकी माय मरी है दस लाख रुपए किसू सिंघ देने को तैयार है। संधू की माय हिरमनी किसू सिंघ की कमिनिया (पर्मानेंट नौकरानी, जो खेत खलिहान संभाले) थी।
छरहरा बदन, बेबाक अंदाज और पूरे भुइंटोली में सबसे आकर्षक महिला... भुइंटोली की बाकी औरतें हिरमनी की नौकरानी लगती थी, उसका पति कनेसर कहता फिरता है कि अतिहास उठाई के देख ला... हम्मर मऊग केकरो छोड़न न पेंहलक... बात भी सही है, हिरमनी किसी बाभन या राजपूत के औरतों की छोड़ी साड़ी नहीं पहनती थी कभी...हां बाकी भुइनियों की बात अलग थी, वो सब जिनके-जिनके यहां काम करती थी पहन के छोड़ी हुई साड़ियां या उनके बच्चे के पुराने कपड़े सर से लगा लेती थी... लेकिन हिरमनी कहती थी कि न बाबू... मर जायेब लेकिन कौनों अमीर के देह वाला रोग अप्पन बाल बच्चा के न लगाएब... बाभनी औरतें तो जलने लगी थी उससे जब सबको पता चला कि हिरमनी ब्लाउज के नीचे उसी रूपा कंपनी की सफ़ेद चोली भी पहनती है। सबसे ज्यादा डाह किसू सिंघ की मेहरारू सोनाबिघा वाली को ही होती थी... जब भी दो चार के बीच बैठती यही बात-खिसा...राड़ राड़ीन का ही जमाना है चाची... बपचोदी को देखिए... गंजी पहनती है। उधर से कोई टोन छोड़ता... बाकी हमको नहीं लगता है कि कनेसर एतना हाय-फाय हो गया है कि छिनरी को गंजी लाके दे... अरे त ओकरा इयार के कमी हई... सही चाची, लेकिन असल सतभतरी एही छिनार है। तरह-तरह के सबाद चिखित हई। खेत खलिहान में इयार... घर दलान में भतार। ही ही ही ही... ये सब सुनके सोनबीघा वाली अन्दर तक छनक जाती थी, और रात होते होते घर में महाभारत... लोटा थारी आंगन में और घर में सोनाबीघा वाली बंद... अगे मइयो गे मईयो, हमार करम भूटल ए बाबूजी.. काहेला ई कोढिया ही बियाह गेला ए बाबूजी... कई बार तो ऐसा हुआ कि वो फोन करके बाप या भाई को बुला लेती... फिर कीसू सिंघ करजोड़ी करते, वो हज़ार वादे करवाती तब जाके भाई को बोलती... रहे दे बाबू... हम न जाएब।
दरअसल इसी साल किसु सिंघ जब मुखिया के चुनाव में खड़े होनेवाले थे और कई बार हिरमनी को चुनाव प्रचार के लिए बोलेरो में बिठा के घूमते थे, अब उसके जैसी समझदार औरत पूरे बभनटोली में थी भी तो नहीं,भले हिरमनी पढ़ी लिखी नहीं थी लेकिन बोलने बतियाने में कोई दूसरी औरत उसका मुकाबला नहीं कर सकती थी... पढ़ाई लिखाई के प्रति उसी की जागरूकता के कारण उसकी बेटी संधू इंटर पास कर चुकी थी और बीए में नामांकन भी हो चुका था... बस समस्या थी कॉलेज आने-जाने की लेकिन इस समस्या का समाधान भी हिरमनी लोन लेके कर चुकी थी... घर से कॉलेज की पर्याप्त दूरी होने के कारण और निचली जाति के कारण उसे कॉलेज में ही हॉस्टल मिल गया था। गांव-गांव घूमते हैं बैंक वाले... अब वो गांव में किससे भीख मांगते फिरती... दो कट्ठे जमीन पर उसने चुप चाप सवा लाख लोन ले लिया जिसे हर महीने सत्ताइस सौ रुपए देकर चुकाना था... और फ़िर संधू ने भी आश्वासन दिया था कि वो कोई काम ढूंढ लेगी घंटे दो घंटे का... उसने कंप्यूटर और सिलाई दोनों गांव में ही जीविका के कैंप से सीख चुकी थी, उसे भरोसा था कि ऐसे कामों की कमी नहीं है जिससे दो चार हज़ार कमाएं जा सके।
