कुँइयाँजान / नासिरा शर्मा / पृष्ठ 1
अंदर से वाली गली में फत्तू चायवाले की दुकान पर आज कई दिनों बाद रौनक थी। दरअसल, यह चायखाना मोहल्ले के रिटायर बूढ़ों का अड्डा था, जहां बैठकर समाचार बांचा जाता और अहम मुद्दों पर धुआंधार बहसें होती थीं। इसलिए इधर-उधर से कुछ जवान भी आकर बैठक लगाते, ताकि बिना पढ़े दुनिया-जहान की खबर रखें। इस समय सरकारी स्कूल के रिटायर अध्यापक नदियों को आपस में मिलाने के विषय पर भाषण दे रहे थे, जिसको सब बडे ध्यान से सुन रहे थे। भई, मैं कहता हूँ कि सड़क का जाल पूरे भारत में फैलाया जा सकता है तो इन बड़ी नदियों को आपस में क्यों नहीं जोड़ा जा सकता? सर आर्थर कॉटन, जो पेशे से इंजीनियर थे, उन्हीं की यह जोरदार योजना थी। दूसरे इंजीनियर भारत से हैं डॉ. के.एल. राव, जो यह मानते थे कि इससे कम जल-क्षेत्र भी सींचे जा सकते हैं। इस योजना पर छप्पन हजार करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है या इससे भी थोड़ा ज्यादा, तो महाशय, हमारे गाँव-बस्तियाँ फिर से लहलहा उठेंगी और सबको जल का समान वितरण मिलेगा। मैं तो कहता हूँ, सरकार को कल की जगह आज ही काम शुरू करवा देना चाहिए।
--'बाबूजी, पानी जाने वाला है। आयके नहा लो! उनके बेटे ने छत से उन्हें पुकारा।
आ रहे हैं, भई। मैं नहाना भी तो नहीं टाल सकता हूँ। आखिर पूरे चार दिन बाद पानी आज आया है। यह कह वह कहकहा मारकर हँस पड़े और बैठे लोग विचारमग्न हो उठे कि क्या वास्तव में नदियों का जाल पूरे देश में बिछ सकता है और तब जगह-जगह पानी उचित मात्रा में मौजूद होगा?
हमका तो मास्टरजी की बात पर विश्वास नहीं हुआ। दुइ नदियन के इ शहर मा पानी की किल्लत देखो। खिलौने वाले ने कहा और चाय के पैसे अदा कर अपनी साइकिल की तरफ बढ़ा, जिस पर आगे-पीछे खिलौनों की दुकान सजी थी। उसकी बात सुन कुछ ने गरदन हिलाई और बाकी सोच में डूब गए।
गली में इस समय उत्सव-सा व्याप रहा था। औरतें नहा-धोकर, आंगन, चबूतरे पर बैठी पैरों में आलता लगा रही थीं। माँएं बेटियों के सिरों में कंघी कर उनके चिल्लाने के बावजूद कस-कस के चोटियां गूंथ रही थीं। धुले कपड़े छत-आंगन की अलगनी पर फैले फरफरा रहे थे। आज हफ्ते-भर बाद जमादार भी बड़े मन से नालियों से कूड़ा निकालकर गली-किनारे जमा कर रहा था। बत्तखें कूड़े के ढेर में चोंच मार कुछ ढूंढ़ने की कोशिश कर रही थीं। ऊपर डाल पर बैठा बंदर बड़ी देर से मनसा की नई-नवेली बहू को ताक रहा था, जो अलग-अलग कोण से अपना मुखड़ा शीशे में निहार रही थी। सहसा बंदर दबे पांव नीचे उतरा और मनसा की बहू के हाथ से आइना छीन ऊपर छत पर चढ़ गया, जो मांग में सिंदूर भरने ही जा रही थी। अचानक हुए इस हमले से घबराकर वह चीख पड़ी। बंदर ऊपर जा, उसी की नकल करता अपना चेहरा निहारने लगा। फिर जाने क्या सिर में समाई कि आइना उठा बीचोबीच गली में पटक दिया। स्कूल जाते बच्चों के सामने शीशा जो एकदम तड़ाक की आवाज के साथ गिरा तो वे अचकचा के उछल पड़े। कुत्ता, जो बीच गली में खड़ा किसी दार्शनिक की तरह पूरे माहौल का जायजा ले रहा था, चौकन्ना हुआ और गिरे दर्पण के चूरे के पास जाकर पहले उसे सूंघता रहा, फिर जोर-जोर से भौंकने लगा। गेहूँ के बोरों से लदा ठेला उधर से गुजरा तो कुत्ते को जमा, वहीं खड़ा देख ठेले वाले ने झिड़का, हट, हट! रास्ता छोड़। बे-मतलब साला भौंकता है।
