कामिला रहामी / बलराम अग्रवाल
जिब्रान के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण महिला नि:संदेह उनकी माँ ‘कामिला’ थीं। उनका जन्म बिशेरी में 1864 में हुआ था। वह अपने पिता की सबसे छोटी संतान थी। कामिला का विवाह अपने चचेरे भाई हाना ‘अब्द अल सलाम रहामी’ के साथ हुआ था। जैसा कि उन दिनों अधिकतर लेबनानी करते थे, विवाह के बाद हाना रोज़ी-रोटी की तलाश में अपनी पत्नी के साथ ब्राजील चला गया। लेकिन कुछ ही समय बाद वह वहाँ बीमार पड़ गया और नन्हे शिशु बुतरस (पीटर) को कामिला की गोद में छोड़कर स्वर्ग सिधार गया। कामिला बच्चे को लेकर पुन: अपने पिता स्टीफन रहामी के घर लौट आईं। स्टीफन रहामी मेरोनाइट पादरी थे। उन्होंने कामिला का दूसरा विवाह कर दिया, लेकिन वह पति भी अधिक दिन जीवित न रह सका।
कामिला बहुत कम पढ़ी महिला थीं क्योंकि उस ज़माने में, वह भी गाँव में, लड़कियों को अधिक पढ़ाना ज़रूरी नहीं समझा जाता था। लेकिन वह बेहद समझदार थीं तथा अरबी और फ्रांसीसी भाषा धाराप्रवाह बोलती थीं। उनका कंठ बहुत मधुर था और वे चर्च में धार्मिक भजन बड़ी तन्मयता से गाती थीं। जिब्रान का पिता बनने का सौभाग्य जिस आदमी को मिला उसने उस वक्त, जब विधवा कामिला अपने पिता के बगीचे में कोई गीत गुनगुना रही थीं, उनके गाने को सुना और दिल दे बैठा। उसने कामिला से विवाह का प्रस्ताव उनके घर भिजवाया। यह प्रस्ताव मान लिया गया। उसके पिता यानी खलील के दादा भी एक जाने-माने मेरोनाइट पादरी थे। बहुत सम्भव है कि कामिला के पिता इसलिए भी उनके बेटे के साथ अपनी बेटी का विवाह करने के प्रस्ताव पर आसानी से सहमत हो गए हों। वह परिवार यों भी काफी धनी था। जिब्रान का पिता बादशाह के लिए रिआया से कर वसूल करने का ठेका लेता था और खाली समय में भेड़ों की खरीद-फरोख्त का व्यापार भी चलाता था। इसी ग़लतफ़हमी में जिब्रान के कुछ जीवनीकारों ने उनके पिता को ‘गड़रिया’ भी लिख दिया है जो गलत है।
खलील जिब्रान के मन में अपनी माँ के लिए असीम लगाव था। अपनी पुस्तक ‘द ब्रोकन विंग्स’ में उन्होंने लिखा है: "इस जीवन में माँ सब-कुछ है। दु:ख के दिनों में वह सांत्वना का बोल है, शोक के समय में आशा है और कमजोर पलों में ताकत।"
अप्रैल 1902 में छोटी बेटी सुलताना के देहांत के बाद, पहले ही टी.बी. से ग्रस्त कामिला पर भी बीमारी ने अपना ज़ोर दिखाया। फरवरी 1903 में उन्हें अपना ऑपरेशन कराना पड़ा, लेकिन वे स्वस्थ नहीं हो पाईं। उसी वर्ष जून में मरियाना और जिब्रान को अकेला छोड़कर वे स्वर्ग सिधार गईं।