इधर चुनाव के प्रचार में हिरमनी को भी दिन के हिसाब से खाना और तीन सौ रुपए मिल जाते थे कभी कभी कनेसर भी डोरिया जाता था पीछे-पीछे तो डबल कमाई हो जाती थी। बेटा नीरज अभी सातवीं में ही गांव के स्कूल में पढ़ता था तो उसके लिए फिलहाल कोई विशेष चिंता न थी। हिरमनी कीसु सिंघ के साथ जहां भी जाती वहां की दलित औरतों को मोह लेती, हां ऊंची जातियों में उसकी न चल पाती पर वहां किसु सिंघ संभाल लेते| वैसे भी इस पंचायत में सवर्णों का वोट अधिक नहीं था, इसीलिए जरूरी था कि दलितों को मिला के रखा जाए और इसी काम के लिए हिरमनी को चुना गया था| किसु सिंघ गाड़ी से उतरते ही उसे नोटों का एक बंडल थमा देते और वो झट पट उसे ब्लाउज में घुसा लेती| ये सिलसिला छः महीने से नियमित चल रहा था| हिरमनी एक एक नोट बड़ी सूझ बूझ से और सही जगह खर्च करती... जहां उसे लगता कि वोट आने की संभावना है वहीं उसकी ब्लाउज ढीली होती, नहीं तो वो सिर्फ़ लोगों के हाथ पैर दबा के आगे बढ जाती। कई बार कनेसर उसे बोलता की कम से कम एक आध नोट इधर भी फेंक दे, जरा एक मग ताड़ी पी आऊं तब उसे आंख दिखाती हुई पच्चास का एक नोट पकड़ा देती... गाड़ी में बैठते वक्त बाकी पैसे किसू सिंघ के हवाले। जब जब कनेसर इनलोगों के साथ आता, गाड़ी में बैठे लोग खूब रस लेते...कोई पूछता... का हो कनेसर का पुन कैले रहले की हीरा पैले... खी खी खी खी खी... सही मालिक... अब समझली की आप सब के दुआर लिपली पोतली, ओकरे फल मिलल होई... हिरमनी शरमा के उसे चुकुटी पिलाती और चुप रहने का इशारा करती।
आस पास के गांवों में भले लोग उसकी बात सुन लिया करते थे लेकिन अपने
गांव में नहीं... किसू सिंघ ने चुनाव के कुछ दिन पहले ही ये एलान किया कि भुइंटोली में शनि
महाराज का मंदिर बनवाएगा जिसके लिए उसने हिरमनी से ही उसके दुआर पर जमीन का एक
टुकड़ा हाथ जोड़के मांगा... और बदले में बीस हज़ार रुपए देने का आश्वासन भी, लेकिन
हिरमनी शनिचर महाराज के नाम एक फूटी कौड़ी लिए बिना जमीन देने को तैयार थी... पंद्रह
दिन के भीतर ही मंदिर तैयार और सोलहवें दिन मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा। ये सब देखते बाभनियों
के कलेजे और छन छन करने लगे... किसु सिंघ की चचेरी भउजाई सोनबिघा वाली को कहती
अब देखना ई छीनार का छिनरपन... अभी तक तो सब भीतरिया था अब खुल्लम खुल्ला
नाचेगी साया पहन के... इसी बीच संधू हॉस्टल चली गई, हिरमनी ने उसे सात हजार का स्क्रीन
टच मोबाइल दिलाया जिसमें जाते समय संधू सबका फोटो उतार ले गई... दादा, माय, और
बिरज का... बिरज बोला था उस दिन ला दीदी तेरी खींच दूं... तब कैसे संधू ने हिरमनी को
सेल्फी लेके चौंका दिया, तब संधू कहां जानती थी कि माय हमेशा के लिए इसी फोन में फोटो
बन के रह जायेगी... चुनाव प्रचार के दौरान सिंघ साहब ने उसे खेत खलिहान से छुट्टी दे रखी
थी, लेकिन उसका जी न मानता था धान पक के तैयार हो चुके थे और सिंघ साहब बेखबर...