बूढ़ा अंधा फकीर घर-घर भीख मांगता घूम रहा था। जिसके पास जो था वह उसके कटोरे में डाल रहा था। उसके हाथ में पकड़ी लाठी उसका सहारा थी, जो उसको पहचाने रास्तों में सुरक्षित पिछले कई दहाइयों से चला रही थी।
संभल के बाबा, आगे गड्ढा है। रजमानी ने उसे टोका और सहारा दे दूसरी तरफ पहुँचा दिया।
यहाँ कल तक तो सब ठीक था? अंधे फकीर ने लाठी से रास्ता टटोलते हुए धीरे-से कहा।
ठीक तो अभी भी है, मगर कल शाम खंभा गड़े के चलते यह गड्ढा खुदा रहा; मगर अब काम निकल गवा तो भरवाए कौन! रमजानी ने चिढ़े हुए स्वर में कहा।
तुम भरवाय देव न? अपना तहमत घुटनों के ऊपर उठाते हुए ननकू रिक्शेवाला बोला।
जे खुदवाइस है ऊ भरवाए। हमका तुम निरी बावली समझे हो का, जो करे दूसर भरें हम? रजमानी चटख गई।
हम अकेले थोड़ी समझत हैं। सारा मोहल्ला तोका बावली समझत है। ननकू ने धीरे से कहा और बीड़ी का सिरा दांत से कुतर होंठों में दबा उसने बीड़ी सुलगाई।
रजमानी उसी तरह झटकती-पटकती चाल से चंदन हलवाई की दुकान पर जा खड़ी हो गई। गरम-गरम जलेबी कड़ाही से निकलकर शीरे में तैर रही थी। जलेबी खाने और खरीदने वालों की भीड़ लगी थी। रमजानी जाकर बेंच पर बैठ गई।
कुछ पल में ही खरीददार छंट गए तो चंदन उसकी तरफ देखे बिना बोला, कैसी हो, रमजानी?
अच्छी हूँ, तुम बताओ? पीने की लत छोडे हो कि नहीं?
आदत कभी छूटै के लिए लागत है? चंदन हँसा, फिर छन्ना डाल शीरे से जलेबी थाली में डाल बोला, कितनी तुलवाएं? आधा किलो जलेबी, पाव भर दही। कह रमजानी ने जंफर के गले में हाथ डाल छोटा-सा पर्स निकाला और पैसे गिने। अरे रमजानी, कैसी हो? बहुत दिनों बाद दिखी। सब कुशल-मंगल? सोना महाराजिन सिर पर पल्लू संभालते हुए रुककर बोली।
सब भला-चंगा है। तुम सुनाओ सोना, कैसी गुजरत है? थैली पकड़ रमजानी सोना के करीब पहुँचकर बोली।
मझली के घर बिटिया भई है। आओ किसी दिन, आशीर्वाद दे जाओ न। सोना बोली।
यह भी कहे की बात है! हमारे तरफ से बधाई, जुग-जुग जिए। हम आवेंगे बिटिया से मिलने, आवेंगे। रमजानी ने कहा और तेजी से कदम बढ़ाती आगे बढ़ी।
सामने से गधेवाला पाँच-छह गधों को हांकता चला आ रहा था। सबकी पीठ पर ईंटें लदी थीं। सामने से आती मोटर साइकिल की आवाज से गधे बिचके और तंग गली में छितर गए। रास्ता बंद हो गया। रमजानी एक कोने में बिदककर खड़ी हो गई। कुछ राहगीर भी टक्कर से बचने के लिए नाली पर रखे पत्थर पर चढ़कर खड़े हो गए।
का आन्हर भंइसा की तरह चले आ रहे हो? ई का बात हुई, पूरी गली छेंक लिए हो। अब आदमी जाए तो किधर से जाए? रमजानी खीजकर बोली।
लेव जाओ। गधेवाला ने सोंटा लहराया। गधे एक के पीछे एक हो लिए। धीरे-धीरे रास्ता साफ हो गया।