अंत में उसने ही और मजदूर खोज के धान की कटाई शुरू करवाई, सिंघ साहब जब उसे देखते
तो कहते... वाह गे हीरिया... तू न होखते ता हमरा का होईत... सब बाभन कहते ए हिरिया,,,,,
दुई चार पग हमरो खेत में धर दे...अगली बरस सोना उगली ता नथिया गढ़ा देब.... हा हा हा
हा हा... हीरामनी तुनक के बोलती ...अदूर बाबू नथुनी पेनहियो लेली... आऊ उतरियो गेल...
ओहि नथुनी बचा के राख दीहा ... बुची के बियाह में काम आई, का पता ऊ साल धान होई की
न होई.... और लोग दांत कटकटाते बढ़ जाते। धान के बोझे खलिहान में आ गए थे... इमली के
पेड़ से भी ऊंची गांज (धान के बोझों को सुनियोजित करके एक गुम्बद का आकार दिया जाता
है) बन रही थी किसु सिंघ की... वो भी एक दो नहीं बल्कि चार चार... जो भी देखता उसे सर
पूरी तरह उठानी पड़ती... तब कहीं जाके पूरी गांज देख पाता कोई... कनेसर तीस मजदूर
औरतों को ले आया धान पीटने और खुद मजे से धान के बोझों पर बैठ कर हुक्म जमाता... अरे
ढंग से पीट मोहन की बहुरिया... तुझे तो धान निकालने भी नहीं आता, अरे देख तेरी गट्ठर में
ढेरों धान वैसे ही रह गए... कुछ सीख ले अपनी सास से... सास मुंह चमकाती... अरे जाओ
बबुआ... न जाने मायके से क्या सीख के आई है, परसों रात लौका के तरकारी में एक कटोरा
पानी डाल के दाल बनाए डाली... सारी तरकारी गई गाय के नाद में। दिन रात बस अपने मुंह
का फोटू लेते रहती है, भेजती होगी भतार को... अब तुम्हीं बताओ कनेसर, काम करे में हुआं
(वहां) मन लगेगा बिलुआ को, मरद कुकुर के जात... ऊ पर लाली पाउडर लगा के भतार को
दिखाए दिखाए दुबराए डालती है।
देखो अम्मा... हमर देह न जराओ, एक दिन अगर उको फोटो न भेजें तो तोर दुलरुआ कब के यहां आए गया होता, हमका कउनों सौख नहीं है, फोनों ऊहे दे गया है। देख लो सब... देख लिया न?? कैसे एक बात भुइया न गिरने देती है, सब बात का तड़ाक से जवाब... इन सब के बीच कनेसर मजे से दिन काट लेता, नीरज बीच में खाना पानी पहुंचा जाता, और हिरमनी की खोज खबर भी दे जाता... दादा... अम्मा गई आज परानपुर, बोली आबे में शाम होएगी।
शनि महाराज के मंदिर में एक भी औरत बभनटोले से नहीं आती थी, सच और न्याय के देवता भी छुआ गए थे। सोनबिघा वाली की नई जिद... अरे अप्पन दुआरी पर उतनी जमीन नहीं थी जो न्याय धरम के देवता भी उसी के दुआर पर बिठा लाए... मरने के बाद का भी दरवाजा बन्द किए डालते हो तुम... अरे का ज़बाब दोगे उस लोक में... जब देवता पितर पूछेंगे की मेरे लिए गज भर जमीन भी नहीं थी तुम्हारे दुआर पर।... अरे तू परेशान न हो, एक बार मुखिया बन जाऊं तो घर चारों कोने पर मंदिर बना दूंगा, बस तू तब तक चुप रह। हां चुप ही रहती... जब बंडल के बंडल नोट हमार ब्लाउज में भी खोस देते लेकिन हमको तुम अट्ठनी के लिए तरसाए डालते हो, किसू सिंघ मौसम का इशारा समझ गए उन्होंने चुपचाप हजार रुपए उसकी हथेली पर रखकर चलते बने। कितना आसान होता है औरतों को उल्लू बनाना या फसाना... मन ही मन किसु सिंघ अपनी इस उपलब्धि पर खूब खुश होते।
धान के बड़े बड़े ढेर खलिहान में पड़े थे... किसी को फुरसत न थी उन्हें बोरों में भर कर घर लाने की या फिर व्यापारी खोज कर बेच देने की... राजनीति चीज़ ही ऐसी है। घंटों मीटिंगे होती थी, रात-रात भर प्रतिनिधि या उनके समर्थक सो नहीं पाते थे... झारखंड का बॉर्डर लांघते हुए दारू की बोतलें पहुंच जाया करती थी दलान में... घंटों घसर घसर मसाला पीसा जाता और मुर्गों की बलि चढ़ जाया करती... और भाई लोग खाए पिएगा नहीं तो चलेगा कैसे... डॉक्टर भी ऑपरेशन करते बखत दो ठेपी पी लेता है बढ़न काका... अरे चुप रह... ससुरा एक बोतल हमको पिया दो, नरेटी रेत देगें किसी का भी... का बात करते हैं काका??
अरे तुमको पता नहीं है साल दू हजार में मनेर चट्टी का बूथ भी यहीं था, लाला जादव को जानते हो न ?? उसका बाप आया भोट देने... साला जिधर चलता था कंधे पर लटकाए रहता था, खुद को मुखमंत्री समझता था, आया और झांटने लगा, बहिनचोद हमरे गांव में आके आऊ हमही को बता रहा था कि अबकी बार उसके बहिन का भतार मुखिया बनेगा... कुल मुखियागिरी घुसेड़ दिए थे भीतर... एके गड़ासी में माथा दाएं बाएं हो गया था.... कोई कुछो नहीं उखाड़ पाया... चारों तरफ वाह वाह!!!
ठंड सब कुछ को धीरे धीरे अपनी आगोश में समेट रही है... ठाकुरबाड़ी के सामने एक पोखर... जिसके उत्तरी छोर पर हिरमनी का घर था... ठाकुरबाड़ी के खर्चे और सुबह शाम उनको भोग लगाने में जो खर्च होता था वो इस पोखर में पाली गई मछलियों से चलता था... ठाकुर जी के नाम पार बीस बीघे जमीन भी थी... उससे जो भी अनाज पैदा होता उसे बेचना और उस पैसों को ठाकुर जी के नाम पर अपने घर के बैंक में जमा करना और उसे कहां और कब खर्च करना है वहीं जानते थे। इस बार एक भी मछली नहीं बिकेगी... उसे भुइंटोली के जिम्मे कर दिया गया था... अरे भगवान को कितना भोग लगेगा, वो कहते थोड़े हैं कि सुबह शाम मोहनभोग ही खायेंगे... गरीबों का पेट भरेगा तो भगवान भी खुश हो जाएंगे... और फिर किसु सिंघ के होते भगवान को भी भूखे नहीं रहना पड़ेगा वो अपने घर से दस बोरा चावल एक बोरा बूट (चना) के दाल, तेल मसाला और सेंधा निमक पहुंचा दिए हैं ठाकुरबाड़ी... हालांकि पंडीजी खुश नहीं थे, उनका कहना था कि किसु सिंह भगवान का हक मार रहे हैं, लेकिन इसका खुलेआम विरोध वो नहीं कर सकते थे क्योंकि किसु सिंघ उनको मंदिर के पिछवाड़े मछली खाते पकड़ लिए थे, तब से दोनों में न जानें क्या साठ-गांठ हुई कि अब मंदिर में जो भोग लग जाए वही सही। इन सब के बीच असल दुर्गति भगवान की हो रही थी... कहां मोहनभोग, और अब दाल भात... मजबूरी थी बेचारे की, चुपचाप खाए जा रहे थे वरना किसू सिंघ इसपर भी आफ़त किए देते।
शीत की हल्की बौछारें शुरू हो चुकी थी... लेकिन चुनाव का माहौल और गरम-गरम बातें गांव का वातावरण गर्म किए थी, लोगों के साथ-साथ रातें भी जाग रही थी... जब लोग सोते तब रात भी सो जाती... चुनाव के अंतिम सात-आठ दिनों से खतरा अधिक बढ़ गया था| डर था कि कहीं अंतिम दिनों में पैसों के जोड़ पर दूसरा प्रतिद्वंद्वी बिल्ली मार ले जाए तब क्या होगा। हालांकि इसकी कोई गुंजाइश न थी... रात-रात भर पहरे दिए जा रहे थे कि कोई बाहरी आदमी गांव में न आए... जितने तेजी से चूल्हे में आंच न जलती उससे कहीं अधिक तेज बातें... वैसी बातें जिनमें घर से निकलते-निकलते अनेक बातें जोड़ के अफवाह का रूप बड़ी कुशलता के साथ दे दिया जाता... इन सब के बीच हिरमनी की दिनचर्या में कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा था... आचार संहिता लग जाने से पैसों के साथ-साथ उसका भी प्रचार-प्रसार में घूमना बंद हो गया था, उसकी पुनः वापसी खेत खलिहानों में हो चुकी थी... धान की फ़सल कटते ही उसने खेतों की जुताई शुरू करा दी और लगे हाथ गेहूं की बुआई भी... बीच-बीच में किसु सिंघ के दलान भी हो आती... कभी खाद, कभी बीज... कभी पटाई के पैसे, इससे अधिक उसे अब कोई मतलब नहीं था।