गली की रौनक धीरे-धीरे घटने लगी। स्कूल और दफ्तर जाने वाले अपने-अपने काम पर निकल गए थे। घरों के दरवाजे बंद हो गए थे। धूप आड़ी-तिरछी हो तंग गली में घुसने की कोशिश में लगी हुई थी। ट्रांजिस्टर पर गाने का फरमाइशी कार्यक्रम खत्म होकर अब खबर आनी शुरू हो गई थी, जिसको सुनने वाला गली में कोई नहीं बचा था, सिवाय धोबी के, जो मेज पर फैले कपड़े पर तेजी से इस्त्री चला रहा था कि बिजली के रहते-रहते वह अधिक-से-अधिक कपड़ों को निपटा दे।
कई जिलों में पानी की जाँच से पता चला है कि नलकूप से आने वाला पानी पीने लायक नहीं है। भोजपुर जिले में पानी में हारसेनी-जो एक प्रकार का विष है-की मात्रा बहुत अधिक पाई गई है, जिसका सेवन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। अब सारे नलकूप सील कर दिए गए हैं और उस इलाके में टैंकर की सहायता से जनता को सरकार जल उपलब्ध करवा रही है।
ई भोर से कांय-कांय करत है, अब तो एका बंद करो। धोबन ने अंदर कोठरी से हांक लगाई, मगर उसकी आवाज धोबी तक नहीं पहुँची। उसके दिमाग में इस समय ग्राहकों के हिसाब का जोड़-घटाव चल रहा था। रेडियो से समाचार प्रसारित होता रहा-
बताया गया है कि रासायनिक खादों का अत्यधिक प्रयोग इसका कारण है, जिसने मिट्टी में नीचे तक अपनी पैठ बना ली है और धरती के अंदर के पानी में घुल-मिलकर पानी को जहरीला बना दिया है। इस पानी का प्रयोग हानिकारक है। यह भी शोध से पता चला है कि अत्यधिक सिंचाई और एक वर्श में तीन-तीन फसल उगाने की उत्सुकता ने मिट्टी में लवण की मात्रा बराकर बढ़ रही है और कोई आश्चर्य की बात नहीं कि कल यह भूमि फसल उगाने के काबिल ही न रह जाए।
कान में तेल डाल के बैठे रहो! धोबन ने बाहर निकलकर रेडियो बंद किया और कोठरी में जा आटा गूंधने लगी। धोबी उसी तरह इस्त्री कपड़ों पर चलाता रहा।
बकरीवाली गली के पीछे कस्साबों की कई दुकानें एक के बाद एक पड़ती थीं। मक्खी भगाने के लिए सभी ने अपने दरवाजों पर चिक डाल रखी थी। दो-दो पंखे आमने-सामने लगा रहे थे, मगर मक्खियों को नहीं रोक पाए थे, जो गलियों और घरों के आंगन से गुजरती, हर जगह मौजूद रही थीं। आज सभी की दुकानें पानी आने से धुल-धुलाकर चमक रही थीं। पंखे भी चल रहे थे। दोपहर होने को आई, मगर लू के थपेड़े नहीं चले। मौसम शांत था। दूसरे दिनों के देखते आज गरमी कुछ कम थी। सामने बने पार्क में घास का नाम न था। सुअरों ने अपनी थूथनी से जमीन खोद डाली थी। बस एक-दो पेड़ खड़े थे। उस पार्क की रेलिंग पर यहाँ से वहाँ तक रंग-बिरंगे छोटे-बड़े कपड़े फैले हुए थे। एक दिन पानी ठीक से आया, सारा काम निपट गया; मगर पता नहीं क्या हिसाब है-गरमी में सूखा, बरसात में बाढ़। कुरैशी फ्रेश मीट के मालिक ने चाय का घूंट भरते हुए कहा।
हाँ, अखबार उठाओ तो जी खराब हो जाता है। जगह-जगह मार-काट, बम विस्फोट और भ्रष्टाचार।' पड़ोस की दुकानवाले लाला ने कहा।
पानी की ऐसी किल्लत हमारे बचपन में नहीं थी। कुरैशी ने याद किया।