अफवाहों का क्या ठिकाना... सच पर कई परतें डाल देती है और खुद सबसे उपर अकड़ के बैठ जाती है, चाह के भी सच को कोई नहीं देख सकता... और फ़िर अफ़वाह की खूबसूरती का सामना करना सच के बूते नहीं।
चुनाव से एक रात पहले, आज गांव सजा है... गांव के बाहर तक लाइटें लगाई गई हैं... खाली ईवीएम और कर्मचारियों का जत्था मिडिल स्कूल की बाउंड्री में शरण ले चुका है और निरीक्षण कर रहा है। सब कुछ ठीक ठाक जान पड़ते ही ईवीएम को उसके नियत स्थान पर रख दिया गया और कड़ी हिदायत दे दी गई की बाउंड्री के आस पास कोई भी आदमी न दिखे... चार फोर्स तैनात कर दिए गए ओर उनकी खातिरदारी के लिए किसु सिंह के बारह लठैत... दारू, ताड़ी, खैनी, सिगरेट सब तैयार है... बस सही इशारे का इंतजार है।
नरेश दास जी... जिनके जिम्मे पूरी चुनाव टीम आई थी उन्होंने पहले मीटिंग में ही किसु सिंघ से कहा था कि सिंघ साहब नाक मत कटवाइएगा बाभनों का... हमरे बाप दादाओं का पेट आपही लोग के यहां भरा है वही उम्मीद हम भी करते हैं... अरे इसका चिंता मत करिए दास जी कउनों दिक्कत नहीं होगा... आप बस मौका दीजिए, हां ये बात अलग है कि बाहर आते आते हजार गाली से दास जी का पूरा खानदान न्योत दिए थे सिंघ साहब... तेरा बहिनिया के चोदो , साला छटल चमार है... लेकिन इससे अधिक इनका जोर नहीं था, आज वही चमार उनके दलान में बैठ के मजे से मुर्गा, रोटी भात,सलाद और देशी शराब के मजे ले रहा है... डेढ़ सौ लोगों के भोजन और दारू का प्रबंध सिंघ साहब के दलान पर है... आज रात कोई नहीं सोएगा... रिस्क बहुत है। कनेसर और हिरमनी भी जी तोड़ काम कर रहे हैं... बाहर के लोगों को खिलाना पिलाना उन्हीं के जिम्मे है... अभी विधायक जी पधारेंगे जिनकी छत्र छाया पूर्ण रूप से सिंघ साहब पर हैं और उनके समर्थन में कुछ दिन पहले रोड रैली का आयोजन भी किया गया था... एक ही दिन में विधायक जी बारह गांवों का दौरा किए थे... इतनी रफ्तार से गाड़ियां दौड़ी थी कि मत पूछिए... वैसे सुनने में आया था कि दस लाख रुपए विधायक जी लिए थे एक दिन के लिए...खैर जनता का क्या... साली कुतिया की जात है... जिस भीड़ में कुत्तों की संख्या अधिक होगी उधर ही दौड़ेगी... भरदम मरवा के किकियाती फिरेगी।
वैसे कई बार यही नेता लोग अपवाद के रूप में भी सामने आते हैं... दरअसल बात यह है कि कोई कितना भी बड़ा चुतिया हो कभी-कभी चुतियापे से ऊब के अच्छे काम भी कर लेता है... खैर...।
ठीक साढ़े दस बजे विधायक जी की गाड़ी सिंघ साहब के दलान पर रुकी...आगे पीछे दो मुस्टंडे राइफल टांगे। दास जी भी खा रहे थे, उनको कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा विधायक जी के आने से ... वो खाते रहे, लेकिन बाकी पूरी भीड़ विधायक जी के इर्द गिर्द चिल्लरों की तरह चिपक गई... वैसे चिल्लरों को नहीं पता कि इतनी बड़ी संख्या में होने के बावजूद वो बीच में बैठे इज्जतदार, शरीफ, ईमानदार नेता का खून एक बूंद भी पी पाएगी लेकिन वो ईमानदार नेता एक-एक बूंद पी जाएगा... मांस के लोथड़े में सिर्फ मांस ही छोड़ेगा, सिर्फ सूखा मांस ... खासकर तब-जब सत्ता में उसकी सरकार हो।
सबने दम भर खाया पिया अचाया... हिरमनी कभी सलाद काटती कभी दौड़ के रोटियां लाती, सोनबीघा वाली तो साफ-साफ बोल चुकी थी कि मैं न परोसूंगी चमार को पत्तल, जिसके साथ गली-गली घूम आए हो उसी से कहो। हिरमनी को क्या फर्क पड़ता, जबसे पैदा हुई यही देखते और करते बड़ी हुई।
दारू के आठ गैलन दालान की कोठरी में रखे हुए थे जिसमें पांच खाली हो चुके थे... सिंघ जी के साले साहब शीशे के चार गिलासों में दारू के साथ स्पेशल चिकन लॉलीपॉप ले आए... लेकिन विधायक जी दारू नहीं पीते.... उनके दोनों मुस्टंडे में एक उनको अपने हाथों से सफेद चूरन देता है और वो उसे कागज़ के गोले में भरके सिगरेट जैसा पी जाते हैं... और फिर एक-एक करके तेरह टंगड़ी चबा जाते हैं, सबके खाते-पीते बारह बज चुके थे... सिंघ साहब को तो एक निवाला नहीं रुचता ... रात तो अमावस की जान पड़ती थी पर इतनी लाइट बत्तियों की रौशनी प्रकृति को लाचार साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी... कनेसर और हिरमनी भी अपने घर जा चुके थे... उनका काम यहीं तक था। कनेसर तो एक मग में टुन्न हो चुका था और घर जाते-जाते न जाने कितने राग में गाने गा चुका था... घर पहुंचते ही औंधे मुंह खटोले पर गिर पड़ा... हिरमनी भी थकी-हारी दुआर पर ही खटिया डाल लेट गई... उस रात ढेरों कुत्ते एक साथ रोते थे गांव के पिछवाड़े, वो भौंकते-भौंकते सागवान के बगीचे में जाते... और फिर गांव की तरफ़ मुंह करके रोते।
पूरे दिन जम के वोटिंग हुई... कहीं कोई गड़बड़ नहीं, बड़े ही शांत तरीके से। आज सिंघ साहब भी बड़े शांत थे, एक बार भी वोट देने के अलावे उस जगह नहीं गए, दलान पर ही बैठे रहे पूरे दिन... रह-रह के उनका साला कुछ खुसुर पुसुर कर लेता था। कानेसर भी अलसाया उठा और अपने बेटे के साथ वोट दे आया... रास्ते में उससे कई लोगों ने हिरमनी के बारे में पूछा, का हो कनेसर हिरमनी केकरा से पइसा ले लेहिस, आज भोट देवे में पिछुआय गई... वो निश्चिंत भाव से कहता मालिक इहवा होई.. ओकर चिंता मत करा, ऊ दोगलिन न हई... लोग मुंह बना के आगे बढ जाते। दोपहर बीता... शाम हुई, पर हिरमनी का घर न आई... कनेसर निश्चिंत था कि आज सिंघ साहब के यहां ढेरों लोग आए होंगे वो झाड़ू बर्तन में भिड़ी होगी..., खुद जाकर देखना उसे ठीक न लगा, ऐसा करने पर हिरमनी उसे कई बार झिड़क देती थी... वो कहती कि लोग का कहिन... कि खाए खातिर पीछे-पीछे दौड़े आत है,और फ़िर कल रात ही लौटते समय एक थरिया मास और बीस पच्चीस रोटी हिरमनी के हाथ नीरज के नाम पर सिंघ साहब भिजवा चुके थे... हो सकता है आज रात भी लौटने में देरी हो और वो दोनों का खाना लेके आ जाए।
वक्त बीतता गया नौ बजे, दस, ग्यारह और फ़िर बारह... कुत्तों का भौंकना जारी था... आज
और जोर-जोर से। बासी ताड़ी पीने के बाद नशा गजब का चढ़ता है... एक मग पिलाओ और पेट
फाड़ के बच्चा बाहर... जच्चा बच्चा दोनों निरोग। पूरे गांव में अजब सी मनहूसियत छाई हुई है...
सारे लठैत थक के चूर हो गए हैं, आज कोई जलसा नहीं होगा, सिंघ साहब की तबीयत ठीक
नहीं है। सांय-सांय करके रात बढ़ती है... कुत्तों का भौंकना बढ़ता है और पूरे गांव के लोगों की
नींद गहरी होती जाती है, आज कोई चाहे तो पूरा गांव लूट ले... पर कुत्तों को चैन नहीं... ऐसे
भौंक रहे हैं मानो इनको भी वोटिंग का अधिकार चाहिए था और नहीं मिला।
हजारों की भीड़ लगी है सागौन के चारों ओर... लोगों की भीड़ घटती नहीं, बढ़ती
जाती है।
सागवान के पेड़ों के बीच एक गढ़े में पड़ी है हिरमनी की लाश... अहले सुबह एक कुत्ते ने हिरमनी की ब्लाउज कनेसर की खाट के पास रख दी और तबतक भौंकता रहा जबतक कनेसर की नींद न खुली... अब वो कितना भी पियक्कड़ हो लेकिन ब्लाउज पहचानते देर न लगी... गिड़ते-पड़ते पहुंचा बगीचे में... हिरमनी का सर कीचड़ नई नीचे दबा पड़ा था और पूरा शरीर बाहर... शायद कौओं के चोंच मारने से पूरा शरीर लहू लुहान था, कनेसर के पहुंचते ही उस कुत्ते ने हीरामनी के शरीर को ढकना शुरू किया... कभी पैर ढंकता तो कभी सर... कनेसर के पीछे ढेरों लोगों की भीड़ ... किसी की हिम्मत नहीं होती की उसका सर मिट्टी से बाहर निकाले, पर नीरज से न रहा गया, उसके मां के सर को मिट्टी से निकाला और दहाड़ मार के रोने लगा... कनेसर की आंखों में एक बूंद आसूं नहीं... सब रो रहे हैं, चारों ओर भयावह चीखें उठ रही हैं, हीरिया की माय बोलती है.... अरे मालिक के बोलाबा हो... हाय रे नीरबंसा, ई के कोढ़िया कयलक रे बाप... निरजवा के टूअर बनाए देलक रे बाप... पर किसू सिंघ सुबह से गायब हैं... पता चला कि रात में विधायक जी की तबीयत बड़ी खराब हो गई थी उनके साथ भोर में ही पटना गए हैं। किसी को कुछ नहीं सूझता... शाम होने को है... इसी बीच संधू भी आ गई हॉस्टल से, बेटी को देख कर कनेसर के सब्र का बांध टूट गया... पछाड़ खा के गिर पड़ा और दोनों ओर से बच्चे ... ताजुब की बात थी कि तभी तक पुलिस का कोई अता पता नहीं, कई बार फोन किया जा चुका था पर कोई प्रभाव नहीं।
गांव वालों का कहना था कि लाश से बदबू आने लगी है और अब इस मिट्टी को रखने से का फायदा, जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी अंतिम संस्कार कर दो, सिंघ साहब फोन न उठाते थे... लेकिन संधू अड़ी है, पुलिस आएगी और अगर न आएगी तो मैं माय की लाश लेके जाऊंगी.. रोते पीटते फोटो खींच रही है संधू... लाश के पास बैठ के फोन के सामने मदद की गुहार लगाती है... पर कोई फायदा नहीं हुआ । पूरी रात संधू की जिद पर लाश वहीं पड़ी रही... अगली सुबह तक सच में लाश से बदबू आने लगी थी, लोग की भीड़ छटने लगी थी पर संधू टस से मस न होती थी, सिंघ साहब के आते ही भीड़ बढ़ने लगी और पुलिस की गाड़ी भी, संधू के कई दोस्त पहुंच चुके हैं जो हिरमनी की फ़ोटो खींचते हैं, और पुलिस की निंदा करते हैं... सरकार की टांग खींचते हैं। सबकी ज़िद है कि लाश का पोस्टमार्टम हो, नीरज का बयान आता है कि परसों रात में उसने देखी थी सागवान के आस पास तीन चार लाइटें जलते और विधायक जी की गाड़ी भी लगी थी सटे रोड पर... इससे ज्यादा वो कुछ नहीं जानता...
लोग स्थिति भांपते हुए खिसकने लगते हैं लेकिन बाहरी लोगों की भीड़ बढ़ने लगी थी... पिछली बार के हारे हुए विधायक जी और ढेरों लोग आ चुके थे, जिले के न्यूज रिपोर्टर भी, पर गांव से एक भी आदमी नहीं... ऐसा लगता था मानों गांव में कोई महामारी अभी-अभी फैली हो और सबको निगल चुकी हो... कुत्ते आस पास में ही घूम रहे थे... शायद नीच जातियों के सच्चे यार यही होते हैं। हिरमनी की लाश जा चुकी है पोस्टमार्टम के लिए, साथ में संधू, उसके कुछ दोस्त और पुराने विधायक जी भी गए हैं... पीछे पीछे सिंघ साहब भी गांव के कुछ लोगों को लेके गए हैं ।
संधू के लिए कभी नारियल पानी तो कभी फल... साथ ही साथ उन सभी लोगों का भरपूर ख्याल रख रहे हैं सिंघ साहब, सबके सामने कहते कि संधू उनकी बेटी जैसी है, वो उसको न्याय दिला के रहेंगे... नौ बजे रात तक लाश वापस मिल चुकी थी, लाश की स्थिती इतनी अच्छी नहीं थी कि घर पहुंचा के पुनः उसे शमशान घाट लाया जा सके। खुद संधू थक चुकी थी, इतनी ताकत न बची थी कि एक बार उठ के हिरमनी को देख ले, वैसे देखने लायक कुछ न बचा था, बची थी तो फोन में दो चार पुरानी तस्वीरें जिसे एकटक देखती रहती थी। हालांकि उस गांव के निचली जातियों के लोगों की एक भी लाश शमशान घाट में न जली थी, सबकी लाश गांव के पूर्वी कोने पर घनी बसबाड़ियों के पीछे जला दी जाती थी, हिरमनी पहली भुइनि थी जिसको ये सौभाग्य मिला था... हीरिया की माय कहती थी कनेसर से... हिरमनी के करम सुघर कि बिसुन (विष्णु) नगरी में अंत किरिया भेल, संधू बुदबुदाती हां सच में उसके करम अच्छे रहे होंगे... जो इतनी अच्छी मौत नसीब हुई।
डॉक्टरों का कहना था कि पंद्रह से बीस दिन लगेंगे रिपोर्ट आने में, हालंकि दो-तीन दिन काफ़ी थे... पर अंदर की बात अंदर वाले लोग ही जानें । तब से किसु सिंघ हर रात संधू के घर जाते हैं और घंटों वहीं बैठते हैं, लेकिन विधायक जी का पता नहीं, ख़बर मिली थी कि उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं है, लेकिन सिंघ साहब मामला सेट करने में लगे हैं... अगर दस लाख रुपए लेके भी संधू मान जाए तो बात बन जाए... और फिर जीतने की पूरी उम्मीद है इन पैसों को वापस अपनी झोली में लाना वो भली भांति जानते हैं।
परिणाम घोषित होते ही एक बार फिर सिंह साहब के दलान पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था... चारों तरफ सिंह साहब की जय-जयकार हो रही थी लेकिन संधू और कनेसर उस भीड़ में शामिल न थे... रात बीते आज फिर सिंघ साहब पधारे हैं... वैसे अब सिंघ साहब नहीं वो मुखिया जी हैं... लेकिन आज भी अकेले आए हैं और बड़ी जल्दी चले गए, न जाने क्या कह के गए कि अब संधू को हर रात वही सपना आता है, पैसों से भरी नाव... वो गुस्से में सारे नोट बहा डालती है पर जब ख़ुद कूदना चाहती है उस नदी की धार में तो फिर नींद से जाग उठती है और दहाड़ मार के रो पड़ती है... उस क्षण में वक्त भी थम जाता है और संधू से दुगुनी तेज दहाड़े मार के रोने लगता है... कुत्ते भी रोने लगते हैं। हालांकि एक बात अभी अभी फैलनी शुरू हुई है कि हिरमनी का भूत सोनबीघा वाली का गला दबाए डालती है, अब पता नहीं सच कितना भीतर जकड़ा है और अफवाह कितना ऊपर...